Monday 28 January 2013

जब पोरवराज एल्क्ज़न्दर से हार गए तब एल्क्ज़न्दर, पोरावराज, और तक्षशिलाधिस अम्भिराज के बिच अभी संधि हुई और उसके फलस्वरूप पोरावराज ने अपनी पुत्री कल्याणी ka पाणिग्रहण अम्भिराज से करा दिया.

लेकिन पोरावराज की पुत्री राष्ट्रभक्त थी अम्भिराज का देशद्रोह उससे देखा नहीं गया और वो व्यथित हो उठी तो उसने एकदिन अम्भिराज के नाम से आचार्य विस्नुगुप्त चाणक्य जी को बुलावा भेजा 
आचार्य और कल्याणी के बिच का वो संवाद आप सभी के ज्ञान हेतु प्रस्तुत कर रहा हू

आचार्य : मुजे यहाँ किसने बुलाया देवी ?
कल्याणी : मेने ही आप को बुलाया हे आचार्य
आचार्य : पर आज्ञा तो आम्भी के नाम पर दी गई थी ?
कल्याणी : क्या तक्षशिला के राज परिवार में इक स्त्री का इतना स्थान हे के उसके नाम से आज्ञा दी जा शके?
आचार्य : कौन हो तुम ?
कल्याणी : कैकैराज पर्वतेस्वर की पुत्री
आचार्य : कैकैराज की पुत्री और यहाँ ?
कल्याणी : एल्क्ज़न्दर जाते जाते बहोत सारे समजोते करागाया उसके इक राजनैतिक समजोते के वेदी पर उसने इक अबला की भावनाओ की हत्या कर दी. राजनैतिक मैत्री के नाम पर पर्वतेस्वर की पुत्री का पाणिग्रहण आम्भिराज से करा गया ! आश्चर्य आप को इस अभी संधि का पता नहीं हे ?
आचार्य : क्या तक्षशिलाधिस को ये पता हे की आपने मुजे यहाँ बुलाया हे ?
कल्याणी : पता चल जायेगा ! आचार्य कल्याणी आम्भी की पत्नी हे तो इस धारा की पुत्री भी 
आचार्य : मुजे यहाँ क्यों बुलाया देवी ?
कल्याणी : आचार्य इन्द्रदत्त से आपके बारे में बहुत सुना था की इक द्रष्टा जीवन दर्शन अपने सभी रूपों में उसके अंक में पल्लवित होता हे वो तक्षशिला के गुरुकुल में रहता हे ! उससे मिलने की बड़ी अभिलासा थी 
आचार्य : क्यों ?
कल्याणी : आचार्य इन्द्रदत्त ने कहा था जब भी अपने स्वजनों की याद आये तो गुरुकुल चले जाना हर रूप में तु वहा अपने स्वजनों को पाएगी ! पर आम्भी की परिणीता को गुरुकुल जाने की आज्ञा नहीं हे आचार्य 
आचार्य : अपने कुल की मर्यादा का सभी को पालन करना पड़ता हे कल्याणी और स्वजन तो तेरे यहाँ भी हे 
कल्याणी : एक और पराजित पिता ने राजनीती की चोखट पर कन्यादान कर दिया और दूसरी और अपनी ही मातृभूमि को राजनीती की चोखट पर दूसरों को दान देनेवाले ने मुजे स्वीकार कर लिया ! एक और अपने साम्राज्य को टिकाये रखने के लिए पराजित सम्राट ने कन्या का हाथ छोड़ दिया और दूसरी और अपने साम्राज्य के विस्तार को द्रुष्टि में रख दूसरे शासक ने उसका हाथ थाम लिया ! इनमे किसे अपना स्वजन कहू आचार्य ?
आचार्य :स्वयं को संभालो कल्याणी कल्याणी : केसे संभालू आचार्य ? रणभूमि में गिरे मेरे बधुओ का आर्तनाद आजतक मुजे सुनाई देता हे स्मृतिपटल पर खून से लथपत क्षत विक्षत सहस्त्रो योद्धा मानो पुकार कर मुजे केह रहे कल्याणी हम आ रहे हे मानो शोर तक्षशिला की वीथियो से उठा हे मेरे बहुत निकट हे पर तक्षशिला के मार्ग प्राशादोने उनका मार्ग रोक रखा हे ! और जब तक्षशिलाधिस के मुख से अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए प्रयत्नशील अपने ही स्वजनों के विरूद्ध रचे जा रहे षड्यंत्रो कुचक्रों को सुनती हू तो मन विद्रोह कर उठता हे सबकुछ तहस नहस करने को मन करता हे यहाँ से भाग जाने को मन करता हे पर मर्यादा मार्ग रोकती हे में क्या करू आचार्य में क्या करू ?
आचार्य : जिनमे स्थितियों को बदलने का साहस नहीं होता उनको स्थितियों को सहना पड़ता हे कल्याणी 
कल्याणी : ये आप क्या कह रहे आचार्य ?
आचार्य ; मेरा अनुभव तो यही कहता हे कल्याणी
कल्याणी : तो क्या आपकी विवशता में भी मेरी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं हे आचार्य ?
आचार्य : यंत्रणा ओ से हारकर तो हर कोई मर शकता हे पर यंत्रणाओं से विजय पा बहुत कम लोग मुक्त होते हे कल्याणी ! 
कल्याणी मर जायेगी मुक्त हो जायगी पर उससे क्या होगा ? क्या तेरी मुक्ति में ही तेरे प्रश्नों का समाधान हे ! इक कल्याणी यंत्रणाओं से मुक्त हो जायेगी तो दूसरी कल्याणी दूसरी यंत्रणाओं से ग्रस्त हो जायेगी
कल्याणी : आप ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया आचार्य ?
आचार्य तो सुन कल्याणी : इस समाज की मुक्ति में ही तेरी मुक्ति हे
कल्याणी : यानि मेरी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं ?
आचार्य : जिन्हें मार्ग दिखाना होता हे आज वे ही मार्ग पूछ रहे हे ?
कल्याणी : आचार्य
आचार्य : हा कल्याणी ! तु एक स्त्री हे इसलिए तेरी और में और अपेक्षा से देखता हू ! इस संसार को बदल्नेका सामर्थ्य स्त्री में हे अपने सामर्थ्य को पहेचान ! अगर स्थितिया स्वीकार नहीं हे तो उसे बदल ये स्थितिया ही तो तेरे गर्भ और ज्ञान को चुनोती दे रही हे इन्हें स्वीकार कर यद् रख उत्तर तेरे गर्भ में ही जन्म लेगा !
कल्याणी : क्या वो सामर्थ्य मुजे प्राप्त होगा ?
आचार्य : जिसके भीतर जितना सत्य होगा उसे उतना ही सामर्थ्य प्राप्त होगा कल्याणी इसलिए कहता हू स्थितियोसे भागनेका प्रयत्न मत कर उसे लड़ यदि पुराणी मर्यादा ऐ तेरे मार्ग में आती हे तो नविन संरचना कर जहा तु मुक्त हो ! पुरानी मर्यादा ऐ स्वयं तेरे मार्ग छोड़ देगी ! उठ निराश न हो अपने को योग्य बना ! प्रयास कर तक्षशिला का भविष्य तो तुजे ही लिखना हे वह तो तेरे अंक में ही आकार लेगा
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