Samaadhan

Thursday, 31 January 2013

भारतीय सनातन संस्कृति

मित्रो, महाकुम्भ को हावर्ड विश्वविद्यालय ने केस स्टडी के शामिल किया है,
हावर्ड जानना चाहता है कि आखिर सनातन/हिंदुत्व में ऐसी क्या खास बात है कि पूरी दुनिया के लोग हिंदुत्व के तरफ आशा भरी नजरो से देख रहे हैं ..

एकमात्र सनातन/हिंदुत्व ऐसा धर्म जिसके कोई प्रणेता नही, कोई एक किताब नहीं, फिर भी ये धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है और बिना किसी जोर जबरदस्ती के लाखों लोग हिन्दू धर्म स्वीकार कर रहे हैं, 

सिर्फ सनातन/हिंदुत्व ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो कभी अपने में किसी को जबरदस्ती तलवार के दम पर या लालच देकर किसी को शामिल नही करता, यदि सनातन/हिंदुत्व से दुनिया जुड़ती है तो केवल इसकी सादगी तथा इसके द्वारा जो शान्ति का पाठ पढ़ाया जाता है, उससे दुनिया बेहद ही आकर्षित होती है, सिर्फ सनातन/हिंदुत्व ही विश्व को प्रेम, शांति और अहिंसा का संदेश दे रहा है |

मित्रो, महाकुम्भ में हर रोज करीब दस लाख विदेशी आ रहे हैं, और हिंदुत्व के तरफ आकर्षित हो रहे हैं .. चाहे एंजेलिना जोली हो, ब्रेड पिट, केट विंसलेट आदि हालीवुड के सितारों के आलावा.. इजराइल के चार बड़े उद्योगपति, फोर्ड मोटर्स के मालिक, सूरीनाम, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद एंड टोबेगो, फिजी आदि देशो के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री , रतन टाटा और हिंदुजा जैसे उद्योगपति और हजारो अन्य बेहद मशहूर लोग जिसमें से कई हिन्दू नही होते हुए भी हिंदुत्व के आर्कषण से खीचे चले आ रहे हैं |

अभी दो दिन पहले लेबनान से आये चालीस मुसलमानों का दल जिसमें कई प्रोफेसर और लेबनान के बड़े सितारे थे उन्होंने भी कुम्भ में डुबकी लगाई .. !

भारतीय सनातन संस्कृति की ओर नमस्तक होती दुनिया,...
Posted by Vivek Surange at 04:20 No comments:
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Monday, 28 January 2013

जब पोरवराज एल्क्ज़न्दर से हार गए तब एल्क्ज़न्दर, पोरावराज, और तक्षशिलाधिस अम्भिराज के बिच अभी संधि हुई और उसके फलस्वरूप पोरावराज ने अपनी पुत्री कल्याणी ka पाणिग्रहण अम्भिराज से करा दिया.

लेकिन पोरावराज की पुत्री राष्ट्रभक्त थी अम्भिराज का देशद्रोह उससे देखा नहीं गया और वो व्यथित हो उठी तो उसने एकदिन अम्भिराज के नाम से आचार्य विस्नुगुप्त चाणक्य जी को बुलावा भेजा 
आचार्य और कल्याणी के बिच का वो संवाद आप सभी के ज्ञान हेतु प्रस्तुत कर रहा हू

आचार्य : मुजे यहाँ किसने बुलाया देवी ?
कल्याणी : मेने ही आप को बुलाया हे आचार्य
आचार्य : पर आज्ञा तो आम्भी के नाम पर दी गई थी ?
कल्याणी : क्या तक्षशिला के राज परिवार में इक स्त्री का इतना स्थान हे के उसके नाम से आज्ञा दी जा शके?
आचार्य : कौन हो तुम ?
कल्याणी : कैकैराज पर्वतेस्वर की पुत्री
आचार्य : कैकैराज की पुत्री और यहाँ ?
कल्याणी : एल्क्ज़न्दर जाते जाते बहोत सारे समजोते करागाया उसके इक राजनैतिक समजोते के वेदी पर उसने इक अबला की भावनाओ की हत्या कर दी. राजनैतिक मैत्री के नाम पर पर्वतेस्वर की पुत्री का पाणिग्रहण आम्भिराज से करा गया ! आश्चर्य आप को इस अभी संधि का पता नहीं हे ?
आचार्य : क्या तक्षशिलाधिस को ये पता हे की आपने मुजे यहाँ बुलाया हे ?
कल्याणी : पता चल जायेगा ! आचार्य कल्याणी आम्भी की पत्नी हे तो इस धारा की पुत्री भी 
आचार्य : मुजे यहाँ क्यों बुलाया देवी ?
कल्याणी : आचार्य इन्द्रदत्त से आपके बारे में बहुत सुना था की इक द्रष्टा जीवन दर्शन अपने सभी रूपों में उसके अंक में पल्लवित होता हे वो तक्षशिला के गुरुकुल में रहता हे ! उससे मिलने की बड़ी अभिलासा थी 
आचार्य : क्यों ?
कल्याणी : आचार्य इन्द्रदत्त ने कहा था जब भी अपने स्वजनों की याद आये तो गुरुकुल चले जाना हर रूप में तु वहा अपने स्वजनों को पाएगी ! पर आम्भी की परिणीता को गुरुकुल जाने की आज्ञा नहीं हे आचार्य 
आचार्य : अपने कुल की मर्यादा का सभी को पालन करना पड़ता हे कल्याणी और स्वजन तो तेरे यहाँ भी हे 
कल्याणी : एक और पराजित पिता ने राजनीती की चोखट पर कन्यादान कर दिया और दूसरी और अपनी ही मातृभूमि को राजनीती की चोखट पर दूसरों को दान देनेवाले ने मुजे स्वीकार कर लिया ! एक और अपने साम्राज्य को टिकाये रखने के लिए पराजित सम्राट ने कन्या का हाथ छोड़ दिया और दूसरी और अपने साम्राज्य के विस्तार को द्रुष्टि में रख दूसरे शासक ने उसका हाथ थाम लिया ! इनमे किसे अपना स्वजन कहू आचार्य ?
आचार्य :स्वयं को संभालो कल्याणी कल्याणी : केसे संभालू आचार्य ? रणभूमि में गिरे मेरे बधुओ का आर्तनाद आजतक मुजे सुनाई देता हे स्मृतिपटल पर खून से लथपत क्षत विक्षत सहस्त्रो योद्धा मानो पुकार कर मुजे केह रहे कल्याणी हम आ रहे हे मानो शोर तक्षशिला की वीथियो से उठा हे मेरे बहुत निकट हे पर तक्षशिला के मार्ग प्राशादोने उनका मार्ग रोक रखा हे ! और जब तक्षशिलाधिस के मुख से अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए प्रयत्नशील अपने ही स्वजनों के विरूद्ध रचे जा रहे षड्यंत्रो कुचक्रों को सुनती हू तो मन विद्रोह कर उठता हे सबकुछ तहस नहस करने को मन करता हे यहाँ से भाग जाने को मन करता हे पर मर्यादा मार्ग रोकती हे में क्या करू आचार्य में क्या करू ?
आचार्य : जिनमे स्थितियों को बदलने का साहस नहीं होता उनको स्थितियों को सहना पड़ता हे कल्याणी 
कल्याणी : ये आप क्या कह रहे आचार्य ?
आचार्य ; मेरा अनुभव तो यही कहता हे कल्याणी
कल्याणी : तो क्या आपकी विवशता में भी मेरी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं हे आचार्य ?
आचार्य : यंत्रणा ओ से हारकर तो हर कोई मर शकता हे पर यंत्रणाओं से विजय पा बहुत कम लोग मुक्त होते हे कल्याणी ! 
कल्याणी मर जायेगी मुक्त हो जायगी पर उससे क्या होगा ? क्या तेरी मुक्ति में ही तेरे प्रश्नों का समाधान हे ! इक कल्याणी यंत्रणाओं से मुक्त हो जायेगी तो दूसरी कल्याणी दूसरी यंत्रणाओं से ग्रस्त हो जायेगी
कल्याणी : आप ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया आचार्य ?
आचार्य तो सुन कल्याणी : इस समाज की मुक्ति में ही तेरी मुक्ति हे
कल्याणी : यानि मेरी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं ?
आचार्य : जिन्हें मार्ग दिखाना होता हे आज वे ही मार्ग पूछ रहे हे ?
कल्याणी : आचार्य
आचार्य : हा कल्याणी ! तु एक स्त्री हे इसलिए तेरी और में और अपेक्षा से देखता हू ! इस संसार को बदल्नेका सामर्थ्य स्त्री में हे अपने सामर्थ्य को पहेचान ! अगर स्थितिया स्वीकार नहीं हे तो उसे बदल ये स्थितिया ही तो तेरे गर्भ और ज्ञान को चुनोती दे रही हे इन्हें स्वीकार कर यद् रख उत्तर तेरे गर्भ में ही जन्म लेगा !
कल्याणी : क्या वो सामर्थ्य मुजे प्राप्त होगा ?
आचार्य : जिसके भीतर जितना सत्य होगा उसे उतना ही सामर्थ्य प्राप्त होगा कल्याणी इसलिए कहता हू स्थितियोसे भागनेका प्रयत्न मत कर उसे लड़ यदि पुराणी मर्यादा ऐ तेरे मार्ग में आती हे तो नविन संरचना कर जहा तु मुक्त हो ! पुरानी मर्यादा ऐ स्वयं तेरे मार्ग छोड़ देगी ! उठ निराश न हो अपने को योग्य बना ! प्रयास कर तक्षशिला का भविष्य तो तुजे ही लिखना हे वह तो तेरे अंक में ही आकार लेगा
 —
Posted by Vivek Surange at 03:34 No comments:
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Wednesday, 23 January 2013

एक दिन सुभाष ने देखा

सुभाषचन्द्र बोस के घर के सामने एक बूढ़ी भिखारिन रहती थी। वे देखते थे कि वह हमेशा भीख मांगती थी और दर्द साफ दिखाई देता था। उसकी ऐसी अवस्था देखकर उसका दिल दहल जाता था। भिखारिन से मेरी हालत कितनी अच्‍छी है यह सोचकर वे स्वयं शर्म महसूस करते थे। 

उन्हें यह देखकर बहुत कष्ट होता था कि उसे दो समय की रोटी भी नसीब नहीं होती। बरसात, तूफान, कड़ी धूप और ठंड से वह अपनी रक्षा नहीं कर पाती। 

यदि हमारे समाज में एक भी व्यक्ति ऐसा है कि वह अपनी आवश्यकता को पूरा नहीं सकता तो मुझे सुखी जीवन जीने का क्या अधिकार है और उन्होंने ठान लिया कि केवल सोचने से कुछ नहीं होगा, कोई ठोस कदम उठाना ही होगा। 

सुभाष के घर से उसके कॉलेज की दूरी 3 किलोमीटर थी। जो पैसे उन्हें खर्च के लिए मिलते थे उनमें उनका बस का किराया भी शामिल था। उस बुढ़िया की मदद हो सके, इसीलिए वह पैदल कॉलेज जाने लगे और किराए के बचे हुए पैसे वह बुढ़िया को देने लगे।

सुभाष जब विद्यालय जाया करते थे तो मां उन्हें खाने के लिए भोजन दिया करती थी। विद्यालय के पास ही एक बूढ़ी महिला रहती थी। वह इतनी असहाय थी कि अपने लिए भोजन तक नहीं बना सकती थी।

प्रतिदिन सुभाष अपने भोजन में से आधा भोजन उस बुढ़िया को दिया करते थे। एक दिन सुभाष ने देखा कि वह बुढ़िया बहुत बीमार है। सुभाष ने 10 दिन तक उस बुढ़िया की मन से सेवा की और वह बुढ़िया ठीक हो गई।
Posted by Vivek Surange at 05:03 No comments:
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Friday, 18 January 2013

सारे पैसे तो हथियार खरीदने मे खर्च हो गए !

दोस्तो बात है 1979 की ! अमेरिका का एक अखबार है जिसका नाम है washington post ! उसमे july के महीने मे एक खबर आई ! 16 जुलाई 1979 को अमेरिका के washington post अखबार के front page पर एक खबर छपी ! खबर ये थी कि ईरान और इराक नाम के दो पड़ोसी देश ! इनके बीच मे एक क्षेत्र है उसको अरबी भाषा मे shatt-al-arab कहते हैं तो shatt-al-arab नाम का जो क्षेत्र है उसमे बहुत अधिक मात्रा मे तेल छिपा हुआ है ! ये खबर अमेरिका के washington post अखबार मे छपी !!

अब ये खबर जब छपी तो दोनों देशो की सरकारो के कान खड़े हो गए ! तो उन्होने देखना शुरू किया कि ये जो shatt-al-arab नाम का क्षेत्र है इसमे इतना अधिक तेल है ! और खबर जब छपी तो उसमे refrence दिया गया कि अमेरिका के जो अन्तरिक्ष मे सैटेलाइट है उनसे मिली जानकारी के अनुसार !
तो दोनों देशो को और ज्यादा विश्वास हो गया !

तो ईरान और इराक दोनों देशो के कान खड़े हो गए और दोनों देशो ने कहना शुरू किया ये जो shatt-al-arab क्षेत्र है ये हमारा है ! ईरान ने claim हमारा है इराक ने claim किया नहीं हमारा है ! जब दोनों देशो ने एक साथ एक क्षेत्र पर अधिकार जमाना शुरू किया तो झगड़ा होना स्वाभाविक था ! तो दोनों का झगड़ा UNO मे गया !UNO तो इसी लिए बनाया गया है दो देशो के झगड़ो का निपटारा करने के लिए ! लेकिन सब जानते है UNO काम करता है अमेरिका के इशारे पर ! पूरी तरह से ये अमेरिका का जेब मे रहने वाला संघठन हो गया है अमेरिका किसी देश पर हमला करना चाहे तो UNO उसको बदल नहीं सकता ! जैसा आपने इराक के केस मे देखा !


ईराक के केस मे UNO द्वारा बनाई गई report कहती है कि ईराक के पास कोई nuclear weapon नहीं है !अमेरिका कहता है "है " ! UNO कहता है नहीं है ! तो UNO ने कहा हम ईराक पर युद्ध की अनुमति नहीं देते ! तो अमेरिका ने कहा तुम बाजू मे बैठो हम युद्ध शुरू करते हैं ! तो UNO के सारे नियमो का उलंघन करके अमेरिका ने युद्ध शुरू किया UNO कुछ नहीं कर पाया क्यूंकि UNO एक ऐसा शेर है जिसके दाँत नहीं है जो सिर्फ दहाड़ सकता है काट नहीं सकता !

और UNO रहता भी अमरीका की जेब मे है ! क्यूंकि अमेरिका के funds पर UNO की बहुत सी नीतिया चलती है funds तो और भी देश देते हैं पर अमेरिका कुछ ज्यादा देता है इसलिए UNO को उसकी बात माननी पड़ती है !

तो इसी तरह से 1979 मे ईरान - ईराक का मामला UNO मे गया पर UNO ने इस पर कोई फैसला नही दिया !लिहाजा दोनों देशो मे एक दूसरे के खिलाफ युद्ध करने का तय कर लिया ! उसी समय मे सदाम हुसेन ईराक का राष्ट्रपति बना ! और इसको अमेरिका ने रातो baath पार्टी को सत्ता मे लाने का काम अमेरिका ने करवा दिया ! सदाम हुसेन को leader बनाने का काम अमेरिका ने करवा दिया ! जिस समय सदाम हुसेन लीडर बना उस समय ये पढ़ाई करता था law का student था ! 2nd year मे पढ़ता था ! अमेरिका से इसकी बहुत नजदीकी रही !तो अमेरिका ने स (media) माचार पत्रो मे पैसा देकर , मेगजीनों मे पैसा देकर इसका ज्यादा प्रचार करवा दिया और सदाम हुसेन फिर leader हो गया और बाद मे राष्ट्रपति बन गया !! और उसने अमेरिका के कहने पर ईरान के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया !!

इधर ! अमेरिका ने सदाम हुसेन को हथियार बेचना शुरू किया  र उधर ईराक को हथियार बेचना शुरू किया ! दोनों देशो ने भरपूर हथियार खरीदे और एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल किये ! दस साल तक युद्ध चलता रहा ! लाखो लाखो लोग मारे गए ! और हजारो करोड़ डालर के हथियार इसमे खर्च हो गए !

10 साल के बाद क्या हुआ जब अमेरिका की कंपनियो ने भरपूर हथियार बेच लिए ! उनके सारे गोदाम खाली हो गए ! तब अमेरिका ने दोनों देशो से कहा अब शांति वार्ता करो ! 10 साल तक युद्ध करवाया फिर कहा शांति वार्ता करो ! तो शांति वार्ता करवाने के लिए फिर एक UNO मे सतर बुलाया ! ईरान ईराक दोनों देशो को आमने सामने बैठाया गया ! और कहा गया अगर वहाँ तेल है तो तेल की खोज कर लो मिलेगा तो आधा आधा बाँट लो ! :Pष्ट्रपति बनवाया ! क्यूंकि अमेरिका द्वारा समर्थित ईराक मे एक पार्टी है उसका नाम है baath पार्टी ! जिसका leader था सदाम हुसेन !कितना सरल उपाय है तेल की खोज कर लो मिलेगा तो आधा आधा बाँट लो ! लेकिन दस साल के बाद जब युद्ध हो गया हथियार बिक गए ! खजाने खाली हो गए ! लाखो लोग मारेगे ! फिर कहा तेल खोजो और बाँट लो ! तब दोनों देशो ने कहा हम तेल की खोज करे हमारे पास तो इतने पैसे नहीं है ! सारे पैसे तो हथियार खरीदने मे खर्च हो गए !

तो दोनों देशो को अमेरिका ने कहा अच्छा ठीक आपके पास पैसे नहीं है तो पैसे हम लगा देते हैं ! rights हमको देदो ! तो अमरीकी कंपनियो को तेल खोजने का पूरा अधिकार मिल गया और उन्होने वहाँ तेल खोजना शुरू किया ! दो साल बाद अमेरिकी कंपनियो ने कहा इस इलाके मे कोई तेल नहीं है ! :P :P

तो दोनों देश खामोश होकर शांत बैठ गए ! 10 साल पहले खबर आई थी washington post मे कि इसमे भरपूर तेल है ! तो इन लोगो ने शिकायत किया washington post के खिलाफ ! जब washington post के खिलाफ शिकायत हुए तो washington post के एडिटर ने शमा मांग लिया कि गलती हो गई ! और गलत खबर छ्प गई माफ कर दी जिये हमको ! तो कहा गया ये खबर तो सेटे लाईट से आई थी ! तो उन्हों ने कहा सेटे लाईट भी गलती कर सकता है ! मशीन है ! मशीन तो गलती कर सकती है ! जब आदमी गलती कर सकता है आदमी ने मशीन को बनाया हैतो मशीन भी गलती कर सकती है !तो ये chapter यहाँ खत्म हो गया ! लेकिन खूबसूरती इस घटना की ये रही कि दोनों देश एक दूसरे के खून के पियासे हो गए ! एक ही कोम को मानने वाले एक ही महजब को मानने वाले , एक साथ अलहाह की प्राथना करने वाले लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन हो गए और इतने दुश्मन हो गए कि उनके बटवारे हो गए ! और झगड़े शुरू हो गए और आजतक रुके नहीं !

तो युद्ध कैसे करवाया जाता है इसका एक उदाहरण आपने पढ़ा इसी तरह vietnam मे हुआ था ! इसी तरह कोरिया मे हुआ था इसी तरह चिली,कोसारिका,कोलम्बिया जैसे देशो मे हुआ था ! तो ये अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिए किस हद तक जा सकता है उसका एक उदाहरण आपके सामने है !!
Posted by Vivek Surange at 05:44 No comments:
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Thursday, 17 January 2013

एक नगर में चार भाई रहते थे,चारों ही अक्ल से अक्लमंद थे|चारों ही भाई अक्ल के मामले में एक सेबढ़कर एक | उनकी अक्ल के चर्चे आस-पासके गांवों व नगरों में फैले थे लोगउनकी अक्ल की तारीफ़ करते करते उन्हेंअक्ल बहादुर कहने लगे|एक भाई का नाम सौबुद्धि, दूजे का नाम हजार बुद्धि,तीसरे का नाम लाख बुद्धि, तो चौथेभाई का नाम करोड़ बुद्धि था|एक दिन चारों ने आपस में सलाह की कि -किसी बड़े राज्य की राजधानी में कमानेचलते है| दूसरे बड़े नगर में जाकरअपनी बुद्धि से कमायेंगतो अपनी बुद्धि की भी परीक्षा होगीऔर हमें भी पता चलेगा कि हम कितनेअक्लमंद है ? फिर वैसे भी घरबैठना तो निठल्लों का काम है चतुर व्यक्ति तो अपनीचतुराई व अक्ल सेही बड़े बड़े शहरों में जाकर धन कमाते है|और इस तरह चारों ने आपस में विचारविमर्श कर किसी बड़े शहर को जाने के
लिए घोड़े तैयार कर चल पड़े|
काफी रास्ता तय करने के बाद वे चलेजा रहे थे कि अचानक उनकी नजर रास्तेमें उनसे पहले गए किसी ऊंट के पैरों केनिशानों पर पड़ी|
"ये जो पैरों के निशान दिख रहे है वे ऊंट
के नहीं ऊँटनी के है |" सौ बुद्धि निशान
देख अपने भाइयों से बोला|
"तुमने बिल्कुल सही कहा| ये ऊँटनी के
ही पैरों के निशान है और ये
ऊँटनी बायीं आँख से कानी भी है |"
 हजार बुद्धि ने आगे कहा|
लाख बुद्धि बोला- "तुम दोनों सही हो|
पर एक बात मैं बताऊँ? इस ऊँटनी परजो दो लोग सवार है उनमे एक मर्द व
दूसरी औरत है|
करोड़ बुद्धि कहने लगा- "तुम
तीनों का अंदाजा सही है| और ऊँटनी पर
जो औरत सवार है वह गर्भवती है|"
अब चारों भाइयों ने ऊंट के उन पैरों के
निशानों व आस-पास की जगहका निरिक्षण कर व देखकर
अपनी बुद्धि लगा अंदाजा तो लगालिया पर यहअंदाजा सही लगा या नहीं इसे जांचने केलिए आपस में चर्चा कर ऊंट के पैरों के
पीछे-पीछे अपने घोड़ों को ऐडलगा दौड़ा दिए| ताकि ऊंट सवारका पीछा कर उस तक पहुँचअपनी बुद्धि से लगाये अंदाजे की जाँच
कर सके|
थोड़ी ही देर में वे ऊंट सवार के आस-पासपहुँच गए| ऊंट सवार अपना पीछा करतेचार घुड़सवार देख घबरा गया कहीं डाकू या बदमाश नहीं हो, सो उसने भी अपनेऊंट को दौड़ा दिया| और ऊंट को दौड़ाता हुआ आगे एक नगर में प्रवेशकर गया| चारों भाई भी उसके पीछे पीछेही थे|
 नगर में जाते ही ऊंट सवार ने नगर कोतवाल से शिकायत की - " मेरे पीछे चार घुड़सवार पड़े है कृपया मेरी व मेरी पत्नी की उनसे रक्षा करें|"
पीछे आते चारों भाइयों को नगर कोतवाल ने रोक पूछताछ शुरू कर दी कि कही कोई दस्यु तो नहीं| पूछताछ में चारों भाइयों ने बताया कि वे तो नौकरी तलाशने घर से निकले है यदि इस नगर में कही कोई रोजगार मिल जाए तो यही कर लेंगे|
 कोतवाल ने चारों के हावभाव व उनका व्यक्तित्व देख सोचा ऐसे व्यक्ति तो अपने राज्य केराजा के काम के हो सकते है सो वह उन
चारों भाइयों को राजा के पास ले आया,
साथ उनके बारे में जानकारी देते हुए
कोतवाल ने उनके द्वारा ऊंट सवार
का पीछा करने वाली बात बताई|
राजा ने अपने राज्य में
कर्मचारियों की कमी के चलते अच्छे
लोगों की भर्ती की जरुरत भी बताई
पर साथ ही उनसे उस ऊंट सवार
का पीछा करने का कारण भी पुछा|
सबसे पहले सौ बुद्ध बोला-"महाराज !
जैसे हम चारों भाइयों ने उस ऊंट के
पैरों के निशान देखे अपनी अपनी अक्ल
लगाकर अंदाजा लगाया कि- ये पैर के
निशान ऊँटनी के होने चाहिए,
ऊँटनी बायीं आँख से
कानी होनी चाहिए, ऊँटनी पर
दो व्यक्ति सवार जिनमे एक मर्द
दूसरी औरत होनी चाहिए और वो सवार
स्त्री गर्भवती होनी चाहिए|"
इतना सुनने के बाद तो राजा भी आगे
सुनने को बड़ा उत्सुक हुआ| और उसने तुरंत
ऊंट सवार को बुलाकर पुछा- "तूं कहाँ से आ
रहा था और किसके साथ ?"
ऊंट सवार कहने लगा-" हे अन्नदाता ! मैं
तो अपनी गर्भवती घरवाली को लेने
अपनी ससुराल गया था वही से उसे लेकर
आ रहा था|"
राजा- "
अच्छा बता क्या तेरी ऊँटनी बायीं आँख
से काणी है?"
  • ऊंट सवार- "हां ! अन्नदाता|
    मेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है|
    राजा ने अचंभित होते हुए
    चारों भाइयों से पुछा- "आपने कैसे
    अंदाजा लगाया ? विस्तार से
    सही सही बताएं|"
    सौ बोद्धि बोला-"उस पैरों के निशान के
    साथ मूत्र देख उसे व उसकी गंध पहचान
    मैंने अंदाजा लगाया कि ये ऊंट मादा है|"
    हजार बुद्धि बोला-" रास्ते में
    दाहिनी और जो पेड़ पौधे थे ये
    ऊँटनी उन्हें खाते हुई चली थी पर
    बायीं और उसने किसी भी पेड़-पौधे
    की पत्तियों पर मुंह तक नहीं मारा|
    इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि जरुर यह
    बायीं आँख से काणी है इसलिए उसने
    बायीं और के पेड़-पौधे देखे
    ही नहीं तो खाती कैसे ?"
    लाख बुद्धि बोला- " ये ऊँटनी सवार एक
    जगह उतरे थे अत: इनके पैरों के निशानों से
    पता चला कि ये दो जने है और पैरों के
    निशान भी बता रहे थे कि एक मर्द के है
    व दूसरे स्त्री के |"
    आखिर में करोड़ बुद्धि बोला-" औरत के
    जो पैरों के निशान थे उनमे एक
    भारी पड़ा दिखाई दिया तो मैंने सहज
    ही अनुमान लगा लिया कि हो न हो ये
    औरत गर्भवती है|"
    राजा ने उनकी अक्ल पहचान उन्हें अच्छे
    वेतन पर अपने दरबार में नौकरी देते हुए
    फिर पुछा -
    "आप लोगों में और क्या क्या गुण व
    प्रतिभा है ?"
    सौ बुद्धि बोला-" मैं जिस जगह
    को चुनकर तय कर बैठ जाऊं
    तो किसी द्वारा कैसे भी उठाने
    की कोशिश करने पर नहीं उठूँ|"
    हजार बुद्धि-" मुझमे भोज्य
    सामग्री को पहचानने की बहुत
    बढ़िया प्रतिभा है|"
    लाख बुद्धि- "मुझे बिस्तरों की बहुत
    बढ़िया पहचान है|"
    करोड़ बुद्धि -"मैं किसी भी रूठे
    व्यक्ति को चुटकियों में मनाकर
    ला सकता हूँ|"
    राजा ने मन ही मन एक दिन
    उनकी परीक्षा लेने की सोची|
    एक दिन सभी लोग महल में एक जगह एक
    बहुत बड़ी दरी पर बैठे थे, साथ में
    चारों अक्ल बहादुर भाई भी| राजा ने
    हुक्म दिया कि -इस दरी को एक बार
    उठाकर झाड़ा जाय| दरी उठने
    लगी तो सभी लोग उठकर दरी से दूर
    हो गए पर सौ बुद्धि दरी पर ऐसी जगह
    बैठा था कि वह अपने नीचे से
    दरी खिसकाकर बिना उठे
    ही दरी को अलग कर सकता था सो उसने
    दरी का पल्ला अपने नीचे से
    खिसकाया और बैठा रहा|राजा समझ
    गया कि ये उठने वाला नहीं|
    शाम को राजा ने भोजन पर
    चारों भाइयों को आमंत्रित किया| और
    भोजन करने के बाद चारों भाइयों से
    भोजन की क्वालिटी के बारे में पुछा|
    तीन भाइयों ने भोजन के स्वाद
    उसकी गुणवत्ता की बहुत सरहना की पर
    हजार बुद्धि बोला- " माफ़ करें हुजूर !
    खाने में चावल में गाय के मूत्र की बदबू
    थी|"
    राजा ने रसोईघर के मुखिया से
    पुछा -"सच सच बता कि चावल में गौमूत्र
    की बदबू कैसे ?
    रसोई घर का हेड कहने लगा-"गांवों से
    चावल लाते समय रास्ते में वर्षा आ
    गयी थी सो भीगने से बचाने को एक
    पशुपालक के बाड़े में
    गाडियां खड़ी करवाई थी, वहीँ चावल
    पर एक गाय ने मूत्र कर दिया था| हुजूर
    मैंने चावल को बहुत धुलवाया भी पर
    कहीं से थोड़ी बदबू रह ही गयी |"
    हजार बुद्धि की भोजन
    पारखी प्रतिभा से राजा बहुत खुश हुआ
    और रात्री को सोते समय
    चारों भाइयों के लिए गद्दे राजमहल से
    भिजवा दिए| जिन पर चारों भाइयों ने
    रात्री विश्राम किया|
    सुबह राजा के आते ही लाख बुद्धि ने
    कहा - "बिस्तर में खरगोस की पुंछ है
    जो रातभर मेरे शरीर में चुभती रही|"
    राजा ने बिस्तर फड़वाकर जांच करवाई
    तो उसने वाकई खरगोश की पुंछ निकली|
    राजा लाख बुद्धि के कौशल से
    भी बड़ा प्रभावित हुआ|
    पर अभी करोड़
    बुद्धि की परीक्षा बाक़ी थी|
    सो राजा ने रानी को बुलाकर कहा-
    "करोड़ बुद्धि की परीक्षा लेनी है आप
    रूठकर शहर से बाहर बगीचे में जाकर बैठ
    जाएं करोड़ बुद्धि आपको मनाने
    आयेगा पर किसीभी सूरत में
    मानियेगा मत|"
    और रानी रूठकर बाग में जा बैठी|
    राजा ने करोड़
    बुद्धि को बुला रानी को मनाने के लिए
    कहा|
    करोड़ बुद्धि बाजार गया वहां से पडले
    का सामान (शादी में वर पक्ष की ओर से
    वधु के लिए ले जाने वाला सामान) व
    दुल्हे के लिए लगायी जाने
    वाली हल्दी व अन्य शादी का सामान
    ख़रीदा और बाग के पास से
    गुजरा वहां रानी को देखकर उससे मिलने
    गया|
    रानी ने पुछा-"ये शादी का सामान
    कहाँ ले जा रहे है|"
    करोड़ बुद्धि बोला-" आज
    राजा जी दूसरा ब्याह रचा रहे है यह
    सामान उसी के लिए है| राजमहल ले कर
    जा रहा हूँ|
    रानी ने पुछा-" क्या सच में
    राजा दूसरी शादी कर रहे है ?"
    करोड़ बुद्धि- " सही में
    ऐसा ही हो रहा है
    तभी तो आपको राजमहल से दूर बाग में
    भेज दिया गया है|"
    इतना सुन
    राणी घबरा गयी कि कहीं वास्तव में
    ऐसा ही ना हो रहा हो| और वह तुरंत
    अपना रथ तैयार करवा करोड़ बुद्धि के
    आगे आगे महल की ओर चल दी|
    महल में पहुँच करोड़ बुद्धि ने राजा कोप
    अभिवादन कर कहा-" महाराज !
    राणी को मना लाया हूँ|"
    राजा ने देखा रानी सीधे रथ से उतर
    गुस्से में भरी उसकी और ही आ रही थी|
    और आते ही राजा से लड़ने लगी कि- "आप
    तो मुझे धोखा दे रहे थे| पर मेरे जीते
    जी आप दूसरा ब्याह नहीं कर सकते|
    "
    राजा भी राणी को अपनी सफाई देने में
    लग गया|
    और इस तरह चारों अक्ल बहादुर भाई
    राजा की परीक्षा में सफल रहे |
    नोट : यह कहानी मैंने
    राजस्थानी भाषा की मूर्धन्य
    साहित्यकार लक्ष्मीकुमारी चूंडावत
    की पुस्तक "कैरे चकवा बात" में
    पढ़ी थी जो राजस्थानी भाषा में
    लिखी गयी है|
    18



Posted by Vivek Surange at 03:28 No comments:
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पांडव और यक्ष प्रश्न

पांडव और यक्ष प्रश्न

पांडवों के वनवास के बारह वर्ष समाप्त होनेवाले थे. इसके बाद एक वर्ष के अज्ञातवास की चिंता युधिष्ठिर को सता रही थी. इसी चिंता में मग्न एक दिन युधिष्ठिर भाइयों और कृष्ण के साथ विचार विमर्श कर रहे थे कि उनके सामने एक रोता हुआ ब्राम्हण आ खड़ा हुआ. रोने का कारण पूछने पर उसने बताया – “मेरी झोपडी के बाहर अरणी की लकड़ी टंगी हुई थी. एक हिरण आया और वह इस लकड़ी से अपना शरीर खुजलाने लगा और चल पड़ा. अरणी की लकड़ी उसके सींग में ही अटक गई. इससे हिरण घबरा गया और बड़ी तेजी से भाग खड़ा हुआ. अब मैं अग्नि होत्र के लिए अग्नि कैसे उत्पन्न करूंगा?” (अरणी ऐसी लकड़ी है जिसे दूसरी अरणी से रगड़कर आग पैदा की जाती है).

उस ब्राम्हण पर तरस खाकर पाँचों भाई हिरण की खोज में निकल पड़े. हिरण उनके आगे से तेजी से दौड़ता हुआ बहुत दूर निकल गया और आँखों से ओझल हो गया. पाँचों पांडव थके हुए प्यास से व्याकुल होकर एक बरगद की छाँव में बैठ गए. वे सभी इस बात से लज्जित थे कि शक्तिशाली और शूरवीर होते हुए भी ब्राम्हण का छोटा सा काम भी नहीं कर सके. प्यास के मारे उन सभी का कंठ सूख रहा था. नकुल सभी के लिए पानी की खोज में निकल पड़े. कुछ दूर जाने पर उन्हें एक सरोवर मिला जिसमें स्वच्छ पानी भरा हुआ था. नकुल पानी पीने के लिए जैसे ही सरोवर में उतरे, एक आवाज़ आई – “माद्री के पुत्र, दुस्साहस नहीं करो. यह जलाशय मेरे आधीन है. पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो, फिर पानी पियो”.

नकुल चौंक उठे, पर उन्हें इतनी तेज प्यास लग रही थी कि उन्होंने चेतावनी अनसुनी कर दी और पानी पी लिया. पानी पीते ही वे प्राणहीन होकर गिर पड़े.

बड़ी देर तक नकुल के नहीं लौटने पर युधिष्ठिर चिंतित हुए और उन्होंने सहदेव को भेजा. सहदेव के साथ भी वही घटना घटी जो नकुल के साथ घटी थी.

सहदेव के न लौटने पर अर्जुन उस सरोवर के पास गए. दोनों भाइयों को मृत पड़े देखकर उनकी मृत्यु का कारण सोचते हुए अर्जुन को भी उसी प्रकार की वाणी सुनाई दी जैसी नकुल और सहदेव ने सुनी थी. अर्जुन कुपित होकर शब्दभेदी बाण चलने लगे पर उसका कोई फल नहीं निकला. अर्जुन ने भी क्रोध में आकर पानी पी लिया और वे भी किनारे पर आते-आते मूर्छित होकर गिर गए.

अर्जुन की बाट जोहते-जोहते युधिष्ठिर व्याकुल हो उठे. उन्होंने भाइयों की खोज के लिए भीम को भेजा. भीमसेन तेजी से जलाशय की ओर बढ़े. वहां उन्होंने अपने तीन भाइयों को मृत पाया. उन्होंने सोचा कि यह अवश्य किसी राक्षस के करतूत है पर कुछ करने से पहले उन्होंने पानी पीना चाहा. यह सोचकर भीम ज्यों ही सरोवर में उतरे उन्हें भी वही आवाज़ सुनाई दी. – “मुझे रोकनेवाला तू कौन है!?” – यह कहकर भीम ने पानी पी लिया. पानी पीते ही वे भी वहीं ढेर हो गए.

चारों भाइयों के नहीं लौटने पर युधिष्ठिर चिंतित हो उठे और उन्हें खोजते हुए जलाशय की ओर जाने लगे. निर्जन वन से गुज़रते हुए युधिष्ठिर उसी विषैले सरोवर के पास पहुँच गए जिसका जल पीकर उनके चारों भाई प्राण खो बैठे थे. उनकी मृत्यु का कारण खोजते हुए युधिष्ठिर भे पानी पीने के लिए सरोवर में उतरे और उन्हें भी वही आवाज़ सुनाई दी – “सावधान! तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात न मानकर तालाब का जल पी लिया. यह तालाब मेरे आधीन है. मेरे प्रश्नों का सही उत्तर देने पर ही तुम इस तालाब का जल पी सकते हो!”

युधिष्ठिर जान गए कि यह कोई यक्ष बोल रहा था. उन्होंने कहा – “आप प्रश्न करें, मैं उत्तर देने का प्रयास करूंगा!”

यक्ष ने प्रश्न किया – मनुष्य का साथ कौन देता है?
युधिष्ठिर ने कहा – धैर्य ही मनुष्य का साथ देता है.

यक्ष – यशलाभ का एकमात्र उपाय क्या है?
युधिष्ठिर – दान.

यक्ष – हवा से तेज कौन चलता है?
युधिष्ठिर – मन.

यक्ष – विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है?
युधिष्ठिर – विद्या.

यक्ष – किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
युधिष्ठिर – अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर.

यक्ष – किस चीज़ के खो जाने पर दुःख नहीं होता?
युधिष्ठिर – क्रोध.

यक्ष – किस चीज़ को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
युधिष्ठिर – लोभ.

यक्ष – ब्राम्हण होना किस बात पर निर्भर है? जन्म पर, विद्या पर, या शीतल स्वभाव पर?
युधिष्ठिर – शीतल स्वभाव पर.

यक्ष – कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
युधिष्ठिर – अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है.

यक्ष – सर्वोत्तम लाभ क्या है?
युधिष्ठिर – आरोग्य.

यक्ष – धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है?
युधिष्ठिर – दया.यक्ष – कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
युधिष्ठिर – सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती.

यक्ष – इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?

इसी प्रकार यक्ष ने कई प्रश्न किये और युधिष्ठिर ने उन सभी के ठीक-ठीक उत्तर दिए. अंत में यक्ष ने कहा – “राजन, मैं तुम्हारे मृत भाइयों में से केवल किसी एक को ही जीवित कर सकता हूँ. तुम जिसे भी चाहोगे वह जीवित हो जायेगा”.

युधिष्ठिर ने यह सुनकर एक पल को सोचा, फिर कहा – “नकुल जीवित हो जाये”.

युधिष्ठिर के यह कहते ही यक्ष उनके सामने प्रकट हो गया और बोला – “युधिष्ठिर! दस हज़ार हाथियों के बल वाले भीम को छोड़कर तुमने नकुल को जिलाना क्यों ठीक समझा? भीम नहीं तो तुम अर्जुन को ही जिला लेते जिसके युद्ध कौशल से सदा ही तुम्हारी रक्षा होती आई है!”

युधिष्ठिर ने कहा – “हे देव, मनुष्य की रक्षा न तो भीम से होती है न ही अर्जुन से. धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है और धर्म से विमुख होनेपर मनुष्य का नाश हो जाता है. मेरे पिता की दो पत्नियों में से कुंती माता का पुत्र मैं ही बचा हूँ. मैं चाहता हूँ कि माद्री माता का भी एक पुत्र जीवित रहे.”

“पक्षपात से रहित मेरे प्रिय पुत्र, तुम्हारे चारों भाई जीवित हो उठें!” – यक्ष ने युधिष्ठिर को यह वर दिया. यह यक्ष और कोई नहीं बल्कि स्वयं धर्मदेव थे. उन्होंने ही हिरण का और यक्ष का रूप धारण किया हुआ था. उनकी इच्छा थी कि वे अपने धर्मपरायण पुत्र युधिष्ठिर को देखकर अपनी आँखें तृप्त करें.
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