Thursday 31 August 2017

दुनिया के बदनाम शहर...
दुनिया के कई शहर बुरी तरह बदनाम हो चुके हैं. वहां होने वाले खास अपराधों के चलते सैलानी वहां जाने से पहले कई दफा सोचते हैं. एक नजर इन शहरों पर.
बैंकॉक
थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक भी सेक्स टूरिज्म के लिए बदनाम हैं. कई सैलानी बैंकॉक इसी इरादे से भी पहुंचते हैं. इसे एशिया की सेक्स राजधानी भी कहा जाता है.
लास वेगस
अमेरिका का लास वेगस शहर सेक्स पार्टियों और जुए के लिए बदनाम हैं. आम तौर युवा सैलानी वेगस जाते हैं और स्ट्रिप क्लब और कसीनो तक पहुंचते हैं.
इस्तांबुल
तुर्की का यह सबसे बड़ा शहर वैसे तो पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है, लेकिन शहर के कुछ खास इलाके चोरी के लिए बदनाम हैं. चोरी की वारदातें दुनिया के दूसरे शहरों में भी होती हैं लेकिन इंस्तांबुल में तो रेस्तरां में खाना खाने के दौरान तक चोर हाथ साफ कर जाते हैं.
प्राग
चेक गणराज्य की राजधानी प्राग ठगों के लिए बदनाम है. विदेशी मुद्रा बदलने का झांसा देकर यहां ठग आए दिन पर्यटकों को फांसते हैं. आम तौर पर चेक करेंसी चेक क्रोने के बदले वे सैलानियों को हंगरी की मुद्रा थमा देते हैं. सैलानी जब तक हिसाब लगाते हैं तब तक ठग चंपत हो जाते हैं.
रियो डे जनेरो
दिन में समंदर की छलकती लहरें और शाम को बिंदास पार्टी, इसी उम्मीद में बड़ी संख्या में सैलानी ब्राजील के शहर रियो डे जनेरो पहुंचते हैं. लेकिन पहाड़ी रास्तों, संकरी और अंतहीन गलियों वाला रियो ड्रग्स, लूटपाट और रेप के लिए भी बदनाम है. सैलानियों से यहां सावधान रहने की अपील की जाती है.
बुखारेस्ट
रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट कार चोरी के लिए बदनाम है. यूरोप से बढ़िया गाड़ियों में रोमानिया जाने वाले आम तौर पर ट्रेन या हवाई जहाज के जरिये वापस लौटते हैं.
एकापुल्को
मेक्सिको का यह तटीय शहर कभी सैलानियों के पसंदीदा ठिकानों में हुआ करता था, लेकिन ड्रगस की तस्करी के चलते अब यहां भी अपराधों का ग्राफ बढ़ा है. शहर के बाहरी इलाकों में हत्या, लूटपाट, अपहरण जैसी वारदातें होती रहती हैं.
केप टाउन
दक्षिण अफ्रीका का यह शहर दिन में जितना खूबसूरत और मोहक लगता हैं, रात में उतना ही डरावना लगता है. यहां बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. लेकिन हर कोई उन्हें यही सलाह देता है कि वह रात में अकेले बाहर न निकलें. लूटपाट के अलावा वहां महिलाओं को भी यौन हिंसा का निशाना बनाया जाता है
काराकस
वेनेजुएला की राजधानी ड्रग तस्करों के गैंगवार के लिए बदनाम है. यहां लूटपाट और हत्याएं भी आम बात हैं. पर्यटक काराकस जाने से यूं ही नहीं घबराते हैं

 साध्वी जी के व्यथा को व कलंकित कांग्रेस का भगवा के प्रति षडयंत्र को लोगों तक पहुंचाए.
"कुत्ती"
"कमीनी"
"वेश्या"
"कुलटा बोल इस भगवा में किसकी रखैल है ?"
"अब तक कितनों के बिस्तर पर गई‎ है?"
"किसके इशारे पर सब कर रही है ?"
"जिंदगी प्यारी है तो जो मैं कहता हुं कबुल ले बाकी जिंदगी आराम से कटेगी."
मित्रों !
यह शब्द सुनकर आपकी त्योरियां जरुर चढ़ गई‎ होगी
मेरे भी चढ़ गई थी.
ऐसे घृणित शब्दों से किसी और को नहीं बल्कि भगवा वस्त्र धारिणी निष्कलंक साध्वी प्रज्ञा दीदी को कलंकित "कांग्रेस"‎ के इशारे पर कांग्रेस‎ का दल्ला मुम्बई ATS हेमंत करकरे के सामने मुम्बई पुलिस व ATS के दोगलों ने नहलाया था.
कल मैं साध्वी दीदी का एक साक्षात्कार देख रहा था ऐसे घृणित शब्दों को इशारे में बताया बताते हुए उनके नेत्र सजल हो गये. साक्षात्कार देखते हुए क्रोधाग्नि से धधक रहे मेरे आँखो से भी अश्रु की धारा फूट पड़ी
"साध्वी दीदी" ने मर्माहत शब्दों में वृत्तान्त सुनाया कि मेरे शरीर का कोई‎ ऐसा अंग नही जिसे चोटिल ना किया गया हो.
जब पत्रकार ने पुछा कि मारने के कारण ही आपके रीढ़ की हट्टी टूट गई‎ थी ??
साध्वी दीदी ने कहा, "नहीं, मारने से नहीं.
एक जन हमारा हाथ पकड़ते थे एक जन पांव और झूलाकर दीवार की तरफ फेंक देते थे. ऐसा प्राय: रोजाना होता था दीवार से सर टकराकर सुन्न हो जाता था कमर में भयानक दर्द होता था ऐसा करते करते एक दिन रीढ़ की हड्डी टूट गई तब अस्पताल में भर्ती कराया गया."
साध्वी दीदी ने बताया, "एक दिन तो ऐसा हुआ कि मारते मारते एक पुलिस वाला थक गया तो दुसरा मारने लगा उस दौरान मेरे फेफड़े की झिल्ली फट गई‎ फिर भी विधर्मी निर्दयता से मारता रहा."
साध्वी दीदी ने बताया, "रीढ़ की हड्डी टूटने के बाद मैं बेहोश हो गई‎ थी. जब होश आया तो देखा कि मेरे शरीर से सारा भगवा वस्त्र उतार लिया गया गया था. मुझे एक फ्राक पहनाया गया था."
साध्वी दीदी ने बताया, "मेरे साथ मेरे एक शिष्य को भी गिरफ्तार किया गया था उसे मेरे सामने लाकर उसे चौड़ा वाला बेल्ट दिया और कहा मार!! अपने गुरु को इस साली को!!"
"शिष्य, सकुचाने लगा तो मैं बोली मारो मुझे !! शिष्य ने मजबुरी में मारा तो जरुर मुझे लेकिन नरमी से तब एक पुलिस वाले ने शिष्य से बेल्ट छीन कर शिष्य को बुरी तरह पीटने लगा और बोला ऐसे मारा जाता है."
साध्वी दीदी ने बताया कि एक दिन कुछ पुरुष‎ कैदियों के साथ मुझे खड़ी करके अश्लील आडियो सुनाया जा रहा था. मेरे शरीर पर इतनी मार पड़ी थी कि मेरे लिए खड़ी रहना मुश्किल था. मैं बोली कि बैठ जाऊँ वो बोले साली शादी मे आई है क्या कि बैठ जायेगी!! मेरी आँख बंद होने लगी मैं अचेत हो गई.
साध्वी दीदी ने बताया, "मेरे दोनों हाथों को सामने फैलवाकर एक चौड़े बेल्ट से मारते थे मेरा दोनो हाथ सूज जाता था. अँगुलियां भी काम नही करती थी, तब गुनगुना पानी लाया जाता था. मैं अपने हाथ उसमें डालती कुछ आराम होता जब अंगलुियां हिलने डुलने लगती थी. तो फिर से वही क्रिया मेरे पर मार पड़ती थी. ध्वी जी ने बताया कि मुझे तोड़ने के लिए मेरे चरित्र पर लांछन लगाया क्योंकि लोग जानते हैं कि किसी औरत को तोड़ना है तो उसके चरित्र पर दाग लगाओ !
मेरे जेल जाने के बाद यह सदमा मेरे पिताजी बर्दास्त नहीं कर पाये और इस दुनियां से चल बसे.
साध्वी जी राहत की सांस लेते हुए कहती हैं मेरे अन्दर रहते ही, एक दुर्बुद्धि दुराचारी हेमंत करकरे को तो सजा मिल गई‎ मिल गई अभी बहुत लोग बाकी हैं.
साध्वी दीदी ने बताया, "नौ साल जेल में थी, सिर्फ एक दिन एक महिला ने एक डंडा मारा था, बाकी हर रोज पुरुष ही निर्दयता से हमें पीटते थे."
पत्रकार ने पूछा, "आपको समझ में तो आ गया होगा कि क्यों आपको इतने बेरहमी से तड़पाया जा रहा था?"
साध्वी जी ने कहा, "हां, भगवा के प्रति उनका द्वेश था. फूटी आंख भी भगवा को नही देखना चाहते थे. भगवा को बदनाम करने का कांग्रेस ने एक सुनियोजित षडयंत्र तैयार किया था."
साध्वी जी ने बताया कि एक बार कांग्रेस का गुलाम, स्वामी अग्निवेष मुझसे मिलने जेल में आया और बोला, "आप सब कबुल कर लो कि हां! यह सब RSS के कहने पर हुआ है. सरकारी गवाह बन जाओ. चिदम्बरम और दिग्विजय हमारे मित्र हैं. मै आपको छुड़वा दुंगा."
साध्वी जी ने कहा, "अगर आपकी उनसे घनिष्ठता है और सच में हमें छुड़ाना चाहते हो, तो चिदम्बरम से जाकर बोलो की इमानदारी से जांच करवा ले, क्योंकि मैंने ऐसा कुछ किया ही नही है ।"
मित्रों !
सोचने वाली बात यह है कि साध्वी दीदी, नौ साल जेल में रही भाजपा का तीन साल निकाल दो तो छ: साल तक कांग्रेस के कार्यकाल में जेल में रही. इन छ: सालों में कांग्रेस ने "भगवा आतंकवाद" के खिलाफ सबूत नहीं जुटा पाई. इसका सीधा सा अर्थ यह है कि "भगवा" को सिर्फ बदनाम किया जा रहा था. गैरकानूनी तरीके से 'मकोका' भी लगाया गया था.
नौ साल जेल में भयानक यातना सहने के बाद भी साध्वी दीदी व खुफिया अधिकारी कर्नल पुरोहित जी जब स्वच्छंद हवा में सांस लिए,
तो उनके अधरों पर बस एक ही बात थी. "जय हिंद भारत माता की जय यह तन राष्ट्र के प्रति समर्पित है."
और यह कठोर यातना तो "राष्ट्र प्रेम" का श्रृंगार है, खुशी खुशी सहन करेंगे.
और
एक तरफ कांग्रेस का "रखैल", दोगला 'हामिद अंसारी', देश के दुसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर दस साल तक मलाई चाटता रहा. रिटायर्ड के दौरान हरामी बोलता है कि हिंदुस्तान असहिष्णु हो गया है.
इसके बाद भी जो हिंदु, "कांग्रेस" की तरफदारी करता है तो तब सोचता हुं कि यह तो हिंदु हो ही नहीं सकते !!
यह दोगले 'इस्लामिक आतंकवाद' के दोगली व नाजायज पैदावार हैं ।
यह आलेख रजनीश तिवारी राज द्वारा सुदर्शन टीवी के चेयरमैन सुरेश चौह्वाण को साध्वी जी द्वारा दिए गये साक्षात्कार के आधार पर तैयार किया गया है.
इस आलेख पर कोई कापी राइट नही है. हिंदुओ में जनजागरण हेतु ज्यादा से ज्यादा आगे तक साध्वी जी के व्यथा को व कलंकित कांग्रेस का भगवा के प्रति षडयंत्र को लोगों तक पहुंचाए.

साध्वी जी व पुरोहित जी को सादर नमन.
कुमार अवधेश सिंह
चीन-PAK सीमा पर सैटेलाइट से रखी जाएगी नजर ..!
चीन और पाकिस्तान की सीमा पर लगातार हो रही घटनाओं के बीच भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है. मोदी सरकार अब इन सीमाओं पर सैटेलाइट के जरिए नजर रखेगी. जिसके जरिए भारत के खिलाफ हो रही गतिविधियों पर ITBP, BSF को बिल्कुल रियल टाइम एरियल जानकारी मिल पाएगी. कहा जा रहा है कि इस पूरी गतिविधि पर नजर रखने के लिए दिल्ली-एनसीआर में मुख्यालय भी बन सकता है.
गृहमंत्रालय के सूत्रों की मानें, तो इस सैटेलाइट सिस्टम को लेकर गृहमंत्रालय से साथ ITBP, BSF, SSB और ISRO के अधिकारियों के बीच बैठक हो चुकी है. साफ है अगर ये सिस्टम काम में आता है तो भारत-पाकिस्तान, भारत-बांग्लादेश, भारत-चीन, भारत-नेपाल बॉर्डर पर होने वाली घुसपैठ पर रोक लगेगी.
सिस्टम आने से डोकलाम जैसी घटनाओं, पाकिस्तान की ओर से लगातार आतंकवादियों की घुसपैठ और बांग्लादेश बॉर्डर से होने वाली तस्करी पर नजर रखी जाएगी. एनसीआर में बनने वाला मुख्यालय सीमाओं पर तैनात फोर्स के लिए कंट्रोल रुम के तौर पर वर्क करेगा. जिसके जरिए कई कमांड दिए जा सकेंगे.
बॉर्डर गार्डिंग करने वाले सुरक्षा बलों को क्या कहा होगा फायदा-
1. बॉर्डर पर हो रही गतिविधियों की रियल टाइम इमेज (डे एंड नाईट) मिल सकेगी.
2. सुरक्षा बलों को इंटेलिजेंस हासिल करना होगा आसान.
3. सैटेलाइट पर लगे कैमरों से निर्धारित जगह को फोकस करके ऑपरेशन करने में मिलेगी मदद.
4. बॉर्डर पर कम्युनिकेशन के लिए भी करेगा मदद.
5. सेटेलाइट फ़ोन डेडिकेटेड बॉर्डर गार्डिंग फ़ोर्स के पास इस उपग्रह के जरिये मिल सकेगा विवरण .

Wednesday 30 August 2017

पानी कम होते ही 35 साल बाद दिखा ये प्राचीन मंदिर, पांडव बना रहे थे स्वर्ग का रास्ता

जाब के तलवाड़ा शहर से करीब 34 किलोमीटर की दूरी पर पोंग डैम की झील के बीच बना एक अद‌्भुत मंदिर, जो साल में सिर्फ चार महीने ही नजर आता है। बाकी समय मंदिर पानी में ही डूबा रहता है। पानी उतरने के कारण अब ये मंदिर नजर आने लगा है जिससे यहां पर टूरिस्ट का आना शुरू हो जाएगा।मंदिर बहुत ही मजबूत पत्थर से बना है और इसलिए 35 साल पानी में डूबने के बाद यह मंदिर वैसा का वैसा ही है। इन मंदिरों के पास एक बहुत ही बड़ा पिल्लर है। जब पौंग डैम झील का पानी काफी ज्यादा होता है तब यह सभी मंदिर पानी में डूब जाते है, लेकिन सिर्फ इस पिल्लर का ऊपरी हिस्सा ही नजर आता है।इस मंदिर के पत्थरों पर माता काली और भगवान गणेश जी के प्रीतिमा बनी हुई है। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु और शेष नाग की मूर्ति रखी हुई है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है। मंदिर के आस-पास टापू की तरह जगह है जिसका नाम रेनसर है। रेनसेर में फॉरेस्ट विभाग का गेस्ट हाउस है। यहां पोंग डैम बनने से पहले देश के कोने-कोने से लोग यहां दर्शन करने के लिए आते थे।यहां पर कई तरह के प्रवासी पंछी देखे जा सकते हैं। मार्च से जून तक दूर-दूर से पर्यटक इस मंदिर को देखने के लिए आते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए तलवाड़ा से ज्वाली बस द्वारा आया जा सकता है।यहां पर कुल आठ मंदिर हैं, जो कि बाथू नामक पत्थर से बने हैं। इसलिए इसका नाम बाथू की लड़ी पड़ा है। इन मंदिरों के पास एक बहुत बड़ा पिल्लर है, जब झील में जलस्तर बढ़ जाता है तो सिर्फ पिल्लर का ऊपरी हिस्सा नजर आता है। पिल्लर के अंदर लगभग 200 सीढ़ियां हैं। पिल्लर के ऊपर से 15 किलोमीटर तक झील का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है।

असली सेकुलरज्म क्या है, यह थाईलैंड से सीखो

थाईलैंड क्या है ये जाने...
भारत के बाहर थाईलेंड में आज भी संवैधानिक रूप में राम राज्य है l वहां भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट “भूमिबल अतुल्य तेज ” राज्य कर रहे हैं , जिन्हें नौवां राम कहा जाता है l
-भगवान राम का संक्षिप्त इतिहास-
वाल्मीकि रामायण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ एक ऐतिहासिक ग्रन्थ भी है , क्योंकि महर्षि वाल्मीकि राम के समकालीन थे , रामायण के बालकाण्ड के सर्ग ,70 . 71 और 73 में राम और उनके तीनों भाइयों के विवाह का वर्णन है , जिसका सारांश है।
मिथिला के राजा सीरध्वज थे , जिन्हें लोग विदेह भी कहते थे उनकी पत्नी का नाम सुनेत्रा ( सुनयना ) था , जिनकी पुत्री सीता जी थीं , जिनका विवाह राम से हुआ था l
राजा जनक के कुशध्वज नामके भाई थे l इनकी राजधानी सांकाश्य नगर थी जो इक्षुमती नदी के किनारे थी l इन्होंने अपनी बेटी
उर्मिला लक्षमण से, मांडवी भरत से, और श्रुतिकीति का विवाह शत्रुघ्न से करा दी थीl
केशव दास रचित ” रामचन्द्रिका “-पृष्ठ 354 ( प्रकाशन संवत 1715 ) .के अनुसार, राम और सीता के पुत्र लव और कुश, लक्ष्मण और उर्मिला के पुत्र अंगद और चन्द्रकेतु , भरत और मांडवी के पुत्र पुष्कर और तक्ष, शत्रुघ्न और श्रुतिकीर्ति के पुत्र सुबाहु और शत्रुघात हुए थे l
भगवान राम के समय ही राज्यों बँटवारा इस प्रकार हुआ था —
पश्चिम में लव को लवपुर (लाहौर ), पूर्व में कुश को कुशावती, तक्ष को तक्षशिला, अंगद को अंगद नगर, चन्द्रकेतु को चंद्रावतीl कुश ने अपना राज्य पूर्व की तरफ फैलाया और एक नाग वंशी कन्या से विवाह किया था l थाईलैंड के राजा उसी कुश के वंशज हैंl इस वंश को “चक्री वंश कहा जाता है l चूँकि राम को विष्णु का अवतार माना जाता है , और विष्णु का आयुध चक्र है इसी लिए थाईलेंड के लॉग चक्री वंश के हर राजा को “राम ” की उपाधि देकर नाम के साथ संख्या दे देते हैं l जैसे अभी राम (9 th ) राजा हैं जिनका नाम “भूमिबल अतुल्य तेज ” है।
थाईलैंड की अयोध्या–
लोग थाईलैंड की राजधानी को अंग्रेजी में बैंगकॉक ( Bangkok ) कहते हैं , क्योंकि इसका सरकारी नाम इतना बड़ा है , की इसे विश्व का सबसे बडा नाम माना जाता है , इसका नाम संस्कृत शब्दों से मिल कर बना है, देवनागरी लिपि में पूरा नाम इस प्रकार है –
“क्रुंग देव महानगर अमर रत्न कोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महा तिलक भव नवरत्न रजधानी पुरी रम्य उत्तम राज निवेशन महास्थान अमर विमान अवतार स्थित शक्रदत्तिय विष्णु कर्म प्रसिद्धि ”
थाई भाषा में इस पूरे नाम में कुल 163 अक्षरों का प्रयोग किया गया हैl इस नाम की एक और विशेषता ह l इसे बोला नहीं बल्कि गा कर कहा जाता हैl कुछ लोग आसानी के लिए इसे “महेंद्र अयोध्या ” भी कहते है l अर्थात इंद्र द्वारा निर्मित महान अयोध्या l थाई लैंड के जितने भी राम ( राजा ) हुए हैं सभी इसी अयोध्या में रहते आये हैं l
असली राम राज्य थाईलैंड में है-
बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने से विष्णु का अवतार मानते हैं , इसलिए, थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है l वहां के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है, थाईलैंड में संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना 1932 में हुई।
भगवान राम के वंशजों की यह स्थिति है कि उन्हें निजी अथवा सार्वजनिक तौर पर कभी भी विवाद या आलोचना के घेरे में नहीं लाया जा सकता है वे पूजनीय हैं। थाई शाही परिवार के सदस्यों के सम्मुख थाई जनता उनके सम्मानार्थ सीधे खड़ी नहीं हो सकती है बल्कि उन्हें झुक कर खडे़ होना पड़ता है. उनकी तीन पुत्रियों में से एक हिन्दू धर्म की मर्मज्ञ मानी जाती हैं।
थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है
यद्यपि थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के लोग बहुसंख्यक हैं , फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है l जिसे थाई भाषा में ” राम-कियेन ” कहते हैं l जिसका अर्थ राम-कीर्ति होता है , जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है l इस ग्रन्थ की मूल प्रति सन 1767 में नष्ट हो गयी थी , जिससे चक्री राजा प्रथम राम (1736–1809), ने अपनी स्मरण शक्ति से फिर से लिख लिया था l थाईलैंड में रामायण को राष्ट्रिय ग्रन्थ घोषित करना इसलिए संभव हुआ ,क्योंकि वहां भारत की तरह दोगले हिन्दू नहीं है ,जो नाम के हिन्दू हैं, हिन्दुओं के दुश्मन यही लोग हैं l
थाई लैंड में राम कियेन पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन देखना धार्मिक कार्य माना जाता है l राम कियेन के मुख्य पात्रों के नाम इस प्रकार हैं-
राम (राम), 2 लक (लक्ष्मण), 3 पाली (बाली), 4 सुक्रीप (सुग्रीव), 5 ओन्कोट (अंगद), 6 खोम्पून ( जाम्बवन्त ) ,7 बिपेक ( विभीषण ), 8 तोतस कन ( दशकण्ठ ) रावण, 9 सदायु ( जटायु ), 10 सुपन मच्छा ( शूर्पणखा ) 11मारित ( मारीच ),12इन्द्रचित ( इंद्रजीत )मेघनाद , 13 फ्र पाई( वायुदेव ), इत्यादि l थाई राम कियेन में हनुमान की पुत्री और विभीषण की पत्नी का नाम भी है, जो यहाँ के लोग नहीं जानते l
थाईलैंड में हिन्दू देवी देवता
थाईलैंड में बौद्ध बहुसंख्यक और हिन्दू अल्प संख्यक हैं l वहां कभी सम्प्रदायवादी दंगे नहीं हुए l थाई लैंड में बौद्ध भी जिन हिन्दू देवताओं की पूजा करते है , उनके नाम इस प्रकार हैं
1 . ईसुअन ( ईश्वन ) ईश्वर शिव , 2 नाराइ ( नारायण ) विष्णु , 3 फ्रॉम ( ब्रह्म ) ब्रह्मा, 4 . इन ( इंद्र ), 5 . आथित ( आदित्य ) सूर्य , 6 . पाय ( पवन ) वायु l
थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़
गरुड़ एक बड़े आकार का पक्षी है , जो लगभग लुप्त हो गया है l अंगरेजी में इसे ब्राह्मणी पक्षी (The brahminy kite ) कहा जाता है , इसका वैज्ञानिक नाम “Haliastur indus ” है l फ्रैंच पक्षी विशेषज्ञ मथुरिन जैक्स ब्रिसन ने इसे सन 1760 में पहली बार देखा था, और इसका नाम Falco indus रख दिया था, इसने दक्षिण भारत के पाण्डिचेरी शहर के पहाड़ों में गरुड़ देखा थाl इस से सिद्ध होता है कि गरुड़ काल्पनिक पक्षी नहीं है l इसीलिए भारतीय पौराणिक ग्रंथों में गरुड़ को विष्णु का वाहन माना गया है l चूँकि राम विष्णु के अवतार हैं , और थाईलैंड के राजा राम के वंशज है , और बौद्ध होने पर भी हिन्दू धर्म पर अटूट आस्था रखते हैं , इसलिए उन्होंने ” गरुड़ ” को राष्ट्रीय चिन्ह घोषित किया है l यहां तक कि थाई संसद के सामने गरुड़ बना हुआ है।
थाईलैंड की राजधानी के हवाई अड्डे का नाम सुवर्ण भूमि हैl यह आकार के मुताबिक दुनिया का दूसरे नंबर का एयर पोर्ट है l इसका क्षेत्रफल 563,000 स्क्वेअर मीटर है। इसके स्वागत हाल के अंदर समुद्र मंथन का दृश्य बना हुआ हैl पौराणिक कथा के अनुसार देवोँ और असुरों ने अमृत निकालने के लिए समुद्र का मंथन किया था l इसके लिए रस्सी के लिए वासुकि नाग, मथानी के लिए मेरु पर्वत का प्रयोग किया था l नाग के फन की तरफ असुर और पुंछ की तरफ देवता थेl मथानी को स्थिर रखने के लिए कच्छप के रूप में विष्णु थेl जो भी व्यक्ति इस ऐयर पोर्ट के हॉल जाता है वह यह दृश्य देख कर मन्त्र मुग्ध हो जाता है।
इस लेख का उदेश्य लोगों को यह बताना है कि असली सेकुलरज्म क्या है, यह थाईलैंड से सीखो
विभाजन, 1947,लाहौर
यह अविभाजित भारत का सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन लाहौर है , विभाजन के समय लाहौर की जनसंख्या में 55 प्रतिशत हिन्दू-सिख थे, लाहौर व्यापारिक,कृषि और आधुनिकता के आधार पर अविभाजित भारत का समृध्दतम जिला था और संयुक्त पंजाब की राजधानी भी ! लाहौर हिंदुओं और सिक्खों की बनवाई सुंदर हवेलियों के लिए मशहूर था ,लाहौर के अनारकली बाजार की मोहब्बत में देश के बुजुर्ग और नौजवान गिरफ्तार थे ,
आह ! लाहौर की नदियों के चौड़े खूबसूरत पाट और सुंदर घाट ! कहते हैं "जिसने लाहौर नही देखा,उसने कुछ नही देखा" ! भगवान श्रीराम के पुत्रों लवकुश के द्वारा बसाए गए नगर लाहौर को दो नदियों रावी और सतलज का जीवनदायिनी जल मिलता था !!
लाहौर चूंकि हिन्दू-सिख बाहुल्य था और ग्रामीण इलाकों में तो सिक्ख दबदबा था,अंतः जुलाई 1947 तक अधिकांश हिन्दू-सिख जनता निश्चित थी कि लाहौर तो भारत का हिस्सा ही रहेगा, परंतु जिन्ना की इस मांग पर कि "पाकिस्तान को एक आधुनिक शहर तो मिलना ही चाहिए" पर कांग्रेसियों ने बगैर यह विचार किये, सहमति दे दी कि रावलपिंडी,कराची,सरगोधा, हैदराबाद ,झेलम,मुल्तान ,ढांका और चटगांव जैसे बड़े शहर पाकिस्तान को पहले से ही मिल ही रहे थे !!
पचपन प्रतिशत हिन्दू-सिखों को लाहौर से मार-काट-अपहरण-बलात्कार-लूट के पश्चात भी एक-दो महीने में आसानी से निकालना संभव नही था अतः मुसलमानों ने सैकड़ों जिहादी-रजाकार दस्ते बनाए ,मस्जिदें और मदरसे,कमांड सेंटर और आक्रमण हेतु लांचिंग पैड बने ! जुलाई-अगस्त 1947 के महीनों में अधिकांश हिंदुओं की सफाई कर दी गई,घरों,मंदिर-गुरुद्वारों और अस्पतालों में छिपे हिन्दू-सिखों को मार डाला गया,शेष छुपते -छुपाते भारत की ओर भागे ,
औरतों पर इतने बलात्कार हुए कि सैकड़ों हिन्दू-सिख औरतों ने बलात्कार के दौरान ही दम तोड़ दिया,हज़ारों को बलात्कार के बाद मार डाला गया ! शेष का अपहरण कर, उनको मुस्लिम बना कर मुस्लिम गुंडों से निकाह करा दिया गया ! बची-खुची हिन्दू-सिख स्त्रियों की मंडियां लगाईं गईं और 25-50 रु तक मे नीलामी की बोली लगाकर हिन्दू-सिख औरतों को बेचा गया !
15 अगस्त 1947 की रात जब नेहरू पार्लियामेंट में खुशी से झूमते हुए 'ट्रिस्ट विध डेस्टिनी' वाला ऐतिहासिक भाषण दे रहे थे ,उस वक्त लाहौर का आसमान आग की लपटों से लाल था, हज़ारों हिन्दू-सिख जलते हुए घरों,मंदिरों,गुरुद्वारों में तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे थे ,शेष को तलवारों से सड़कों पर लाकर काटा जा रहा था !!
ऋषि पाराशर के अनुसार ये पृथ्वी सात महाद्वीपों में बंटी हुई है... (आधुनिक समय में भी ये ७ Continents में विभाजित है यानि - Asia, Africa, North America, South America, Antarctica, Europe, and Australia)
ऋषि पाराशर के अनुसार इन महाद्वीपों के नाम हैं -
१. जम्बूद्वीप
२. प्लक्षद्वीप
३. शाल्मलद्वीप
४. कुशद्वीप
५. क्रौंचद्वीप
६. शाकद्वीप
७. पुष्करद्वीप
ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, नाना प्रकार के द्रव्यों और मीठे जल के समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं, और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। जम्बुद्वीप इन सब के मध्य में स्थित है।
इनमे से जम्बुद्वीप का सबसे विस्तृत वर्णन मिलता है... इसी में हमारा भारतवर्ष स्थित है...
सभी द्वीपों के मध्य में जम्बुद्वीप स्थित है। इस द्वीप के मध्य में सुवर्णमय सुमेरु पर्वत स्थित है। इसकी ऊंचाई चौरासी हजार योजन है और नीचे कई ओर यह सोलह हजार योजन पृथ्वी के अन्दर घुसा हुआ है। इसका विस्तार, ऊपरी भाग में बत्तीस हजार योजन है, तथा नीचे तलहटी में केवल सोलह हजार योजन है। इस प्रकार यह पर्वत कमल रूपी पृथ्वी की कर्णिका के समान है।
सुमेरु के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक वर्ष पर्वत हैं, जो भिन्न भिन्न वर्षों का भाग करते हैं। सुमेरु के उत्तर में नील, श्वेत और शृंगी वर्षपर्वत हैं। इनमें निषध और नील एक एक लाख योजन तक फ़ैले हुए हैं। हेमकूट और श्वेत पर्वत नब्बे नब्बे हजार योजन फ़ैले हुए हैं। हिमवान और शृंगी अस्सी अस्सी हजार योजन फ़ैले हुए हैं।
मेरु पर्वत के दक्षिण में पहला वर्ष भारतवर्ष कहलाता है, दूसरा किम्पुरुषवर्ष तथा तीसरा हरिवर्ष है। इसके दक्षिण में रम्यकवर्ष, हिरण्यमयवर्ष और तीसरा उत्तरकुरुवर्ष है। उत्तरकुरुवर्ष द्वीपमण्डल की सीमा पार होने के कारण भारतवर्ष के समान धनुषाकार है।
इन सबों का विस्तार नौ हजार योजन प्रतिवर्ष है। इन सब के मध्य में इलावृतवर्ष है, जो कि सुमेरु पर्वत के चारों ओर नौ हजार योजन फ़ैला हुआ है। एवं इसके चारों ओर चार पर्वत हैं, जो कि ईश्वरीकृत कीलियां हैं, जो कि सुमेरु को धारण करती हैं,
ये सभी पर्वत इस प्रकार से हैं:-
पूर्व में मंदराचल
दक्षिण में गंधमादन
पश्चिम में विपुल
उत्तर में सुपार्श्व
ये सभी दस दस हजार योजन ऊंचे हैं। इन पर्वतों पर ध्वजाओं समान क्रमश कदम्ब, जम्बु, पीपल और वट वृक्ष हैं। इनमें जम्बु वृक्ष सबसे बड़ा होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बुद्वीप पड़ा है। यहाँ से जम्बु नद नामक नदी बहती है। उसका जल का पान करने से बुढ़ापा अथवा इन्द्रियक्षय नहीं होता। उसके मिनारे की मृत्तिका (मिट्टी) रस से मिल जाने के कारण सूखने पर जम्बुनद नामक सुवर्ण बनकर सिद्धपुरुषों का आभूषण बनती है।
मेरु पर्वत के पूर्व में भद्राश्ववर्ष है, और पश्चिम में केतुमालवर्ष है। इन दोनों के बीच में इलावृतवर्ष है। इस प्रकार उसके पूर्व की ओर चैत्ररथ , दक्षिण की ओर गन्धमादन, पश्चिम की ओर वैभ्राज और उत्तर की ओर नन्दन नामक वन हैं। तथा सदा देवताओं से सेवनीय अरुणोद, महाभद्र, असितोद और मानस – ये चार सरोवर हैं।
मेरु के पूर्व में
शीताम्भ, 
कुमुद, 
कुररी, 
माल्यवान, 
वैवंक आदि पर्वत हैं।
मेरु के दक्षिण में
त्रिकूट, 
शिशिर, 
पतंग, 
रुचक 
और निषाद आदि पर्वत हैं।
मेरु के उत्तर में
शंखकूट, 
ऋषभ, 
हंस,
नाग 
और कालंज पर्वत हैं।
समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार नौ हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है। इसमें सात कुलपर्वत हैं: महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र ।
भारतवर्ष के नौ भाग हैं:
इन्द्रद्वीप, 
कसेरु, 
ताम्रपर्ण, 
गभस्तिमान, 
नागद्वीप, 
सौम्य, 
गन्धर्व 
और वारुण, तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नवां है।
यह द्वीप उत्तर से दक्षिण तक सहस्र योजन है। यहाँ चारों वर्णों के लोग मध्य में रहते हैं। शतद्रू और चंद्रभागा आदि नदियां हिमालय से, वेद और स्मृति आदि पारियात्र से, नर्मदा और सुरसा आदि विंध्याचल से, तापी, पयोष्णी और निर्विन्ध्या आदि ऋक्ष्यगिरि से निकली हैं। गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, सह्य पर्वत से; कृतमाला और ताम्रपर्णी आदि मलयाचल से, त्रिसामा और आर्यकुल्या आदि महेन्द्रगिरि से तथा ऋषिकुल्या एवंकुमारी आदि नदियां शुक्तिमान पर्वत से निकलीं हैं। इनकी और सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं।
इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, मध्याअदि देशों के; पूर्व देश और कामरूप के; पुण्ड्र, कलिंग, मगध और दक्षिणात्य लोग, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव और पारियात्र निवासी; सौवीर, सन्धव, हूण; शाल्व, कोशल देश के निवासी तथा मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं। भारतवर्ष में ही चारों युग हैं, अन्यत्र कहीं नहीं। इस जम्बूद्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है।
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प्लक्षद्वीप का वर्णन -
प्लक्षद्वीप का विस्तार जम्बूद्वीप से दुगुना है। यहां बीच में एक विशाल प्लक्ष वृक्ष लगा हुआ है। यहां के स्वामि मेधातिथि के सात पुत्र हुए हैं। ये थे:
शान्तहय, 
शिशिर, 
सुखोदय, 
आनंद, 
शिव,
क्षेमक, 
ध्रुव ।
यहां इस द्वीप के भी भारतवर्ष की भांति ही सात पुत्रों में सात भाग बांटे गये, जो उन्हीं के नामों पर रखे गये थे: शान्तहयवर्ष, इत्यादि।
इनकी मर्यादा निश्चित करने वाले सात पर्वत हैं:
गोमेद, 
चंद्र, 
नारद, 
दुन्दुभि, 
सोमक, 
सुमना 
और वैभ्राज।
इन वर्षों की सात ही समुद्रगामिनी नदियां हैं अनुतप्ता, शिखि, विपाशा, त्रिदिवा, अक्लमा, अमृता और सुकृता। इनके अलावा सहस्रों छोटे छोटे पर्वत और नदियां हैं। इन लोगों में ना तो वृद्धि ना ही ह्रास होता है। सदा त्रेतायुग समान रहता है। यहां चार जातियां आर्यक, कुरुर, विदिश्य और भावी क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं। यहीं जम्बू वृक्ष के परिमाण वाला एक प्लक्ष (पाकड़) वृक्ष है। इसी के ऊपर इस द्वीप का नाम पड़ा है।
प्लक्षद्वीप अपने ही परिमाण वाले इक्षुरस के सागर से घिरा हुआ है।
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शाल्मल द्वीप का वर्णन
इस द्वीप के स्वामि वीरवर वपुष्मान थे। इनके सात पुत्रों : 
श्वेत, 
हरित, 
जीमूत, 
रोहित, 
वैद्युत, 
मानस 
और सुप्रभ के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। इक्षुरस सागर अपने से दूने विस्तार वाले शाल्मल द्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां भी सात पर्वत, सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।
इसमें महाद्वीप में 
कुमुद, 
उन्नत, 
बलाहक, 
द्रोणाचल, 
कंक, 
महिष, 
ककुद्मान नामक सात पर्वत हैं।
इस महाद्वीप में -
योनि, 
तोया, 
वितृष्णा, 
चंद्रा, 
विमुक्ता, 
विमोचनी 
एवं निवृत्ति नामक सात नदियां हैं।
यहाँ - 
श्वेत, 
हरित, 
जीमूत, 
रोहित, 
वैद्युत, 
मानस 
और सुप्रभ नामक सात वर्ष हैं।
यहां - 
कपिल, 
अरुण, 
पीत
और कृष्ण नामक चार वर्ण हैं।
यहां शाल्मल (सेमल) का अति विशाल वृक्ष है। यह महाद्वीप अपने से दुगुने विस्तार वाले सुरासमुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है।
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कुश द्वीप का वर्णन
इस द्वीप के स्वामि वीरवर ज्योतिष्मान थे।
इनके सात पुत्रों : 
उद्भिद, 
वेणुमान, 
वैरथ, 
लम्बन, 
धृति, 
प्रभाकर,
कपिल
इनके नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। मदिरा सागर अपने से दूने विस्तार वाले कुश द्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां भी सात पर्वत, सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।
पर्वत -
विद्रुम, 
हेमशौल, 
द्युतिमान, 
पुष्पवान, 
कुशेशय, 
हरि 
और मन्दराचल नामक सात पर्वत हैं।
नदियां -
धूतपापा, 
शिवा, 
पवित्रा, 
सम्मति, 
विद्युत, 
अम्भा
और मही नामक सात नदियां हैं।
सात वर्ष -
उद्भिद, 
वेणुमान,
वैरथ, 
लम्बन, 
धृति, 
प्रभाकर, 
कपिल नामक सात वर्ष हैं।
वर्ण -
दमी, 
शुष्मी, 
स्नेह 
और मन्देह नामक चार वर्ण हैं।
यहां कुश का अति विशाल वृक्ष है। यह महाद्वीप अपने ही बराबर के द्रव्य से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है।
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क्रौंच द्वीप का वर्णन -
इस द्वीप के स्वामि वीरवर द्युतिमान थे।
इनके सात पुत्रों :
कुशल, 
मन्दग, 
उष्ण, 
पीवर, 
अन्धकारक, 
मुनि 
और दुन्दुभि के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। यहां भी सात पर्वत, सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।
पर्वत -
क्रौंच, 
वामन, 
अन्धकारक, 
घोड़ी के मुख समान रत्नमय स्वाहिनी पर्वत, 
दिवावृत, 
पुण्डरीकवान, 
महापर्वत 
दुन्दुभि नामक सात पर्वत हैं।
नदियां -
गौरी, 
कुमुद्वती, 
सन्ध्या, 
रात्रि, 
मनिजवा, 
क्षांति 
और पुण्डरीका नामक सात नदियां हैं।
सात वर्ष -
कुशल, 
मन्दग, 
उष्ण, 
पीवर, 
अन्धकारक, 
मुनि और 
दुन्दुभि ।
वर्ण -
पुष्कर, 
पुष्कल, 
धन्य 
और तिष्य नामक चार वर्ण हैं।
यह द्वीप अपने ही बराबर के द्रव्य से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह सागर अपने से दुगुने विस्तार वाले शाक द्वीप से घिरा है।
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शाकद्वीप का वर्णन -
इस द्वीप के स्वामि भव्य वीरवर थे।
इनके सात पुत्रों :
जलद, 
कुमार, 
सुकुमार, 
मरीचक,
कुसुमोद, 
मौदाकि 
और महाद्रुम के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं।
यहां भी सात पर्वत, सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।
पर्वत -
उदयाचल, 
जलाधार, 
रैवतक, 
श्याम, 
अस्ताचल, 
आम्बिकेय 
और अतिसुरम्य गिरिराज केसरी नामक सात पर्वत हैं।
नदियां -
सुमुमरी, 
कुमारी, 
नलिनी, 
धेनुका, 
इक्षु, 
वेणुका 
और गभस्ती नामक सात नदियां हैं।
सात वर्ष -
जलद, 
कुमार, 
सुकुमार, 
मरीचक, 
कुसुमोद, 
मौदाकि 
और महाद्रुम ।
वर्ण -
वंग, 
मागध, 
मानस 
और मंगद नामक चार वर्ण हैं।
यहां अति महान शाक वृक्ष है, जिसके वायु के स्पर्श करने से हृदय में परम आह्लाद उत्पन्न होता है। यह द्वीप अपने ही बराबर के द्रव्य से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह सागर अपने से दुगुने विस्तार वाले पुष्कर द्वीप से घिरा है।
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पुष्करद्वीप का वर्णन -
इस द्वीप के स्वामि सवन थे।
इनके दो पुत्र थे:
महावीर 
और धातकि।
यहां एक ही पर्वत और दो ही वर्ष हैं।
पर्वत -
मानसोत्तर नामक एक ही वर्ष पर्वत है। यह वर्ष के मध्य में स्थित है । यह पचास हजार योजन ऊंचा और इतना ही सब ओर से गोलाकार फ़ैला हुआ है। इससे दोनों वर्ष विभक्त होते हैं, और वलयाकार ही रहते हैं।
नदियां -
यहां कोई नदियां या छोटे पर्वत नहीं हैं।
वर्ष -
महवीर खण्ड 
और धातकि खण्ड।
महावीरखण्ड वर्ष पर्वत के बाहर की ओर है, और बीच में धातकिवर्ष है ।
वर्ण -
वंग, 
मागध, 
मानस 
और मंगद नामक चार वर्ण हैं।
यहां अति महान न्यग्रोध (वट) वृक्ष है, जो ब्रह्मा जी का निवासस्थान है यह द्वीप अपने ही बराबर के मीठे पानी से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है।
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समुद्रो का वर्णन -
यह सभी सागर सदा समान जल राशि से भरे रहते हैं, इनमें कभी कम या अधिक नही होता। हां चंद्रमा की कलाओं के साथ साथ जल बढ़्ता या घटता है। (ज्वार-भाटा) यह जल वृद्धि और क्षय 510 अंगुल तक देखे गये हैं।
पुष्कर द्वीप को घेरे मीठे जल के सागर के पार उससे दूनी सुवर्णमयी भूमि दिल्खायी देती है। वहां दस सहस्र योजन वाले लोक-आलोक पर्वत हैं। यह पर्वत ऊंचाई में भी उतने ही सहस्र योजन है। उसके आगे पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए घोर अन्धकार छाया हुआ है। यह अन्धकार चारों ओर से ब्रह्माण्ड कटाह से आवृत्त है। (अन्तरिक्ष) अण्ड-कटाह सहित सभी द्वीपों को मिलाकर समस्त भू-मण्डल का परिमाण पचास करोड़ योजन है। (सम्पूर्ण व्यास)
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आधुनिक नामों की दृष्टी से विष्णु पुराण का सन्दर्भ देंखे तो... हमें कई समानताएं सिर्फ विश्व का नक्शा देखने भर से मिल जायेंगी...
१. विष्णु पुराण में पारसीक - ईरान को कहा गया है,
२. गांधार वर्तमान अफगानिस्तान था, 
३. महामेरु की सीमा चीन तथा रशिया को घेरे है.
४. निषध को आज अलास्का कहा जाता है.
५. प्लाक्ष्द्वीप को आज यूरोप के नाम से जाना जाता है.
६. हरिवर्ष की सीमा आज के जापान को घेरे थी.
७. उत्तरा कुरव की स्तिथि को देंखे तो ये फ़िनलैंड प्रतीत होता है.
इसी प्रकार विष्णु पुराण को पढ़कर विश्व का एक सनातनी मानचित्र तैयार किया जा सकता है... ये थी हमारे ऋषियों की महानता
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अब एक महत्त्वपूर्ण बात -
महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया गया था।
महाभारत में कहा गया है कि - यह पृथ्वी चन्द्रमंडल में देखने पर दो अंशों मे खरगोश तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल (पत्तों) के रुप में दिखायी देती है-
उक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के निम्नलिखित श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था-
"सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। 
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥ 
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। 
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ 
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
"अर्थात हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है।"
अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से शत प्रतिशत समानता दिखाता है।