इस पंद्रह अगस्त ने देश को ये मौका दिया कि केरल, बंगाल और जम्मू-कश्मीर को 'ज़ूम' करके देख सके। जब ज़ूम किया तो बंगाल में कालिख से लिपटी सुभाष बोस की मूर्ति दिखाई दी। केरल में तिरंगा लहराने पर एफआईआर दर्ज कराने वाले डीएम दिखाई दिए। कश्मीर में हमने स्टेडियम में सौ-पचास लोगों को बैठे देखा और ये भी देखा कि उनमे से ज्यादातर लोग राष्ट्रगान के समय खड़े ही नहीं हुए।
बंगाल-केरल-कश्मीर को लाल घेरे में अंकित कर देना चाहिए। ये वो राज्य हैं जहां अब संविधान का राज नहीं चलता। कितनी जल्दी हम ये विस्फोट देख पा रहे हैं। जबकि हममे से से कितने ये सोचकर निश्चिंत थे कि कम से कम हमारे वक्त में तो नहीं होगा 'गजवा-ए-हिंद'। लीजिये आपके सामने खड़ा है और 15 अगस्त को तीन राज्यों ने स्पष्ट संदेश दे दिए हैं कि 'हमारे यहां भारत की बात न करना'।
अब आगे क्या। कश्मीर की असली 'आज़ादी' के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं लेकिन जब केंद्र सरकार सच में शुरू होगी तो क्या होगा सोचिये। अभी कश्मीर से बाबर सैयद कादरी लाइव खुलेआम पंडितों को गाली दे रहा था। सोचिये उस दिन कश्मीर की सूरत क्या होगी, जिस दिन धारा 370 को हटाने का काम शुरू होगा। सड़के खून से नहा जाएगी।
जब तक इन तीन राज्यों का उन्मूलन होगा, तब तक अन्य राज्यों में बंगाल जैसे हालात बनने लगेंगे, बल्कि मैं कहूंगा बन चुके हैं। पिछले वर्ष धार जिले में उनकी 'संगठित शक्ति' का अच्छे से जायज़ा ले चुका हूं। कल जब देश के विभिन्न शहर राष्ट्रीय पर्व से उल्लासित हो रहे थे, तब उन्ही शहरों के अधिकांश अल्पसंख्यक मोहल्लों में सन्नाटा देखा गया। कुछ मुस्लिमों को छोड़ दे तो मामला निराशाजनक ही रहा।
दरअसल कश्मीर समस्या सुलझाने में हम बीस साल पीछे चल रहे हैं। इसके लिए तो दिनों में नहीं बल्कि घन्टों में कार्रवाई की ज़रूरत है।
बस एक बात कहनी है कि हमारे पूर्ववती सरकारे और हम कठोर निर्णय नहीं ले सके। अब ये देश हमारे बाद हमारे नन्हों का होगा। आज माँ भारती की 'तीन भुजाएं' हमारे ही सामने लगभग नष्ट हो चुकी हैं तो उनके सम्मुख क्या माँ भारती भुजा विहीन हो जाएगी
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