Tuesday, 8 September 2020

Dhyanlingam itihas

 https://www.youtube.com/watch?v=KjeWYpqt9os

Monday, 10 August 2020

भारतीय "गणित ग्रन्थ",

 भारतीय "गणित ग्रन्थ", नाम ही पढ़ लो तो बहुत है पता नहीं कितने बचे है और कितने चुराए गए या जला दिए गए मुगलों द्वारा

- ग्रंथ -- रचनाकार
#वेदांग ज्योतिष -- लगध
#बौधायन शुल्बसूत्र -- बौधायन
#मानव शुल्बसूत्र -- मानव
#आपस्तम्ब शुल्बसूत्र -- आपस्तम्ब
#सूर्यप्रज्ञप्ति --
#चन्द्रप्रज्ञप्ति --

#स्थानांग सूत्र --
#भगवती सूत्र --
#अनुयोगद्वार सूत्र
#बख्शाली पाण्डुलिपि
#छन्दशास्त्र -- पिंगल
#लोकविभाग -- सर्वनन्दी

#आर्यभटीय -- आर्यभट प्रथम
#आर्यभट्ट सिद्धांत -- आर्यभट प्रथम
#दशगीतिका -- आर्यभट प्रथम
#पंचसिद्धान्तिका -- वाराहमिहिर
#महाभास्करीय -- भास्कर प्रथम
#आर्यभटीय भाष्य -- भास्कर प्रथम
#लघुभास्करीय -- भास्कर प्रथम
#लघुभास्करीयविवरण -- शंकरनारायण

#यवनजातक -- स्फुजिध्वज
#ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त -- ब्रह्मगुप्त
#करणपद्धति -- पुदुमन सोम्याजिन्
#करणतिलक -- विजय नन्दी
#गणिततिलक -- श्रीपति
#सिद्धान्तशेखर -- श्रीपति
#ध्रुवमानस -- श्रीपति

#महासिद्धान्त -- आर्यभट द्वितीय
#अज्ञात रचना -- जयदेव (गणितज्ञ), उदयदिवाकर की सुन्दरी नामक टीका में इनकी विधि का उल्लेख है।
#पौलिसा सिद्धान्त --
#पितामह सिद्धान्त --
#रोमक सिद्धान्त --
#सिद्धान्त शिरोमणि -- भास्कर द्वितीय
#ग्रहगणित -- भास्कर द्वितीय
#करणकौतूहल -- भास्कर द्वितीय

#बीजपल्लवम् -- कृष्ण दैवज्ञ -- भास्कराचार्य के 'बीजगणित' की टीका
#बुद्धिविलासिनी -- गणेश दैवज्ञ -- भास्कराचार्य के 'लीलावती' की टीका
#गणितसारसंग्रह -- महावीराचार्य
#सारसंग्रह गणितमु (तेलुगु) -- पावुलूरी मल्लन (गणितसारसंग्रह का अनुवाद)

#वासनाभाष्य -- पृथूदक स्वामी -- ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त का भाष्य (८६४ ई)

#पाटीगणित -- श्रीधराचार्य
#पाटीगणितसार या त्रिशतिका -- श्रीधराचार्य
#गणितपञ्चविंशिका -- श्रीधराचार्य
#गणितसार -- श्रीधराचार्य
#नवशतिका -- श्रीधराचार्य

#क्षेत्रसमास -- जयशेखर सूरि (भूगोल/ज्यामिति विषयक जैन ग्रन्थ)
#सद्रत्नमाला -- शंकर वर्मन ; पहले रचित अनेकानेक गणित-ग्रन्थों का सार

#सूर्य सिद्धान्त -- रचनाकार अज्ञात ; वाराहमिहिर ने इस ग्रन्थ का उल्लेख किया है।
#तन्त्रसंग्रह -- नीलकण्ठ सोमयाजिन्
#वशिष्ठ सिद्धान्त --
#वेण्वारोह -- संगमग्राम के माधव
#युक्तिभाषा या 'गणितन्यायसंग्रह' (मलयालम भाषा में) -- ज्येष्ठदेव
#गणितयुक्तिभाषा (संस्कृत में) -- रचनाकार अज्ञात

#युक्तिदीपिका -- शंकर वारियर
#लघुविवृति -- शंकर वारियर
#क्रियाक्रमकरी (लीलावती की टीका) -- शंकर वारियर और नारायण पण्डित ने सम्मिलित रूप से रची है।
#भटदीपिका -- परमेश्वर (गणितज्ञ) -- आर्यभटीय की टीका

#कर्मदीपिका -- परमेश्वर -- महाभास्करीय की टीका
#परमेश्वरी -- परमेश्वर -- लघुभास्करीय की टिका
#विवरण -- परमेश्वर -- सूर्यसिद्धान्त और लीलावती की टीका

#दिग्गणित -- परमेश्वर -- दृक-पद्धति का वर्णन (१४३१ में रचित)
#गोलदीपिका -- परमेश्वर -- गोलीय ज्यामिति एवं खगोल (१४४३ में रचित)
#वाक्यकरण -- परमेश्वर -- अनेकों खगोलीय सारणियों के परिकलन की विधियाँ दी गयी हैं।

#गणितकौमुदी -- नारायण पंडित
#तगिकानि कान्ति -- नीलकान्त
#यंत्रचिंतामणि -- कृपाराम
#मुहर्ततत्व -- कृपाराम

#भारतीय ज्योतिष (मराठी में) -- शंकर बालकृष्ण दीक्षित
#दीर्घवृत्तलक्षण -- सुधाकर द्विवेदी
#गोलीय रेखागणित -- सुधाकर द्विवेदी
#समीकरण मीमांसा -- सुधाकर द्विवेदी
#चलन कलन -- सुधाकर द्विवेदी

#वैदिक गणित -- स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ
#सिद्धान्ततत्वविवेक -- कमलाकर
#रेखागणित -- जगन्नाथ सम्राट
#सिद्धान्तसारकौस्तुभ -- जगन्नाथ सम्राट
#सिद्धान्तसम्राट -- जगन्नाथ सम्राट
#करणकौस्तुभ -- कृष्ण दैवज्ञ

आज की पीढ़ी किस किताब को पढ़ रही है...

इन गणित वैज्ञानिकों के नाम किताबो में क्यो नहीं है...
क्यो की ये सब हिन्दू थे और गुरुकुल के महर्षि थे...

यदि देश के पहले 5 शिक्षा मंत्री मुस्लिम रहेंगे तो सिलेबस भी बैसे रहेंगे....

चलिए आपको कुछ बताते है
+_+_+_+_+_+_+_+_+_+_×_+

गणित के बच्चो के लिए... कितना समृद्ध था प्राचीन वैदिक गणित
।। वर्ग की एक अन्य सर्वसमिका (Identity) ।।
।। मानस-गणित (Vedic-Mathematics) ।।

हमारे वैदिक संस्कृति की दिव्यता के वर्णन में गणित की बीजगणितीय शाखा के एक सर्वसमिका (Identity) की चर्चा करेंगे जो हमारे प्राचीन गणितीय ज्ञान को न सिर्फ प्रमाणित करेगा बल्कि गणित को सरल तथा रोचक बनाने में मदद करेगा।
.
—श्रीधराचार्य ने की एक विधि के अन्तर्गत एक अन्य प्रसिद्ध सर्वसमिका प्रकट की है।

इष्टोनयुतवधो वा तदिष्ट-वर्गान्वितो वर्गाः।
( —त्रिशतिका, श्लोक - 11)
.
अर्थात :-
जिस संख्या का वर्ग करना है, उसमें किसी इष्ट संख्या को घटावें तथा उसमें उसी को जोड़े। पुनः घटाई गई तथा जोड़ी गई संख्या का आपस में गुणन करें तथा तथा इस गुणनफल में इष्ट संख्या को जोड़ने से उस संख्या का वर्ग प्राप्त होता है।
.
—भास्कराचार्य द्वारा

इष्टोनयुग्राशिवधः कृतिः स्यादिष्टस्य वर्गेण समन्वितो वा।
( —लीलावती, अभिन्नपरिकर्माष्टक, श्लोक - 9)
.
अर्थात :-
वर्ग करने योग्य संख्या से किसी कल्पित संख्या को एक जगह जोड़कर तथा दूसरी जगह घटाकर उन दोनों योगान्तरों के गुणनफल में उस कल्पित संख्या का वर्ग जोड़ देने से उस आलोच्य संख्या का वर्ग प्राप्त होता है।

—प्राचीन गणित का प्रसिद्ध कथन
.
वरगान्तरं तु योगान्तरघातसमो भवन्ति।
.
अर्थात :-
किन्हीं दो वर्ग संख्याओं का अन्तर उन्ही संख्याओं के योग तथा अन्तर के फलों के गुणन के समतुल्य होता है।

इस नियम को गणित की भाषा में इस प्रकार लिखते हैं —
a² = ( a + b) × ( a - b) + b²

उदाहरण (Example) :-
( 67) ² = ( 67 + 3) × ( 67 - 3) + 3 ²
= 70 × 64 + 9
= 4489 ( उत्तर)
.
इस सूत्र पर समीकरण के नियम का उपयोग करते हुए हम यह सर्वसमिका ( Identity) प्राप्त करते हैं —
a ² — b ² = ( a + b) ( a - b)
उपरोक्त सूत्र का प्रयोग गणित के विभिन्न अध्याय में होता है जो कि विषय को सरलता तथा मनोरंजक तरीके से हल करने के लिए आवश्यक है।
अभ्यास (Exercise) :-
(1) (67) ² (2) 43 × 37 (3) 66 × 54 (4) 35 ² - 14 ² (5) 69 ² - 49 ²

—×—
।। देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा।

Friday, 3 July 2020

अष्टांग योग का चक्रों से संबंध
आयुर्वेद में बताया गया है कि जीवन में सदाचार को प्राप्त करने का साधन योग मार्ग को छोड़कर दूसरा कोई नहीं है। नियमित अभ्यास और वैराग्य के द्वारा ही योग के संपूर्ण लाभ को प्राप्त किया जा सकता है। हमारे ऋषि मुनियों ने शरीर को ही ब्रम्हाण्ड का सूक्ष्म मॉडल माना है। इसकी व्यापकता को जानने के लिए शरीर के अंदर मौजूद शक्ति केन्द्रों को जानना ज़रूरी है। इन्हीं शक्ति केन्द्रों को ही ‘’चक्र कहा गया है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में आठ चक्र होते हैं। ये हमारे शरीर से संबंधित तो हैं लेकिन आप इन्हें अपनी इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं कर सकते हैं। इन सारे चक्रों से निकलने वाली उर्जा ही शरीर को जीवन शक्ति देती है। आयुर्वेद में योग, प्राणायाम और साधना की मदद से इन चक्रों को जागृत या सक्रिय करने के तरीकों के ब्बारे में बताया गया है। आइये इनमें से प्रत्येक चक्र और शरीर में उसके स्थान के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Contents
1 आठ चक्रों का वर्णन :
1.1 1- मूलाधर चक्र :
1.2 2- स्वाधिष्ठान चक्र :
1.3 3- मणिपूर चक्र :
1.4 4- अनाहत चक्र :
1.5 5- विशुद्धि चक्र :
1.6 6- आज्ञा चक्र :
1.7 7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :
1.8 8 – सहस्रार चक्र :
2 योग और अष्टचक्र का संबंध :
3 योग क्या है :
4 महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग :
4.1 1- यम :
4.1.1 अहिंसा :
4.1.2 सत्य :
4.1.3 अस्तेय :
4.1.4 ब्रम्हचर्य :
4.1.5 अपरिग्रह:
4.2 2- नियम :
4.3 3- आसन :
4.4 4- प्राणायाम :
4.5 5- प्रत्याहार :
4.6 6- धारणा :
4.7 7- ध्यान:
4.8 8- समाधि :
आठ चक्रों का वर्णन :
1- मूलाधर चक्र :
यह चक्र मलद्वार और जननेन्द्रिय के बीच रीढ़ की हड्डी के मूल में सबसे निचले हिस्से से सम्बन्धित है। यह मनुष्य के विचारों से सम्बन्धित है। नकारात्मक विचारों से ध्यान हटाकर सकारात्मक विचार लाने का काम यहीं से शुरु होता है।
2- स्वाधिष्ठान चक्र :
यह चक्र जननेद्रिय के ठीक पीछे रीढ़ में स्थित है। इसका संबंध मनुष्य के अचेतन मन से होता है।
3- मणिपूर चक्र :
इसका स्थान रीढ़ की हड्डी में नाभि के ठीक पीछे होता है। हमारे शरीर की पूरी पाचन क्रिया (जठराग्नि) इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है। शरीर की अधिकांश आतंरिक गतिविधियां भी इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है।
4- अनाहत चक्र :
यह चक्र रीढ़ की हड्डी में हृदय के दांयी ओर, सीने के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे मौजूद होता है। हमारे हृदय और फेफड़ों में रक्त का प्रवाह और उनकी सुरक्षा इसी चक्र द्वारा की जाती है। शरीर का पूरा नर्वस सिस्टम भी इसी अनाहत चक्र द्वारा ही नियत्रित होता है।
5- विशुद्धि चक्र :
गले के गड्ढ़े के ठीक पीछे थायरॉयड व पैराथायरॉयड के पीछे रीढ की हड्डी में स्थित है। विशुद्धि चक्र शारीरिक वृद्धि, भूख-प्यास व ताप आदि को नियंत्रित करता है।
6- आज्ञा चक्र :
इसका सम्बन्ध दोनों भौहों के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर स्थित पीनियल ग्रन्थि से है। यह चक्र हमारी इच्छाशक्ति व प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है। हम जो कुछ भी जानते या सीखते हैं उस संपूर्ण ज्ञान का केंद्र यह आज्ञा चक्र ही है।
7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :
यह चक्र हाइपोथेलेमस में स्थित है। इसका कार्य हृदय से सम्बन्ध स्थापित करके मन व भावनाओं के अनुरूप विचारों, संस्कारों व मस्तिष्क में होने वाले स्रावों का आदि का निर्माण करना है, इसे हम मन या भावनाओं का स्थान भी कह सकते हैं।
8 – सहस्रार चक्र :
यह चक्र सभी तरह की आध्यात्मिक शक्तियों का केंद्र है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क व ज्ञान से है। यह चक्र पीयूष ग्रन्थि (पिट्युटरी ग्लैण्ड) से सम्बन्धित है।
इन आठ चक्र (शक्तिकेन्द्रों) में स्थित शक्ति ही सम्पूर्ण शरीर को ऊर्जान्वित (एनर्जाइज), संतुलित (Balance) व क्रियाशील (Activate) करती है। इन्हीं से शारीरिक, मानसिक विकारों व रोगों को दूर कर अन्तःचेतना को जागृत करने के उपायों को ही योग कहा गया है।
अष्टचक्र व उनसे संबंधित स्थान एवं कार्य
क्र. सं.
संस्कृत नाम
अंग्रेजी नाम
शरीर में स्थान
संबंधित अवयव व क्रियाएं
चक्र की शक्ति निष्क्रिय रहने से उत्पन्न होने वाले रोग
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर क्रियाएं
क्रिया शरीरगत तंत्र
1-
मूलाधार चक्र
Root cakra or pelvic plexus or coccyx center
रीढ़ की हड्डी
उत्सर्जन तत्र, प्रजनन तत्र, गुद, मूत्राशय
मूत्र विकार, वृक्क रोग, अश्मरी व रतिज रोग
अधिवृक्क ग्रन्थि
उत्सर्जन तंत्र मूत्र व प्रजनन तत्र
2-
स्वाधिष्ठान चक्र
Sacral or sexual center
नाभि के नीचे
प्रजनन तत्र
बन्ध्यत्व, ऊतक विकार, जननांग रोग
अधिवृक्क ग्रन्थि
प्रजनन तंत्र
3-
मणिपूर चक्र
Solar plexus or lumbar center or epigastric Sciar plexus
छाती के नीचे
आमाशय, आत्र, पाचन तंत्र, संग्रह व स्रावण
पाचन रोग, मधुमेह, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी
लैगरहेन्स की द्वीपिकायें (अग्न्याशयिक ग्रन्थि)
पाचन तंत्र
4-
अनाहत चक्र
Heart chakra or cardiac plexus or dorsal center
छाती या सीने का का बीच वाला हिस्सा (वक्षीय कशेरुका)
हृदय, फेफड़े , मध्यस्तनिका, रक्त परिसंचरण, प्रतिरक्षण तत्र, नाड़ी तत्र
हृदय रोग, रक्तभाराधिक्य (रक्तचाप)
थायमस ग्रन्थि (बाल्य ग्रन्थि)
रक्त परिसंचरण तत्र, श्वसन तंत्र , स्वतः प्रतिरक्षण तंत्र
5-
विशुद्धि चक्र
Carotid plexus or throat or cervical center
थायराइड और पैराथायरइड ग्रन्थि
ग्रीवा, कण्ठ, स्वररज्जु, स्वरयत्र,
चयापचय, तापनियत्रण
श्वास, फेफड़ों से जुड़े रोग, अवटु ग्रन्थि, घेंघा
अवटु ग्रन्थि
श्वसन तंत्र
6-
आज्ञा चक्र
Third eye or medullary plexus
अग्रमस्तिष्क का केन्द्र
मस्तिष्क तथा उसके समस्त कार्य, एकाग्रता, इच्छा शक्ति
अपस्मार,
मूर्च्छा, पक्षाघात आदि अवसाद
पीनियल ग्रन्थि
तत्रिका तंत्र
7-
मनश्चक्र या
बिन्दुचक्र
Lower mind plexus or hypothalamus
(चेतक)
थेलेमस के नीचे
मस्तिष्क, हृदय, समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का नियत्रण, निद्रा आवेग, मेधा, स्वसंचालित तत्रिका तत्र समस्थिति
मनःकायिक तथा तत्रिका तत्र
पीयूष ग्रन्थि
संवेदी तथा प्रेरक तंत्र
8-
सहस्रार चक्र
Crown chakra or cerebral gland
कपाल के नीचे
आत्मा, समस्त सूचनाओं का निर्माण, अन्य स्थानों का एकत्रीकरण
हार्मोन्स का असंतुलन, चयापचयी विकार आदि
पीयूष ग्रन्थि
केन्द्रीय तत्रिका तंत्र (अधश्चेतक के
द्वारा)
योग और अष्टचक्र का संबंध :
अष्ट चक्रों को जानने व उनके अन्दर स्थित शक्तियों को जागृत व उर्ध्वारोहण के लिए क्या योग है? इसको समझना बहुत आवश्यक है। हर एक योग किसी ना किसी चक्र को जागृत करता है.

Friday, 26 June 2020

वैदिक ग्रंथो में इसी ""भूचुम्बकत्व को ही शेषनाग कहा गया"" है.

हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है... और, जब वो (शेषनाग) थोड़ा सा हिलते है... तो, भूकंप आता है..!
और, अंग्रेजी स्कूलों के पढ़े... तथा, हर चीज को वैज्ञानिक नजरिये से देखने वाले आज के बच्चे.... हमारे धर्मग्रंथ की इस बात को हँसी में उड़ा देते हैं...
एवं, वामपंथियों और मलेच्छों के प्रभाव में आकर इसका मजाक उड़ाते हैं..!
दरअसल, हमारी "पृथ्वी और शेषनाग वाली बात" महाभारत में इस प्रकार उल्लेखित है...
"अधॊ महीं गच्छ भुजंगमॊत्तम; सवयं तवैषा विवरं परदास्यति।
इमां धरां धारयता तवया हि मे; महत परियं शेषकृतं भविष्यति।।"
(महाभारत आदिपर्व के आस्तिक उपपर्व के 36 वें अध्याय का श्लोक )
इसमें ही वर्णन मिलता है कि... शेषनाग को ब्रह्मा जी धरती को धारण करने को कहते हैं... और, क्रमशः आगे के श्लोक में शेषनाग जी आदेश के पालन हेतु पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लेते हैं.
लेकिन इसमे लिखा है कि... शेषनाग को.... हमारी पृथ्वी को... धरती के "भीतर से" धारण करना है... न कि, खुद को बाहर वायुमंडल में स्थित करके पृथ्वी को अपने ऊपर धारण करना है.
इसमें शेषनाग की परिभाषा है:
[ विराम प्रत्ययाभ्यास पूर्वः संस्कार शेषोअन्यः ]
अर्थात.... रुक - रुक कर, विशेष अभ्यास , पूर्व के संस्कार [चरित्र /properties] हैं ...तथा, शेष माइक्रो/सूक्ष्म लहर हैं.
परिभाषा के अनुसार... कुल नाग (दीर्घ तरंग) और सर्प (सूक्ष्म तरंग) की संख्या 1000 हैं.
जिसमें से... शेषनाग {सूक्ष्म /दीर्घ तरंग} या शेषनाग की कुण्डलिनी उर्जा की संख्या 976 हैं... तथा, 24 अन्य नाग या तरंग हैं.
और, यह जानकर आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा कि...
आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार भी....
यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी को स्थलमण्डल, एस्थेनोस्फीयर , मध्यवर्ती मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बांटा गया है.
एवं, रासायनिक संरचना के आधार पर भूपर्पटी , ऊपरी मैंटल , निचला मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बाँटा जाता है.
समझने वाली बात यह है कि...
पृथ्वी के ऊपर का भाग... भूपर्पटी प्लेटों से बनी है... और, इसके नीचे मैन्टल होता है.... जिसमें मैंटल के इस निचली सीमा पर दाब ~140 GPa पाया जाता है.
और, मैंटल में संवहनीय धाराएँ चलती हैं.... जिनके कारण स्थलमण्डल की प्लेटों में गति होती है.
और, इन गतियों को रोकने के लिए एक बल काम करता है... जिसे, भूचुम्बकत्व कहते है.
इसी भूचुम्बकत्व की वजह से ही... टेक्टोनिक प्लेट जिनसे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है... और, वो स्थिर रहती है...तथा, उसमें कहीं भी कोई गति नही होती.
हमारे शास्त्रों के अनुसार....
शेषनाग के हजारो फन हैं...
अर्थात, भूचुम्बकत्व में हजारों मैग्नेटिक वेब्स है.
और... शेषनाग के शरीर अंत में एक हो जाते हैं.... मतलब एक पूंछ है...
मतलब कि... भूचुम्बकत्व की उत्पत्ति का केंद्र एक ही है.
इसी तरह ये कहना कि... शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पे टिका रखा है का मतलब हुआ कि.... भूचुम्बकत्व की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है.
और, शास्त्रों का ये कहना कि...
शेषनाग के हिलने से भूकंप आता है से तात्पर्य है कि.... भूचुम्बकत्व के बिगड़ने (हिलने) से भूकंप आता है।
ध्यान रहे कि.... हमारे वैदिक ग्रंथो में इसी ""भूचुम्बकत्व को ही शेषनाग कहा गया"" है.
जानने लायक बात यह है कि... क्रोड का विस्तार मैंटल के नीचे है अर्थात 2890 किमी से लेकर पृथ्वी के केन्द्र तक.
किन्तु यह भी दो परतों में विभक्त है - बाह्य कोर और आतंरिक कोर.
जहाँ, बाह्य कोर तरल अवस्था में पाया जाता है... क्योंकि यह द्वितीयक भूकंपीय तरंगों (एस-तरंगों) को सोख लेता है.
इसीलिए, हमारे धर्मग्रंथों का यह कहना कि.... पृथ्वी शेषनाग के फन पे स्थित है... मात्र कल्पना नहीं बल्कि एक सत्य है कि... पृथ्वी शेषनाग (भू-चुम्बकत्व) की वजह से ही टिकी हुई है या शेषनाग के फन पे स्थित है.... और, उनके हिलने से ही भूकंप आते हैं.
अब चूंकि, इतने गूढ़ और वैज्ञानिक रहस्य सबको एक एक समझाना बेहद दुष्कर कार्य था... इसीलिए, हमारे पूर्वजों ने इसे एक कहानी के रूप में पिरो कर हमारे धर्मग्रंथों में संरक्षित कर दिया...!
और, विडंबना देखें कि... आज हम अपने पूर्वजों द्वारा संचित ज्ञान को समझ कर उसपर गर्व करने की जगह उसकी खिल्ली उड़ाने को अपनी शान एवं आधुनिकता समझते हैं.
जय महाकाल...!!!
#Kumar_satish

Tuesday, 16 June 2020

जो कहते हैं कि वैदिक विज्ञान से आजतक एक सूई भी नहीं बनाई गई है.
जबकि, हमारा शुरू से ही ये कहना है कि... हमारी सनातन संस्कृति और रस्मो-रिवाज हमेशा से ज्ञान-विज्ञान से समृद्ध रही है, आज भी है, और हमेशा ही रहेगी.
यह एक गर्भ प्रतिमा कुंडादम वडक्कुनाथ स्वामी मंदिर (कोयंबटूर से लगभग 70 किमी) की एक दीवार पर खुदी हुई है.
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है एवं तमिलनाडु के धर्मपुरम में स्थित है और हजारों साल पुरानी मानी जाती है.
आप एक सहज कल्पना कीजिए कि... अल्ट्रा-साउंड की खोज से लगभग हजार साल पहले ही उस समय के लोगों को यह जानकारी कैसे मिली होगी... जो, आज भी बिना अल्ट्रा साउंड के देख पाना संभव नहीं है.
इस मंदिर की अन्य दीवारों पर... हर महीने अजन्मे बच्चे की स्थिति की एक मूर्ति उकेरी गयी है.
जिसमें.... Fertilization process से लेकर भ्रूण के 1 महीने से लेकर 9 महीने तक की आकृति है .(फ़ोटो संलग्न)
मतलब कि Electron Microscope से लेकर अल्ट्रा-साउंड तक से देखे जाने वाली आकृति... आज से हजारों साल पहले ही हमारे मंदिरों के दीवारों पर उकेर दी गई थी.
परंतु.... वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इतनी उन्नत सभ्यता होने के बावजूद भी हमें साँप पकड़ने वाला देश और अनपढ़ देश कहा गया... हमारे टेक्स्ट बुक लिखने वाले वामपंथी इतिहासकारों द्वारा.
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि.... तेजोमहालिया से लेकर लालकिला, आगरा के किला एवं हमारे ध्रुव स्तंभ (कुतुबमीनार) को आक्रांताओं द्वारा बनवाया हुआ बता दिया गया.
शायद, वे ये साबित करना चाहते थे कि... जिस अरब और रेगिस्तान से वे आक्रांता हमारे देश आये थे.... वे कबीलाई लोग... अपने मूल देश में तो एक शौचालय तक नहीं बनवा पाने वाले लोगों ने...
लेकिन, हिंदुस्तान में कदम रखते ही... उनकी रचनात्मकता जाग गई और हिंदुस्तान में उन्होंने ऐतिहासिक धरोहरों की लाइन लगा दी.
खैर.... मंदिर की रचनात्मकता और मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई ये अनमोल जानकारियाँ....
हमारे हिंदू सनातन धर्म को दुनिया का सबसे पुराना, पहला और अंतिम वैज्ञानिक धर्म साबित करने के लिए काफी है.
क्योंकि... धर्म होता केवल एक ही है ...बाकि, सब व्यक्तिगत बनाए मत होते हैं और सनातन से निकली शाखा केवल पंथ ही कहलाती हैं.
हमारे सनातन धर्म ने दुनिया को विज्ञान दिया... उसे चीजों को समझने की दृष्टि दी, जीने की कला दी, साहित्य दिया, संस्कृति दी, विमान का विज्ञान दिया, चिकित्सा विज्ञान एवं अर्थशास्त्र दिया.
इसका कारण ये है कि.... हमारा सनातन धर्म लाखों, करोड़ो वर्षों से वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहा है और हमारे ऋषि-मुनियों ने विज्ञान की नींव रखी है.
हमारे सनातन ऋषियों ने तपस्या कर अपनी हड्डियों को पिघलाने के बाद, विज्ञान और दर्शन को दुनिया के लिए दृश्यमान बना दिया है.
और... पूरी दुनिया कभी भी सनातन ऋषियों के ऋण से मुक्त नहीं होगी.
इसीलिए... हमें अपने पूर्वजों एवं खुद पर गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे महान सनातन धर्म का एक हिस्सा हैं जो वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है.

Thursday, 21 May 2020

रसोई घर को चौका कहा जाता है । जहाँ चार बातों का विचार किया जाता है वह है चौका । चार बातें हैं -
1 . कब
2 . कितना
3 . कैसे
4 . क्या ।
मतलब कब खाना ?
कितना खाना ?
कैसे खाना ?
और क्या खाना ?
कल तक चौके को रसोई घर कहा जाता था ,
आज वह किचन हो गया है ।
रसोई घर और किचन में अन्तर है ।
जहाँ रस बरसे वह रसोई है तथा जहाँ किच - किच हो वह किचन है ।
दबा - दबा कर खाएगा तो फिर दवाखाना भी जाएगा ।

Thursday, 7 May 2020

#महाभारत_में_आज
इस गांव को लोग अमीन के नाम से भी जानते हैं
👉 खट्टर सरकार की पहल पर केंद्र सरकार ने इसका नाम बापिस अभिमन्युपुर रख दिया है।
👉 इसी जगह पर रचा गया था चक्रव्यूह, 7 महारथियों ने घेरकर मारा था अभिमन्यु को
👉 अमीन (अभिमन्युपुर)में द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह रचा था जिसमें अर्जुन के बेटे अभिमन्यु को वीरगति मिली थी।
अमीन गांव के पास बने फोर्ट में बना है चक्रव्यूह।
👉 अभी हाल ही में कुरुक्षेत्र को धार्मिक नगरी घोषित किया गया है।
कुरुक्षेत्र में ही महाभारत का युद्ध हुआ था
👉👉👉 वर्तमान में थानेश्वर से करीब 8 किमी दिल्ली-अंबाला रेलमार्ग पर है।
👉👉👉 -इसका विस्तृत वर्णन महाभारत के द्रोण पर्व के पेज 714-717 पर मिलता है। पास की खाई में अर्जुन ने कर्ण को मारा था
-अमीन शब्द को अभिमन्यु से संबंधित कहा जाता है।
👉 -इसी गांव के पास कर्णवेध नाम की एक खाई है जहां अर्जुन ने कर्ण को मारा था।
👉 अमीन गांव के पास ही एक जयधर जगह है जहां जयद्रथ को अर्जुन ने मारा था।
🚩Manish Soni🚩
🙏जयश्रीकृष्ण🙏चित्र में ये शामिल हो सकता है: आकाश और बाहरफ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.

Wednesday, 29 April 2020

संभलने की जरूरत है !!
1. चोटियां छोड़ी,
2. टोपी, पगड़ी छोड़ी,
3. तिलक, चंदन छोड़ा,
4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी,
5. यज्ञोपवीत छोड़ा,
6. संध्या-वंदन छोड़ा,
7. रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा,
8. महिलाओं, लड़कियों ने साड़ी छोड़ी, बिछियां छोड़े, चूड़ी छोड़ी, दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग बिन्दी छोड़ी,
9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (आया पालती है)
10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी छोड़ी,
11. श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी,
12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े,
13. सुबह शाम मिलने पर राम राम छोड़ी,
14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े,
15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार)
अब कोई रीति या परंपरा बची है? ऊपर से नीचे तक गौर करो, तुम कहां पर हिन्दू हो? भारतीय हो? सनातनी हो? ब्राह्मण हो? क्षत्रिय हो? वैश्य हो? या कुछ और हो कहीं पर भी ऊंगली रखकर बता दो कि हमारी परंपरा को मैंने ऐसे जीवित रखा है? जिस तरह से हम धीरे धीरे बदल रहे हैं- जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।
बौद्धों ने कभी सर मुंड़ाना नहीं छोड़ा!
सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया!
मुसलमानों ने न दाढ़ी छोड़ी और न ही 5 बार नमाज पढ़ना!
ईसाई भी संडे को चर्च जरूर जाता है!
फिर हिन्दू अपनी पहचान-संस्कारों से क्यों दूर हुआ?
कहाँ लुप्त हो गयी- गुरुकुल की शिक्षा, यज्ञ, शस्त्र-शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार ?
हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं।
अपनी पहचान बनाओ!
अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ!!!
मेरे पास आया और मैंने आगे भेजा। आप भी सभी हिन्दूओं को भेजे व अपने संस्कृति को बचाने में सहयोग करें.... धन्यवाद।

Saturday, 18 April 2020

श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
नहीं तो जानिये-
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | शेयर करे ताकि हर हिंदू इस जानकारी को जाने..।
यह जानकारी महीनों के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है ।
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