Saturday, 16 March 2019

srijan-apr



यूरोप का बेल्जियम एक जमाने में बेहद खूबसूरत और शांत देश हुआ करता था ...ब्रुसेल्स यहां की राजधानी है और एंटवर्प यहां का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर है जो एक बंदरगाह भी है और विश्व की डायमंड कैपिटल भी है ...दुनिया भर की हीरा कंपनियों की एक ऑफिस एंटवर्प में जरूर होती है इसी एंटवर्प से पूरे विश्व के हीरे का ट्रेडिंग होता है
लेकिन आज आप बेल्जियम में घूमेंगे आपको ऐसा लगेगा कि जैसे आप मोरक्को के रबात में या फिर सऊदी अरब के दमाम में घूम रहे हैं ..चारों तरफ शांतिदूत ही शांतिदूत आपको नजर आएंगे ... दरअसल 1960 और 1970 के दशक में बेल्जियम को अपने कोयले की खदानों के लिए मजदूरों की जरूरत थी और बड़ी संख्या में मोरक्को सोमालिया और मिडिल ईस्ट खासकर तुर्की से मजदूर वहां गए जिन्होंने सुअरो की तरह मल्टीप्लिकेट होकर मात्र 4 दशकों में पूरे बेल्जियम की डेमोग्राफी और संस्कृति बदल कर रख दी .अभी हालात ऐसा हो गया है कि ब्रुसेल्स से लगा एक शहर मॉलेनबीक जहां 8 लाख की आबादी है वह 100% मुस्लिम शहर हो गया वहां से सभी ईसाई पलायन कर चुके हैं फिर धीरे-धीरे ब्रुसेल्स की आधा छेत्रफल इस्लामिक घोषित हो चुका है जहां इसाई अपना घर बेच बेच कर भाग रहे है । बेल्जियम के अखबारों में बार बार यह लिखा जाने लगा है कि आने वाले मात्र 40 सालों में बेल्जियम एक इस्लामिक देश बन जाएगा और जहां मात्र 50 साल पहले बहुसंख्यक रहे ईसाई अब अल्पसंख्यक बन जाएंगे आज हालत ऐसा हो गया है पूरे यूरोप में कहीं भी आतंकी हमला होता है उस हमले के तार कहीं न कहीं बेल्जियम से और खासकर बेल्जियम के मोलेनबीक शहर से जरूर जुड़े रहते है ।
इस्लामिक आतंकवाद का सबसे बड़ा केंद्र असल में मस्जिद है ..इन मस्जिदों में हर शुक्रवार को जो तकरीरे होती हैं वह तकरीरे ही आतंकवाद की सबसे बड़े स्रोत हैं
जितेंद्र सिंह
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नेहरू के कुकर्म की वजह से आज चीन संयुक्त राष्ट्र का स्थाई सदस्य बना है वरना संयुक्त राष्ट्र का स्थाई सदस्य भारत बनने वाला था सुरक्षा परिषद से भारत को मिला था ऑफर लेकिन नेहरू ने चीन को थमा दिया
यदि हम भारत का इतिहास उठाकर देंखे तो यह भयंकर भूलों से भरा पड़ा है.
बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जिस स्थायी सीट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर में घूम घूम कर समर्थन जुटा रहे हैं, वर्ष 1953 में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य की पेशकश हुई थी ?
लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्य बनने की पेशकश को ठुकरा दिया था बल्कि अपनी ओर से भारत की जगह चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले लिया जाने की पेशकर दी. गौरतलब है कि तब तक ताइवान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य था.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत को बीती सदी के पांचवें दशक में अमेरिका और सोवियत संघ ने अलग-अलग समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता दिलवाने की पेशकश की थी.
तब ये दोनों देश संसार के सबसे शक्तिशाली देश थे और इनके पास इस बात की शक्ति थी कि वे किसी अन्य देश को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में जगह दिलवा सकते थे.
लेकिन उस वक्त नेहरू जी पर विश्व शांति का भूत इस कदर सवार था कि वे अपनी जिद और भ्रम में आगे देश का भविष्य और चुनौतियों को देख नहीं पाए.
एक ओर रूस और अमेरिका भारत से आग्रह कर रहे थे कि उसको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्ता का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए. वहीं दूसरी ओर नेहरु जी ने इन दोनों देशों से चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जगह देने की वकालत कर रहे थे.
आप को जानकर हैरानी होगी कि जिस चीन को नेहरू जी ने अपने हिस्से की सीट दिलवाई थी वही चीन आज भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की राह में रोड़ा साबित हो रहा है.
आज भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए हर कूटनीतिक कोशिशें कर रहा है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने इस मसले पर भारत के दावे का समर्थन भी किया.
भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलाने को लेकर वर्ष 2008 में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में रूस ने प्रस्ताव भी रखा था. रूस चाहता था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य का दर्जा मिलना चाहिए. लेकिन रूस के प्रस्ताव का उसी चीन ने कड़ा विरोध किया,जिसको संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की सदस्यता दिलवाने के लिए नेहरू ने अपनी सीट छोड़ दी थी.
नेहरू की अदूरदर्शिता पूर्ण विदेश नीति को लेकर भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार अपने ब्लाग में लिखा था कि नेहरुजी का अमेरिकी पेशकश को अस्वीकार करने से बढ़कर कोई उदाहरण नहीं हो सकता कि वे देश के सामरिक हितों को लेकर कितने लापरवाह थे.
एक ओर अमेरिका चीन को हाशिए पर लाने के लिए भारत को मजबूती दे रहा था तो दूसरी ओर नेहरू जी थे जो चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट दिलवाने के लिए दबाव बनाए हुए थे.
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