Friday, 6 July 2012

प्रदक्षिणा क्यों करना चाहिए

प्रदक्षिणा क्यों करना चाहिए
- हर गोल घुमने वाली वस्तु के घुमने से आकर्षण शक्ति उत्पन्न होती है .
- इस ब्रम्हांड में सभी ग्रह सूर्य की प्रदक्षिणा कर रहे है . जिससे उनमे आकर्षण शक्ति उत्पन्न होती है .
- पृथ्वी और सभी ग्रह अपने इर्द गिर्द ही प्रदक्षिणा कर रही है .
- अपने हाथ में बाल्टी में पानी रख जोर से गोल घुमे तो पानी नहीं गिरेगा .उसी तरह जब पृथ्वी घूम रही है तो उस पर के सभी जड़ पदार्थ उसी पर रहते है .
- हर अणु में इलक्ट्रोन भी प्रदक्षिणा कर रहें है .
- तक्र से माखन बिलोते समय भी उसे गोल गोल घुमाने से उसमे ब्रम्हांड में मौजूद शक्ति आकर्षित होती है .
- इस शक्ति को अनुभव करना हो तो अपने हाथों को इस तरह रखे जैसे उसमे गेंद पकडे हो . अब हाथों को कंधे तक उठाकर उन्हें ऐसे घुमाए जैसे डमरू बजा रहे हो . थोड़ी ही देर में उँगलियों में भारीपन महसूस होगा . यहीं ब्रम्हांड से आकर्षित शक्ति का अनुभव है . अब हलकी सी ताली बजाते हुए इसे अपने अन्दर समाहित कर ले .
- इसी प्रकार जब हम ईश्वर के आस पास परिक्रमा करते है तो हमारी तरफ ईश्वर की सकारात्मक शक्ति आकृष्ट होती है और जीवन की नकारात्मकता घटती है . कई बार हम स्वयं के इर्द गिर्द ही प्रदक्षिणा कर लेते है . इससे भी ईश्वरीय शक्ति आकृष्ट होती है .नकारात्मकता से ही पाप उत्पन्न होते है . तभी तो ये मन्त्र प्रदक्षिणा करते समय बोला जाता है --
यानी कानी च पापानि , जन्मान्तर कृतानि च |
तानी तानी विनश्यन्ति , प्रदक्षिण पदे पदे ||
- प्राण प्रतिष्ठित ईश्वरीय प्रतिमा की , पवित्र वृक्ष की , यज्ञ या हवन कुंड की परिक्रमा की जाती है जिससे उसकी सकारात्मक शक्ति हमारी तरफ आकृष्ट हो . सूर्य को देखकर या मूर्ति के सामने हम अपने इर्द गिर्द ही घूम लेते है .
- शिवलिंग से निकलने वाले जल को नहीं लांघा जाता . उसकी अर्ध परिक्रमा की जाती है . क्योंकि प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग में शिव शक्ति होती है जिसे लांघने से शक्ति नष्ट हो सकती है .

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