Monday 14 August 2017

बेजान लम्हे 

ताऊजी का इकलौता बेटा सरकारी नौकरी के कारण शहर में बस गया है, वो छुट्टियों या ख़ास मौकों पर ही गांव जा पाता है ।
कभी कभार काफी मनुहार पर ताऊजी शहर आ जाते हैं एक दो दिन रहने के लिए..
पर यहाँ एक एक पल काटना उनके लिए भारी है, ना पोते उनके पास बैठते हैं, ना ही कोई पड़ोसी और गुवाड़ है, घर के अंदर बहु रहती है और टेलीविजन में ताऊ की आस्था नहीं है 

घर से बाहर कुर्सी लगाके सुबह से शाम ढलने तक सामने गली से गुजरते लोगों पर नजर डालते ताऊजी यही सोच रहे हैं कि
"मेरे बेटे ने यहाँ आके क्या पाया है" ??

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