Tuesday, 5 June 2012

महर्षि देवल: धर्मान्तरीत हिन्दुओ के पुनरुथ्थान के जनक : -

 मुसलमानों का इस्लाम के प्रचार और उनकी पैशाचीक महत्वाकांक्षाओ की पूर्णता हेतु आठवी शताब्दी में मीर कासिम के नेतृत्व में सिंध पर आक्रमण हुआ, जिसमे सिंध के ब्रह्मण वंश के राजा दाहीर के वीरगति के बाद अरबो का सिंध पर शासन प्रस्थापीत हुआ और इसी घटना के साथ सिंध में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओ के प्रचंड धर्मांतरण एवं कत्ले -आम की अपेक्षीत शुरुवात हुयी. लक्षावधि निरपराध ,शस्त्रवीहींन हिन्दू जनता के पाशविक अत्याचारों की शुरुवात हुयी. लाखो हिन्दू स्त्रियों के बलात्कारो से,पुरुषो के शीरच्छेदो से, बुढो और बच्चो के अत्याचारों से सिंध प्रांत में लक्षावधि हिन्दू जनता "दिक्षीत" (धर्मान्तरीत) हुयी. परन्तु आर्यभूमि ने केवल हाड मांस के पुतलो जन्म नहीं दिया था , उसकी संतानों में मातृभूमि के लिए मरने और मारने वाले 'नर व्याघ्रो' की कोई कमी नहीं थी! कन्नोज में यशोधर्मा और कश्मीर में ललितादित्य मुक्तापीडा के हाथो करारी मात खाने के बाद मीर कासिम को वापस बुलाया गया (खलीफा उम्मीद द्वारा) ,और मुसलमानों का विजयी अभियान सिंध तक सिमट कर समाप्त हुआ. (उसके बाद " Battles of Rajasthan " के युद्धों की श्रुंखला में अरबी आक्रमंकारियो का जिस तरह संहार हुआ ये हर कोई जानता है) उसके बाद मुसलमानों द्वारा स्न्क्रमीत सिंध पर 'मुसलमानों के असली पिताजी श्री बाप्पा रावल ' के बार-बार आक्रमणों में मीर कासिम ने सिंध पर हथियाई हुयी सत्ता मिटटी में मील गयी और सिंध स्वंतंत्र हुआ. यहातक की जानकारी सर्वश्रुत है , राजकीय स्तर पर तो हमने अरबी आक्र्मंकारियो पर सफलता प्राप्त कर ली थी ,पर धार्मिक स्तर पर हम अभी पूर्ण रूप से असफल थे जिसका प्रमुख कारण था - आक्रमणकारी मुसलमानों ने धर्मान्तरीत किये हुए लाखो हिन्दू (नवमुसलमान). ये अभी तक मुसलमान ही थे और चाहकर भी अपने पवित्र हिन्दू धर्म में जा नहीं सकते थे जिसका मुख्य कारण थी हमारे हिन्दू धर्म की तथाकथित "शुद्धिबंदी". उसी निरर्थक "शुद्धिबंदी ".के आधार पर हिन्दू अपने धर्मान्तरीत भाइयो को वापस अपने धर्म में ले नहीं सकते थे.परिणामस्वरूप एक भीषण संकट का भय सामने आया जो था -हिन्दुओ की संख्या में उठा हुआ प्रचंड घटाव! इस समस्या के समाधान के लिए कई राजनितिज्ञो ने देवल महर्षि के पास जाने का विचार किया और वे गए . महर्षि देवल का आश्रम सिन्धु नदी के किनारे था, हिन्दुओ पर आये हुए भीषण संकट से वे चिंतीत थे,उसी क्षण सिंध के प्रमुख राजनीतिग्य वह पहुचे और धर्मान्तरीत हिन्दुओ की समस्या पर समाधान के लिए याचना की. देवल महर्षि ने गंभीरता से इस समस्या के समाधान के लिए शास्त्रों में खोज आरम्भ की ,और उन्हें मिल गया-एक ऐसा शास्त्र जो किसी भी समय पर किसी भी काल में हमारे कर्मकाण्डो में आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन लेन की अनुमति देता है ! और वो शास्त्र था - आपद्धर्म ! क्रांतिकारी विचारो के धनि महर्षि देवल ने इस 'आपद्धर्म' नामकी वैदिक परियोजना का उपयोग करके प्राचीन श्रुतियो पर भाष्य लिख डाला - देवल स्मृति ! इस देवल स्मृति में उन्होंने धर्मान्तरित हिन्दुओ के पुनः हिन्दू धर्म प्रवेश के लिए विधान बना दिया,इस विधान के अंतर्गत विशिष्ट काल के अंतराल में धर्मान्तरित हिन्दू प्रायाश्चीत के तौर पर एक दिन उपवास करके दुसरे घी दूध से नहलाने पर पुनरागमन करने योग्य है.स्त्री के लिए तो उन्होंने बनायीं हुयी पुनरागमन की परियोजना तो बोहत ही सरल है ,जिसके तहत बलात्कारीत स्त्री के मासिक-धर्म के बाद वो स्त्री पुनरागमन करने योग्य है! बस, राजनितिज्ञो को उनकी समस्या का समाधान मिल गया और फीर दुसरे ही दिन से नव-मुसलमानों का शुद्धिकरण शुरुवात हुआ. हजारो हिन्दुओ को वापस अपने धर्म लिया गया.सिंध में हिन्दुओ की घटी हुयी संख्या वापस बढ़ गयी, जो की इस्लाम के लिए एक जोरदार झटका था !!!! अरबी मुसलमानों की दुर्दशा का वर्णन करते हुए खुद मुस्लिम इतिहासकार लिखता है - " काफिर सैनिको के डर से हमारे लोगो का सिंध में जीना हराम हो गया है , हमने जीता हुआ सारा मुलख ये काफिर वापस खा गए है केवल "अल्याह फुजाह" नाम का एकलौता गढ़ हमारे पास है जिसकी पनाह में हमें अल्लाह ने महफूज रखा है ! जिन काफ़िरो को हमने मुसलमान बनाया था वो वापस अलह को न मान ने वाले (हिन्दू) बन गए है " और इस प्रकार महर्षि देवल ने हिन्दुधर्म का पुनारुथ्थान करने में महत्व पूर्ण योगदान दिया. महर्षि देवल एवं उनका भाष्य "देवल स्मृति" हिंदुत्व के इए वरदान साबीत हुए ! महर्षि देवल जैसे क्रांतिकारी विचारो के तपस्वियों ने समय समय पर हिन्दू धर्म में कालानुरूप सुधार करके इसे शत प्रतिशत खरा बना दिया है , जो की आज विश्वधर्म कहलाने योग्य है ! आज देवल मुनि को उनके कार्य के लिए मै नमन करता हु

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