Friday 11 August 2017

इंसान के लालच के आगे पृथ्वी और कितनी हारेगी..
कुदरत ने इंसान को बहुत दिया है. लेकिन इंसान के लालच की कोई सीमा नहीं दिखाई देती. इंसान की संसाधनों की भूख उसे कहां ले जाएगी?
एक अन्तरराष्ट्रीय थींक टैंक "ग्लोबल फुट पिंट नेटवर्क" के अनुसार आज हम औसतन अपनी पृत्वी की क्षमता का 1.6 गुना इस्तेमाल करते हैं. अगर दुनिया में हर जगह लोग जर्मनों की तरह रहने लगें, तो हमें 3.1 गुना पृथ्वी की जरूरत होगी और अगर अमेरिकियों की तरह जीने लगें तो जरूरतें पूरी करने के लिए हमारी पृथ्वी जैसे करीब पांच ग्रह लगेंगे!
क्या भरेगा सबका पेट?
आबादी बढ़ रही है. नई फसलें भी तलाश की जा रही हैं. लेकिन शहरों के विस्तार के कारण कृषि योग्य भूमि सिमट रही है. इस वक्त ईयू में एक व्यक्ति का पेट भरने के लिए औसतन 0.31 हेक्टेयर कृषि भूमि का इस्तेमाल होता है. अगर दुनिया में उपलब्ध पूरी कृषि भूमि को बराबर बांटा जाए तो एक इंसान के हिस्से में 0.2 हेक्टेयर से ज्यादा नहीं आएगा।
जंगलो की अंधाधुंध कटान हो रही है। भूजल का स्तर प्रतिवर्ष घटता ही जा रहा है। विश्व की आधी आबादी को पीने का स्वक्ष जल भी उपलब्ध नहीं है। समुद्र अम्लीय हो रहे है। हर वर्ष जितनी मछलियां मारी जाती है उसकी एक तिहाई ही पैदा हो पाती है।
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पानी नहीं, तो जीवन नहीं....!
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया की आधी आबादी को पानी की कमी झेलनी पड़ेगी. ग्राउंड वॉटर रिजर्व कम होते जा रहे हैं और प्रदूषित भी. नदियों और झीलों का प्रदूषण तो है ही, खेती या घर से निकलने वाले गंदे पानी से भी इस्तेमाल लायक पानी के स्रोत सिमट रहे हैं. यह इंसान तो क्या जानवरों के पीने लायक भी नहीं हैं!
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ऐसा नही है कि 'सेल' की क्रेज केवल भारतीय गृहणियों में ही है। यह तो अंतर्राष्ट्रीय महामारी है। चित्र में जर्मनी की महिलाएं सेल की लूट में लूटने के बाद हंसते-मुस्कराते हुए...
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बक्सर के जिलाधिकारी ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली ....आत्महत्या की वजह जानकर आप चौक जायेंगे ...उनकी पत्नी उनके माता-पिता से हमेशा लड़ाई करती रहती थी कुछ दिन पहले उनकी पत्नी ने अपनी बहन यानि जिलाधिकारी महोदय की साली को भी बुला लिया और उनकी साली ने भी उनके माता-पिता से खूब लड़ाई किया तंग आकर डिप्रेशन से जिलाधिकारी महोदय ने आत्महत्या कर ली
उफ़्फ़ ....
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