5 रूपये का चिप्स पैकेट बेच खड़ा किया 850 करोड़ का कारोबार, एक छोटे से शहर से चलती है कम्पनी
कायदे से देखें तो 2020 तक भारत में नमकीन का व्यवसाय 35,000 करोड़ रूपये के पार होगा। ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र में एक बड़ी कारोबारी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। और इसी कारोबारी संभावना को भांपते हुए कई क्षेत्रीय ब्रांड भी आगे आ रहे हैं। आप विश्वास नहीं करेंगें, इन क्षेत्रीय ब्रांडों ने भी अपने स्वाद से लोगों का दिल जीतते हुए न सिर्फ करोड़ों रूपये का टर्नओवर कर रहा बल्कि घरेलू बाज़ार में विदेशी ब्रांडों को काँटे की टक्कर दे रहा है
आज हम ऐसे ही एक क्षेत्रीय नमकीन ब्रांड की सफलता से आपको रूबरू करा रहे हैं। ताज्जुब की बात है कि हममें से ज्यादातर लोग इस ब्रांड का नाम तक नहीं सुने होंगें लेकिन यह कंपनी आज सालाना 850 करोड़ रूपये का टर्नओवर कर रही है। इंदौर स्थित स्नैक फूड कंपनी प्रताप नमकीन ने जब नमकीन के छल्ले बनाने शुरू किये तो उन्हें भी मालूम नहीं था कि एक दिन वे इस सेगमेंट के अग्रणी कंपनियों में से एक होंगें। साल 2003 में अमित कुमात और अपूर्व कुमात ने अपने दोस्त अरविंद मेहता के साथ मिलकर इस कंपनी की नींव रखी थी और आज यह देशभर में चार कारखानों के साथ 24 राज्यों में 168 स्टोर हाउस और 2,900 वितरकों का एक विशाल नेटवर्क बन चुका है।
एक स्नैक्स कंपनी में 10 वर्ष तक काम काम करने के बाद, अमित ने साल 2001 में कारोबारी जगत में घुसने का फैसला लिया और इसके लिए उन्होंने रसायन विनिर्माण का क्षेत्र चुना। व्यवसाय शुरू करने के एक साल के भीतर ही कंपनी के ऊपर 6 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया और फिर उन्होंने कारोबार बंद करने का निश्चय किया। शुरूआती असफलता से उन्हें बेहद धक्का लगा। उन्होंने न केवल अपनी सारी बचतें गंवा दीं बल्कि इंदौर क्षेत्र के अपने साथी व्यापारियों के बीच सम्मान भी। उन्होंने किसी तरह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार लेकर सारे लेनदारों का भुगतान किया। लेकिन अमित अपना खुद का बिज़नेस एम्पायर बनाने के सपने को इतनी आसानी से छोड़ने वाले नहीं थे। साल 2002 में उन्होंने अपने भाई अपूर्व और मित्र अरविंद से इंदौर क्षेत्र में नमकीन का व्यवसाय शुरू करने का आइडिया साझा किया। तीनों ने अपने परिवार वालों पर काफी दबाव बनाने के बाद 15 लाख रूपये इकठ्ठा कर प्रताप स्नैक्स के रूप में अपने सपने की नींव रखी।
हमेशा उद्यमी बने रहना चाहता था और स्नैक्स बाजार में मुझे दिलचस्पी थी क्योंकि मैं सभी बड़े ब्रांडों से परिचित था। मुझे एहसास हुआ कि इंदौर जैसे शहरों में उनकी पहुंच बड़ी नहीं थी और इसी वजह से मैनें इस क्षेत्र को चुना। — अमित
कारोबार की शुरुआत करने के लिए उन्होंने एक स्थानीय खाद्य प्रसंस्करण और विनिर्माण संयंत्र में रिंग स्नैक्स के कुल 20,000 बक्से का आर्डर दिया। शुरुआती दिनों के दौरान, वे उत्पादन को स्थानीय निर्माताओं से ही ख़रीदा करते और अपना सारा ध्यान मजबूत वितरण नेटवर्क के निर्माण पर केंद्रित किया। कम पूंजी की वजह से उनके पास सीमित उपकरण थे और साथ ही संयंत्र लगाने के लिए प्रयाप्त जगह भी नहीं थी। पहले साल कंपनी ने कुल 22 लाख रुपये बनाये, दूसरे साल यह लाभ 1 करोड़ रुपये तक पहुँच गया और तीसरे साल तो टर्नओवर 7 करोड़ के पार रहा।
शुरूआती सफलता को देखकर उन्हें इस बात का अहसास हो चुका था कि यह क्षेत्र कितना फायदेमंद है। सफलता की अपार संभावनाओं को देखते हुए उन्होंने साल 2006 में अपने व्यापार को मुंबई में विस्तारित किया। लेकिन 2006 और 2010 के बीच की अवधि में हल्दीराम और बालाजी वेफर्स जैसे कई घरेलु ब्रांड आगे आकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा का आगाज़ किया। इन ब्रांडों से मुकाबला करने के लिए अमित ने एक ही समय में संपूर्ण देश को लक्षित करने के बजाय एक क्षेत्र में विस्तार कर अपनी मजबूत पैठ ज़माने पर ज्यादा जोर दिया। साल 2011 में कंपनी ने खुद का विनिर्माण संयंत्र स्थापित करते हुए येलो डायमंड नाम से ब्रांड पेश किया और टर्नओवर को 150 करोड़ के पार पहुँचाया।
साल-दर-साल स्नैक्स फूड मार्केट में कंपनी का शेयर बढ़ता चला गया। 2010 से 2015 तक, उनकी बाजार हिस्सेदारी एक प्रतिशत से बढ़कर चार प्रतिशत हो गई। आने वाले समय में अमित देश के स्नैक्स मार्केट में कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहते हैं। और इसके लिए उनकी पूरी टीम अपने प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर खासा ध्यान दे रही है। बिलियन डॉलर क्लब में शामिल होने के लिए हाल ही में कंपनी ने अपना आईपीओ भी निकाला है।
इंदौर जैसे छोटे से शहर से निकलकर अपने आइडिया से मल्टीनेशनल कंपनी को कांटे की टक्कर देने वाले इन युवाओं की सोच को सच में सलाम करने की जरुरत है। कहानी पर आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य दें और इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें
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