सरसों के साग को विदेशों में बेच कर लाखों रुपया कमा रहा है पंजाब का यह किसान...
अमृतसर के पास वेरका गांव को फतेहपुर शुकराचक से जोड़ने वाली लिंक रोड पर चलते हुए तकरीबन आधे एकड़ में फैले फ़ूड प्रोसेसिंग की एक इकाई गोल्डन ग्रेन इंक को शायद ही कोई नोटिस कर पाता है लेकिन इसने सरसों की पत्तियों से बनने वाली पंजाब की सुप्रसिद्ध व्यंजन – सरसों दा साग की धमक से पंजाब के बाहर ही नहीं बल्कि भारत के बाहर भी हलचल मचा दी है।
इस गोल्डन ग्रेन इंक यूनिट के लिए कच्ची सामग्री की कोई कमी नहीं है। इसकी खरीद आमतौर पर यहां के इच्छुक किसानों से बाजार की खुदरा कीमतों से भी ज्यादा दर पर की जाती है। हालांकि इसे तैयार करने का कार्य इतना आसान नहीं है जितना कि दिखता है, यही वजह है कि इस यूनिट के मालिक 59 साल के जगमोहन सिंह हर वक्त व्यस्त नजर आते हैं। वह ब्रिटेन के बर्मिंघम विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग और अनाज पिसाई में डिग्री हासिल करने के बाद 1986 में जगमोहन अपने गृह नगर अमृतसर लौटे।
वो मोबाइल फोन पर लगातार किसानों से बात करते रहते हैं जो ज्यादातर गुरदासपुर जिले के आसपास के रहनेवाले हैं। ये किसान उन्हें सरसों के तोड़े जाने की जानकारी देते हैं। इसके बाद उनकी यूनिट में सरसों की पत्तियों की साग तैयार कर, कैन में बंद कर दुबई, इंग्लैंड और यहां तक कि कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में भेजा जाता है।
वो अपना कारोबार संपर्क के जरिए करते हैं। वो बताते हैं, ”सरसों पैदा करनेवाले बटाला इलाके के गावों के करीब 30 किसानों से मेरा मौखिक समझौता है। सभी छोटे और सीमांत किसान हैं और उनके पास पांच एकड़ से भी कम जमीन है।”
हिसार किस्म की औसत ऊपज 80 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि स्थानीय पंजाबी किस्म महज 50 क्विंटल प्रति एकड़ की ऊपज दे पाती है और वो भी दो बार तुड़ाई के बाद। अमृतसर के बाजार में साग की पत्तियों की कीमत घटती-बढ़ती रहती है।
इसलिए अगर अमृतसर के खुदरा बाजार में इसकी औसत दर 7 रुपये प्रति किलो है तो एक एकड़ से किसान को 56,000 रुपये की तक कमाई हो जाती है। लेकिन अगर गोल्डन ग्रेन के लिए दो रुपये ज्यादा मिल रहा है तो कमाई बढ़कर 72,000 रुपये प्रति एकड़ हो जाती है।प्राथमिक तौर पर साग के प्रसंस्करण का दो हिस्सा होता है, पहला- अलग करना और दूसरा- उबालना जो कि स्टीम बॉयलर में किया जाता है। एक दिन में दो टन साग तैयार किया जाता है।
टिन के जार में पैक रेडी टू ईट यानी तैयार साग में किसी प्रिजर्वेटिव या परिरक्षक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। दूसरे उत्पाद के साथ इन जार को नरैन फूड के ब्रांड नाम(जगमोहन के पिता का नाम नरैन सिंह है) के साथ निर्यात कर दिया जाता है।उन्हें इस बात का अफसोस है कि अमृतसर से कोई कार्गो या मालवाहक विमान नहीं है और जो यात्री विमान यहां से उड़ान भरते हैं उसमें माल ढुलाई के लिए जगह बहुत सीमित होता है। जगमोहन बताते हैं कि उन्होंने मध्य पूर्व के बाजार का अध्ययन किया है और ये पाया कि “अमृतसर से ताजी तोड़ी गई हरी सब्जियों और फल के निर्यात की बड़ी संभावना है।” ”फ्लाइट से अमृतसर से दुबई का रास्ता महज दो घंटे का है, अगर यहां से प्रतिदिन कार्गो या मालवाहक उड़ान की सेवा मिल जाए तो किसानों, खासकर छोटे और सीमांत किसान की जिंदगी में अच्छा बदलाव आ सकता है।”
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