Monday, 1 October 2018



शहरी माओवादियों की  बस्तर में शांति यात्रा
 जब माओवाद की कमर टूटती जा रही है सुरक्षा बलों की मार से तो ये शहरी माओवादी शांति यात्रा निकाल रहे हैं 2 अक्टूबर से। ऐसी यात्राओं के बारे में सरकार में बैठे माओवादी लॉबी के लोग सरकार के अधिकारियों और मंत्रियों के मन में एक विभ्रम निर्माण करते हैं जिससे माओवादियों के विरुद्ध सर्च ऑपरेशन रुक जाए और उनके हथियार बंद दस्तों को पुनर्संगठित होने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए ताकि वो दुबारा संगठित होकर पुनः पूरी ताकत से सुरक्षा बलों पर आक्रमण कर सकें।
 ऐसा ये प्रायः करते हैं अपने लड़ाकू संगठन को ऑक्सीजन देने की नीयत से। फिर ये हरिजनों और अदिवासियों के नाम पर इमोशनल कार्ड भी खेलते हैं जिससे इनकी फेस सेविंग हो सके और व्यापक सामाजिक सहयोग इनको मिल सके।
 यात्रा में आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड छः राज्यों के लोग सम्मिलित होंगे। इस यात्रा में नंदिनी सुंदर जैसी खतरनाक शहरी माओवादी के साथ मनीष कुंजाम, अरविंद नेताम, वीबी चंद्रशेखरन, बसंता गोपालन, शांता सिन्हा और माओवादी पत्रकार रामशरण जोशी समेत 150 पदयात्री भी सम्मिलित होंगे। इन पदयात्रियों में माओवादी आदिवासी, गाँधीवादी, माओवाद के युवा शोधार्थी, माओवादी सामाजिक संगठन के संचालक और माओवादी पत्रकार सम्मिलित होंगे।
 लोगों को झांसा देने के लिए और संभावित पुलिस कार्यवाई न हो इस यात्रा पर इसके लिये इनलोगों ने विद्यार्थियों को भी सम्मिलित किया है और 80-82 वर्ष के बुजुर्ग गांधीवादियों को भी। पुलिस इन दोनों आयु वर्ग के लोगों को गिरफ्तार करने में असहजता का अनुभव करती है।
यात्रा का संयोजक माओवादी पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी का कहना है- "बस्तर के जंगलों में शांति कायम हो, आदिवासियों को उनका हक मिले और नक्सलवाद का खात्मा हो। कई मंचों पर यह बात तो होती है। मगर कैसे? इसकी रूपरेखा क्या होगी? इस पर ठोस संवाद कम ही होते हैं।
अब प्रश्न उठता है बस्तर के जंगलों में अशांति फैलाया किसने? बस्तर को खून से लथपथ किया किसने? आदिवासियों को उनके हक से वंचित किया किसने? आदिवासियों के गांवों को विकसित होने से रोका किसने?  आदिवासियों के भले का काम कौन से राज्य में आज तक किया है माओवादियों ने? माओवादियों ने न केवल आदिवासियों को विकास की मुख्यधारा से दूर रखा है वरन अनेकानेक क्षेत्रों में आदिवासियों की व्यापक स्तर पर हत्या भी किया है।
 ये दुष्ट आतंक भी फैलाना चाहते हैं किंतु बिना पुलिसिया एक्शन के। ये अबतक सरकारों में लॉबी बनाकर उनके माध्यम से यह पुलिसिया कार्यवाई रुकवाते रहे हैं। किंतु भाजपा के शासनकाल में उनका यह तिकड़म काम नहीं आ रहा। और उनके खिलाफ लगातार सर्च ऑपरेशन और कॉम्बिंग ऑपरेशन चल रहा है। इनके एक एक किले दिन पर दिन ढहते जा रहे हैं। जंगल का नेटवर्क भी ध्वस्त हो रहा है और इनके शहरी माओवादी आका भी एक एक करके जेल जा रहे है।
जीएन साईबाबा जो माओवादियों का एशिया हेड हुआ करता था जेल गया और पांच लोगों के साथ आजीवन कारावास की सजा हुई उसको। हेम मिश्रा, प्रशांत राही, महेश तिर्की एवं पांडु नरौटे को प्रोफेसर जीएन साईं बाबा के साथ आजीवन कारावास हुआ। 
जीएन साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आंनद कॉलेज में अंग्रेजी का प्रोफेसर था। इनसे मिली जानकारी के आधार पर रोना विलसन, सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धावले, सोमा सेन और महेश राउत की गिरफ्तारी हुई। इस गिरफ्तारी से प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की माओवादी साजिश का भंडाफोड़ हुआ। इन पांचों की गिरफ्तारी से मिले इनपुट के आधार पर अभी गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, पी बारबरा राव, अरुण फेरेरा एवं वर्नोन गोंजाल्विस की गिरफ्तारी हुई जिन्हें अभी हाउस अरेस्ट में रखा गया है। माओवाद के बड़े बड़े पुरोधा नप गए  जिनपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है उनमें नंदिनी सुंदर भी एक हैं।
 इस यात्रा के झांसे में स्थानीय सरकार और पुलिस को नहीं पड़ना चाहिए। उल्टा इस यात्रा में सम्मिलित एक एक व्यक्ति का प्रोफ़ाइल बनाना चाहिए और उनको माओवादी आतंकी मानकर उनको जांच के राडार पर लेना चाहिए। उनके भाषणों को रिकॉर्ड करना चाहिए और उनके वक्तव्य को माओवादी साहित्य से तालमेल करके इनकी हिंसक माओवादी मनसा की व्यख्या करना चाहिये। कहीं दोषी सिद्ध हुए तो इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना चाहिए।
 विगत 12 वर्षों में 2700 सुरक्षाबलों की हत्या की बात की गई इनके यात्रा वृतांत में। इसके साथ ही 9300 आदिवासियों की हत्या की चर्चा की गई है। इतने सुरक्षाबलों और इतने आदिवसियों की हत्या करने के बाद ये माओवादी शांति यात्रा की बात करते हैं तो यह सौ चूहे खाकर हज करने वाली बात हो गई। 
आतंकवादियों की शांति यात्रा, शांति वार्ता और शांति डायलॉग का कोई अर्थ नहीं है। या तो इनका इनकाउंटर होना चाहिए, इनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए या फिर इनका सरेंडर। इन तीन के अतिरिक्त किसी चौथे विकल्प पर किसी संवाद का कोई अर्थ नहीं है।
~मुरारी शरण शुक्ल।
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आतंकवाद का धंधा...
-📌आतंकवाद केवल उन्ही देशो में होता है...जहा की जनता भेड़ हो...और नेता बिकाऊ...
📌आतंकी हमलो में केवल सामान्य लोग मरते हैं...लेकिन इसका bisness view देखे तो पैसो की बारिश होती है...
📌आतंकवादी आते नही, उनको वही के 2 न. के उच्चवर्गीय लोग बुलाते है...इसलिए तो VIP/VVIP/सेलिब्रिटी आतंकियों में इंटरेस्ट लेते हैं...
📌आतंकी हमले की प्लानिंग सेडुल, समय, जगह, मरने वाले लोग सब फिक्स किया जाता है...
इसीलिए कभी कोई VIP,VVIP,सेलिब्रिटी आतंकी हमलो में नही मरता...आतंकी हमले तभी हो सकते हैं...जब सरकार खुद चाहे... क्युकी पुलिस, आर्मी और इंटेलिजेंस के हाथ बाधना, काम में टांग अड़ना, सही ऑफिसर को मरवा देना...उनकी रिपोर्ट गायब करना,,अपने बिकाऊ लोग नियुक्त करना... ये सब केवल सम्वैधानिक पद पर बैठे नेता ही कर सकते हैं
नही तो कोई देश कैसा भी हो...वहा एक सामान्य नागरिक भी एक आतंकवादी को चीर देने का गुस्सा और दम दोनों रखता है...
👉🏻 मई 2014 में मोदी जी के PM बनने के बाद से भारत में आतंकवाद का धंधा बंद हो गया...और जो जो दो न. के उच्चवर्गीय भारतीय जनता को मरवाकर पैसे बनाते थे... वो बिलबिला गये हैं...
और किसी भी कीमत पर मोदी जी को हटाना/मरवाना चाहते हैं...
खुद सोचो ... क्या आप भेड़ हो.?. क्या आप चाहते हो.?आपके अपने लोग फिर से मरे,,,और कोई पैसे कमाए...
अब हाथ से भीख का कटोरा हटा दो... मनुष्य बनो...राष्ट्ररक्षा ही धर्मरक्षा है...भैरवी साध्वी
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