Friday, 26 April 2013

बड़े आदमी और छोटे आदमी में क्या अंतर होता हैं
 (स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज के विषय में मेरे प्रेरणादायक संस्मरण-पंडित देवराम जी

एक बार स्वामी श्रद्धानन्द जी के दांत में अत्यंत पीड़ा उठी। पीड़ा से उन्हें तीव्र ज्वर भी हो गया। डॉ सुखदेव ने उन्हें दवा आदि देकर आराम करने को कहा और उनकी देखरेख के लिए दो-दो घन्टे की बारी रात्रि में गुरुकुल में पढ़ने वाले ब्रहमचारियों की लगा दी। 
तीन बजे से पाँच बजे तक में मेरी बारी थी। मैं तीन बजे से कुछ पहले स्वामी जी के कक्ष में पहुच गया। पिछली बारी वाला मुझे आया देख चला गया। मैं चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया की महात्मा जी की नींद में कोई बाधा न हो। मैंने विचित्र बात देखी की तीन बजे का घंटा बजते ही महात्मा जी उठ गए। मैंने उनसे पुछा की रात को दर्द का क्या हाल रहा। उत्तर मैं उन्होंने इन्हीं शब्दों में कहा-भाई दर्द तो बहुत था पर मैं चुपचाप पड़ा रहा। नींद भी नहीं आई। मैं देखता था, ब्रहमचारी आते थे। अपनी नींद पूरी करके चले जाते थे। मुझे तो आदत नहीं अपनी तकलीफ दुसरे को कहूँ और कष्ट दूँ। अच्छा जाओ, अब तो मैं जग गया,तीन बजे तो मैं उठ ही जाया करता हूँ। इस घटना ने मुझ पर असर किया। मैंने देख लिया की बड़े आदमी और छोटे आदमी में की अंतर होता हैं। बड़े आदमी अपने कष्ट को कुछ नहीं मानते और दूसरों के कष्टों को दूर करने की उनमें फिक्र रहती हैं। और छोटे आदमी को दुसरे के कष्ट की कोई फिक्र नहीं होती अपने ही कष्ट की ही सदा चिन्ता रहती हैं। 
स्वामी जी के अलंकारों की यह उज्जवल वृति उनके सारे जीवन में चमकती दिखती हैं।कष्ट में भी व्रत का पालन करने से मनुष्य मनुष्य बनता हैं, पक्का बनता हैं , समाज सेवक बनता हैं। स्वामी जी की उज्जवल वृति पक्ष हमारे अँधेरे अंतकरण में उजाला करे। 

(सन्दर्भ- सर्व मित्र १९३३) 

डॉ विवेक आर्य

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