आर्यों और सेमेटिक लोगों के नारी सम्बन्धी आदर्श सदैव से एक दुसरे से विपरीत रहे हैं..सेमेटिक लोग स्त्रियों क़ी उपस्थिति को उपासना विधि में घोर विघ्न स्वरूप मानते हैं.. उनके अनुसार स्त्रियों को किसी प्रकार के धर्म कर्म का अधिकार नही है ,यहाँ तक क़ी आहार के लिये पक्षी मरना भी उनके लिये निषिद्ध है..आर्यों के अनुसार तो सहधर्मिणी के बिना पुरुष कोई धार्मिक कार्य कर ही नही सकता..
....पाश्च्यात्य नारियों क़ी तुलना में अपने देश क़ी नारियों क़ी अवस्था भिन्न देख कर हम भारत में नारी के प्रति असमानता के उनके आरोंप को स्वीकार न करलें ..विगत कई सदियों से भारत में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होता रहा है,जिससे हम स्त्रियों का विशेष संरक्ष्ण करने को बाध्य हुए हैं....स्त्री जाती के प्रति हीन दृष्टि के मिथ्या आरोंप के प्रकाश में हम अपनी प्रथाओं के यथार्थ स्वरूप को समझ सकेंगे...
.........स्त्रियों के सम्बन्ध में हमारा हस्तक्षेप करने का अधिकार बस उनको शिक्षा देने तक ही सीमित रहना चाहिए..उनमें ऐसी योग्यता ला देनी चाहिए जिससे वे अपनी समस्याओं को स्वयम ही अपने ढंग से सुलझा सकें..अन्य कोई उनके लिये कार्य नही कर सकता,और करने का प्रयत्न भी उचित नही है,क्योंकि हमारी भारतीय स्त्रियाँ समस्याओं को हल करने में संसार के किसी भी भाग क़ी स्त्रियों से पीछे नही हैं...
...मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी ,यदि भारतीय स्त्रियों क़ी ऐसी ही प्रगति हो जैसी क़ी इस देश (अमेरिका )में हुई है,परन्तु यह उन्नति तभी अभीष्ट है जब वह उनके पवित्र जीवन और सतीत्व को अक्षुण बनाये रखते हुए हो ...मैं अमेरिकी स्त्रियों के ज्ञान और विद्वता क़ी बड़ी प्रशंसा करता हूँ परन्तु मुझे यह अनुचित लगता है क़ी आप बुराइयों को भलाइयों का रंग दे कर छिपाने का प्रयत्न करें. केवल बौद्धिक विकास से ही मानव का परम कल्याण सिद्ध नही हो सकता..भारत में नीतिमत्ता और आध्यात्मिक उन्नति को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है और हम उनकी प्राप्ति के लिये प्रयास भी करते हैं.. यद्यपि भारतीय स्त्रियाँ उतनी शिक्षा सम्पन्न नहीं हैं फिर भी उनका आचार विचार अधिक पवित्र होता है ...यहाँ के पुरुष स्त्रियों के सम्मुख झुकते हैं ,उन्हें आसन प्रदान करते हैं ,परन्तु एक क्षण केउपरांत वे उनकी चापलूसी करने लगते हैं..वे उनके नख शिख क़ी प्रशंसा करना प्रारम्भ कर देते हैं ..आपको ऐसा करने का क्या अधिकार है ?कोई पुरुष इतनी दूर जाने का साहस कैसे कर सकता है ?और यहाँ क़ी स्त्रियाँ उसको सहन भी कैसे कर लेती हैं ?इस प्रकार के भावों से तो मनुष्य में निम्नतर भावों का उद्रेक होता है ..उससे उच्च आदर्शों क़ी प्राप्ति सम्भव नहीं ..
हमें स्त्री पुरुष में भेद का विचार नही करना चहिये..केवल यही चिन्तन करना चाहिए क़ी हम सभी मानव हैं और परस्पर एक दुसरे के प्रति सद्व्यवहार और सहायता करने के लिये उत्पन्न हुए हैं...हम यहाँ देखते हैं क़ी ज्योंही किसी नवयुवक और नव युवती को अकेले होने का अवसर मिला,त्योंही वह नवयुवक उसके रूप लावण्य क़ी प्रशंसा आरम्भ कर देता है और किसी स्त्री को विधिवत पत्नी के रूप में अंगीकार करने से पूर्व वह दो सौ स्त्रियों से प्रेमाचार कर चुका होता है ...
जब मै भारत वर्ष में था और इन चीजों को केवल दूर से देखता सुनता था तब मुझे बताया गया क़ी यह केवल मनोविनोद है इसमें कोई दोष नही है, उस समय मैंने इस पर विश्वास कर लिया था..तब से अबतक मुझे बहुत यात्रा करने का अवसर आया है ,और अब मेरा यह दृढ़ विश्वास हो गया है क़ी यह अनुचित और अत्यंत दोषपूर्ण है अंतिम प्रश्न --
आपका अपने देश क़ी स्त्रियों के लिये क्या संदेश है ?
वही जो पुरुषों के लिये है...भारत और भारतीय धर्म के प्रति विश्वास और श्रद्धा रखो ,तेजस्वी बनो ,हृदय में उत्साह भरो...भारत में जन्म लेने के कारण लज्जित न हों ,वरन उसमें गौरव का अनुभव करो ,.स्मरण रखो, यद्यपि हमें दुसरे देशों से कुछ लेना अवश्य है ,पर हमारे पास दुनियां को देने के लिये ,दूसरों क़ी अपेक्षा सहस्त्र गुना अधिक है ....
प्रस्तुती ---विवेक सुरंगे
(उत्तिष्ठ जागृत पुस्तक के कुछ अंश )
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