Friday, 2 May 2014

गोधरा के बाद गुजरात में दंगे

श्री प्रशांत भाई त्रिवेदी से साभार.... 

तनवीर अहमद ने बताया, वर्ष 2002 में गोधरा के बाद गुजरात में दंगे शुरू हो चुके थे, उस वक्त मैं हज कमेटी ऑफ इंडिया का अध्यक्ष था। हज कमेटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष का ओहदा एक केंद्रीय मंत्री के समकक्ष होता है। गुजरात से करीब 6000 मुसलमान हज यात्रा के लिए सउदी अरब गए थे। गुजरात के हालात ठीक नहीं थे.......
इसलिए भारत सरकार ने दूतावास के जरिए सउदी अरब सरकार से यह निवेदन किया था कि वह कम से कम दो माह के लि भारतीय मुसलमानों को अपने यहां ठहराने की व्यवस्था करें या, फिर जब तक गुजरात के हालात ठीक नहीं हो जाते. तब तक भारतीय मुसलमानों को अपने यहां रुकने की इजाजत दे। भारत सरकार भारतीय मुसलमानों के ठहरने और उनके खाने-पीने का खर्च उठाने को तैयार थी. लेकिन मुसलमान देश होते हुए भी सउदी अरब ने मुसलमानों की जिम्मेवारी लेने से इनकार कर दिया. सउदी सरकार ने स्पष्ट शब्दों में मना करते हुए कहा कि यह भारतीय मुसलमानों को सउदी में रुकने की इजाजत नहीं दे सकती है. उन्हें अपने तय समय में ही अपने देश लौटना होगा.......
तनवीर अहमद के मुताबिक, उसके बाद मैंने नरेंद्र मोदी से बात की. उन्होंने मुझे पूरा सहयोग और सभी भारतीय मुसलमान हज यात्रियों को सुरक्षा मुहैया कराने का वचन दिया. अहमदाबाद एयरपोर्ट पर सुरक्षा व्यवस्था काफी बढ़ा दी गई. गुजरात सरकार ने वहां तीन कंट्रोल रूम का निर्माण कराया, जहां हज यात्री आकर ठहरते थे और जहां से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाती थी. मैं अकेला 18 मार्च से लेकर 30 मार्च तक एयरपोर्ट पर ही रहा. हज यात्रियों को एयरपोर्ट से सुरक्षित निकाल कर बसों में ले जाया जाता था, जिसकी पूरी सुरक्षा सरकार सुनिश्चित करती थी.....
मुझे उसी दौरान महसूस हुआ कि धर्म से कहीं अधिक बड़ा है राष्ट्र. यदि धर्म ही बड़ा होता तो कुछ समय के लिए भारतीय मुसलमानों को अपने यहां ठहराने से सउदी अरब मना नहीं करता. लेकिन इस्लाम का मूल स्थान होते हुए भी सउदी अरब ने इसके लिए मना कर दिया........
वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री पर हिंदुवादी होने का आरोप लग रहा था. लेकिन उन्होंने राष्ट्र के नागरिकों की सुरक्षा का ख्याल करते हुए उन सभी 6000 हज यात्रियों की न केवल एयरपोर्ट पर सुरक्षा सुनिश्चित की. बल्कि उन्हें सुरक्षित अपने-अपने घरों तक भी पहुंचाया. ये सभी हज यात्री गुजरात के 400 गांवों से हज यात्रा पर गए थे. दंगे के माहौल में 400 गांवों तक एक-एक मुसलमान यात्री की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उन्हें घरों तक पहुंचाना इतना आसान नहीं था. लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे करके दिखाया.......
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4 जनवरी 1990 को कश्मीर के प्रत्येक हिन्दू घर पर एक नोट चिपकाया गया, जिस पर लिखा था- कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे।

सबसे पहले हिन्दू नेता एवं उच्च अधिकारी मारे गए। फिर हिन्दुओं की स्त्रियों को उनके परिवार के सामने सामूहिक बलात्कार कर जिंदा जला दिया गया या नग्नावस्था में पेड़ से टांग दिया गया। बालकों को पीट-पीट कर मार डाला। यह मंजर देखकर कश्मीर से 3.5 लाख हिंदू पलायन कर गए।

संसद, सरकार, नेता, अधिकारी, लेखक, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और पूरा देश सभी चुप थे। कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होते रहे और समूचा राष्‍ट्र और हमारी राष्ट्रीय सेना देखती रही। आज इस बात को 22 साल गुजर गए। —Rajpal Negi 
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