Saturday, 12 August 2017

अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897, विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश में हुआ था वे भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी थे, उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध एक सैन्य सगठन की स्थापना की और क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से छापामार युद्ध किया, उनके इस सशस्त्र क्रांति में उनके साथ प्राण न्यौछावर करने वाले कई क्रांतिकारी उनके साथ थे, अंग्रेजो ने इस आंदोलन का दमन करने के लिये 'असम रायफल्स' नाम से एक सेना का संगठन किया, यह सेना बीहड़ों और जंगलों में सीताराम राजू को खोजती रही.
मई 1924 में अंग्रेजों की सेना उन तक पहुँच गई व 'किरब्बू' नामक स्थान पर दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ, दोनों ओर की सेना के अनेक सैनिक मारे जा चुके थे। 7 मई, 1924 सीताराम राजू को पकड लिया गया और एक सैन्य अधिकारी ने सीताराम राजू को पेड़ से बांधकर उन पर गोलियाँ बरसाईं, इस प्रकार लगभग ब्रिटिश सत्ता की नींद हराम करने वाला यह वीर भारत माँ का सपूत शहीद हो गया.....

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रानी चेन्नम्मा का जन्म- 23 अक्तूबर, 1778, कित्तूर, कर्नाटक में हुआ था, अपनी असाधारण वीरता के बूते पर इन्होंने पुरुष वेश में अंग्रेजो को चुनौती दी थी और अंग्रेज़ों की सेना को उनके सामने दो बार मुँह की खानी पड़ी थी.....
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एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते पर अपना बलिदान देंने वाले अमर शहीद खुदीराम बोस जी को 11 अगस्त, 1908 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। इनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ और इनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई
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जतिंद्र नाथ दास (27 अक्टूबर 1904 - 13 सितम्बर 1929), एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे...
लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया..
स्वतंत्रता से पहले अनशन(उपवास) से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं...

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सूर्य सेन (1894 - 12 जनवरी 1934) भारत की स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। उन्होने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की और चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया।
सूर्य सेन ने मंत्र दिया—‘करो या मरो’ नहीं ‘करो और मरो’।
आईआरए के गठन से पूरे बंगाल में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी और 18 अप्रैल 1930 को सूर्यसेन के नेतृत्व में दर्जनों क्रांतिकारियों ने चटगांव के शस्त्रागार को लूटकर अंग्रेज शासन के खात्मे की घोषणा कर दी। क्रांति की ज्वाला के चलते हुकूमत के नुमाइंदे भाग गए और चटगांव में कुछ दिन के लिए अंग्रेजी शासन का अंत हो गया।

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कर्तार सिंह सराभा (जन्म: 24 मई 1896 - फांसी:16 नवम्बर 1915) भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिये अमेरिका में बनी गदर पार्टी के अध्यक्ष थे, भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में उन्हें और उनके छ साथियों के साथ को अंग्रेजी सरकार ने फांसी की सजा दी थी। 16 नवम्बर 1915 को कर्तार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे, अपने छ अन्य साथियों के साथ जब उन्होने मौत को गले लगाया तो मुस्कुराते वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे बुलंद किए, प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे.....
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शिव गंगाई, तमिलनाडु की रानी वेलु नचियार की पहली शासक थी जिसने अँग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की और अपनी स्वतंत्रता को बचाने में सफल रहीं। अंग्रेजी सेना के हथियार और बारूद को नष्ट करने के लिये उन्होंने विश्व के पहले मानव बम का प्रयोग भी किया था, जब उनका एक विश्वासपात्र सेवक स्वयं को तेल में डुबोकर आग लगाकर अँग्रेजों के अस्त्र और बारूद के जखीरे में कूद गया था। उन्होंने एक महिला सैन्य दल भी बनाया जिसका नाम "उडैयाल" था.....
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प्रीतिलता वड्डेदार भारत की महिला क्रांतिकारी थीं, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपने प्राण त्याग उत्सर्ग कर दिए।24 सितम्बर १९३२ की रात प्रीतिलता के नेतृत्त्व में कुछ क्रांतिकारी पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच - गाने में मग्न अंग्रेजो को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया, हथियारों से लैस प्रीतिलता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था। 
बाहर से खिड़की में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कापने लगी। नाच - रंग के वातावरण में एकाएक चीखे सुनाई देने लगी। 13 अंग्रेज जख्मी हो गये और बाकी भाग गये। इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी। थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी। वे घायल अवस्था में भागी लेकिन फिर गिरी और पोटेशियम सायनाइड खा लिया।
उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। इतनी कम उम्र में उन्होंने झांसी की रानी का रास्ता अपनाया और उन्ही की तरह अंतिम समय तक अंग्रेजो से लड़ते हुए स्वंय ही मृत्यु का वरण कर लिया प्रीतिलता के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज

अधिकारियों को तलाशी लेने पर जो पत्र मिले उनमे छपा हुआ पत्र था। इस पत्र में छपा था की " चटगाँव शस्त्रागार काण्ड के बाद जो मार्ग अपनाया जाएगा, वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगी।"

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8 दिसंबर, 1930 को यूरोपीय वस्त्र पहने बिनोय बसु, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता के साथ मिलकर बिनोय राइटरस बिल्डिंग के अंदर घुसे और कर्नल सिम्पसन की गोली मार के हत्या कर दी ।

इस पर ब्रिटिश पुलिस ने भी गोलिया चलानी शुरू कर दी और इसके बाद इन तीन क्रांतिकारियों और पुलिस के बीच खूब गोलीबारी हुई। कुछ पुलिस अफसर जैसे ट्वीनेम , नेल्सन और प्रेन्टिस इस गोलीबारी में घायल हुए।

लेकिन जल्द ही पुलिस ने उन्हें चारो तरफ से घेर लिया। वे पुलिस के हिरासत में नहीं आना चाहते थे इसलिए बादल ने पोटैशियम साइनाइड ले लिया। बिनोय और दिनेश ने खुद को गोली मार दी। बिनोय को हॉस्पिटल ले जाया गया जहा १३ दिसंबर 1930 को उनकी मृत्यु हो गयी। बिनोय ,बादल और दिनेश के इस निस्वार्थ बलिदान ने कई और क्रांतिकारियों को प्रेरणा दी।

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9 दिसम्बर 1927 को अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह भारत का यह महान सपूत देश के लिए अपना बलिदान दिया, इस महान क्रान्तिकारी की शहादत ने देश की आज़ादी की लड़ाई में हिन्दू-मुस्लिम एकता को और भी अधिक मजबूत कर दिया, उनका बलिदान आज भी देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोने का काम करता है...
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जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी ।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी। 

रानी लक्ष्मी बाई के वेश में युद्ध करते हुए वे अपने अंतिम समय अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उस युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वह जमीन पर गिर पड़ी, झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है

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