दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था। आइये जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास:
दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज......आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं।
किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए।
पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था।
1. - एकाम्बर ( 31 )
2. - दुयीआम्बर (30)
3. - तिरियाम्बर (31)
4. - चौथाम्बर (30)
5.- पंचाम्बर (31)
6.- षष्ठम्बर (30)
7. - सेप्तम्बर (31)
8.- ओक्टाम्बर (30)
9.- नबम्बर (31)
10.- दिसंबर ( 30 )
11.- ग्याराम्बर (31)
12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर - जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया।
इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे।
जनवरी (31), फरबरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31),
अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया।
फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि - उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि - उसके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए।
राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया।
एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया।
मेरा आप सभी हिन्दुस्थानियों से निवेदन है कि - नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये , पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले नव वर्ष प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नवबर्ष का स्वागत करें .....!!
दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज......आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं।
किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए।
पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था।
1. - एकाम्बर ( 31 )
2. - दुयीआम्बर (30)
3. - तिरियाम्बर (31)
4. - चौथाम्बर (30)
5.- पंचाम्बर (31)
6.- षष्ठम्बर (30)
7. - सेप्तम्बर (31)
8.- ओक्टाम्बर (30)
9.- नबम्बर (31)
10.- दिसंबर ( 30 )
11.- ग्याराम्बर (31)
12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर - जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया।
इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे।
जनवरी (31), फरबरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31),
अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया।
फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि - उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि - उसके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए।
राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया।
एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया।
मेरा आप सभी हिन्दुस्थानियों से निवेदन है कि - नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये , पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले नव वर्ष प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नवबर्ष का स्वागत करें .....!!
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