Monday 22 October 2018

dec-sanskar



यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित ताजमहल को दुनिया के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है। भारत के मशहूर इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल को हिंदू संरचना साबित किया था था कि ताजमहल मकबरा नहीं बल्कि तेजोमहालय नाम का हिंदू स्मारक था। तब नेहरूवादी और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने उनका खूब मजाक उड़ाया था, लेकिन अब अमेरिका के पुरातत्वविद प्रो. मार्विन एच मिल्स ने ताजमहल को हिंदू भवन माना है। उन्होंने अपने शोध पत्र में सबूत के साथ स्थापित किया है।
न्यूयॉर्क स्थित प्रैट इंस्टीट्यूट के प्रसिद्ध पुरात्वविद तथा प्रोफेसर मार्विन मिल्स ने ताजमहल का विस्तृत अध्ययन किया और उस पर अपना शोध पत्र भी लिखा। ताजमहल पर लिखा उनका शोध पत्र उस समय न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ था।
मिल्स ने अपने शोध पत्र में जोर देते हुए कहा है कि शुरू में ताजमहल एक हिंदू स्मारक था, जिसे बाद में मुगलों ने कब्जा कर उसे मकबरे में बदल दिया। ताजमहल की बाईं ओर एक भवन है जो अब मसजिद है। उसका मुख पश्चिम की ओर है। सवाल उठता है कि अगर उसे मूल रूप से मसजिद के रूप में बनाया गया होता तो उसका मुख पश्चिम की बजाय मक्का की ओर होता।
ताज महल के चारों ओर बनाई गई मीनारें भी कब्र या मसजिद के हिसाब से उपयुक्त नहीं है। तर्क के साथ देखें तो इन चारों मीनारों को मसजिद के आगे होना चाहिए, क्योंकि यह जगह नमाजियों के लिए होती हैं।
मिल्स ने कहा है कि वैन एडिसन की किताब ताज महल तथा जियाउद्दीन अहमद देसाई की लिखी किताब द इल्यूमाइंड टॉम्ब में काफी प्रशंसनीय आंकड़े और सूचनाएं हैं। जो इनलोगों ने ताजमहल के उद्भव और विकास के लिए समकालीन स्रोतों के माध्यम से एकत्रित किए थे। इनमें कई फोटो चित्र, इतिहासकारों के विवरण, शाही निर्देशों के साथ-साथ अक्षरों, योजनाओं, उन्नयन और आरेखों का संग्रह शामिल है। दोनों इतिहासकारों ने प्यार की परिणति के रूप में ताजमहल के उद्भव की बात को सिरे से खारिज कर ताजमहल के उद्भव को मुगलकाल का मानने से भी इनकार कर दिया है।
मिल्स ने ताजमहल पर खड़े किए ये सवाल
ताजमहल के दोनों तरफ बने भवनों को कहा जाता है कि इसमें से एक मसजिद के रूप में कार्य करता है तो दूसरे का अतिथि गृह के रूप में उपयोग किया जाता। दोनों भवनों की बनावट एक जैसी है। जो शाहजहां अपनी बीवी के प्रेम में ताजमहल बनवा सकता है क्या वे दो प्रकार के कार्य निष्पादन करने के लिए एक ही प्रकार का भवन बनवाया होगा ?
दूसरा सवाल है आखिर ताजमहल परिसर की दीवारें रक्षात्मक क्यों थीं? सवाल उठता है कि कि कब्र के लिए सुरक्षात्मक दीवार की आवश्यकता क्यों? (जबकि किसी राजमहल के लिए ऐसा होना अनिवार्य होता है )
तीसरा सवाल है कि आखिर ताजमहल के उत्तर दिशा में टेरेस के नीचे 20 कमरे यमुना की तरफ करके क्यों बनाए गए? किसी कब्र को 20 कमरे कि क्या जरूरत है? जबकि राजमहल की बात अलग है क्योंकि कमरे का अच्छा उपयोग हो सकता था।
चौथा सवाल है कि ताजमहल के दक्षिण दिशा में बने 20 कमरों को आखिर सील कर क्यों रखा गया है। आखिर विद्वानों को वहां प्रवेश क्यों नहीं है ? विद्वानों को अंदर जाकर वहां रखी चीजों का अध्ययन करने की इजाजत क्यों नहीं दी जाती है?
पांचवां और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर यहां जो मसजिद है वह मक्का की तरफ नहीं होकर पश्चिम की ओर क्यों है ?
छठा सवाल उठता है कि आखिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने ताजमहल की वास्तविक तारीख तय करने के लिए कार्बन -14 या थर्मो-लुमिनिस्कनेस के उपयोग को ब्लॉक क्यों कर रखा है? अगर इसकी इजाजत दे दी जाती है तो ताजमहल के उद्भव को लेकर उठने वाले विवाद तुरंत शांत होंगे क्योंकि इस विधि से आसानी से पता लगाया जा सकता है कि ताजमहल कब बना था? लेकिन न तो इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तैयार है न ही भारत सरकार।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
, हमारे देश में 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले, पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है, 
पर मुश्किल से पाँच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या मे करते हैं।
आम तौर पर केले की पत्तियो में खाना परोसा जाता है।
प्राचीन ग्रंथों में केले की पत्तियों पर परोसे गये भोजन को, स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है।
आजकल महँगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियों का यह प्रयोग होने लगा है।
1. पलाश के पत्तल में भोजन करने से, स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।
2. केले के पत्तल में भोजन करने से, चाँदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।
3. रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये, पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है।
पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी, इसका उपयोग होता है।
आम तौर पर लाल फूलों वाले पलाश को हम जानते हैं,
पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है।
इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासीर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।
4. जोड़ों के दर्द के लिये, करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है।
पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।
5. लकवा (पैरालिसिस) होने पर, अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलों को उपयोगी माना जाता है।
इसके अन्य लाभ~
1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिट्टी में दबा सकते है।
2. न पानी नष्ट होगा।
3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा।
4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे।
5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुँचेगी।
6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक ऑक्सीजन भी मिलेगा।
7. प्रदूषण भी घटेगा।
8. सबसे महत्वपूर्ण जूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।
9. पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा।
10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं, कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा, जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस मंदिर में केवल दलित महिलाएं ही करती हैं पूजा..//
ओडिशा के केंद्रापाड़ा जिले के सतभाया गांव में स्थित यह मंदिर पूरे देश के मन्दिरो से अलग है। यहां सिर्फ महिलाएं ही पूजा करती हैं और खासतौर पर स्थानीय मछुआरा समुदाय की विवाहित दलित महिलाओं को ही मंदिर की पूजा-पाठ गतिविधियों को करने की इजाजत है। मां पंचबाराही के मंदिर में पांच मूर्तियां स्थापित हैं, लेकिन कोई भी पुरुष इन्हें हाथ नहीं लगा सकते हैं।
पिछले 300 वर्षों से मुख्य पुजारी दलित महिला रही हैं। अभी इस मंदिर की मुख्य पुजारी जानकी हैं जो दलित हिन्दू महिला हैं। उन्हें यह अधिकार उनकी सास से मिला हैं जो पहले इस मंदिर की मुख्य पुजारी थी। जानकी बताती हैं कि जब सुकदेव दलाई से उनका विवाह हुआ और वह पहली बार केंद्रापाड़ा के इस सतभाया गाँव आयी तो उनकी सास उन्हें पंचुबराही गांव के मंदिर में ले गयीं और वहां उन्होंने उनको मंदिर का धार्मिक अनुष्ठान सिखाया, और तबसे वह इस दायित्व का निर्वहन कर रही हैं। यह मंदिर कितना प्राचीन हैं इसके लिए कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है
मन्दिर में पाँच महिला पुजारी हैं जो 15-15 दिन के क्रम पर मन्दिर की प्रतिदिन में पूजापाठ करती है। जानकी कहती हैं, ‘हम जारा सबर के वंशज हैं, जिन्होंने गलती से भगवान श्री कृष्ण को तीर मारा था जिसकी वजह से श्रीकृष्ण ने अपने मानव शरीर का त्याग किया था। उसी के पश्चाताप करते हुए जारा सबर श्री कृष्ण की पूजा करते हुए उनका अनन्य भक्त बन गए थे।
वही मन्दिर की दूसरी महिला पुजारी सुजाता बताती हैं कि “हमारे पति मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन देवताओं को छू नहीं सकते। वे भक्तों से फल और फूल इकट्ठा करते हैं और देवी को अर्पित करने के लिए उन्हें सौंप देते हैं।’ ‘हम यहां आने वाले भक्तों के लिए हमारे देवताओं से आशीर्वाद मांगते हैं।’
केंद्रापाड़ा के पूर्व राजाओं ने इस मंदिर की देखभाल और उसके देवताओं के पूजापाठ के लिए पांच परिवारों को चुना था। वर्तमान में, सतभाया गांव में ऐसे पांच चुनिंदा परिवार हैं, और आम तौर पर पुजारी की पदवी वंशानुगत उत्तराधिकार में इन परिवारों की सबसे बड़ी बहुओं को दिया जाता है। इस मंदिर में इन महिला पुजारियों को पूजा-पाठ का कोई वेतन नही दिया जाता, बल्कि जिन 15 दिनों में इनकी ड्यूटी मन्दिर में होती हैं उन दिनों में यह घर का भी कोई कार्य नही करती, और मन्दिर के कार्यो के लिए ही पूरी तरह से समर्पित रहती हैं।
1971 में, जब ओडिशा में चक्रवात ने अपार तबाही मचाई, तो 700 से ज्यादा ग्रामीण बंगाल की खाड़ी में बह गए थे। और सतभया के 3,440 एकड़ में फैले हुए 16 गांव में से कुछ गांव समुंद्र की भेंट चढ़ गए फिर भी इस मंदिर की महिला पुजारी किसी चट्टान की तरह मन्दिर के देवताओ के साथ अडिग रही।
पिछले काफी समय से गांव में जल स्तर बढ़ रहा था 50 साल पहले समुद्र से इस मंदिर का फासला पांच किलोमीटर का था लेकिन अब कुछ ही मीटर का रह गया है। ऐसे में पूजा-पाठ और भजन के बीच मूर्तियों को मंदिर से हटाया गया और नई जगह स्थापित किया। प्रतिमाओं का वजन काफी था और अकेली महिलाओं से इनको उठाना मुश्किल हो रहा था। प्रतिमाओं को उठाने के लिए महिला पुजारियों ने पुरुषों को मंदिर के अंदर आने की इजाजत दी।  
यही वह समय था जब सदियों में पहली बार पुरुषों को मंदिर में तीन भारी मूर्तियों को उठाने, जिनमें से प्रत्येक का वजन छः क्विंटल हैं, उन्हें अपने नए मंदिर ले जाने की अनुमति दी गई थी। स्थानांतरण के बाद, पुजारिनों ने फिर से मुर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की व पुनः पुरुषों का मंदिर में प्रवेश निषेध कर दिया गया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सिंघाड़े का सेवन करना शुरू कर दीजिये
आज हम एक ऐसी चीज के बारे में बात करने जा रहे है, जिसे आपने कई बार खाया होगा. मगर इसके फायदों के बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे. जी हां यह एक ऐसी चीज है, जिसे आप व्रत के दौरान भी खा सकते है. बरहलाल यह चीज खाने में भी काफी स्वादिष्ट लगती है. वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दे कि हम यहाँ किसी और चीज की नहीं बल्कि सिंघाड़े की बात कर रहे है. गौरतलब है कि सिंघाड़ा एक ऐसा फल है, जो आमतौर पर पानी में ही उगता है. यहाँ तक कि इसका रंग भी दो तरह का होता है. आपको जान कर हैरानी होगी कि इसका रंग लाल भी होता है और हरा भी होता है.
केवल इतना ही नहीं इसके इलावा कुछ लोग तो ऐसे भी होते है जो कच्चा सिंघाड़ा खाना ज्यादा पसंद करते है. वही कुछ लोग ऐसे होते है, जो सिंघाड़े को उबाल कर नमक लगा कर खाना ज्यादा पसंद करते है. मगर ये खाने में काफी स्वादिष्ट होता है. इसलिए लोग इसे बड़े चाव के साथ खाते है. गौरतलब है कि सिंघाड़े में कई तरह के पौष्टिक तत्व पाएं जाते है. जो शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाते है. यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो यह केवल खाने में ही स्वादिष्ट नहीं होता, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक होता है.
बता दे कि सिंघाड़े में मौजूद आयोडीन और मैगजीन जैसे मिनरल्स शरीर को थाइराइड और घेंघा नामक रोग से सुरक्षित रखते है. इसके इलावा भी सिंघाड़ा खाने से हमारे शरीर को काफी सारे लाभ होते है. तो चलिए अब आपको इसके फायदों के बारे में विस्तार से बताते है. यक़ीनन इसके फायदों के बारे में जान कर आप भी हैरान रह जायेंगे.
 अगर आपकी एड़ियां फ़टी हुई है, तो सिंघाड़े खाने से आपकी एड़ियों को काफी राहत मिलेगी. इसके साथ ही अगर आपको शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द हो रहा हो या कही भी सूजन हो तो आप इसका लेप बना कर उस जगह पर लगा भी सकते है. जी हां इससे न केवल आपका दर्द कम हो जाएगा, बल्कि आपकी सूजन भी खत्म हो जाएगी.
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इसमें पॉलीफेनॉलिक और फ्लेवोनॉयड जैसे एंटी आक्सीडेंट पाएं जाते है. केवल इतना ही नहीं इसके साथ ही यह एंटी बैटीरियल, एंटी वायरल और एंटी कैंसर जैसे कई गुणों से भरपूर भी होता है. यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो सिंघाड़े का सेवन करने से आपको एक साथ कई बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है.
 प्रेगनेंसी में सिंघाड़ा खाना माँ और बच्चे दोनों के लिए काफी फायदेमंद होता है. यहाँ तक कि इसका सेवन करने से गर्भपात होने का खतरा भी कम रहता है. वही जिन लोगो को बवासीर की समस्या है, उन्हें तो सिंघाड़े का सेवन जरूर करना चाहिए. बरहलाल अस्थमा के रोगियों के लिए भी सिंघाड़े का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है. बता दे कि यह पेट से संबंधित सभी समस्याओ को दूर करने में मदद करता है.

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 मोबाइल...आपके साथ हादसा भी हो सकता है.
 आज के समय में मोबाइल लोगो की जिंदगी बन चुका है. यहाँ तक कि कुछ लोग तो ऐसे होते है जो दिन रात मोबाइल पर लगे रहते है. केवल इतना ही नहीं इसके इलावा जब मोबाइल की बैटरी पूरी तरह से खत्म होने वाली होती है, तब चार्जिंग पर लगाने के बाद भी मोबाइल का इस्तेमाल करना नहीं छोड़ते. जी हां आज के समय में मोबाइल लोगो के लिए एक नशा सा बन चुका है. जिसे लोग कभी नहीं छोड़ सकते.
 अगर जरूरत से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल किया जाएँ तो आपके साथ हादसा भी हो सकता है. यहाँ तक कि इससे आपकी जान तक जा सकती है. इसलिए मोबाइल का इस्तेमाल करते समय आपको थोड़ी सी सावधानी तो बरतनी चाहिए. कुछ लोगो को मोबाइल एकदम अपने तकिए के पास रख कर सोने की आदत होती है. तो वही कुछ लोग इसे हाथ में पकड़े पकड़े ही सो जाते है. मगर  इसका बुरा असर आपके स्वास्थ्य पर ही पड़ता है.
 मोबाइल का इस्तेमाल करते समय आपको इन खास बातों का ध्यान रखना चाहिए.  मोबाइल की बैटरी लिथियम आयन से बनी होती है. ऐसे में जब इस बैटरी को चार्ज किया जाता है. तब यह गर्म हो जाती है. यहाँ तक कि कई बार इसका कम इस्तेमाल करने के बावजूद भी यह ज्यादा गर्म हो जाती है. अगर आपके मोबाइल की बैटरी भी जल्दी गर्म हो जाती है, तो आपको फ़ौरन अपने मोबाइल को बदल देना चाहिए. क्यूकि अगर आपने ऐसा नहीं किया, तो आगे चल कर आपके साथ कोई बड़ा हादसा हो सकता है. इसके इलावा अगर आपके मोबाइल की बैटरी फूल गई हो तो यह कभी भी फट सकती है. ऐसे में आपको तुरंत बैटरी को बदल देना चाहिए. आपको जान कर हैरानी होगी कि ऐसी स्थिति में मोबाइल को फेंकने से भी बैटरी फटने का खतरा रहता है.
इसके साथ ही फोन को चार्ज करते समय भूल कर भी इसका इस्तेमाल न करे. बता दे कि ऐसा करने से बैटरी फटने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. गौरतलब है कि फोन को कभी भी लोकल चार्जर से चार्ज न करे. इसका बुरा असर फोन की बैटरी पर पड़ता है. इसके इलावा जब फोन चार्जिंग पर लगा हुआ हो तो फोन से कभी बात न करे.
इन 4 खतरनाक गलतियों के कारण कभी भी फट सकता है आपका मोबाइल
१. सही चार्जर का इस्तेमाल.. कंपनी द्वारा दिया गया चार्जर ही इस्तेमाल करे. वो इसलिए क्यूकि यह बढ़िया क्वालिटी का होता है और इससे चार्जिंग भी जल्दी होती है. बरहलाल अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको और आपके मोबाइल को नुक्सान भी हो सकता है.
२.  कुछ लोग रात के समय मोबाइल को चार्जिंग पर लगा कर सो जाते है. जिसके कारण मोबाइल रात भर चार्ज होता रहता है. यहाँ तक कि जब चार्जिंग पूरी हो जाती है, उसके बाद भी मोबाइल चार्ज होता रहता है.इससे आपके मोबाइल की बैटरी जल्दी खराब होती है और आपके मोबाइल फट भी सकता है.
३.  मोबाइल को कही भी रखते समय इस बात का ध्यान रखे कि आपके मोबाइल पर सूर्य की सीधी किरणे न पड़े. यानि आपके मोबाइल पर सीधी धूप न पड़े. बता दे कि जब आप फोन का इस्तेमाल करते है, तब फोन वैसे ही काफी गर्म हो जाता है. ऐसे में अगर आप उसे धूप में रख देंगे, तो ज्यादा गर्मी के कारण वो फट सकता है.

४. मोबाइल कवर का कम इस्तेमाल करे..  जो लोग लम्बे समय तक मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते उन्हें मोबाइल पर कवर नहीं लगाना चाहिए, क्यूकि इससे मोबाइल में गर्मी पैदा होने लगती है. इसलिए कवर का इस्तेमाल कम ही करे.
अगर मोबाइल में घुस जाएँ पानी तो
जब किसी व्यक्ति का मोबाइल पानी में गिर जाता है, तो वह उसे ऑन करने की कोशिश करता है. ऐसा करना गलत है.  ऐसा करने से मोबाइल में शार्ट सर्किट होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए अपने मोबाइल को स्विच ऑफ कर दे. फ़ौरन उसकी बैटरी निकाल दे. हालांकि अगर आपके मोबाइल की बैटरी न निकल रही हो, तो उसे जबरदस्ती निकालने की कोशिश न करे. इसके बाद अपने सिम कार्ड और मेमोरी कार्ड को मोबाइल से निकाल ले. जी हां इसे धूप में सुखाने के लिए रख दे. वैसे आप चाहे तो इसे सुखाने के लिए हेयर ड्रायर का इस्तेमाल भी कर सकते है.
 जब मोबाइल पूरी तरह से सूख जाएँ तब इसे चावल के बर्तन में रख दे. ताकि इसमें जरा सी भी नमी न बचे. दरअसल चावल पानी का बहुत अच्छा अवशोषक होता है. इसके बाद आप अपने मोबाइल को ऑन कर सकते है.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ये बात तो हम सभी जानते हैं की स्वस्थ रहने के लिए खानपान और अपनी सेहत पर ध्यान देना जरूरी है वहीं सेहत बनाने के कई लोग कई अलग अलग तरह के काम करते हैं। ये तो हो गई शारीरीक तंदूरूस्ती की बात लेकिन क्या आपको पता है की दिमाग की तंदूरूस्ती के लिए हर कोई एक चीज का सेवन करता है। जी हां और वो है बादाम आपको बता दें की इस दुनिया में जितने भी लोग मौजूद हैं हर कोई दिमाग के लिए बादाम का सेवन करता हे क्योंकि ऐसा माना जाता है की इसके सेवन से मनुष्य का दिमाग काफी ज्यादा तेज हो जाता है।

लोगों का ऐसा भी मानना होता है कि अगर कोई व्यक्ति बादाम को भिगोकर खाता है तो ऐसे में उसके शरीर को बहुत ही ज्यादा ऊर्जा मिलती है। लेकिन वहीं दूसरी ओर लोगों को यह बात बिल्कुल भी मालूम नहीं होती कि लोगों को कब सूखा बादाम और कब बादाम को भिगोकर सेवन करना चाहिए। इसलिए आज हम आपको इस विषय के बारे में बताने जा रहे है।
आपको बता दें की बादाम का सेवन करने से इसका सीधा असर लोगों की याददाश्त के ऊपर पड़ता है। एक शोध के अनुसार पाया गया है, जो लोग रोज बादाम खाते है उनकी आयु ना खाने वालो की अपेक्षा 20% ज्यादा होती है, यानि उनके आयु अधिक होती है| बता दें की बादाम के अंदर भरपूर मात्रा में विटामिन और मिनरल पाए जाने की वजह से बचपन के दिनों में ज्यादातर बच्चों को बादाम खिलाए जाते हैं। बादाम में मग्निशियम, प्रोटीन व आयरन होता है। इसके अलावा इसमें कॉपर, विटामिन B2 व फास्फोरस भी होता है, मतलब एक मुट्ठी में इतने सारे फायदे आपको मिलेंगे। इसमें 161 कैलोरी, 2.5 कार्बोहाइड्रेट होता है।
वैसे माना जाता है की बादाम बेहद ही ज्यादा गर्म होता है जिसकी वजह सके इसके अंदर मौजूद हर एक पोषक तत्व को अच्छे तरीके से अवशोषित करने के लिए ही ही रात भर इस पानी में भिगोकर रखा जाता है। बादाम के ऊपरी सतह पर मौजूद होने वाला टनिन नाम का पदार्थ पोषक तत्वों का अवशोषण करने से रोकता है। यही वजह है की कहा जाता है बादाम को रात में भिगोकर रखते हैं जिससे कि उसका छिलका आसानी से निकल जाए।
वहीं आपको ये भी बता दें की अगर कोई व्यक्ति को दिल की बिमारी है तो उस व्यक्ति को अपने भोजन में भीगे हुए बादाम को जरूर शामिल करना चाहिए। भीगे हुए बादाम का सेवन करने से व्यक्ति का ब्लड प्रेशर हमेशा सुचारू रूप से चलता है। इसके साथ ही ये भी बता दें की ऐसे व्यक्ति को भी भीगे हुए बादाम का सेवन करना चाहिए।
इतना ही नहीं इसके अलावा ये भी बता दें की गर्भवती महिलाओं को उनके पेट में पल रहे बच्चों के मस्तिष्क को तेज बनाने के लिए भी बादाम का सेवन करना चाहिए।
गर्भवती महिलाओं और हार्ट के मरीजों के अलावा जिन लोगों के शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ी होती है उन लोगों को भी बादाम का सेवन करना चाहिए जिससे कि उनका कोलेस्ट्रोल लेवल हमेशा नियंत्रण में बना रहे।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

भारत की शान महाराजा रणजीत सिंह जी .
महाराजा रणजीत सिंह का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। पंजाब के इस महावीर नें अपने साहस और वीरता के दम पर कई भीषण युद्ध जीते थे। रणजीत सिंह के पिता सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। बचपन में रणजीत सिंह चेचक की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे, उसी कारण उनकी बायीं आँख दृष्टिहीन हो गयी थी। लेकिन इसको उन्होंने कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया ..किशोरावस्था से ही चुनौतीयों का सामना करते आये रणजीत सिंह जब केवल 12 वर्ष के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु (वर्ष 1792) हो गयी थी। खेलने -कूदने कीउम्र में ही नन्हें रणजीत सिंह को मिसल का सरदार बना दिया गया था, और उस ज़िम्मेदारी को उन्होने बखूबी निभाया।
महाराजा रणजीत सिंह स्वभाव से अत्यंत सरल व्यक्ति थे। महाराजा की उपाधि प्राप्त कर लेने के बाद भी रणजीत सिंह अपने दरबारियों के साथ भूमि पर बिराजमान होते थे। वह अपने उदार स्वभाव, न्यायप्रियता की उच्च भावना के लिए प्रसिद्द थे। अपनी प्रजा के दुखों और तकलीफों को दूर करने के लिए वह हमेशा कार्यरत रहते थे। अपनी प्रजा की आर्थिक समृद्धि और उनकी रक्षा करना ही मानो उनका धर्म था। महाराजा रणजीत सिंह नें लगभग 40 वर्ष शासन किया। अपने राज्य को उन्होने इस कदर शक्तिशाली और समृद्ध बनाया था कि उनके जीते जी किसी आक्रमणकारी सेना की उनके साम्राज्य की और आँख उठा नें की हिम्मत नहीं होती थी।
महा सिंह और राज कौर के पुत्र रणजीत सिंह दस साल की उम्र से ही घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, एवं अन्य युद्ध कौशल में पारंगत हो गये। नन्ही उम्र में ही रणजीत सिंह अपने पिता महा सिंह के साथ अलग-अलग सैनिक अभियानों में जाने लगे थे।
अपने पराक्रम से विरोधियों को धूल चटा देने वाले रणजीत सिंह पर 13 साल की कोमल आयु में प्राण घातक हमला हुआ था। हमला करने वाले हशमत खां को किशोर रणजीत सिंह नें खुद ही मौत की नींद सुला दिया।
बाल्यकाल में चेचक रोग की पीड़ा, एक आँख गवाना, कम उम्र में पिता की मृत्यु का दुख, अचानक आया कार्यभार का बोझ, खुद पर हत्या का प्रयास इन सब कठिन प्रसंगों नें रणजीत सिंह को किसी मज़बूत फौलाद में तबदील कर दिया।
Maharaja Ranjit Singh का विवाह 16 वर्ष की आयु में महतबा कौर से हुआ था। उनकी सास का नाम सदा कौर था। सदा कौर की सलाह और प्रोत्साहन पा कर रणजीत सिंह नें रामगदिया पर आक्रमण किया था, परंतु उस युद्ध में वह सफलता प्राप्त नहीं कर सके थे।
उनके राज में कभी किसी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया गया था। रणजीत सिंह बड़े ही उदारवादी राजा थे, किसी राज्य को जीत कर भी वह अपने शत्रु को बदले में कुछ ना कुछ जागीर दे दिया करते थे ताकि वह अपना जीवन निर्वाह कर सके। वो महाराजा रणजीत सिंह ही थे जिन्होंने हरमंदिर साहिब यानि गोल्डन टेम्पल का जीर्णोधार करवाया था।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दीपावली के दिन लक्ष्मी का पूजन क्यों होता है

इस बार बच्चा 6 महीने बाद गुरुकुल जब घर आया और उसने एक शानदार सवाल किया
हम दिवाली क्यों मनाते हैं
तो जाहिर सी बात है सीधा सा जवाब दिया इस दिन भगवान राम लंका पर विजय पाकर वापस लौटे थे अयोध्या तो उस के उपलक्ष में कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है
बड़ी गंभीर मुद्रा में उसने सवाल किया तो फिर राम क्यों नहीं पूजे जाते लक्ष्मी का पूजन क्यों करते हैं इस पूरी पूजा में राम तो कहीं नहीं गणेश जी को पूजा लक्ष्मी जी को पूजा कुबेर जी को पूजा दीपावली के दिन लक्ष्मी का पूजन क्यों होता है
सबाल तो सटीक था और घर के बाकी सारे सदस्य अगल बगल झांकने लगे तो लगा चलो आपको भी बता दे कि इस दिन लक्ष्मी पूजन क्यो ओर इस दिन क्या क्या ओर हुआ
कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दिवाली के साथ और क्या क्या होता हे..?
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही ...... देवी लक्ष्मी जी का प्राकट्य: होना ..देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन समुन्दर मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थी।
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही भगवन विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना: ..भगवान विष्णु ने आज ही के दिन अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बलि से मुक्त करवाया था।
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही ....नरकासुर वध कृष्ण द्वारा:
इस दिन भगवन कृष्ण ने राक्षसों के राजा नरकासुर का वध कर उसके चंगुल से 16000 औरतों को मुक्त करवाया था। इसी ख़ुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया। इसे विजय पर्व के नाम से भी जाना जाता है।
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही .....) पांडवो की वापसी:
महाभारत में लिखे अनुसार कार्तिक अमावस्या को पांडव अपना 12 साल का वनवास काट कर वापिस आये थे जो की उन्हें चौसर में कौरवो द्वारा हरये जाने के परिणाम स्वरूप मिला था। इस प्रकार उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई।
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही .....) राम जी की विजय
रामायण के अनुसार ये चंद्रमा के कार्तिक मास की अमावस्या के नए दिन की शुरुआत थी जब भगवन राम माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या वापिस लौटे थे रावण और उसकी लंका का दहन करके। अयोध्या के नागरिकों ने पुरे राज्य को इस प्रकार दीपमाला से प्रकाशित किया था जैसा आजतक कभी भी नहीं हुआ था।
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही .....) राजा विक्रमादित्य का राजतिलक:
आज ही के दिन भारत के महान राजा विक्रमदित्य का राज्याभिषेक हुआ था। इसी कारण दीपावली अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना भी है।
.★ ★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही ...) आर्य समाज के लिए प्रमुख दिन:
आज ही के दिन कार्तिक अमावस्या को एक महान व्यक्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने हिंदुत्व का अस्तित्व बनाये रखने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी।
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही ...जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण दिन:
महावीर तीर्थंकर जी ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही मोक्ष प्राप्त किया था। और जैन नव वर्ष वीर संवत आज ही से सुरु होता हे...
.★ कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही सिखों के लिए महत्व:
तीसरे सिख गुरु गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमे सभी श्रद्धालु गुरु जी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे और 1577 में अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास किया गया था।
1619 में सिख गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओ के साथ मुक्त किया गया था जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबन्द किया हुआ था। इसे सिख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी जानते हैं।

अब आप सोचिए इतना कुछ और आपको क्यो नही पता ....क्यो की हम मन्दिर में सिर्फ #घण्टा बजाने जाते है ...ओर हमारे लिए यही हिन्दू धर्म है..... सिंपल...
#manishsoni,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक राजा जिसने भारत को बनाया सोने की चिड़िया
आपने बचपन से कई बार एक बात जरूर सुनी होगी की भारत पहले सोने की चिड़िया था और भारत को सोने कहा जाता था। परह पर क्या आप ये जानते है कि भारत को सोने कि चिड़िया आखिर किसने बनाया था। नहीं ना तो हम बताते है कि वो राजा थे विक्रनादित्य।बड़े ही शर्म की बात है कि महाराज विक्रमदित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य।
बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए। विक्रमादित्य का इतिहास भारत के स्वर्णिम इतिहास का प्रतीक है आइए जानते हैं विक्रमादित्य के बारे में....
विक्रमादित्य के समय में हमारे देश की आर्थिक दशा काफी अच्छी थी। वो ऐसा समय था जिसने भारत को सोने की चिड़िया बनाया और सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया था। महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है।
विदेश जाता था कपड़ा
 विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे। इसी कारण वो कपड़े का व्यापार और सोने के सिक्कों के टलन ने भारत को सोने की चिड़िया का नाम दिया गया था।
न्याय के लिए प्रसिद्ध था ये काल
आपने शुरु से ही किताबों में राजा विक्रमादित्य के न्याय की कहानियां जरूर सुनी होंगी। ऐसा माना जाता है कि उनके न्याय से प्रसन्न होकर कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे, विक्रमदित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी। इसी कारण राजा विक्रमादित्य को न्याय का प्रतीक माना जाता है।
खो गए थे रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ
 आज रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथ आपके पास ना होते। रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया।
राजा के नौरत्नों में एक थे कालिदास विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे। विक्रमादित्य के इतिहास को सदा के लिए याद किया जाता रहेगाइस समय तो ऐसा देखने को मिल जाएगा कि जनता विक्रमादित्य को भूलती जा रही है। जिसने भारत को सोने की चिड़िया बनाने के लिए इतना संघर्ष किया आज उसी राजा का नाम हमारी पीढी नहीं जानती है। किताबों से उनका नाम मिटता जा रहा है। जो कि आने वाली पीढ़ी के लिए चिंता का विषय है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेघालय के शिलोंग की #उमनगोट नदी,
यह नदी कांच की तरह दिखने वाली भारत की सबसे स्वच्छ नदी है, यह नदी आगे चलकर बांग्लादेश बॉर्डर पर मिलकर डोकई नदी बन जाती है

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
"सबरीमाला मंदिर और प्राचीन परम्परा"
भगवान शिव और विष्णु की संतान हैं अयप्‍पा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी ( भगवान विष्णु का एक अवतार) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है।

हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है।

अय्यप्पा स्वामी को माना जाता है ब्रह्मचारी
केरल में शैव और वैष्णवों में बढ़ते वैमनस्य के कारण एक मध्य मार्ग की स्थापना की गई थी, जिसमें अय्यप्पा स्वामी का सबरीमाला मंदिर बनाया गया था।

इसमें सभी पंथ के लोग आ सकते हैं। ये मंदिर लगभग 800 साल पुराना माना जाता है। अयप्पा स्वामी को ब्रह्मचारी माना गया है, इसी वजह से मंदिर में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थीं।

इस मंदिर का निर्माण राजा राजसेखरा ने कराया था। उन्हें पंपा नदी के किनारे अयप्पा भगवान बाल रूप में मिले थे, इसके बाद वो उन्हें अपने साथ महल ले आए थे।

इसके कुछ समय बाद ही रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। अयप्पा के बड़े होने के कारण राजा उन्हें राज सौंपना चाहते थे, लेकिन रानी इसके लिए तैयार नहीं थीं।

एक बार रानी ने अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बनाया और कहा कि उनकी बीमारी केवल शेरनी के दूध से ही ठीक हो सकती है। अयप्पाजी जंगल में दूध लेने चले गए। इस दौरान उनका सामना एक राक्षसी से हुआ, जिसे उन्होंने मार दिया।

खुश होकर इंद्र ने उनके साथ शेरनी को महल में भेज दिया। शेरनी को उनके साथ देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ।

इसके बाद पिता ने अयप्पा को राजा बनने को कहा तो उन्होंने इससे मना कर दिया। इसके बाद वो वहां से गायब हो गए। इससे दुखी होकर उनके पिता ने खाना त्याग दिया। इसके बाद भगवान अयप्पा ने पिता को दर्शन दिए और इस स्थान पर अपना मंदिर बनवाने को कहा। इसके बाद इस जगह पर मंदिर का निर्माण कराया गया।

यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं।

वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीज़ें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं. यह रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है. इसके अलावा इसका मतलब यह भी होता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं.

इसके अलावा सबरीमाला आने वाले भक्तों को यहां आने से 40 दिन पहले से बिल्कुल आस्तिक और पवित्र जीवन जीना होता है. इस मंदिर के जैसे रिवाज आपको देश में कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे.

क्योंकि यहां दर्शन के दौरान भक्त ग्रुप बनाकर प्रार्थना करते हैं. एक 'दलित' भी इस प्रार्थना को करवा सकता है और अगर उस ग्रुप में कोई 'ब्राह्मण' है तो वह भी उसके पैर छूता है.

साथ ही यहां पर उन भक्तों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, जो मंदिर में ज्यादा बार आए होते हैं न कि उनको जिनकी जाति को समाज तथाकथित रूप से ऊंचा मानता हो.

वर्तमान में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जो विवाद बड़ा है , उसमें सर्वजन समाज जिसमें वहां की सभी औरतें भी मंदिर के पक्ष में खड़ी हैं ।

फिर ये विवाद किसका और कौन घुसना चाहता है मन्दिर में । कम्युनिस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता के वेश में ईसाई-मुस्लिम महिला और एक्टिविस्ट कुछ तथाकथित महिलाएं मन्दिर की पुरानी परम्पराओं को तोड़कर घुसना चाहती हैं ।

ये एक्टिविस्ट घुसने को तत्पर हैं, समझ में ये नहीं आ रहा ये धार्मिक स्थान है या पर्यटन का? यदि धार्मिक तो इनका क्या काम है? वहां की सरकार इनको पुलिस जैकेट देकर कैसे घुसाने का रास्ता दे रही?

इंडियन कोर्ट के न्यायधीशों को कोई अधिकार नहीं हैं कि वो हिन्दुओं की धार्मिक परंपराओं में हस्तक्षेप करें

संविधान की आढ़ लेकर हिन्दू धर्म की परंपराओं, मंदिरों की मर्यादाओं व संस्कृति को नष्ट क्या जा रहा हैं, अन्य धर्म के लिए होता तो अभी तक न्यायधीशों को दण्ड मिल चुका होता, संसद में कानून बदल दिए होते। नया कानून बन चुका होता, हिन्दू समाज के बहुसंख्यक नेता दोगले, साई, बुद्ध, गांधी, अम्बेडकर व मुहम्मद के भक्त हैं तथा हिन्दुओं के विश्वासघाती हैं, फिर भी हिन्दू सहष्णु है, संविधान पर अत्याधिक विश्वास करता हैं और निद्रा अवस्था में ज्यादा रहता है ।

#विट्ठलदासव्यास
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
यह आठ चिरंजीवी हैं,,,,,,
हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आओ जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह सात जीवित महामानव।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।
१. हनुमान - कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। अजर-अमर का अर्थ है कि जिसे ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चीरयुवा हैं।
२. कृपाचार्य- महाभारत के अनुसार कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने भी पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था।
३. अश्वथामा- ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।
अश्वथाम के संबंध में प्रचलित मान्यता... मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। इसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।
४. ऋषि मार्कण्डेय- भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए।

५. विभीषण- राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया।
६. राजा बलि- शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।
७. ऋषि व्यास- ऋषि भी अष्ट चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।
८. परशुराम- भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था।
परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा (एक हथियार) दिया था। इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

समाज सेवा तो कोई पद्मश्री सुहासिनी मिस्त्री से सीखे...
इस तस्वीर में चप्पल और सुती साड़ी में जिस महिला को आप देख रहे हैं उनका नाम सुहासिनी मिस्त्री... इन्हें इस साल पद्म श्री से सम्मानित किया गया है...
70 साल की सुहासिनी मिस्त्री कोलकाता में रहती हैं... 23 साल की उम्र में सुहासिनी मिस्त्री ने अपने पति को खो दिया.... फिर सुहासिनी ने सब्जी बेचकर बच्चों को पाला....
50 साल पहले जब पति का साथ छूटा था तो उस वक्त सुहासिनी के पास पैसे नहीं थे कि वो उनका इलाज करा सके... आज सुहासिनी मिस्त्री 70 साल की हैं और उनके चेहरे पर सुकून है.... सुकून इस बात का कि अब वह अपने खुद के बनाए हॉस्पिटल में गरीबों का इलाज कर पा रही हैं....
दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने ये सब सब्जी बेचकर और जूते पॉलिश कर जुटाए पैसों से किया है.... सुहासिनी मिस्त्री एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने खुद गरीबी में अपना जीवन काटकर लोगों की सेवा की है....
1996 में सुहासिनी ने गरीबों के लिए हॉस्पिटल बनाया... फिलहाल बंगाल में उनके दो हॉस्पिटल हैं....एक हॉस्पिटल इनके गांव हंसखाली में है जबकि दूसरा सुंदरबन में...
पद्मश्री से सम्मानित किए जाने पर उन्होंने कहा कि मैं काफी खूश हूं.... और मैं दुनियाभर के हॉस्पिटल से अनुरोध करती हूं कि जिसे भी तुंरत इलाज की जरूरत हो वो उन्हें मना न करें.... मेरे पति की मौत इसलिए हो गई थी क्यों उनके इलाज के लिए हॉस्पिटल ने मना कर दिया था.... मैं नहीं चाहती किसी और के साथ ऐसा हो’’....नमन है ऐसे निस्वार्थ भाव के समाज सेवकों को.......
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



भारत के बाहर थाईलेंड में आज भी संवैधानिक रूप में राम राज्य है l वहां भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट “भूमिबल अतुल्य तेज ” राज्य कर रहे हैं , जिन्हें नौवां राम कहा जाता है l*

*भगवान राम का संक्षिप्त इतिहास*
वाल्मीकि रामायण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ एक ऐतिहासिक ग्रन्थ भी है , क्योंकि महर्षि वाल्मीकि राम के समकालीन थे, रामायण के बालकाण्ड के सर्ग, 70 / 71 और 73 में राम और उनके तीनों भाइयों के विवाह का वर्णन है, जिसका सारांश है।

मिथिला के राजा सीरध्वज थे, जिन्हें लोग विदेह भी कहते थे उनकी पत्नी का नाम सुनेत्रा ( सुनयना ) था, जिनकी पुत्री सीता जी थीं, जिनका विवाह राम से हुआ था l राजा जनक के कुशध्वज नामके भाई थे l इनकी राजधानी सांकाश्य नगर थी जो इक्षुमती नदी के किनारे थी l इन्होंने अपनी बेटी उर्मिला लक्षमण से, मांडवी भरत से, और श्रुतिकीति का विवाह शत्रुघ्न से करा दी थी l केशव दास रचित ”रामचन्द्रिका“ पृष्ठ 354 (प्रकाशन संवत 1715) के अनुसार, राम और सीता के पुत्र लव और कुश, लक्ष्मण और उर्मिला के पुत्र अंगद और चन्द्रकेतु , भरत और मांडवी के पुत्र पुष्कर और तक्ष, शत्रुघ्न और श्रुतिकीर्ति के पुत्र सुबाहु और शत्रुघात हुए थे l

*भगवान राम के समय ही राज्यों बँटवारा*
पश्चिम में लव को लवपुर (लाहौर ), पूर्व में कुश को कुशावती, तक्ष को तक्षशिला, अंगद को अंगद नगर, चन्द्रकेतु को चंद्रावतीl कुश ने अपना राज्य पूर्व की तरफ फैलाया और एक नाग वंशी कन्या से विवाह किया था l थाईलैंड के राजा उसी कुश के वंशज हैंl इस वंश को “चक्री वंश कहा जाता है l चूँकि राम को विष्णु का अवतार माना जाता है, और विष्णु का आयुध चक्र है इसी लिए थाईलेंड के लॉग चक्री वंश के हर राजा को “राम” की उपाधि देकर नाम के साथ संख्या दे देते हैं l जैसे अभी राम (9 th ) राजा हैं जिनका नाम “भूमिबल अतुल्य तेज ” है।

*थाईलैंड की अयोध्या*
लोग थाईलैंड की राजधानी को अंग्रेजी में बैंगकॉक ( Bangkok ) कहते हैं, क्योंकि इसका सरकारी नाम इतना बड़ा है , की इसे विश्व का सबसे बडा नाम माना जाता है , इसका नाम संस्कृत शब्दों से मिल कर बना है, देवनागरी लिपि में पूरा नाम इस प्रकार है “क्रुंग देव महानगर अमर रत्न कोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महा तिलक भव नवरत्न रजधानी पुरी रम्य उत्तम राज निवेशन महास्थान अमर विमान अवतार स्थित शक्रदत्तिय विष्णु कर्म प्रसिद्धि ”

थाई भाषा में इस पूरे नाम में कुल 163 अक्षरों का प्रयोग किया गया हैl इस नाम की एक और विशेषता ह l इसे बोला नहीं बल्कि गा कर कहा जाता हैl कुछ लोग आसानी के लिए इसे “महेंद्र अयोध्या ” भी कहते है l अर्थात इंद्र द्वारा निर्मित महान अयोध्या l थाई लैंड के जितने भी राम ( राजा ) हुए हैं सभी इसी अयोध्या में रहते आये हैं l

*असली राम राज्य थाईलैंड में है*
बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने से विष्णु का अवतार मानते हैं, इसलिए, थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है l वहां के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है, थाईलैंड में संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना 1932 में हुई।

भगवान राम के वंशजों की यह स्थिति है कि उन्हें निजी अथवा सार्वजनिक तौर पर कभी भी विवाद या आलोचना के घेरे में नहीं लाया जा सकता है वे पूजनीय हैं। थाई शाही परिवार के सदस्यों के सम्मुख थाई जनता उनके सम्मानार्थ सीधे खड़ी नहीं हो सकती है बल्कि उन्हें झुक कर खडे़ होना पड़ता है. उनकी तीन पुत्रियों में से एक हिन्दू धर्म की मर्मज्ञ मानी जाती हैं।

*थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है*
यद्यपि थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के लोग बहुसंख्यक हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है l जिसे थाई भाषा में ”राम कियेन” कहते हैं l जिसका अर्थ राम कीर्ति होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है l इस ग्रन्थ की मूल प्रति सन 1767 में नष्ट हो गयी थी, जिससे चक्री राजा प्रथम राम (1736–1809), ने अपनी स्मरण शक्ति से फिर से लिख लिया था l थाईलैंड में रामायण को राष्ट्रिय ग्रन्थ घोषित करना इसलिए संभव हुआ, क्योंकि वहां भारत की तरह दोगले हिन्दू नहीं है, जो नाम के हिन्दू हैं, हिन्दुओं के दुश्मन यही लोग हैं l

थाई लैंड में राम कियेन पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन देखना धार्मिक कार्य माना जाता है l राम कियेन के मुख्य पात्रों के नाम इस प्रकार हैं-
1. राम (राम)
2. लक (लक्ष्मण)
3. पाली (बाली)
4. सुक्रीप (सुग्रीव)
5. ओन्कोट (अंगद)
6. खोम्पून ( जाम्बवन्त )
7. बिपेक ( विभीषण )
8. तोतस कन (दशकण्ठ) रावण
9. सदायु ( जटायु )
10. सुपन मच्छा (शूर्पणखा)
11. मारित ( मारीच )
12. इन्द्रचित (इंद्रजीत) मेघनाद

*थाईलैंड में हिन्दू देवी देवता*
थाईलैंड में बौद्ध बहुसंख्यक और हिन्दू अल्प संख्यक हैं l वहां कभी सम्प्रदायवादी दंगे नहीं हुए l थाई लैंड में बौद्ध भी जिन हिन्दू देवताओं की पूजा करते है, उनके नाम इस प्रकार हैं
1. ईसुअन (ईश्वन) ईश्वर शिव
2. नाराइ (नारायण) विष्णु
3. फ्रॉम (ब्रह्म) ब्रह्मा
4. इन ( इंद्र )
5. आथित (आदित्य) सूर्य
6 . पाय ( पवन ) वायु

*थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़*
गरुड़ एक बड़े आकार का पक्षी है, जो लगभग लुप्त हो गया है l अंगरेजी में इसे ब्राह्मणी पक्षी (The Brahminy Kite ) कहा जाता है, इसका वैज्ञानिक नाम “Haliastur Indus” है l फ्रैंच पक्षी विशेषज्ञ मथुरिन जैक्स ब्रिसन ने इसे सन 1760 में पहली बार देखा था, और इसका नाम Falco Indus रख दिया था, इसने दक्षिण भारत के पाण्डिचेरी शहर के पहाड़ों में गरुड़ देखा था l इस से सिद्ध होता है कि गरुड़ काल्पनिक पक्षी नहीं है l इसीलिए भारतीय पौराणिक ग्रंथों में गरुड़ को विष्णु का वाहन माना गया है l चूँकि राम विष्णु के अवतार हैं, और थाईलैंड के राजा राम के वंशज है, और बौद्ध होने पर भी हिन्दू धर्म पर अटूट आस्था रखते हैं, इसलिए उन्होंने ”गरुड़” को राष्ट्रीय चिन्ह घोषित किया है l यहां तक कि थाई संसद के सामने गरुड़ बना हुआ है।

*सुवर्णभूमि हवाई अड्डा*
हम इसे हिन्दुओं की कमजोरी समझें या दुर्भाग्य, क्योंकि हिन्दू बहुल देश होने पर भी देश के कई शहरों के नाम मुस्लिम हमलावरों या बादशाहों के नामों पर हैं l यहाँ ताकि राजधानी दिल्ली के मुख्य मार्गों के नाम तक मुग़ल शाशकों के नाम पर हैं l जैसे हुमायूँ रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड इत्यादि, इसके विपरीत थाईलैंड की राजधानी के हवाई अड्डे का नाम सुवर्ण भूमि हैl यह आकार के मुताबिक दुनिया का दूसरे नंबर का एयर पोर्ट है l इसका क्षेत्रफल 563,000 स्क्वेअर मीटर है। इसके स्वागत हाल के अंदर समुद्र मंथन का दृश्य बना हुआ हैl पौराणिक कथा के अनुसार देवोँ और ससुरों ने अमृत निकालने के लिए समुद्र का मंथन किया था l इसके लिए रस्सी के लिए वासुकि नाग, मथानी के लिए मेरु पर्वत का प्रयोग किया था l नाग के फन की तरफ असुर और पुंछ की तरफ देवता थेl मथानी को स्थिर रखने के लिए कच्छप के रूप में विष्णु थेl जो भी व्यक्ति इस ऐयर पोर्ट के हॉल जाता है वह यह दृश्य देख कर मन्त्र मुग्ध हो जाता है।

इस लेख का उदेश्य लोगों को यह बताना है कि असली सेकुलरज्म क्या होता है, यह थाईलैंड से सीखो l अपनी संस्कृति की उपेक्षा कर के कोई भी समाज अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकती।
आजकल सेकुलर गिरोह के मरीच सनातन संस्कृति की उपेक्षा और उपहास एक सोची समझी साजिश के तहत कर रहे हैं और अपनी संस्कृति से अनजान नवीन पीढ़ी अन्धो की तरह उनका अनुकरण कर रही है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कों में से 3 भारत मे है. ये सड़कें ड्राइवरों को डराती हैं. जानिए इन 10 सड़कों को.
श्रीनगर-लेह हाईवे
443 किलोमीटर लंबा ये हाईवे भारत की कश्मीर घाटी को लेह से जोड़ता है. जोजिला पास से गुजरने वाली यह सड़क सर्दियों में पूरी तरह बर्फ से दबी रहती है. गर्मियों में बर्फ पिघलने के बाद हाईवे पर कीचड़ से फिसलन भी रहती है. पत्थर गिरने और बर्फीले तूफान का खतरा भी बना रहता है.
माचू पिचू रोड
दक्षिण अमेरिकी देश पेरू की यह सर्पीली सड़क माचू पिचू को आगुआस कालिएतेंस को जोड़ती है. खड़े पहाड़ पर बनी इस सड़क में 11 तीखे हेयरपिन बैंड हैं. 8.9 किलोमीटर लंबे इस हिस्से को पार करने में बहुत से लोगों की हालत खस्ता हो जाती है.
फ़ेडरल हाइवे
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में फेडरल हाईवे 20 है. बर्फीले पहाड़ों और मोहक वादियों वाली इस सड़क पर सर्दियों में गाड़ी चलाना नामुमकिन सा हो जाता है. बर्फ के चलते इस सड़क पर ट्रक तक फिसलने लगते हैं.
स्किपर्स कैनियन
न्यूजीलैंड के क्वींसटाउन में यह सड़क 40 साल पहले भेड़ों और चरवाहों के लिए बनाई गई. बाद में इस पर गाड़ियां भी चलने लगीं. यह सड़क बेहद पतली और तीखे मोड़ों वाली है. सामने से आने वाली भेड़ें और गाड़ियां मुश्किल पैदा करती हैं.
किन्नूर वैली
हिमाचल प्रदेश की किन्नूर घाटी तक जाने वाली सड़क अथाह गहरी खाई के बराबर चलती है. कई जगहों पर कड़ी चट्टानें काटकर यह सड़क बनाई गई तो कहीं भूस्खलन वाले इलाकों पर. रोड का बड़ा हिस्सा सिंगल लेन है. जरा सी चूक होने पर सैकड़ों मीटर गहरी खाई.
सा कोलोब्रा रोड
स्पेन के मशहूर द्वीप मयोर्का के सा कोलोब्रा गांव तक पहुंचने वाली सड़क ऐसी दिखती है. 13 किलोमीटर लंबी इस सड़क में कई तीखे मोड़ हैं. बस और ट्रक इस सड़क पर बैक होकर वापस नहीं जा सकते. मोड़ों पर दो बड़ी गाड़ियां बमुश्किल पास ले पाती हैं.
जॉर्ज दे गालामू
फ्रांस की सड़क ड्राइवरों के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है. इस सड़क पर कुछ जगहों पर बिल्कुल एक कार के बराबर जगह है. अगर सामने से कोई और गाड़ी आ जाए तो एक वाहन को बहुत दूर तक रिवर्स कर पास लेने के लिए जगह बनानी पड़ती है.
गुओलियांग टनल
चीन के शिनचियांग प्रांत की यह सड़क कड़ी चट्टान को काटकर बनाई गई है. गुओलियांग गांव को जोड़ने वाली इस रोड को बनाना आसान नहीं था. 1970 के दशक में निर्माण के दौरान चट्टानी इलाके में तीन दिन में सिर्फ एक मीटर रोड काटी जा सकी. इस रोड में तीखे और संकरे मोड़ व खड़ी खाइयां हैं.
जी टी रोड
अमृतसर को एक ओर कोलकाता और चटगांव और दूसरी ओर लाहौर और पेशावर से जोड़ने वाली ग्रैंड ट्रंक रोड एशिया का सबसे पुराना हाईवे है. करीब 2,700 किलोमीटर की लंबाई, अलग अलग भूगोल और अत्यंत व्यस्त ट्रैफिक इस रूट को खतरनाक सड़कों की लिस्ट में जोड़ता है.
रोड ऑफ डेथ
बोलिविया की इस सड़क को "रोड ऑफ डेथ" कहा जाता है. 400 किलोमीटर लंबी यह संकरी सड़क पहाड़ों से गुजरते हुए 4,000 मीटर की ऊंचाई तक जाती है. राजधानी ला पाज को कोरुएरो से जोड़ने वाली इस सड़क का 50 किलोमीटर का हिस्सा बहुत ही खतरनाक माना जाता है.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

दूर्वा
दूर्वा को दरोब, दूब, अमृता,अनंता, गौरी,महौषधि,शतपर्वा,भार्गवी आदि नामों से जाना जाता हैं...।
सभी जगह आसानी से मिल जाने वाली यह घाँस ज़मीन पर पसरते हुए चलती हैं ...हमारे देश मे सेकड़ो प्रकार की घाँस हैं जिनमे सबसे श्रेष्ठ दूर्वा को ही माना गया हैं.... इसका उल्लेख आयुर्वेद ही नही हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता हैं जो इसके गुणकारी पक्ष को बताता हैं.... हमारे वार-त्योहार, संस्कार एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग सदैव से होता आया हैं....।
भगवान गणेश की अतिप्रिय दूर्वा से जुड़ी कथा हैं कि समुंद्र मंथन में निकले अमृत को सर्वप्रथम जिस जगह पर रखा था वहाँ दूर्वा घाँस थी इसी कारण इसे अमृता कहा हैं, वही भगवान गणेश ने किसी राक्षस को निगल लिया तब गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठे पिलाई ,जिससे उनके पेट की अग्नि शांत हुई ,,इसी कारण भगवान गणेश को 21 गांठे दरोब की चढ़ाई जाती हैं....।
अन्य मौसम की अपेक्षा वर्षा काल के दौरान दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है... दूब का पौधा एक बार जहाँ जम जाता है...वहाँ से इसे नष्ट करना बड़ा मुश्किल होता है... इसकी जड़ें बहुत ही गहरी पनपती है... दूब की जड़ों में हवा तथा भूमि से नमी खींचने की क्षमता बहुत अधिक होती है, यही कारण है कि चाहे जितनी सर्दी पड़ती रहे या जेठ की तपती दुपहरी हो, इन सबका दूब पर असर नहीं होता और यह अक्षुण्ण बनी रहती है....।।
प्रायः जो वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर सिद्ध होती थी, उसे हमारे ऋषि-मुनियों ओर पूर्वजों ने धर्म के साथ जोड़कर उसका महत्व और भी बढ़ा दिया... ।
हमारे शास्त्रों के साथ ही अनेक विद्वानों ने इसके अनेक गुणों का परीक्षण कर इसे एक अति गुणकारी महाओषधि माना हैं .... दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं...दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है....आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है...विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है....
दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं.......।
इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है.....।
दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है....।
दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है.....।
नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है....।
इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है.....।
दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन ठीक हो जाता है।
इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है...।
यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है....।
दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है...।
इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है....।
दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है....।
इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है....।



,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अमरबेल एक पराश्रयी लता हैं जो अक्सर हमे पेड़ो पर झूलती हुई दिखाई देती हैं.... यह मानव स्वास्थ्य के लिये एक संजीवनी है जो लगभग पूरे भारत वर्ष में पाई जाती है.....अमर बेल को आकाशबल्ली, कसूसे हिन्द, स्वर्ण लता, निर्मुली, अलकजरिया,आलोक लता, रस बेल, आकाश बेल, डोडर, अंधा बेल आदि नामो से जाना जाता है..अमर बेल हमेशा पेड़ पौधों पर चलती है मिट्टी से इसका कोई नाता नही होता इस कारण इसे आकाश बेल भी कहते हैं.।
यह एक प्रकार की लता है जो ठंड के दिनों में बहुत तेज गति से वृद्धि करती है ,वृक्ष पर एक पीले जाल के रूप में लिपटी रहती है.... यह परजीवी पौधा है जिसमें पत्तियों का पूर्णत: अभाव होता है ,यह जिस पेड़ पर डाल दे वहाँ पनप जाती है और धीरे धीरे उस पेड़ को सूखा तक देती है...।
कई बार यह फसलों को भी चपेट में ले लेती हैं,यह केवल ज्वार, मक्का,बाजरा,धान, गेंहू पर यह नही पनपती...।।
#औषधीय_गुण
अमर बेल का आर्युवेद जगत में विशेष स्थान है
अमरवेल का काढ़ा घाव धोने के लिए #टिंक्चर की तरह काम करता है....वहीँ यह घाव को पकने भी नहीं देता है.....बरसात में पैर के उंगलियों के बीच घाव या गारिया होने पर अमरबेल पौधे का रस दिन में 5-6 बार लगाया जाए तो आराम मिल जाता है..... #आम के पेड़ पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल कर स्नान किया जाए तो बाल मजबूत और पुन: उगने लगते है......वहीँ अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर में लगाने से काफी लाभ मिलता है....।
अमरबेल को #लक्ष्मी का प्रतीक भी मानते है ...हर शुभ कार्य में इसकी पूजा की जाती है...।
#निवेदन- हमेशा ध्यान रखे कि अमरबेल को तोड़कर किसी फलदार छावदार पेड़ पर ना डाले... यदि आप इसकी वृद्धि चाहते हैं तो अनचाही झाड़ियों पर उपजा सकते हैं..।



राजस्थान में हरियाली लाने वाले
श्री राणाराम जी विश्नोई

राजस्थान के जोधपुर जिले से 100 किलोमीटर दूर के रहने वाले श्री राणाराम विश्नोई जी को भले आज की युवा पीढ़ी नहीं जानती हो पर उन्होंने वो कर दिखाया जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायी है ।
राजस्थान के रेगिस्तान में पौधे को पेड़ बनाना कितना कठिन है ये हम सब जानते हैं...।
विश्नोई जी की अभी उम्र 70 साल को हो गई है पर पिछले 50 साल में उन्होंने 35,000 से अधिक पेड़ लगा कर रेगिस्थान को हरित बना दिया .....विश्नोई जी ने बताते है की धीरे धीरे पेड़ खत्म हो रहे थे तो उनमे मन में पीड़ा हुई और सोचा की अगर ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले समय में साँस लेना भी मुश्किल हो जाएगा तो उन्होंने प्रण करके पेड़ लगाने शुरू किए पर आस पास पानी नहीं होने से पेड़ लगने मुश्किल थे तो उन्होंने घड़ा कंधे पर उठाया और सुदूर कुँए से पानी लाकर पेड़ो को देना शुरू किया आज वो 35 हजार से अधिक पेड़ लगा कर बड़े कर चुके और प्रयास आज भी जारी है...आज उनका क्षेत्र रेगिस्थान से हरियाली में बदल चूका है ।


कबीट"(कैथ)
कबीट को कैथ,कैथा, कोठा,कोटबड़ी, कपित्थ आदि नामों से जाना जाता हैं....।
कबीट भगवान श्री गणेश का प्रिय फल हैं,,गांव में बड़े बुजुर्ग कहते है कि दशहरे के पूर्व कबीट का सेवन नही करना चाहिये,,इसके पीछे धारणा यही रही होगी कि कबीट पूर्ण रूप से इस समय तक तैयार हो सके .....कबीट स्वाद में बड़ा खट्टा-मीठा होता हैं ,,पर दुर्भाग्य से औषधीय गुणों से भरपूर #कबीट अब कई क्षेत्रो से विलुप्त होने की कगार पर है,आज की नई पीढ़ी तो इसे पहचानती तक नही......।
इसका पेड़ काफी बड़ा और लम्बी उम्र का होता है......।
आयुर्वेद में कबीट को पेट के रोगों का विशेषज्ञ माना गया है ....वहीं इसकी चटनी भी खूब पसंद की जाती है।
कच्चे कबीट में "एस्ट्रीजेंट्स" होते हैं जो मानव शरीर के लिए बहुत ही लाभप्रद है......वही डायरिया और डीसेंट्री के मरीजों के लिए काफी लाभदायक है.....कबीट के सेवन से मसूड़ों तथा गले के रोग ठीक हो जाते हैं ......बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से जो गोंद निकलती है वो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।
आओ कबीट को जाने समझे और अपने गाँव-शहर में इसको रोपने का अभियान छेड़े...।।
 राम वी. सुतार..
वह बुजुर्ग शिल्पकार जिसने बनाई सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' (Statue of Unity) का अनावरण करेंगे. यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी. गुजरात में नर्मदा नदी के किनारे सरदार सरोवर बांध के नजदीक स्थापित होने वाली इस प्रतिमा को इंस्टाल किया जा चुका है
इस प्रतिमा के पीछे शिल्पकार हैं राम वी. सुतार....... स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पद्मभूषण से सम्मानित 92 वर्षीय शिल्पकार राम वी. सुतार की कल्पना है और उन्होंने ही इस प्रतिमा को डिजाइन किया है. इससे पहले भी वे सैकड़ों प्रतिमाएं बना चुके हैं. जिसमें संसद भवन परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा भी शामिल है.
राम वी. सुतार मूल रूप से महाराष्ट्र के एक गांव (गोंदूर) के रहने वाले हैं. उनके पिता कारपेंटर थे और इस नाते उन्हें शिल्प कला विरासत में मिली थी. शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव में ही हुई और उसी दौरान गुरु श्रीराम कृष्ण जोशी से मिट्टी में जान डालने की कला यानी शिल्पकारी सीखना शुरू किया
इसके बाद राम वी. सुतार ने शिल्प कला के लिए मशहूर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला ले लिया और यहां तमाम बारीकियां सीखीं. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक नौकरी भी की. इसके बाद वर्ष 1958 में वह दिल्ली आ गए. शुरुआत में कुछ दिनों तक लक्ष्मीनगर रहे और उसके बाद नोएडा में अपना स्टूडियो स्थापित किया.
राम वी. सुतार द्वारा डिजाइन की गयी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का कुल वजन 1700 टन है और ऊंचाई 522 फिट यानी 182 मीटर है. प्रतिमा अपने आप में अनूठी है. इसके पैर की ऊंचाई 80 फिट, हाथ की ऊंचाई 70 फिट, कंधे की ऊंचाई 140 फिट और चेहरे की ऊंचाई 70 फिट है.
राम वी. सुतार इन दिनों मुंबई के समुंदर में लगने वाली शिवाजी की प्रतिमा की डिजाइन भी तैयार करने में जुटे हैं. पिछले दिनों अमृतसर के वॉर मेमोरियल में लगाई गई दुनिया की सबसे लंबी तलवार को भी सुतार ने ही तैयार किया था.
देश-विदेश में अपनी शिल्प कला का लोहा मनवाने वाले राम वी. सुतार को साल 2016 में सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था. इससे पहले वर्ष 1999 में उन्हें पद्मश्री भी प्रदान किया जा चुका है. इसके अलावा वे बांबे आर्ट सोसायटी के लाइफ टाइम अचीवमेंट समेत अन्य पुरस्कार से भी नवाजे गए हैं.I

No comments:

Post a Comment