Samaadhan

Saturday, 3 November 2012

इसाई बनाने के तौर - तरीके


  • Jugal Kishore Somani


    दोस्तों , आज मेरी जिन्दगी में हुई एक घटना का विवरण आपके साथ बांटना चाहता हूँ :-
    सन २००५ की १७ फरवरी को मैं मेरी धर्मपत्नी श्रीमती शांता के साथ बैंगलोर से जयपुर की ट्रेन में यात्रा के लिए दोपहर को रवाना हुआ . अर्द्ध रात्रि सिकंदराबाद / हैदराबाद स्टेशन पर कुछ वनवासी से युवक हमारे कोच में आ घुसे , संयोग से उनके डिब्बे में आते ही ट्रेन चल पड़ी . ये वनवासी , जो करीब ५ - ६ थे , घबराए हुए से थे . हिन्दी भाषा तो उनको आती नहीं थी किन्तु राजस्थान का एक परिवार जो बेल्लारी में रहता था , इसी कम्पार्टमेंट में था , उन्होंने उनसे बात की तो मालुम पडा कि ये लोग करीब ३०० की संख्या में धर्मावरम से कोटा जा रहे हैं , जहां इन हिन्दुओं को धर्मांतरण कर इसाई बनाया जाना है . इन लोगों को लाने वाले एजेंट टाइप पादरी ( ४ पुरुष और २ महिलाएं ) इसी कोच में यात्रा कर रहे हैं और उनके पास ही इनकी टिकटें हैं . साधारण कोच में यात्रा कर रहे इन लोगों को टिकट चेकर ने पकड़ लिया इस कारण ये लोग अपनी टिकटें लेने हेतु इस कोच में आये हैं . चूंकि अगले स्टेशन के आने में करीब २ घण्टों की देरी थी अतः हमने धीरे - धीरे इन लोगों से धर्मांतरण संबंधी पूरी जानकारी प्राप्त कर ली . इन लोगों को काफी लालच देकर ये लोग ले जा रहे थे किन्तु इन भोले भाले वनवासियों के मन में भारी क्लेश भी था . ये कत्तई अपना हिन्दू धर्म छोड़ने को तैयार नहीं थे किन्तु भयंकर भुखमरी के शिकार विवश होकर इस कुकृत्य को करने तैयार हुए .
    मैंने करीब ४ बजे प्रातः ( १८ फरवरी ) सरदारशहर के डा. महेश शर्मा को मोबाइल से संपर्क कर पूरी कहानी बताई . फिर जयपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय " भारती भवन " के पधाधिकारियों ( माननीय शंकर जी भाई साहब एवं माननीय अजेय जी भाई साहब ) को पूरी स्थिति से अवगत कराया . चूंकि यह ट्रेन अगले दिन ( १९ फरवरी ) अर्द्ध रात्रि को कोटा पहुँचती है अतएव इस कुकृत्य का भंडाफोड़ की पूरी तैयारी कर ली गयी .
    इस बीच एजेंटो को कुछ संदेह हुआ कि यह ( यानि मैं ) कोई न कोई गड़बड़ कर रहा है . इटारसी आने से पहले एक छोटे स्टेशन पर कारण वश गाड़ी रुक गयी , मैं मोबाइल चार्ज करने हेतु एक कर्मचारी के सामने ही बने कमरे की ओर गया . चूंकि हमारा कोच सामने ही था - देखता हूँ कि चारों पुरुष एजेंटों ने अपने सूटकेशों से रिवाल्वरे / पिस्तोले निकाल कर अपनी कमर में दबा ली और डिब्बे से नीचे उतर कर मेरी तरफ बढ़ने लगे . प्रभु कृपा से उसी समय ट्रेन ने चलने की व्हीशल बजा दी , कोच के दूसरे दरवाजे से मैं भी भाग कर कोच में चढ़ गया . मुझे खतरे का ज्ञान तो हो ही गया था , अतः मैं कम्पार्टमेंट के अन्दर की तरफ बैठ गया ( हम दोनों की सीट ७ ; ८ थी - साइड वाली ) इटारसी आते आते नेटवर्क आ गया और मैंने जयपुर सारी बात बता दी . उन्होंने भोपाल तक सावधान रहने को कहा . भोपाल स्टेशन पर २ हट्टे कट्टे स्वयं सेवक कोच में चढ़ कर मेरे पास ही बैठ गए . भवानी मंडी में २ और कार्यकर्ता आ गए .
    २ घंटे विलम्ब से गाड़ी करीब ४ बजे कोटा पहुँची . भयंकर शर्दी थी . करीब १५०० स्वयं सेवकों ने गाड़ी को घेर लिया . सारे वनवासियों को उन्होंने संरक्षण प्रदान किया और उन एजेंटों को पुलिस के हवाले किया .
    चूंकि मैंने पहले ही बता दिया था कि इन वनबंधुओं के पास कोई गर्म कपड़ा भी नहीं है और भूखें भी हैं अतएव कोटा के साथी कम्बले आदि लेकर ही स्टेशन आये थे . जहां इनके रुकने की व्यवस्था संघ परिवार ने की थी वहाँ इन लोगों के सहायतार्थ २ - ३ कन्नड़ / हिन्दी भाषी बंधुओं की भी व्यवस्था के साथ ही साम्भर - चावल आदि दक्षिण भारतीय भोजन का प्रबंध भी था . नंगे पैरों में चप्पल / जूतों तक पहनाने की अतुलनीय व्यवस्था कोटा साथियों ने की .
    मुझे सीधे जयपुर पहुँचाने का आदेश था ताकि रूबरू पूरी बात बता सकूँ .
    तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा जी ने विधान सभा में धर्मांतरण रोकने संबंधी विधेयक पारित कर राज्यपाल ( उस समय श्रीमती प्रतिभा पाटिल थी ) के समक्ष प्रस्तुत किया , जो आज तक पास नहीं हो सका . आशा है कि यदि आगामी राज्य सरकार गैर कांग्रेसी आई तो हो सकता है कि यह विधेयक पुनः सदन पटल पर रख कर पास कराया जाय .
    -------------------------------
    साथियों , इस तरह के कुकृत्य न जाने देश में कहाँ कहाँ हो रहे हैं , यदि हम सोये रहें , अपने ही भाइयों से छुआछूत जैसा भेदभाव करते रहें तो ....... हाँ , ऐसा ही होता रहेगा ...........
Posted by Vivek Surange at 23:57
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