Wednesday 29 April 2020

संभलने की जरूरत है !!
1. चोटियां छोड़ी,
2. टोपी, पगड़ी छोड़ी,
3. तिलक, चंदन छोड़ा,
4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी,
5. यज्ञोपवीत छोड़ा,
6. संध्या-वंदन छोड़ा,
7. रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा,
8. महिलाओं, लड़कियों ने साड़ी छोड़ी, बिछियां छोड़े, चूड़ी छोड़ी, दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग बिन्दी छोड़ी,
9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (आया पालती है)
10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी छोड़ी,
11. श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी,
12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े,
13. सुबह शाम मिलने पर राम राम छोड़ी,
14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े,
15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार)
अब कोई रीति या परंपरा बची है? ऊपर से नीचे तक गौर करो, तुम कहां पर हिन्दू हो? भारतीय हो? सनातनी हो? ब्राह्मण हो? क्षत्रिय हो? वैश्य हो? या कुछ और हो कहीं पर भी ऊंगली रखकर बता दो कि हमारी परंपरा को मैंने ऐसे जीवित रखा है? जिस तरह से हम धीरे धीरे बदल रहे हैं- जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।
बौद्धों ने कभी सर मुंड़ाना नहीं छोड़ा!
सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया!
मुसलमानों ने न दाढ़ी छोड़ी और न ही 5 बार नमाज पढ़ना!
ईसाई भी संडे को चर्च जरूर जाता है!
फिर हिन्दू अपनी पहचान-संस्कारों से क्यों दूर हुआ?
कहाँ लुप्त हो गयी- गुरुकुल की शिक्षा, यज्ञ, शस्त्र-शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार ?
हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं।
अपनी पहचान बनाओ!
अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ!!!
मेरे पास आया और मैंने आगे भेजा। आप भी सभी हिन्दूओं को भेजे व अपने संस्कृति को बचाने में सहयोग करें.... धन्यवाद।

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