Tuesday, 30 October 2018

vichar

अब तो ऐसा लग रहा है कि कल को सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार से यह सूचना भी मांग देगा कि:
1.. भारत के पास कितने एटम और कितने हाड्रोजन बम है?
2. इनको कँहा-कँहा रखा गया है?
3. अलग-अलग कुल कितनी मिसाइले है, उन्हें कँहा छिपाकर रखा गया है?
4.. किस किस मिसाइल पर कौन कौन से एटम बम फिट किये जायेंगे और उनका निशाना कँहा-, कँहा होगा?
5. वार प्लान की जानकारी दी जाय.
छि छि अपने को तो शर्म महसूस हो रही है कि देश का सुप्रीम कोर्ट इतना अतार्किक तरीका अपनाएगा जिसके कारण देश की प्रतिष्ठा गिरेगी. आखिर वह समझे कि वह सुप्रीम कोर्ट है कठपुतली नही.

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''सीख हम बीते युगो से नए युग का करे स्वागत''
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"ठग्स ऑफ हिंदुस्तान"
इतना लंबा नामरखने की क्या जरूरत थी
सीधे "कांग्रेस" ही रख देते..?
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कांग्रेस की पुरी कोशिश यह है कि अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर बनने से कैसे रोका जाए। सूत्रों के अनुसार से खबर आ रही है कि मंदिर निर्माण को रोकने के लिए दो प्रकार की रणनीति तैयार की हैं।पहला षड्यंत्र की यदि मंदिर निर्माण पर संसद के शीतकालीन अधिवेशन में प्राइवेट बिल लाया जाएगा तो कांग्रेस ने तैयारी कर रखी है कि इस अधिवेशन को भी पिछले बार की तरह राफेल के मुद्दे पर हंगामेदार बना संसद को ठप किया जाए ताकि राम मंदिर प्राइवेट बिल पास न हो सके।
 कांग्रेस का दुसरा षड्यंत्र यह है कि सुप्रीम कोर्ट टाईटील सुट के मामले में यदि श्री रामलला मंदिर के पक्ष में फैंसला देता है तो ठिक दो दिन बाद फिर से एक याचिका डाली जाएगी -कि सुप्रीम कोर्ट यह साबित करें कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था या नही ? किसी को यह लगता है कि मनगढंत बातें है तो फिर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के एक वकील जो कांग्रेस का वरिष्ठ नेता भी रह चुका है उसके दो दिन पहले आजतक चैनल पर किए गये खुलासे से रूबरू हो लें।-- Sanjeet Singh

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हिन्दू मूर्खो की जमात है ?
एक सवाल आया .कि अगर नरेन्द्र दामोदरदास मोदी लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति से संन्यास ले ले .तो भाजपा कितनी लोकसभा सीट जीत पाएगी .और भाजपा के सहयोगी संगठन अपनी पार्टी को कितने राज्यों में चुनावी सफलता दिला पायेगे .. बीजेपी शासन में इनको राम मन्दिर अभी चाहिए --

 अरे - ५०० साल हो गए वहाँ मंदिर के ऊपर मस्जिद बने -- ये लड़ाई तबसे चल रही है -- ७० साल कांग्रेसियों की चप्पल चाटी इन हिन्दुओ ने -इंद्रा हमारी अम्मा बोलकर छाती पीटी -- मगर बीजेपी शासन में इनको राम मन्दिर अभी चाहिए ? यही समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी हर वो काम क्र रहा है जिससे आपन वाले वक्त में इसका मार्ग प्रशस्त होगा -- 
जिस काम को करना सबसे बड़ी जरूरत होती है --उस काम को समझदार अपनी जबान पर कभी नहीं लाते --जबकि हमारे मुर्ख हिन्दू ही मोदी से सवाल पूछते हैं मोदी अयोध्या क्यों नहीं गए? हिन्दू ऐसे रो कलप रहा है जैसे मंदिर बनते ही सब मसले हल हो जायेंगे ?-  वो फिर तोड़ दिया जाएगा -आज अभी जो स्थिति है -- किसी देश के युग परिवर्तन की घटनाये इतनी आसानी से और इतनी जल्दी नहीं होती।
अभी मोदी सरकार ने मूर्खो की बातों से चेष्टा की तो जो स्थिति भारतवर्ष में होगी उसका दोष मोदी सरकार पर मढ़ कर -- बीजेपी को सत्ता चुय्त कर दिया जाएगा --फिर राम मंदिर तो भूल ही जाना --तुम्हारे घरों में व्यक्तिगत मंदिर भी तोड़ दिए जाएंगे -- और मुर्ख हिन्दू ऐसी स्थिति जब तक उसके सामने नहीं आ जायेगी तब तक समझेगा नहीं।  ३७० और कॉमन सिविल कोड पर ध्यान दो वो ज्यादा जरुरी है हमारे लिए।
मन्दिर में मत उलझो--  sidhantsehgal

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प्रधानमंत्री मोदी भारत की औपनिवेशिक संरचना को बदल रहे हैं. ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था ने दोहन करने वाली संस्थाओं का निर्माण किया, चाहे वह अफ़्रीकी देश हो या भारत. स्वतंत्रता मिलने के बाद अफ्रीकी राजनेता ब्रिटेन की शोषण या दोहन करने वाली नीतियों को जारी रखा, क्योकि इनसे सत्ता पे उनका वर्चस्व बना रहेगा. यह पैटर्न स्वतंत्रता के बाद के अफ़्रीकी देशो जैसे कि घाना, केन्या, जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे, सिएरा लेओने इत्यादि में दिखाई देता है.
परिणाम क्या हुआ? ज़िम्बाब्वे को 1980 में स्वतंत्रता मिली. वर्ष 2008 में इस देश के नागरिको की आय 1980 की तुलना में आधी रह गयी है, इससे भी बदतर हालात सिएरा लेओने में हुआ.
कई थिंक टैंक (प्रबुद्ध मंडल) और शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि अफ्रीका के अनेक देशों में अभिजात वर्ग ने स्वतंत्रता के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया और तानाशाही स्थापित कर दी. लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव में उन्होंने लोकतंत्र स्थापित करना स्वीकार कर लिया. लेकिन चुनाव करवाने के लिए कुछ वर्षो - 5 से 10 साल - का समय मांग लिया. क्योकि वे चुनाव आयोग, अदालत, ब्यूरोक्रेसी और मीडिया में अपने प्यादो को बैठा कर सत्ता "लोकतान्त्रिक" तरीके से बनाये रखना चाहते थे.
कहने के लिए चुनाव आयोग ने चुनाव करवा दिया, लोगों ने वोट डाल दिए, और जब विपक्ष वोटर लिस्ट और चुनाव में धांधली की शिकायत करता था, तो चुनाव आयोग शिकायतों को खारिज कर देता था. हालत यहां तक हो जाती थी कि निर्वाचन-क्षेत्र से परिणाम कुछ होते थे, चुनाव आयोग घोषणा कुछ और करता था. जब विपक्ष अदालत में चुनौती देता था तो जज किसी तकनीकी कारणों का सहारा लेकर उनकी याचिका को खारिज कर देते थे. अगर विपक्ष न्यायालय और चुनाव आयोग के विरुद्ध प्रदर्शन करते थे, तो सेना और पुलिस नृशंस तरीके से मारपीट और हत्या करके उनके प्रदर्शन को दबा देती थी. सुरक्षाबलों के द्वारा विपक्ष के दमन के समाचार को मीडिया छुपा देता था, विपक्ष के आरोपों को प्रकाशित नहीं करता था तथा केवल अभिजात वर्ग के समर्थन में खबरें छापता था.
थिंक टैंक (प्रबुद्ध मंडल) और शोधकर्ताओं ने इसे "बनावटी लोकतंत्र" का नाम दिया.
अगर हम भारत के सन्दर्भ में देखे, तो पाएंगे कि स्वतंत्रता के बाद सत्ता पे एक अभिजात वर्ग ने कब्ज़ा जमा लिया, एक ही परिवार के लोग या उनके प्रोक्सी शासन करने लगे. यह स्पष्ट होने लगा है कि सोनिया सरकार ने अपने गुर्गों को धीरे-धीरे ब्यूरोक्रेसी, न्यायालय तथा मीडिया में बैठा रखा है.
उदाहरण के लिए कुछ मित्रों ने बताया कि एक वरिष्ठ मी लार्ड जिनके पिता कांग्रेस के नेता थे, कैसे उन्हें वर्ष 2010 में जज नियुक्त किया गया; कैसे वे कुछ ही महीनों में राज्य अदालत के मुख्य पंच हो गए, और फिर वह उससे बड़े न्यायालय में आ गए और प्रगति करते ही गए. सब कुछ सोनिया सरकार के समय में हुआ. मैं सोचकर हैरान हो जाता हूं कि कैसे सोनिया सरकार ने शातिर सोच से 2010 में ही इन महोदय की गोटी फिट कर दी थी जिससे वह एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएं जहां वे सोनिया, उनके परिवार और सपोर्टरों का समर्थन कर सके. यही हाल मीडिया और ब्यूरोक्रेसी में भी मिलता है जहां कोंग्रेसी गुर्गे फिट हैं.
इस अभिजात वर्ग के शोषण का परिणाम यह हुआ कि अधिकांश भारतीय भीषण गरीबी से जूझते रहे; घर में बिजली नहीं, शौचालय नहीं, पानी नहीं, और डिजिटल युग में इंटरनेट नहीं. ना ही शिक्षा के साधन, ना ही स्वास्थ्य उपलब्ध, ना ही रोजगार, ना ही उनके क्षेत्र में कोई उद्यम, ना ही सड़क, ना ही रेल, ना ही बैंक. जरा सा पेट भरने के लिए उन्हें "माई-बाप" सरकार की तरफ दीन भाव से देखना पड़ता था जो चुनाव के समय एक सूती धोती, ₹500 का नोट और एक पव्वा चढ़ा के उन्हें कृतार्थ कर देता था.
अगर किसी के मन में गलती से भी यह विचार आ जाए कि यह कांग्रेसी और कम्युनिस्ट विलासिता में कैसे रहते हैं जबकि उनकी स्वयं की स्थिति दरिद्रता वाली है, तो उसके लिए इस अभिजात वर्ग ने संप्रदायवाद तथा समाजवाद का नारा ढूंढ रखा था. सेकुलरिज्म का एक जयकारा लगाया, बहुसंख्यको को गरियाया और जनता भाव-विव्हल होकर अपने सारे कष्ट भूल जाती थी.
प्रधानमंत्री मोदी भारत की औपनिवेशिक संरचना को बदल रहे हैं. उस औपनिवेशिक संरचना को जिसे अंग्रेजो ने उस समय के अभिजात वर्ग को सौंप दिया; जिसे अभिजात वर्ग ने अपना लिया और उसी से अपने परिवार और खानदान को राजनैतिक और आर्थिक सत्ता के शीर्ष पर बनाए रखा.
भारत की मिटटी पर पले-बढ़े, शिक्षित, और उसी धरती पर संघर्ष करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा इस अभिजात वर्ग के रचनात्मक विनाश को समझिये और उन्हें समर्थन दीजिए.
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ये जो मीलौड साहब होते है ना ..इनकी पत्तले चाटने की लत पड चुकी होती है ......
रिटायरमेंट के बाद भी , सिस्टम मे घुसे रहना , अगडम -बगडम कमीशनो , आयोगो, और ट्रिब्यूनल का हिस्सा बने ही रहते है, और आकंठ भ्रष्टाचार मे डूबी रहने वाली नौकरी के बाद भी विलासिता पूर्ण जिदंगी का लालच छोडना इन्हे गवारा नही होता .....
सन् 2010 मे National Green Tribunal बनाया गया था , जिसके वर्तमान चेयरपर्सन है , सुप्रीम कोर्ट मे न्यायमूर्ति रह चुके स्वतंत्र_कुमार .बाकी सदस्यो मे दो किस्म के सदस्य होते है ,
1- Judicial members
2- Expert members .
ये सारे ज्यूडिशियल_मेंबर्स भी मी-लौड साहिब ही होते है . और इनके फैसले सुभान_अल्लाह ..
अब अचानक से इन मी-लौड साहिब की अलौकिक दिव्य दृष्टि कुंडलिनी की मानिंद जाग्रत हो उठी है , बगैर हकीकत को जाने , बगैर मौका मुआएना किये ही , इनको झट से पता चल गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चीनी मिले प्रदूषण फैला रही है . और हुजुर_ए_आला ने चीनी मिलो को बंद करने का तुगलकी फरमान सुना डाला
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चीनी_बैल्ट मे कुल 23 मिले Delhi_NCR मे आती है , जिनको बंद करने की तलवार जून-2017 से ही लटक रही है.सिभांवली चीनी मिल पर तो माननीय मीलौड सहाब पहले ही पाँच करोड का जुर्माना ठोक चुके है .
मगर मी-लौड जी , शायद आप भूल रहे है कि , Sugar bowl कहे जाने वाला ये ऐरिया और इसकी समृद्धि के लिए यहाँ की चीनी मिले मुख्य रूप से जिम्मेदार है .क्योकि गन्ना ही यहाँ की मुख्य Cash crop माना जाता है . ये गन्ने की फसल ,और चीनी उद्योग यहाँ कि Life_Line है .
करोडो हेक्टेयर की तैयार खडी फसल को किसान जलायेगा ? या फिर ट्राॅलिया सीधी आपके बंगले पर भिजवाई जायें ?  फसल तैयार करने मे किसान का खून पसीना , धन , और वक्त लगता है , खेती लाखो लोगो के लिए रोजगार का सृजन करती है . सीधे  और परोक्ष रूप से लगभग सभी लोग कृषि कार्य से जुडे है . अब इस तैयार फसल का क्या करें ? किसी को बच्चो के उज्जवल भविष्य हेतु स्कूलो की फीस  भरनी है , किसी की बेटी की शादी होनी है , किसी को बीमार माँ-बाप का ईलाज कराना है.
मिलो को बंद कर दो , मगर तैयार खडी फसल की कीमत कौन  देगा ? आज मिल बंद करोगे, कल रिफाइनरियाँ , परसो स्टील फैक्ट्रिया , और फिर एक एक करके सारे उद्योग धंधे. खुद को खुदा समझना बंद करो
By Rajeev Kumar


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