Friday, 11 August 2017

ये दोस्ती ना टूटेगी...
बैंकाक में एक मंदिर के बाहर ये 'तान' नाम का कुत्ता
पिछले 2 महीने से इस बन्दर के बच्चे की रखवाली
करता है। जो खुद खाता है वही इस बन्दर के बच्चे के
साथ मिल बैठकर उसे भी खिलाता है।
थाईलेंड के सभी टीवी चैनल्स इसे अपने प्राइम टाइम में
दिखा चुके है ।
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अब जरा अनोखी बातें सपनों की ....

सपने की दुनिया अनोखी है. हम सपने कैसे देखते हैं? क्यों देखते हैं और कब देखते हैं? इसके बारे में विज्ञान भी अब तक ज्यादा कुछ नहीं जान पाया है. जानिए, सपनों की अनोखी बातें:-

1..खर्राटे और सपने एक साथ नही आएंगे। यदि खर्राटे आएंगे तो सपने नही आएंगे। इसका उल्टा भी होता है।

2..औसत एक मनुष्य या औरत एक दिन में डेढ़ से ढाई घण्टे तक सपना देखते है।

3..जिंदगी के छह साल सपनों में बीतता है।
एक औसत इंसान अपनी जिंदगी के 25 साल सोते हुए गुजारता है और इस दौरान छह साल सपनों में रहता है।

4..12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जानवरों के सपने अधिक आते है।

5..गर्भवती महिलाओ में हार्मोनल चेंज होने के कारण उनको सपने ज्यादा आते है। कभी-कभी बैठे-बैठे सोते हुए भी

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छतीसगढ़ का प्रयाग – राजिम

छतीसगढ़ की राजधानी, रायपुर से लगभग ४५ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में तीन नदियों का संगम है. महानदी (चित्रोत्पला), पैरी तथा सोंढुर. महानदी और पैरी दो अलग अलग भागों से आकर यहाँ मिल रही है और एक डेल्टा सा बन गया है जबकि तीसरी नदी सोंढुर कुछ दूरी पर सीधे महानदी से मिल रही है. महानदी अथवा चित्रोत्पला को प्राचीन साहित्य मेंसमस्त पापों का हरण करने वाली परमपुण्यदायिनी कहा गया है. महाभारत के भीष्म पर्व में तथा मत्स्य एवं ब्रह्म पुराण में भी चित्रोत्पला का उल्लेख है. इस नदी के उदगम के बारे में जो बातें मिलती हैं उससे कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह नाम महानदी के लिए ही प्रयुक्त किया गया था. महानदी जैसे पापनाशिनी में दो अन्य नदियों के संगम के कारण यह एक परमपुण्य स्थली मानी जाती है. यही है छत्तीसगढ़ का प्रयाग. संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम तट पर पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण आदि करते हुए लोगों को देखा जा सकता है. यहाँ एक प्राचीन नगर राजिम भी है जो महानदी के दोनों तरफ बसा है. उत्तर की ओर की बस्ती नवापारा (राजिम) कहलाती है जब कि दक्षिण की केवल राजिम. यह पूरा क्षेत्र पद्म क्षेत्र कहलाता है और एक अनुश्रुति के अनुसार पूर्व में यह पदमावतीपुरी कहलाता था. राजिम नामकरण के पीछे भी कई किस्से कहानियां हैं, जिसमे राजिम नाम की एक तेलिन से सम्बंधित जनश्रुति प्रमुख है. एक धार्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र के रूप में राजिम ख्याति प्राप्त है. यहाँ मंदिरों की बहुलता तथा वहां आयोजित होने वाले उत्सव आदि इस बात की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं.
यह पूरा क्षेत्र, अपनी वन सम्पदा एवं कृषि उत्पाद के लिए सदियों से प्रख्यात रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए उस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा के दोहन हेतु अंग्रेजों के शासन काल में बी.एन.आर रेलवे द्वारा रायपुर से धमतरी तथा उसी लाइन पर अभनपुर से नवापारा (राजिम) की एक नेरो गेज रेलवे लाइन प्रस्तावित की गयी. सन १८९६ में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा था अतः उस प्रस्तावित रेलमार्ग को स्थानीय लोगों को रोजगार दिलाने (या यों कहें कम खर्च में काम चलाने के लिए) राहत कार्य के अंतर्गत रेल लाइन का निर्माण प्रारंभ कर दिया गया. सन १९०० में रेल सेवा भी प्रारंभ हो गयी थी. राजिम के आगे गरियाबंद वाले रस्ते के जंगलों के भीतर भी रेल लाइन होने के प्रमाण मिलते हैं. कहीं कहीं पटरियां भी हमने देखी हैं परन्तु वह लाइन कहाँ तक गयी थी और कहाँ जाकर जुडती थी, इस बात से अवगत नहीं हो सके. विषयांतर हुआ जाता प्रतीत हो रहा है. राजिम के लिए रेलमार्ग के संदर्भवश रेलवे की कहानी संक्षेप में कह डाली. रायपुर से राजिम जाने के लिए सड़क मार्ग ही बेहतर है जबकि रेलमार्ग कष्टदायक.
बात तो राजिम की ही होनी थी. ऊपर हमने वहां मंदिरों की बहुलता का उल्लेख किया था. पुराने मंदिरों में, सर्वाधिक ख्याति प्राप्त राजीव लोचन का मंदिर है जिसके अहाते में ही कई और हैं. राजेश्वर, दानेश्वर, तेलिन का मंदिर, उत्तर में सोमेश्वर, पूर्व में रामचंद्र तथा पश्चिम में कुलेश्वर, पंचेश्वर एवं भूतेश्वर. इन सभी मंदिरों में अग्रणी एवं प्राचीनतम है राजीव लोचन का मंदिर. इस मंदिर के स्थापत्य के बारे में यहाँ सूक्ष्म वर्णन मेरा उद्देश्य नहीं है अपितु संक्षेप (जो कुछ लम्बा भी हो सकता है) में कुछ कहना सार्थक जान पड़ता है. मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर छत्तीसगढ़ के अन्य मंदिरों से भिन्न है एवं अपने आप में विलक्षण है. विद्वानों का मत है कि राजीव लोचन मंदिर का स्थापत्य दक्षिण भारतीय शैली से प्रभावित हुआ है. उदाहरण स्वरुप, मंदिर के अहाते में प्रवेश हेतु गोपुरम सदृश प्रवेश द्वार, प्रदक्षिणा पथ, खम्बों में मानवाकार मूर्तियाँ आदि.
मंदिर का अहाता पूर्व से पश्चिम १४७ फीट और उत्तर से दक्षिण १०२ फीट है. मंदिर बीच में है. उत्तरी पूर्वी कोने पर बद्री नारायण, दक्षिणी पूर्वी कोने पर वामन मंदिर, दक्षिणी कोने पर वराह मंदिर तथा उत्तरी पश्चिमी कोने पर नृसिंह मंदिर बना हुआ है जिन्हें मूलतः बने राजीव लोचन मंदिर के सहायक देवालय कहा जा सकता है परन्तु उनका निर्माण कालांतर में ही हुआ है. राजीव लोचन मंदिर के पश्चिम में अहाते से लगभग २० फीट दूर राजेश्वर मंदिर तथा दानेश्वर मंदिर हैं. दोनों ही शिव मंदिर हैं. परन्तु दानेश्वर मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहाँ नंदी मंडप बना हुआ है. राजिम में ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं. ये दोनों मंदिर भी राजीव लोचन मंदिर के समकालीन नहीं हैं परन्तु स्थापत्य में कुछ समानताएं हैं. इन्ही मंदिरों के आगे राजिम तेलिन का मंदिर है या यों कहें की सती स्मारक है.
इस मंदिर के महामंड़प में बारह खम्बे हैं जिनमे बेहद कलात्मक शिल्प उकेरे गए है. गर्भ गृह का प्रवेश द्वार तो लाजवाब है.
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रपल गिद्ध जो सबसे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ता है..

1973 में रपल गिद्ध एक विमान से 11,200 मीटर की ऊंचाई पर टकरा गया था। तब पता चला कि वास्तव में अफ्रीकी गिद्ध इतना ऊंचा उड़ सकता है। ज्यादातर पक्षी 100 से लेकर 2000 मीटर की ऊंचाई तक ही उड़ सकते हैं। प्रवासी पक्षियों को जब हिमालय की पहाड़ियों को पार करना होता है तो वह 9000 मीटर तक की ऊंचाई पर उड़ते हैं...



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