कम्यूनिष्ट शासन के 35 साल का कमाल ---कुछ साल हुए. एक स्कूल का मित्र मिला...कम्युनिष्ट लोबी से जुड़ा था.धर्म को गाली दे रहा था. बोला धर्म से किसी को रोटी नही मिलती.भारत के बुरे हालात का कारण केवल धर्म है.तब मैंने बताया
बंगाल में 35 साल के शासन ने कैसे रोटी दिलवाई है---
सोनागाछी (कोलकाता } स्लम भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया है। यहां कई गैंग हैं जो इस देह-व्यापार के धंधे को चलाते हैं। इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की कई हज़ार लड़कियां देह व्यापार में शामिल हैं। उन्हें बचपन से ही वो सब देखना पड़ता है जिसके बारे में सोचने पर हमारी रुह कांप जाए। ये काम इतना बुरा है कि इसमें मजबूरन पड़ने वाली लड़कियों के लिए बदनसीब शब्द भी बहुत हल्का है।
जिस उम्र में हमारी मां हमें दुनिया के रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं वहीं ये बच्चियां खुद को बेचने का हुनर सीखती हैं। 12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां सीख जाती हैं कि मर्दों की हवस कैसे मिटाई जाती है। इसके बदले उन्हें 300 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की बच्चियां मर्दों की टेबल पर तश्तरी में खाने की तरह परोस दी जाती हैं।
चिड़ियाघर में पिंजरे में कैद जानवरों की हालत से भी बदतर हालत होती है सोनागाछी में इन छोटे छोटे दडबे जैसे पिंजरों में कैद लड़कियों की बक़ायदा नुमायश होती है ताकि सडक पर आते जाते लोग उनकी अदाओं के जाल में फंस जाए। अपने अपने कोठे या कमरे के बाहर खडी होकर ये बदनसीब औरतें और लड़कियां अपने जिस्म नोचने वालों को रिझाती नज़र आती है। सडक पर बिकने वाले मुर्गे और बकरों की तरह सोनागाछी में इंसानों का बाज़ार लगता है।
पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी ये लोग भीतर नहीं आने देते
ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़कर आई हैं और अब देह बेचने का पाठ पढ़ रही हैं। कुछ NGO का अध्ययन कहते हैं कि इन 35 सालों में सोनागाछी में देह-व्यापार में आने वाली लड़कियों की संख्या 10 गुणा हो गई है. ..शायद धर्म रहित रोटी देने का यही कम्युनिष्ट तरीका है
बंगाल में 35 साल के शासन ने कैसे रोटी दिलवाई है---
सोनागाछी (कोलकाता } स्लम भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया है। यहां कई गैंग हैं जो इस देह-व्यापार के धंधे को चलाते हैं। इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की कई हज़ार लड़कियां देह व्यापार में शामिल हैं। उन्हें बचपन से ही वो सब देखना पड़ता है जिसके बारे में सोचने पर हमारी रुह कांप जाए। ये काम इतना बुरा है कि इसमें मजबूरन पड़ने वाली लड़कियों के लिए बदनसीब शब्द भी बहुत हल्का है।
जिस उम्र में हमारी मां हमें दुनिया के रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं वहीं ये बच्चियां खुद को बेचने का हुनर सीखती हैं। 12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां सीख जाती हैं कि मर्दों की हवस कैसे मिटाई जाती है। इसके बदले उन्हें 300 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की बच्चियां मर्दों की टेबल पर तश्तरी में खाने की तरह परोस दी जाती हैं।
चिड़ियाघर में पिंजरे में कैद जानवरों की हालत से भी बदतर हालत होती है सोनागाछी में इन छोटे छोटे दडबे जैसे पिंजरों में कैद लड़कियों की बक़ायदा नुमायश होती है ताकि सडक पर आते जाते लोग उनकी अदाओं के जाल में फंस जाए। अपने अपने कोठे या कमरे के बाहर खडी होकर ये बदनसीब औरतें और लड़कियां अपने जिस्म नोचने वालों को रिझाती नज़र आती है। सडक पर बिकने वाले मुर्गे और बकरों की तरह सोनागाछी में इंसानों का बाज़ार लगता है।
पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी ये लोग भीतर नहीं आने देते
ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़कर आई हैं और अब देह बेचने का पाठ पढ़ रही हैं। कुछ NGO का अध्ययन कहते हैं कि इन 35 सालों में सोनागाछी में देह-व्यापार में आने वाली लड़कियों की संख्या 10 गुणा हो गई है. ..शायद धर्म रहित रोटी देने का यही कम्युनिष्ट तरीका है
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