महाराज ध्रितराष्ट्र एक विशाल राष्ट्र के नेत्रहीन शासक पुत्र मोह में अपने अन्तः चक्षुओं को भी मूँद चुके थे दुर्योधन बाल्यकाल से जैसे जैसे किशोर वे में प्रवेश करता जा रहा था वैसे वैसे गंधार (आज का अफगानिस्तान) का राजकुमार शकुनी जोकि, दुर्योधन का मामा था शनै शनै दुर्योधन के नजदीक आता गया ... जैसा कि होता आया है शकुनी की कूट मित्रता के कारण दुर्योधन के आचरण निम्नतर होते गए !...
विदुर -भीष्म आदि दूरद्रष्टओं ने महाराज ध्रितराष्ट्र को जब जब भी दुर्योधन के आचरणों के प्रति आने वाले तूफ़ान के संकेत को आगाह करना चाहा तब तब अंधे नरपति ने पुत्र मोह के विवश हो उन उन मनीषियों को तिरष्कृत किया .... और स्वाभाविक रूप से इस कमजोरी का फायदा उठाया अफगान राज-पुत्र ने .... उसने ऐसे हर अवसर को दांतों से पकड़ा जहां दुर्योधन के ह्रदय में भ्रत्री - द्रोह के विष बीज बोये जा सकें !..
फलतः दुर्योधन इतना निर्लज्ज हो गया कि, अब उसे अपनी निरंकुशता के सामने ...राष्ट्र-धर्म , राज-धर्म, वंश-धर्म सब कुछ नगण्य नज़र आने लगा ... अहंकार और संगति-वश एक भरत-वंशीय राज-पुत्र निर्मम आतंकवादी के रूप में परिवर्तित हो चुका था ...
शकुनी के उकसाने पर द्रोपदी का अपमान , भीष्म पितामह की चुप्पी, लाक्षागृह की रचना की नींव वस्तुतः ध्रितराष्ट्र की इसी नेत्र हीनता का , इसी पुत्र-मोह का , और शकुनी की संगती का परिणाम था जो बना भयंकरतम रक्तपात ... 'महाभारत'
अब ज़रा आज की स्थितियों पर विचार करें ...
क्या आज भी इन्द्रप्रस्थ में कोई ध्रितराष्ट्र बैठा है ?
क्या आज भी कोई दुर्योधन नहीं है ?
क्या आज भी गंधार-पुत्र जैसे विधर्मी विष बीज नहीं बो रहे हैं ?
क्या आज भी भीष्म पितामह चुप नहीं बैठे हैं ?
क्या आज फिर किसी विदुर और भीष्म को अपमानित नहीं किया जा रहा ?
क्या आज फिर से एक लाक्षा-गृह नहीं बनाया जा रहा?
क्या फिर से किसी द्रोपदी को जेहाद के माध्यम से कोई शकुनी अपमानित नहीं कर रहा ?
क्या फिर से कुरु वंश निरंकुशता की और नहीं बढ़ रहा ?
यदि वही स्थितियां पुनः आपको महशूस हो रही हैं तो मित्र !.... फिर से होगा एक 'महा समर ' वही महाभारत जिसे बाद होगा युग परिवर्तन ....
आज भी वही जनतंत्र की स्थितियां हैं यदि बचना है उस भीषण विनाश से तो अपने आपको मजबूत कीजिये ! खत्म कर दीजिए उस दुष्ट शकुनी को .... नकार दीजिए निरंकुश कुरुता को ... अब जरूरत है किसी धर्मराज युधिष्ठिर की खोजिये .. अब वह अपने अज्ञात वास को खत्म कर चुका है ... बढिए पहना दीजिए उस युधिष्ठिर को विजयमाल ... क्योंकि यही तरीका है महाभारत को टालने का ... क्यों कि , अब यही तरीका बचा है भरत के भारत को महा विनाश से बचाने का ...
विदुर -भीष्म आदि दूरद्रष्टओं ने महाराज ध्रितराष्ट्र को जब जब भी दुर्योधन के आचरणों के प्रति आने वाले तूफ़ान के संकेत को आगाह करना चाहा तब तब अंधे नरपति ने पुत्र मोह के विवश हो उन उन मनीषियों को तिरष्कृत किया .... और स्वाभाविक रूप से इस कमजोरी का फायदा उठाया अफगान राज-पुत्र ने .... उसने ऐसे हर अवसर को दांतों से पकड़ा जहां दुर्योधन के ह्रदय में भ्रत्री - द्रोह के विष बीज बोये जा सकें !..
फलतः दुर्योधन इतना निर्लज्ज हो गया कि, अब उसे अपनी निरंकुशता के सामने ...राष्ट्र-धर्म , राज-धर्म, वंश-धर्म सब कुछ नगण्य नज़र आने लगा ... अहंकार और संगति-वश एक भरत-वंशीय राज-पुत्र निर्मम आतंकवादी के रूप में परिवर्तित हो चुका था ...
शकुनी के उकसाने पर द्रोपदी का अपमान , भीष्म पितामह की चुप्पी, लाक्षागृह की रचना की नींव वस्तुतः ध्रितराष्ट्र की इसी नेत्र हीनता का , इसी पुत्र-मोह का , और शकुनी की संगती का परिणाम था जो बना भयंकरतम रक्तपात ... 'महाभारत'
अब ज़रा आज की स्थितियों पर विचार करें ...
क्या आज भी इन्द्रप्रस्थ में कोई ध्रितराष्ट्र बैठा है ?
क्या आज भी कोई दुर्योधन नहीं है ?
क्या आज भी गंधार-पुत्र जैसे विधर्मी विष बीज नहीं बो रहे हैं ?
क्या आज भी भीष्म पितामह चुप नहीं बैठे हैं ?
क्या आज फिर किसी विदुर और भीष्म को अपमानित नहीं किया जा रहा ?
क्या आज फिर से एक लाक्षा-गृह नहीं बनाया जा रहा?
क्या फिर से किसी द्रोपदी को जेहाद के माध्यम से कोई शकुनी अपमानित नहीं कर रहा ?
क्या फिर से कुरु वंश निरंकुशता की और नहीं बढ़ रहा ?
यदि वही स्थितियां पुनः आपको महशूस हो रही हैं तो मित्र !.... फिर से होगा एक 'महा समर ' वही महाभारत जिसे बाद होगा युग परिवर्तन ....
आज भी वही जनतंत्र की स्थितियां हैं यदि बचना है उस भीषण विनाश से तो अपने आपको मजबूत कीजिये ! खत्म कर दीजिए उस दुष्ट शकुनी को .... नकार दीजिए निरंकुश कुरुता को ... अब जरूरत है किसी धर्मराज युधिष्ठिर की खोजिये .. अब वह अपने अज्ञात वास को खत्म कर चुका है ... बढिए पहना दीजिए उस युधिष्ठिर को विजयमाल ... क्योंकि यही तरीका है महाभारत को टालने का ... क्यों कि , अब यही तरीका बचा है भरत के भारत को महा विनाश से बचाने का ...
No comments:
Post a Comment