Friday, 6 April 2012

प्राणियों पर हिंसा से प्राकृतिक आपदाएं ...

कतलखानों में जब जानवरों को कतल किया जाता है तोह बहुत बेरहमी के साथ क्या जाता है बहुत हिंसा होती है बहुत अत्याचार होता है | जानवरों का कतल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस होरमोन निकलते है और उनसे शोक वेबस (तरंगें ) निकलती है वो बहुत ज्यादा पावर  फुल होती हैं .ये तरंगें  पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है, कम्पायमान कर देती है |
 जानवरों को  जब काटा जाता है तो बहुत दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है फिर इनके ऊपर ७० डिग्री सेंटीग्रेड  ताप के  गरम पानी की बौछार डाली जाती है  उससे उनका शरीर  फूलना शुरू  हो जाता  है   तब गाय भैंस तड़पना और चिल्लाना शुरू  कर देते है  तब जीवित  स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकठ्ठा किया जाता है | फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है , पांव  अलग से काटे जाते है शरीर  का एक एक अंग अलग से निकला जाता है |
आज का आधुनिक विज्ञानं ने ये सिद्ध किया है के मरते समय जानवर हो या ब्यक्ति हो अगर उसको क्रूरता से मारा जाता है तोह उसके शरीर  से निकलने वाली जो चीख पुकार है उनको व्हाइब्रेश्न्स  की थेओरी में जब समझाया जाता है  इस प्रक्रिया में जो नेगेटिव वेब्स निकलती हैं  है वो पुरे बातावरण को बुरी तरह से प्रभाबित करती  है और उसका आस पास के सम्पूर्ण वातावरण एवं  सभी मनुष्यों पर प्रभाब पड़ता है..  उससे नकारात्मक भाब जादा से जादा आते है | इससे मनुष्य में हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है .  इसी से अत्याचार  और पाप पूरी दुनिया में बढ़ रहे हैं  |
दिल्ली विश्यविद्यालय के दो प्रोफेसर है एक मदनमोहन जी और एक उनके सहयोगी जिन्होंने २० साल इनपर रिसर्च किया है और उनकी फिजिक्स  की रिसर्च ये कहती है के जानवरों को जितना जादा कतल किया जायेगा जितना जादा हिंसा से मारा जायेगा उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे, जलजले आएंगे, प्राकृतिक आपदा आयेगी उतनेही दुनिया में संतुलन बिगड़ेगा ...

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