विपक्ष का चोला ओढ़े अभिजात्य वर्ग झूठ, छल और कपट का सहारा ले रहा है.
अधपकी, बेमेल खिचड़ी विपक्ष की रणनीति अब स्पष्ट हो चुकी है. चूंकि इन्हे पता है की ये प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा बनायी हुई नीतियां और किये जाए कार्यो से उनका रचनात्मक विनाश हो जायेगा.
स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के शासकों ने एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें जनता की भलाई और सेकुलरिज्म के नाम पर अपने आप को, अपने नाते रिश्तेदारों और मित्रों को समृद्ध बना सकें. अपनी समृद्धि को इन्होंने विकास और सम्पन्नता फैलाकर नहीं किया, बल्कि जनता के पैसे को धोखे और भ्रष्टाचार से अपनी ओर लूट कर किया. यह समझ कई देशो की राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था के अध्ययन और भ्रमण से समझ में आयी.
ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था की संरचना जानबूझकर कर की गयी थी, ना कि नासमझी में. उनका पूरा ध्यान अपने आप को और अपने मित्रों को समृद्ध करना था और उन्हें धनी बनाना था. जनता को जानबूझकर गरीब रखना था, क्योंकि गरीब जनता को वह बहला-फुसलाकर, लॉलीपॉप देकर वोट पा सकते थे.
शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग अक्सर आर्थिक प्रगति के खिलाफ खड़े हो जाते है, क्योकि वह अपने हित को - अपनी constituency - जैसे कि अपनी सीट, अपना उद्योग, अपना NGO - सुरक्षित रखना चाहते है. उन्हें डर है कि आम जनता अगर सशक्त हो गयी तो उनका रचनात्मक विनाश हो जायेगा. उनकी आर्थिक स्थिति खो जाएगी. उन्हें अपने विशेषाधिकार खोने का डर है. और इसीलिए "वे" ग्रोथ या विकास पे बांधा डाल देते है, और हमारी आँखों पे पट्टी.
अतः बेमेल विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी से निपटने के लिए चार रणनीतियों का सहारा ले रहा है.
प्रथम,
सफ़ेद झूठ बोलकर मोदी सरकार पे भ्रष्टाचार का ठप्पा लगाना या फिर उनकी विश्वसनीयता पे चोट पहुंचना. इस रणनीति के तहत रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद पे जान-बूझकर झूठ का सहारा लेना और बेबुनियाद आरोप लगाना कि इस डील में भ्रष्टाचार हुआ है. इसी प्रकार, जस्टिस लोया की हृदयगति से निधन को षड्यंत्र बताना, जबकि हार्ट अटैक के समय उनके साथ दो सहयोगी जज उपस्थित थे. इसी श्रेणी में अमित शाह के पुत्र, अजित डोवाल के पुत्र, अरुण जेटली पे दिल्ली क्रिकेट में भ्रष्टाचार के झूठे आरोप भी आते है.
द्वितीय,
भारत के लोकतान्त्रिक संस्थानों की विश्वसनीयता पे प्रश्नचिन्ह लगाना और यह कहना कि इन संस्थानों की मिलीभगत से ही एक गरीब, अति सामान्य परिवार का पुत्र सत्ता में आया. इस श्रेणी में सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीशों की प्रेस कांफ्रेंस, EVM को हैक करने का असत्य आरोप, सीबीआई निदेशक की नियुक्ति और फिर हटाने पे प्रश्नचिन्ह जबकि इस प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी सम्मिलित है, RBI पे फ़ालतू का बखेड़ा खड़ा करना, GST की मीटिंग में कर प्रस्तावों पे सहमति देना, लेकिन बाहर आकर मोदी सरकार को बदनाम करना इत्यादि आते है.
एक तरह से विपक्ष चाहता है कि संवैधानिक संस्थाए घबरा कर समर्पण कर दे और उन्हें कागजी बैलट पेपर के द्वारा वोटो की लूट या फिर सुप्रीम कोर्ट में किसी फर्जी केस में सरकार को शर्मिंदा या कमजोर करने का अवसर मिले. नोट करिये कि राम मंदिर, EVM की विश्वसनीयता पे प्रश्नचिन्ह, रफाल, आधार कार्ड, सीबीआई निदेशक, क्रिस्चियन मिशेल, लोया इत्यादि केसो में कांग्रेस के वकील ही सामने क्यों है?
तृतीय,
बेमेल, पारस्परिक विरोधी और अनैतिक गठबंधन बनाना और यह आशा करना कि गठबंधन वाली पार्टियों का कुल वोट भाजपा के वोट से अधिक होगा.
चतुर्थ,
भाजपा के कोर समर्थको को विभाजित करना या उनके मन में हृदय से प्रिय मुद्दों के बारे में मोदी सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में संदेह उत्पन्न करना. इस श्रेणी में राम मंदिर निर्माण की कोर्ट द्वारा सुनवाई में जानबूझकर अड़चन पैदा करना, तीस वर्ष पुराने SC एक्ट पे सुप्रीम कोर्ट की मदद से कटुता फैलाना, सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सबूत मांगना, सबरीमाला में विशेष आयु की महिलाओ का प्रवेश करवाना (जिससे कोर समर्थको के आत्मसम्मान पे चोट लगे जिसके लिए वे मोदी सरकार को दोषी ठहराएंगे), JNU में भारत के टुकड़े की मांग करने वालो का समर्थन करना (जिससे कोर समर्थको को तुरंत कार्रवाई ना होने पे निराश होना पड़े) जैसी करतूते शामिल है.
यह चुनाव विपक्ष का चोला ओढ़े अभिजात्य वर्ग के आस्तित्व का सवाल है. न कि चुनाव जीतने के लिए तभी वे झूठ, छल, कपट का सहारा ले रहे है. वे यह बतलाये कि उनकी नीतिया क्या होगी.
इनसे सतर्क रहिये और प्रधानमंत्री मोदी पे विश्वास बनाये रखिये
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●प्रधान सेवक की शानदार चौकीदारी
और कांग्रेस का अब तक का सबसे बड़ा चुहाड़पन-देशद्रोह
रॉ..RAW भारत का एक सर्वोच्च प्रतिष्ठित संस्था है,अपेक्षाकृत सीबीआई से बहुत आगे है,रॉ में देशभक्तों का एक कॉलेजियम है जो बहालियां करती है।इसकी बहुत सारी बातें विज्ञापित नहीं होती है क्योंकि ये अति गोपनीयता से काम करती है।
ये विदेशों में कार्यरत खुफिया एजेंसी है जिसके घर वाले भी इनसे नहीं मिल पाते हैं,ये खुद जाकर मिलते हैं परिजनों से।
मेरा एक चचेरा भाई रॉ में है,मैं ये सचाई जानता हूँ। बचपन से लेकर 17 साल की उमर तक हम साथ खेले कूदे पर 52 साल से उससे मिल नहीं पाया हूँ।
रॉ वालों का रिश्ता परिवार से भी नहीं रह जाता। वे अपने निवास का पता परिजनों को भी नहीं देते। रॉ से सबसे ज्यादे पाकिस्तान डरता है,इसके एजेंट बतौर अजित डोभाल भी पाकिस्तान में हड़कंप मचा चुके हैं।
●मोदीजी बहुत पहले ये जान चुके थे कि सीबीआई चीफ आलोक वर्मा सोनिया-राहुल के एजेंट के बतौर काम कर रहे हैं,लालू, बाड्रा, चिदंबरम, बिजय माल्या,नीरव मोदी,मेहुल चौकसी और शिवशंकरन(आईडीबीआई बैंक में आर्थिक अपराधी) के आर्थिक अपराधों को ढ़क बचा रहे हैं।
सरकार की लुक आउट नोटिश और गिरफ्तारी के आदेश की अनदेखी करते हुए आलोक वर्मा ने फर्जीवाड़ा करते हुए गिरफ्तारी की जगह# सूचना #शब्द प्लांट करते हुए विजय माल्या और नीरव मोदी आदि को भागने दिया।
●दो बजे रात की वह हाहाकारी घटना जिस कारण आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया वह जानने योग्य है।रॉ के चीफ भागे भागे पीएम के पास पहुंचे, बहुत सारी गोपनीय बातें बतायी.....
1)हमें अपने रॉ डिपार्टमेंट को बंद करना पड़ सकता है क्योंकि विदेशों में हमारे कार्यरत सभी अधिकारियों सूचि आलोक वर्मा ने संबद्ध देश को दे दी है।
2)विशेष कर सऊदी अरब से कांग्रेसी दलाल ,मिशेल जो अगस्तावेस्टलैंड मामले में गवाह है के प्रत्यर्पण को रोकने के लिए हमारे सारे अधिकारियों की सूचि सऊदी अरब को अभी अभी ई-मेल कर दिया है। इनकी योजना है कि हमारे खुफिया एजेंटो के नाम जाहिर कर भारत और सऊदी अरब का संबंध ऐसा बिगाड़ा जाय कि मिशेल का प्रत्यर्पण रोका जा सके और जिससे सोनिया- राहुल-कांग्रेस को लाभ पहुँचाया जाय।
उल्लेखनीय है कि सऊदी में वहाँ खुफियागिरी की सजा तुरंत सीधे मौत है। इस तरह हमारे सारे देशभक्त रॉ के अधिकारी वहाँ मारे जाते। इसीतरह का देशद्रोह एक बार# हामिद अंसारी# ने भी अफगानिस्तान में करके हमारे देशभक्त रॉ के अधिकारियों को मरवा डाला था। उस समय वे वहाँ अफगानिस्तान में भारत के राजदूत थे। बाद में पुरस्कार स्वरूप कांग्रेस ने उसे उपराष्ट्रपति पद से नवाजा था।
●शांत चित्त बल्कि स्थिरप्रज्ञता से मोदीजी ने सब सुना। तुरंत सऊदी अरब के चीफ या सुलतान को फोन किया....एक बेहद जरुरी काम आ गया है,इसलिए आपको कष्ट दिया है।हमने सीबीआई चीफ से एक आवश्यक ई-मेल भिजवाया है जिसे आपने अभी नहीं देखा होगा, वैसे मैं आपके ई-मेल पर भी फिर सूचि प्रेषित कर रहा हूँ।ये अवांछित लोग हैं।हमारे यहाँ मिशेल के साथ इन्हें भी भेज दे। ताकि तुरंत कारवाई की जा सके।
इसतरह हमारे चौकीदार ने रॉ के देशभक्ति अधिकारियों की जान भी बचा ली और वाक्पटुता से आलोक वर्मा की जूती आलोक वर्मा के सर पर दे मारी।इस देशद्रोही विफलता से कांग्रेस पागल हो गया,तुरंत सऊदी अरब षड्यंत्र करने फिर राहुल गांधी पहुंच गया, ऐसा संयोग कहाँ देखने को मिलेगा कि राहुल खान भी दुबई में है और पाकिस्तान का आर्मी चीफ भी दुबई में
मतलब देश के ऊपर कोई बड़ा खतरा है
प्रियंका चौबाईन ने ट्वीट किया कि क्रिकेट मैच देखने झूठमुँहा गाँधी वहां गया है,तीन लाख की भीड़ राहुल के दर्शन के लिए स्टेडियम में उमड़ी। इस मूर्ख कांग्रेसी प्रवक्ता को ये भी जानकारी नहीं कि स्टेडियम की क्षमता मात्र पैतीस हजार है।
●कांग्रेस ये झूठा प्रचार कर रही है कि राफेल मामले में आलोक वर्मा जाँच करने वाले थे इसलिए मोदीजी ने हटाया जबकि सीबीआई चीफ रक्षा सौदे की जाँच के लिए अधिकृत नहींं होते हैं।सुप्रीम कोर्ट जब राफेल में क्लीन चिट दे चुकी है तो देशद्रोही-हिन्दूद्रोही कांग्रेस का ये थेथरपन ही है।
●आलोक वर्मा आपराधिक कृत्य करते हुए मोदीजी, रॉ चीफ, सेनाध्यक्ष, अजित डोभाल और अमित शाह आदि का फोन टेप भी कर रहे थे।
इस कांड में जस्टिस सिकरी,सीवीसी और रॉ चीफ की भूमिका प्रशंसनीय रही।विशेषकर जस्टिस सिकरी एक निष्पक्ष और ईमानदार जस्टिस माने जाते हैं। दलित मानसिकता वाला मलिकार्जुन खड़के बहुत खड़का पर चला नहीं।
●अगर मोदीजी की जगह इंदिरा रहती तो तुरंत ईमरजेंसी लगा देती,संविधान स्थगित कर सभी संबद्ध को थर्ड डिग्री से निपट लेती।ये इसी लायक हैं भी।
●अब देखना है मोदीजी निकृष्टतम देशद्रोही मोईन कुरेशी से कैसे निपटते हैं जो सबसे बड़ा आर्थिक अपराधी है,कांग्रेसी दलाल है और जिसने तीन सीबीआई चीफ को निगल लिया है,ब्लैकमेल किया है।
●उल्लेखनीय है कि भारतीय मीडिया इस गंभीरतम मामले
को साफ निगल गयी, बस कांग्रेसी अनर्गल प्रलाप का रिपोर्टिंग किया।
एक भारतीय ईमानदार पत्रकार हरीश गुप्ता के रिपोर्ट पर ये खबरें सऊदी अरब और विदेशों में प्रकाशित हुई।
देश इस देशद्रोह से अनजान है।
Nitin shukla योगेंद्र जायसवाल की वाल से
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जैसे जैसे आम चुनाव करीब आ रहा है। मुख्यधारा मीडिया का एक धड़ा अपने कार्य में जुट गया है। पहले इस दौड़ में एनडीटीवी, आल्ट न्यूज, द वायर, द क्विंट, अमर उजाला, आदि शामिल थे। अब अंग्रेजी मीडिया का जाना माना मीडिया हाउस ‘द हिंदू’ भी इस दौड़ में शामिल हो गया है।
‘द हिंदू’ के संपादक ‘एन. राम’ ने इसी अखबार के हवाले से एक रिपोर्ट छापी थी कि वर्तमान की राजग सरकार ने पिछली संप्रग सरकार की तुलना में राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 41 फीसदी ज्यादा पैसे खर्च किए।
‘द हिंदू’ के रिपोर्ट में कहा गया है, “यह लेख, द हिंदू को विशेष रूप से उपलब्ध जानकारी के आधार पर, F3-R मानक के राफेल फाइटर जेट के मूल्य के बारे में दिलचस्प सवाल पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे और क्यों 2007, 2011 और 2016 में समान क्षमता और विन्यास के बावजूद प्रति राफेल जेट के दाम में परिवर्तन हो गया।”
अब ये लोग किस संस्थान से पत्रकारिता की डिग्री लिए हैं, वह तो ईश्वर ही जानते हैं। लेकिन इसमे किसी संस्थान की गलती नहीं। दरअसल, इन्हें सिर्फ राजग सरकार के हर फैसले का विरोध करना है। इन्हें ये नहीं मालूम कि राफेल के F3 मानक और F3-R मानक, दोनों अलग अलग हैं। 2007 में विमान के जिस मानक की बात हुई थी, वह F3 था और F3-R का निर्माण पिछले वर्ष पुरा हुआ है। तो फिर 2007 में F3-R की बात कैसे हो सकती है।
F3-R के बारे में फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने 31 अक्टूबर, 2018 को प्रेस रिलीज जारी कर कहा, “फ्रांसीसी रक्षा खरीद एजेंसी (डीजीए) द्वारा राफेल के F3-R मानक को योग्य बनाया गया। 2013 के अंत में लॉन्च किए गए इस नए मानक का विकास, डसॉल्ट एविएशन और इसके साझेदारों द्वारा संविदात्मक प्रदर्शन, अनुसूची और बजट के पूर्ण अनुपालन में सफलतापूर्वक पूरा किया गया।”
यह फ्रेंच कंपनी का आधिकारिक बयान है। एक विमान मानक, जिसका विकास 2013 में शुरू हुआ था और 2018 के अंत में पूरा हुआ, तो वो विमान 2007 या 2011 में कैसे हो सकता था? फ्रांस सरकार ने डसॉल्ट एविएशन को राफेल का F3-R मानक विकसित करने के लिए 1 बिलियन यूरो का भुगतान किया था। इसका मतलब-
1 F3-R राफेल= 1€ बिलियन + 1 F3 राफेल!
F3-R में और क्या शामिल है-
1.F3-R मानक राफेल F3 मानक का एक अपग्रेडेड वर्जन है, जिसमें असाधारण बहुमुखी प्रतिभा को और प्रबलित किया गया है। यह परिचालन आवश्यकताओं और पायलटों के अनुभव से प्रतिक्रिया के अनुरूप विमान में लगातार सुधार करने के लिए चल रही प्रक्रिया का हिस्सा है।
2. यह MBDA द्वारा निर्मित यूरोपीय उल्का लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है। यह उच्च-प्रदर्शन मिसाइल “सक्रिय सरणी” रडार के लिए अधिकतम प्रभावशीलता प्राप्त करती है, जो 2013 के मध्य में वितरित किए गए सभी उत्पादन राफेल विमानों से लैस है।
3. जीपीएस प्राथमिक मार्गदर्शन और एक अतिरिक्त बूस्टर के साथ हथियारों का यह समूह बेजोड़ है। यह राफेल को मीट्रिक सटीकता के साथ कई किलोमीटर की सीमा में लक्ष्य को नष्ट करने में सक्षम बनाता है।
ऊपर जिस उल्का एयर-टू-एयर मिसाइल के बार में बताया गया है, वह आज दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयर-टू-एयर मिसाइल के रूप में माना जाता है। यह मिसाइल इतनी शक्तिशाली मानी जाती है कि यूके ने अपने F-35 स्टील्थ विमान बेड़े पर मिसाइल को एकीकृत करने के लिए MBDA (मिसाइल के निर्माता) को एक अनुबंध दिया है।
खैर, ये सब राफेल के F3-R मानक के गुणों का संक्षिप्त वर्णन हुआ। हम यहां बात कर रहे हैं एन. राम के झूठ का। इनके झूठ का पर्दाफाश फ्रेंच कंपनी ने अक्टूबर, 2018 में ही कर दिया है। जो लोग ‘द हिंदू’ के खबर को आधार बनाकर सरकार पर फिर से निशाना साधने किया तेयारी कर रहे हैं, उन्हें पहले फ्रेंच कंपनी का अक्टूबर, 2018 का आधिकारिक बयान पढना चाहिए। कुछ दिन पहले खुद को राजनीतिक विश्लेषक कहने वाले आशुतोष ने भी अपने ‘सत्य खबर’ नामक वेबसाइट पर राफेल को लेकर झूठ फैलाया था। फिर आजतक के पत्रकार रोहित सरदाना के झूठ पकड़ने पर उन्होंने खबर को अपडेट करने की बात कही थी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,‘द हिंदू’ के संपादक ‘एन. राम’ ने इसी अखबार के हवाले से एक रिपोर्ट छापी थी कि वर्तमान की राजग सरकार ने पिछली संप्रग सरकार की तुलना में राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 41 फीसदी ज्यादा पैसे खर्च किए।
‘द हिंदू’ के रिपोर्ट में कहा गया है, “यह लेख, द हिंदू को विशेष रूप से उपलब्ध जानकारी के आधार पर, F3-R मानक के राफेल फाइटर जेट के मूल्य के बारे में दिलचस्प सवाल पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे और क्यों 2007, 2011 और 2016 में समान क्षमता और विन्यास के बावजूद प्रति राफेल जेट के दाम में परिवर्तन हो गया।”
अब ये लोग किस संस्थान से पत्रकारिता की डिग्री लिए हैं, वह तो ईश्वर ही जानते हैं। लेकिन इसमे किसी संस्थान की गलती नहीं। दरअसल, इन्हें सिर्फ राजग सरकार के हर फैसले का विरोध करना है। इन्हें ये नहीं मालूम कि राफेल के F3 मानक और F3-R मानक, दोनों अलग अलग हैं। 2007 में विमान के जिस मानक की बात हुई थी, वह F3 था और F3-R का निर्माण पिछले वर्ष पुरा हुआ है। तो फिर 2007 में F3-R की बात कैसे हो सकती है।
F3-R के बारे में फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने 31 अक्टूबर, 2018 को प्रेस रिलीज जारी कर कहा, “फ्रांसीसी रक्षा खरीद एजेंसी (डीजीए) द्वारा राफेल के F3-R मानक को योग्य बनाया गया। 2013 के अंत में लॉन्च किए गए इस नए मानक का विकास, डसॉल्ट एविएशन और इसके साझेदारों द्वारा संविदात्मक प्रदर्शन, अनुसूची और बजट के पूर्ण अनुपालन में सफलतापूर्वक पूरा किया गया।”
यह फ्रेंच कंपनी का आधिकारिक बयान है। एक विमान मानक, जिसका विकास 2013 में शुरू हुआ था और 2018 के अंत में पूरा हुआ, तो वो विमान 2007 या 2011 में कैसे हो सकता था? फ्रांस सरकार ने डसॉल्ट एविएशन को राफेल का F3-R मानक विकसित करने के लिए 1 बिलियन यूरो का भुगतान किया था। इसका मतलब-
1 F3-R राफेल= 1€ बिलियन + 1 F3 राफेल!
F3-R में और क्या शामिल है-
1.F3-R मानक राफेल F3 मानक का एक अपग्रेडेड वर्जन है, जिसमें असाधारण बहुमुखी प्रतिभा को और प्रबलित किया गया है। यह परिचालन आवश्यकताओं और पायलटों के अनुभव से प्रतिक्रिया के अनुरूप विमान में लगातार सुधार करने के लिए चल रही प्रक्रिया का हिस्सा है।
2. यह MBDA द्वारा निर्मित यूरोपीय उल्का लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है। यह उच्च-प्रदर्शन मिसाइल “सक्रिय सरणी” रडार के लिए अधिकतम प्रभावशीलता प्राप्त करती है, जो 2013 के मध्य में वितरित किए गए सभी उत्पादन राफेल विमानों से लैस है।
3. जीपीएस प्राथमिक मार्गदर्शन और एक अतिरिक्त बूस्टर के साथ हथियारों का यह समूह बेजोड़ है। यह राफेल को मीट्रिक सटीकता के साथ कई किलोमीटर की सीमा में लक्ष्य को नष्ट करने में सक्षम बनाता है।
ऊपर जिस उल्का एयर-टू-एयर मिसाइल के बार में बताया गया है, वह आज दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयर-टू-एयर मिसाइल के रूप में माना जाता है। यह मिसाइल इतनी शक्तिशाली मानी जाती है कि यूके ने अपने F-35 स्टील्थ विमान बेड़े पर मिसाइल को एकीकृत करने के लिए MBDA (मिसाइल के निर्माता) को एक अनुबंध दिया है।
खैर, ये सब राफेल के F3-R मानक के गुणों का संक्षिप्त वर्णन हुआ। हम यहां बात कर रहे हैं एन. राम के झूठ का। इनके झूठ का पर्दाफाश फ्रेंच कंपनी ने अक्टूबर, 2018 में ही कर दिया है। जो लोग ‘द हिंदू’ के खबर को आधार बनाकर सरकार पर फिर से निशाना साधने किया तेयारी कर रहे हैं, उन्हें पहले फ्रेंच कंपनी का अक्टूबर, 2018 का आधिकारिक बयान पढना चाहिए। कुछ दिन पहले खुद को राजनीतिक विश्लेषक कहने वाले आशुतोष ने भी अपने ‘सत्य खबर’ नामक वेबसाइट पर राफेल को लेकर झूठ फैलाया था। फिर आजतक के पत्रकार रोहित सरदाना के झूठ पकड़ने पर उन्होंने खबर को अपडेट करने की बात कही थी।
षड्यंत्र
चर्च ओर वामपन्थी ये भलीभांति जानता था कि हिन्दू की मूल ताकत आस्था सन्त है क्यो की यही सन्त हजारो वर्षो से हड्डियां गलाकर इस धर्म को हर काल के थपेड़ों से निकाल के लाए है,,इसी लिए चर्च वामपन्थी ने सबसे पहली चाल ये चली की हिन्दू युवाओ के मन मे सन्तो के प्रति ग्रहणा भरी जाए इसके लिए चर्च वामियो ने ,फ़िल्म,मीडिया और अखबारों मंचो का सहारा लिया तरीके से छोटी छोटी घटनाओं को सन्तो ओर धर्म से जोड़कर हिन्दू सन्तो को दुराचारी बताया और चर्च के फादर ओर मौलवियों को नेक बन्दे बताया ,,लगातार केम्पेन से कुछ हद तक चर्च वामपन्थी सफल भी हुए ,आज जैसे ही कोई सन्त गांव में गली में या दुकान पर आता है तो हिन्दू के बच्चे चरण स्पर्श तो छोड़ो उन्हें भिखारी जैसा व्यवहार करते देखा है मेने ,,हिन्दू की वो समझ ही मार डाली चर्च वामपन्थी प्रचार ने की आखिर जिस सन्त ने घर बार परिवार सबकुछ धर्म के लिए त्याग दिया वो पेट भरने के लिए हिन्दू के द्वार नही जाएगा तो कहा जाएगा,,हिन्दुओ में बढ़ती सन्तो के प्रति बेरुखी चर्च ओर वामपन्थीयो की जीत है और सनातन धर्म की हार है,,,में सभी हिन्दू नोजवानो से करबद्ध निवेदन करता हु अपने गांव घर या दुकान पे आने वाले सन्त को चाहे एक रुपिया मत दो पर जैसे ही आए पहले उनका चरण स्पर्श जरूर करो उन्हें सम्मान से कुर्सी पे बिठाकर एक ग्लास पानी का जरूर पूछो अरे मूर्खो तुम ही अगर अपने सन्तो की कद्र नही करोगे तो कोंन ईसाई जेहादी करेंगे क्या,,ईसाई चर्च के फादर को बाप की तरह सम्मान देता है मुस्लिम मौलवी की कपड़े भोजन की चिंता करता है तो नोजवान हिन्दुओ तुम भी अपने सनातन धर्म के रक्षक सन्तो का सम्मान करो यही सन्त तो हजारो वर्षो से सनातन धर्म की ज्योत जलाए हुए है उस जोत को बुझने मत दो ,चर्च वामपन्थी षड्यंत्र में उलझ कर अपने ही सन्तो का तिरस्कार मत करो,,,,ये सन्त हमारी जड़ है जड़ से जो कटा वो सुख जाएगा ये बात याद रखना नोजवाओ ,,,,इस लिए सन्तो का सम्मान करो
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कुम्भ मेला 2019, अमेरिका, रूस व जर्मनी के पर्यटक भी हर-हर गंगे बोलकर मेले में घूम रहे है.
शाही स्नान के लिए संगम की ओर जाता नागा साधुओं का जुलूस और उसे देखने के लिए बैरीकेडिंग के पीछे खड़ी भक्तों की भारी भीड़। इनके बीच में विदेशी पर्यटक जुलूस की एक झलक पाने को जद्दोजहद करते नजर आए। नागा साधुओं की टोली देख विदेशी अचंभित रह गए। मंगलवार की सुबह तीखी सर्दी में सिर्फ भभूति लपेटे सैकड़ों नागा साधुओं को जाता देख गर्म कपड़ों और जैकेट में लिपटे स्पेन के जोस का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.
विदेशी बोले कि नागाओं को देख एक पल के लिए सांसें थमी रह गईं। जोस आठ हजार किमी दूर स्पेन से आए 30 विदेशी सैलानियों के दल का हिस्सा हैं। टीम की अगुवाई कर रहे इग्नीसियो क्यूएस्टा ने बताया कि कुम्भ मेले के लिए प्रयागराज आने से पहले उनकी टोली ने दिल्ली और काशी का भ्रमण किया। उन्हें प्रयागराज में तीन दिन ठहरना था लेकिन प्रथम शाही स्नान का अद्भुत नजारा लेने के लिए पूरे दल ने अपने दौरे को दो दिन और बढ़ा दिया। यह पूरा अनुभव हमारे लिए अकल्पनीय और बहुत प्रभावित करने वाला रहा.
रातभर जगने के बाद किया संगम में स्नान.
कुम्भ क्षेत्र में साधुओं के शिविर में पहुंचे देशी-विदेशी भक्तों ने सोमवार को रातभर जगने के बाद मंगलवार को संगम में डुबकी लगाई। शाही सवारी के साथ संगम पहुंचे जर्मनी, अमेरिका, रूस आदि देशों के नागरिकों ने गंगा मईया का पैर छूकर उनकी गोद में पैर रखा और पुण्य की डुबकी लगाकर धन्य-धन्य हो गए। जुलूस में इन विदेशियों का उत्साह किसी भी तरह से भारतीय भक्तों से कम नहीं था। कई विदेशी सैलानी गंगा स्नान के बाद जय-जय और हर-हर महादेव का उद्घोष करना सीख रहे थे।.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भारतीयों को संविधान सेना और RSS ने ही सुरक्षित रखा हुआ है
- के टी थॉमस रिटायर्ड जज (सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया)
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व ईसाई जज केटी थॉमस ने की RSS की प्रशंसा, कहा- संघ के कारण सुरक्षित हैं भारतीय
केटी थॉमस ने कहा कि आपातकाल से देश को उबारने का अगर किसी संस्था को जाता है तो वो आरएसएस है। आपातकाल से आजादी आरएसएस ने ही लोगों को दिलाई थी।
केटी थॉमस का ये भी मानना है कि सेक्युलरिज्म का विचार धर्म से अलग नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सांपो में विष हमले करने के लिए हथियार के तौर पर होता है, इसी तरह मानव की शक्ति का मतलब हमलों से खुद को बचाने के लिए है। ऐसा बताने और विश्वास करने के लिए में आरएसए की तारीफ करता हूं
उन्होंने स्वयंसेवकों को शारीरिक प्रक्षिक्षण दिए जाने के लिए संगठन की तारीफ करते हुए कहा कि इससे हमले के वक्त देश की सुरक्षा में मदद मिलेगी.
इस दौरान थॉमस ने कहा कि सेना, संविधान और लोकतंत्र के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही भारतीयों को सुरक्षित रखे हुए है.
उन्होंने कहा, "अगर पूछा जाए कि भारतीय कैसे सुरक्षित हैं तो मैं कहूंगा कि देश में संविधान है, लोकतंत्र है, सेना है और यहां आरएसएस भी है."
थॉमस ने आपातकाल से बाहर निकालने के लिए भी आरएसएस की तारीफ की. उनके मुताबिक, धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का मतलब सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि हरेक व्यक्ति की रक्षा करना है. उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए आयोग बनाए जाने को लेकर भी सवाल उठाए.
बता दें कि केटी थॉमस का लंबे समय से आरएसएस के प्रति झुकाव रहा है. वे उस कैंपेन को खत्म करने की अपील भी कर चुके हैं, जिसमें महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहराए जाने की बात कही जाती रही है.
आरएसएस द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में थॉमस कह चुके हैं कि 1979 में उनका झुकाव आरएसएस के प्रति हुआ. उस दौरान कोझीकोड़े बतौरा डिस्ट्रिक जज उन्होंने संगंठन की 'सादा जीवन-उच्च विचार' शैली को नजदीक से देखा.
उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था, "मैं ईसाई हूं. मैं ईसाई पैदा हुआ और इसी धर्म को मानता हूं. मैं चर्च भी जाता हूं. लेकिन मैंने आरएसएस से कई चीजें सीखी हैं."
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काँग्रेस की हिंदुओं के प्रति कुदृष्टि
काँग्रेस की हिंदुओं के प्रति कुदृष्टि
दिसम्बर, 2013 में मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम (Commun and Target Violence Bill) विधेयक पर मुहर लगाई थी।। लेकिन फरवरी 2014 में भाजपा के घोर विरोध और राज्यसभा के हंगामे के बीच काँग्रेस को यह विधेयक स्थगित करना पड़ा। इस बिल को याद करना अत्यंत आवश्यक है।
2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर मनोनीत किया गया था। साथ ही एक नई समानांतर व्यवस्था बनी। इसे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council- NAC) कहा गया।इसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी थीं।
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद या एनएसी का गठन सरकार को सलाह देने के लिए हुआ था, लेकिन यह बात आम थी कि एनएसी सलाह कम और आदेश अधिक देती थी और यह सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने भी अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल पीएम’ में एनएसी के हस्तक्षेपों की चर्चा की है.
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद या एनएसी का गठन सरकार को सलाह देने के लिए हुआ था, लेकिन यह बात आम थी कि एनएसी सलाह कम और आदेश अधिक देती थी और यह सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने भी अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल पीएम’ में एनएसी के हस्तक्षेपों की चर्चा की है.
एनएसी के सदस्यों में हर्ष मन्दर, फराह नक़वी, अरुणा रॉय और रामनाथ मुंडा जैसे लोग थे। जबकि सलाहकारों में तीस्ता जावेद सीतलवाड़, जॉन दयाल, अबुसलेह शरीफ, राम पुनियानी, अनु आगा जैसे लोग थे। इन्ही लोगों की मदद से ड्राफ्ट किया हुआ कम्युनल वॉइलैंस बिल पहली बार सन 2005 में संसद में पेश हुआ।
यह बिल इतना सख्त था कि लाठी तक को हथियार माना गया था। शायद एनएसी के सदस्य लाठी को संघ के गणवेश के साथ जोड़कर देखने के आदी थे और उसके दूसरे उपयोग उनकी समझ के बाहर की बात थी।
फिर भी ऑल इंडिया क्रिस्चियन कौंसिल को यह बिल यथेष्ठ सख्त नही लगी और उन्होंने इस कानून को और भी सख्त बनाने की बात की। मुस्लिम समाज को भी कानून में कमी दिख रही थी।
मुस्लिम और ईसाई समाज की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए एनएसी ने सन 2011 में अंतरिम ड्राफ्ट बिल तैयार किया जिसके कुछ सुझाव बेहद खतरनाक और विवादास्पद थे।
कम्युनल वॉइलैंस बिल हर राज्य की जनसंख्या को दो समूहों बहुसंख्यक (dominant) और अल्पसंख्यक (non-dominant) में विभाजित करता है। इस विभाजन का आधार धर्म था।
इस विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू समूह (group) की परिभाषा है। इस विधेयक का पहला पारा ही एक तरह से घोषणा करता है कि दंगे हमेशा ही बहुसंख्यकों की तरफ से किये जाते हैं।
पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों और जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त पूरे देश में हिन्दू ही बहुसंख्यक समुदाय है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कश्मीर, जहाँ हिंदुओं पर सबसे अधिक अन्याय हुआ, वहाँ यह कानून लागू ही नही होना था।
बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक तय करने के लिए राज्य को इकाई माना गया। उत्तरप्रदेश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं लेकिन रामपुर जिले में अल्पसंख्यक। लेकिन कानून की मान्यता थी कि दंगा रामपुर में भी हुआ तो दंगाई हिन्दू होगा और पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति होगा।
यह विधेयक स्पष्ट कहता है कि पीड़ित प्रत्येक परिस्थिति में अल्पसंख्यक ही होगा। ऐसी मान्यता अपने आप मे क्रूरतापूर्ण और संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
इस विधेयक में साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा की परिभाषा भी बेहद खतरनाक है. यह कहता है कि अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति द्वेषपूर्ण भावना रखना, अल्पसंख्यक समुदाय के व्यापार का बहिष्कार करना भी इस कानून में अपराध था।
अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति को शारीरिक, आर्थिक, मानसिक और भावनात्मक हानि या पीड़ा भी इस कानून के अंतर्गत आता है। कानून यह नहीं बताता कि भावनात्मक और मानसिक पीड़ा में कौन सी घटनाएं आएंगे।
अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति को शारीरिक, आर्थिक, मानसिक और भावनात्मक हानि या पीड़ा भी इस कानून के अंतर्गत आता है। कानून यह नहीं बताता कि भावनात्मक और मानसिक पीड़ा में कौन सी घटनाएं आएंगे।
आइए, हम इसे समझने की कोशिश करते हैं।
== मान लीजिये सड़क पर चलते हुए आपकी साइकिल किसी कार से टकरा गई और आपका कार वाले से झगड़ा हो गया और दुर्योग से वह कार वाला एक अल्पसंख्यक हुआ तो आप इस कानून के अंतर्गत दोषी होंगे।
== यदि आपने एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को घर किराए पर देने से मना कर दिया तो वह मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाकर आपको जेल भेज सकता है।
== कक्षा में इतिहास पढ़ाते हुए आप इस्लामिक अत्याचार की कहानी बताएं तो अल्पसंख्यक समुदाय के किसी छात्र की भावना आहत हो सकती है और आप जेल के अंदर पहुँच सकते हैं।
== यहाँ तक कि तीन तलाक की आलोचना भी आपको जेल की रोटी चबाने पर मजबूर कर देगी।
== लेकिन किसी दंगे में एक हिन्दू महिला का बलात्कार हो जाये तो यह कानून उसे पीड़ित नही मानेगा क्योंकि इस कानून का आधार ही यह मान्यता है कि अल्पसंख्यक ही पीड़ित होगा।
== इस विधेयक का आर्टिकल 56 कहता है कि इस कानून में परिभाषित सभी अपराध गैर जमानती होंगे। यही नही, आर्टिकल 70, 71 और 72 कहते हैं कि स्वयं को निर्दोष साबित करने का दायित्व आरोपी पर होगा।
== पीड़ित का बयान ही आरोपी के विरुद्ध प्रमाण होगा। यदि आरोपी स्वयं को निर्दोष साबित न कर सका तो वह अपराधी माना जाएगा।
== पीड़ित का बयान ही आरोपी के विरुद्ध प्रमाण होगा। यदि आरोपी स्वयं को निर्दोष साबित न कर सका तो वह अपराधी माना जाएगा।
यह कानून देश के संघीय ढाँचे को भी चुनौती देता है क्योंकि इस कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार को अधिकार होगा कि वह किसी भी राज्य के किसी क्षेत्र को साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील घोषित कर इस कानून की धाराएं लागू कर दे।
भारत मे दंगों का इतिहास बहुत पुराना है और यह इतिहास बताता है कि दंगे शायद ही कभी बहुसंख्यक समुदाय के उकसावे पर हुआ हो।
राजीव गाँधी के शासनकाल में केंद्र सरकार ने जब साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील जिलों के पहचान का काम किया तो अधिकतर ऐसे जिले जहाँ हिन्दू समाज अल्पसंख्यक है, वे ही सामने आए।
लेकिन इस इतिहास को भुलाकर तत्कालीन सरकार जैसे हिंदुओं को दंडित करने पर ही तुली थी।
लेकिन इस इतिहास को भुलाकर तत्कालीन सरकार जैसे हिंदुओं को दंडित करने पर ही तुली थी।
यदि यह कानून लागू हो जाता तो हिंदुओं की हालत देश मे दोयम दर्जे के नागरिक की हो जाती।
हिन्दुओं की संपत्ति कब्जाने के लिये, उनका व्यपार नष्ट करने के लिए, उनके परिवार की महिलाओं पर बुरी नजर रखने वाले इस कानून का जमकर दुरुपयोग करते।
हिन्दुओं की संपत्ति कब्जाने के लिये, उनका व्यपार नष्ट करने के लिए, उनके परिवार की महिलाओं पर बुरी नजर रखने वाले इस कानून का जमकर दुरुपयोग करते।
भाजपा और संघ परिवार के तीव्र विरोध और काँग्रेस की गिरती राजनीतिक सेहत ने इस कानून को फरवरी 2014 में स्थगित करवा दिया। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद यदि राजनीतिक हालात बदले तो इस काले कानून के बोतलबंद जिन्न के बाहर आने की आशंका के बादल फिर मँडराने लगेंगे।
पढ़ने के बाद आप को काँग्रेस की हिंदुओं के प्रति कुदृष्टि समझ आ गई होगी।अनिल ठाकुर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,1973 से 1985 तक इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान प्रेम नाथ बहल नाम का एक IAS अधिकारी प्रधानमंत्री सचिवालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत था। पीएन बहल नाम का यह अधिकारी अक्टूबर 1984 में हुई इंदिरा गांधी की हत्या तक राजनीतिक मामलों में इंदिरा गांधी के निजी सलाहकार की ड्यूटी निभाता था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ महीनों तक राजीव गांधी के साथ भी वो यही ड्यूटी निभाता रहा था। जनवरी 1985 में राजीव गांधी ने संसद में एक सनसनीखेज खुलासा किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय में जासूसों के एक गिरोह को चिन्हित किया गया है। इस गिरोह में ज्वाइंट सेक्रेटरी रैंक के कई IAS अधिकारी शामिल हैं। आईबी इस सन्दर्भ में आगे की जांच कर रही है। राजीव गांधी ने तब संसद से अनुरोध किया था कि इस सन्दर्भ में अभी ज्यादा कुछ बताने का दबाव मुझ पर मत डालिये क्योंकि इससे जांच प्रभावित हो जाएगी। अपने इस खुलासे के कुछ दिनों बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कई अधिकारियों को हटा दिया था। हटाये गए अधिकारियों में पीएन बहल भी शामिल था।
राजीव गांधी के उस सनसनीखेज खुलासे और प्रधानमंत्री कार्यालय से अधिकारियों के हटाये जाने की कार्रवाई के मध्य कोई सम्बन्ध था या नहीं.? यह कभी स्पष्ट नहीं हो सका। लेकिन राजीव गांधी के जीवनकाल तक पीएन बहल को फिर कभी किसी जिम्मेदार पद पर नहीं नियुक्त किया गया। किन्तु राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात 1991 में कांग्रेस की सत्ता में हुई वापसी के साथ ही पीएन बहल पुनः महत्वपूर्ण हो गया था और आश्चर्यजनक रूप से गांधी परिवार का भी करीबी हो गया था।
इसके बाद ही अगले 5-6 वर्षों में उसके लड़के के मीडिया हाउस TV18 ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करना प्रारम्भ किया था।
इस पीएन बहल का लड़का है राघव बहल। यह वही राघव बहल है जिसने अपनी वेबसाइट पर तीन दिन पहले ही यह रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें यह दावा किया गया है कि कुलभूषण जाधव पाकिस्तान में रॉ के लिए काम करता था।
ज्ञात रहे कि भारत इस पाकिस्तानी आरोप को झुठलाता रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में स्वयं पाकिस्तान भी ऐसा एक भी सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे उसके आरोप की पुष्टि हो। किन्तु राघव बहल की वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार कुलभूषण जाधव को लेकर पाकिस्तान सच बोल रहा है, भारत झूठ बोल रहा है। इसकी वेबसाइट की उस रिपोर्ट को पाकिस्तान पिछले 3 दिनों से अंतरराष्ट्रीय मंचों और मीडिया में एक सबूत के रूप में प्रस्तुत कर के स्वयं को सच्चा और भारत को झूठा, कुलभूषण जाधव को आतंकवादी तथा उसको सुनाई गई फांसी की सज़ा को न्यायोचित सिद्ध करने में जुटा हुआ है।
इससे पहले बीते वर्ष मार्च 2017 में इसी राघव बहल की वेबसाइट में प्रकाशित एक खबर के कारण सेना के जवान रॉय मैथ्यू ने आत्महत्या कर ली थी। उस सम्बन्ध में केस भी दर्ज है।
और थोड़ी जानकारी यह भी क़ि ये वही राघव बहल है जो कुछ वर्षों पूर्व तक TV18 मीडिया हाउस का मालिक हुआ करता था। इसने अपने न्यूजचैनल IBN7 द्वारा किये गए 2008 के वोट फ़ॉर कैश के स्टिंग ऑपरेशन को नहीं दिखाया था।
राघव बहल ने अपनी वेबसाइट पर भारत को झूठा, पाकिस्तान को सच्चा तथा कुलभूषण को आतंकवादी सिद्ध करने की खबर क्यों प्रकाशित की.? यह आसानी से समझा जा सकता है।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
देश बचाना है तो जरुर पढ़े
2019 में मोदी क्यूँ है जरुरी इसको समझने के लिए भारत की जनता को Ashwini Upadhyay जी की ये पोस्ट पढनी चाहिए
हमारे दादा जी स्वर्गीय नेहरु जी को देशभक्त समझते थे लेकिन मुझे लगता है कि नेहरूजी सत्ता भक्त थे I
मेरे पिताजी स्वर्गीय इंदिरा जी को को देशभक्त मानते थे लेकिन अब मुझे लगता है कि वह भी गलत थे I
2014 तक मैं केजरीवाल जी को देशभक्त समझता था, लेकिन अब लगता है कि मैं भी गलत था I
कुछ दिन पहले तक जो लोग राम-रहीम और निर्मल बाबा को संत मानते थे अब वे भी अपनी गलती स्वीकार करते हैं I
नेहरु जी के सेकुलरिज्म को समझने में हमें 50 साल लगा और मुलायम सिंह के समाजवाद को पहचानने में 25 साल लेकिन युवा पीढ़ी ने केजरीवाल की ईमानदारी और राहुल जी की जनेऊगीरी को बहुत जल्दी पहचान लिया इससे स्पस्ट हैं कि आज का युवा बहुत समझदार है और उसे बेवकूफ बनाना बहुत मुश्किल हैI
आने वाली पीढ़ियाँ यह जरुर तय करेंगी कि कौन सच्चा राष्ट्रवादी है और कौन झूंठा, कौन असली समाजवादी है और कौन नकली, कौन ईमानदार है और कौन नटवरलाल, कौन वास्तव में पंथनिरपेक्ष है और कौन पंथनिरपेक्षता का पाखंड करता है, कौन देशभक्त है और कौन देशभक्त भाषणबाज I
अयोध्या का विषय सुप्रीम कोर्ट में है और अधिकतम 6 महीने में इसका फैसला भी आ जायेगा और मुझे 100% विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी हिंदुओं के पक्ष में ही होगा लेकिन जिन विषयों पर संसद में कानून बनाना है उस पर बहस क्यों नहीं हो रही है?
आखिर राष्ट्रवाद के विषयों पर संसद में चर्चा करने से हमारे सांसद क्यों डरते हैं?
हमारी आने वाली पीढ़ियां हमसे पूंछेंगी कि राष्ट्रवादी मुद्दों पर संसद में चर्चा करने से किसने रोका था? हमारे बच्चे पूंछेंगे कि अंग्रेजों का कानून समाप्त करने तथा घूसखोरों, जमाखोरों, मिलावटखोरों, तस्करों, कालाबाजारियों, हवाला कारोबारियों, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति के मालिकों की शत-प्रतिशत संपत्ति जब्त करने और आजीवन कारावास की सजा देने के लिए कानून बनाने से किसने रोका था?
राष्ट्रवाद के मुद्दों पर ईमानदारी से चर्चा करें
1. कांग्रेस ने पूजा स्थल (विशेष अधिनियम) कानून, 1991, बनाकर धार्मिक स्थलों की 15.8.1947 की यथा स्थिति कायम कर दिया अर्थात मुगलों द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गयी मस्जिदों को कानूनी मान्यता दे दिया! भाजपा और अन्य दलों के भारी विरोध के बावजूद कांग्रेस सरकार ने 1991 में यह कानून बनाया था I
यदि 1991 में एक विशेष कानून बनाकर 1947 की यथास्थिति बहाल की जा सकती है तो 2019 में भी एक कानून बनाकर धार्मिक स्थलों की 8वीं शताब्दी की यथास्थिति भी बहाल की जा सकती है और सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में एक आयोग बनाकर काशी, मथुरा, जौनपुर, विदिशा, भद्रकाली सहित अन्य सभी विवादित धार्मिक स्थलों का भी स्थाई समाधान किया जा सकता है और यह कार्य संसद को ही करना है I
2. बाबा साहब अंबेडकर और अधिकांश संविधान निर्माता सबके लिए एक समान नागरिक संहिता चाहते थे, इसीलिए विस्तृत विचार-विमर्श के बाद संविधान में आर्टिकल 44 जोड़ा गया लेकिन आज भी हिंदू के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, मुसलमान के लिए मुस्लिम मैरिज एक्ट तथा इसाई के लिए क्रिस्चियन मैरिज एक्ट लागू है I
देश के एकता-अखंडता को मजबूत करने तथा सभी महिलाओं को सम्मान और न्याय दिलाने के लिए बाबा साहब का समान नागरिक संहिता का सपना साकार करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
3. श्यामा प्रसाद जी का सपना था- “एक देश,एक विधान और एक संविधान” लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी “एक देश, दो विधान और दो संविधान” जारी है I संविधान में गलत तरीके से जोड़ दिए गए आर्टिकल 35A और अंशकालिक समय के लिए संविधान में रखे गए आर्टिकल 370 को आजतक समाप्त नहीं किया गया तथा कश्मीर में अलग संविधान भी लागू है I
देश की एकता-अखंडता तथा आपसी भाईचारा को मजबूत करने के लिए श्यामा प्रसाद जी का “एक देश,एक विधान और एक संविधान” का सपना साकार करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
4. लोहिया जी कहते थे कि जबतक मंत्री और संतरी, क्लर्क और कलेक्टर, सिपाही और कप्तान तथा पार्षद और सांसद के बच्चे एक साथ नहीं पढ़ेंगे तबतक समता, समानता और समान अवसर की बात करना एक पाखंड है I संविधान का आर्टिकल 16 भी सबके लिए समान अवसर की बात करता है और समान पाठ्यक्रम लागू किये बिना सभी बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराना नामुंकिन है I
पठन-पाठन का माध्यम भले ही अलग हो लेकिन पाठ्यक्रम तो पूरे देश में एक समान होना चाहिए लेकिन “एक देश-एक कर” की भांति “एक देश-एक शिक्षा बोर्ड” लागू करने के लिए आजतक गंभीर प्रयास नहीं किया गया I गरीब बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए देश के प्रत्येक विकास खंड में एक केंद्रीय विद्यालय या नवोदय स्कूल खोलना भी बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
5. सरदार पटेल का सपना था “एक देश, एक नाम, एक निशान और एक राष्ट्रगान” लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी दो नाम (भारत और इंडिया), दो निशान (तिरंगा और कश्मीर का झंडा) और दो राष्ट्रगान (जन-गन-मन और वंदेमातरम) जारी हैI संविधान या कानून में राष्ट्रगीत का कोई जिक्र नहीं है और संविधान सभा के 24.1.1950 के प्रस्ताव के अनुसार “वंदेमातरम” भी हमारा राष्ट्रगान है I
देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए सरदार पटेल का का सपना साकार करना तथा“वंदेमातरम” को “जन-गन-मन” के बराबर सम्मान देना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
6. दीनदयाल जी धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक वर्गीकरण के खिलाफ थेI भारतीय संविधान या किसी भी भारतीय कानून में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं है फिर भी लक्षदीप के 96% मुसलमान अल्पसंख्यक और 2% हिंदू बहुसंख्यक कहलाते हैंI
भारत को छोड़ दुनिया के किसी भी सेक्युलर देश में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक - बहुसंख्यक वर्गीकरण नहीं किया जाता है और दुनिया के सभी देशों में 5% से कम जनसँख्या वाले समुदाय को ही अल्पसंख्यक माना जाता हैंI धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक - बहुसंख्यक का विभाजन समाप्त करने के लिए संविधान के आर्टिकल 25-30 में संशोधन करना जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
7. गांधीजी का सपना था शराब-मुक्त और नशा-मुक्त भारत I संविधान का आर्टिकल 47 भी यही कहता है अर्थात संविधान निर्माता भी शराब-मुक्त और नशा-मुक्त भारत चाहते थेI शराब और नशे के कारण अपराध और रोड एक्सीडेंट बढ़ रहा है, बीमारी और बेरोजगारी बढ़ रही है, लाखों परिवार बर्बाद हो चुके हैं तथा महिलाओं और बच्चों की जिंदगी नर्क बन गयी है,
इसलिए भारत को शराब-मुक्त और नशा-मुक्त देश घोषित करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
8. बहुमत के अभाव में जस्टिस वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को अटल जी लागू नहीं कर पाये और कांग्रेस ने मनरेगा जैसे चुनिंदा लोकलुभावन सुझावों को ही लागू कियाI
दो साल तक विस्तृत विचार-विमर्श के बाद आयोग ने 248 सुझाव दिया था लेकिन इन पर संसद में चर्चा ही नहीं हुयीI आयोग के 24वें सुझाव के अनुसार जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
9. संविधान के आर्टिकल 312 के अनुसार जजों के चयन के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)की तर्ज पर भारतीय न्यायिक सेवा (IJS) शुरू करना चाहिएI सुप्रीम कोर्ट ने स्पस्ट कहा है कि विशिष्ट सेवाओं में आरक्षण नहीं होना चाहिए और केवल योग्यता के आधार पर ही चयन होना चाहिए I जज भी विशिष्ट सेवा में ही आते हैं और यदि जज अयोग्य होगा तो लोगों के साथ न्याय नहीं कर पायेगाI
वर्तमान समय में निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए राज्य स्तर पर परीक्षा का आयोजन होता है जिससे प्रत्येक राज्य में जजों की क्षमता और गुणवत्ता अलग-अलगहोती है और न्यायिक फैसले में अत्यधिक अंतर होता है इसलिए IJS शुरू करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
10. आर्टिकल 343 के अनुसार हिंदी हमारी राजभाषा है अर्थात लोकसेवकों को हिंदी का ज्ञान होना जरुरी है इसलिए नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में हिंदी का एक प्रश्नपत्र अनिवार्य होना चाहियेI 90% भारतीय हिंदी समझते हैं इसलिए हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करना चाहिए और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
11. संविधान के आर्टिकल 348 के अनुसार जबतक संसद एक कानून नहीं बनायेगी तबतक सुप्रीम कोर्ट का सभी कार्य अंग्रेजी में होगा I लगभग 90% भारतीय अपने दैनिक जीवन में हिंदी का उपयोग करते हैं और देश को आजाद हुए 70 साल बीत गया है
लेकिन एक कानून बनाकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य नहीं किया गया जबकि यह कार्य भी संसद को ही करना है I
12. संविधान के आर्टिकल 351 के अनुसार हिंदी-संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है इसलिए शिक्षा अधिकार कानून में संशोधन कर 6-14 साल के सभी बच्चों के लिए हिंदी-संस्कृत विषय का पठन-पाठन अनिवार्य करना चाहिए I
देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने तथा भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए हिंदी-संस्कृत भाषा का पठन-पाठन सभी बच्चों के लिए बहुत जरुरी है लेकिन शिक्षा अधिकार कानून में आजतक संशोधन नहीं किया गया जबकि यह कार्य भी संसद को ही करना है I
13. अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गयी भारतीय दंड संहिता, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और कई अन्य कानून आज भी लागू हैं इसीलिए लोगों को बहुत देर से न्याय मिल रहा हैI
25 साल से अधिक पुराने सभी कानूनों की समीक्षा तथा अपराधियों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेनमैपिंग टेस्ट अनिवार्य करने के लिए एक कानून की अत्यधिक जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
14. घुसपैठ हमारे देश की एक प्रमुख समस्या हैI भारत में रहने वाले चार करोड़ बंगलादेशी और एक करोड़ रोहिंग्या घुसपैठिये बहुत तेजी से जनसँख्या विस्फोट कर रहे हैं इसलिए पूरे देश में इनकी पहचान करना तथा स्वदेश भेजने तक इन्हें जेल में रखना बहुत जरुरी हैI
घुसपैठियों और उनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त करने तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए तत्काल एक कठोर और प्रभावी कानून की जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
15. अलगाववाद और कट्टरवाद की फंडिंग हवाला के जरिये कैश में होती हैं इसलिए इसे जड़ से समाप्त करने के लिए 100 रुपये से बड़े नोट तत्काल बंद करना चाहिए और 10 हजार रुपये से महँगी वस्तुओं के कैश लेन-देन पर प्रतिबंध लगाना चाहिएI
अलगाववादियों, चरमपंथियों और उनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त करने तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक कठोर और प्रभावी कानून की तत्काल आवश्यकता है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
16. घूसखोरी, कमीशनखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी और कालाबाजारी को समाप्त करने के लिए एक लाख रूपये से महंगी वस्तुओं और संपत्तियों को आधार से लिंक करना चाहिए तथा बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति के मालिकों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए तत्काल एक कठोर और प्रभावी कानून बनाना जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
17. अंधविश्वास, कालाजादू और चमत्कार के सहारे सनातन धर्म को अलग-2 पंथों में तोड़ा जा रहा है और धर्म-परिवर्तन भी किया जा रहा हैI धर्मांतरणद्वारा विदेशी शक्तियां हिंदुओं को अल्पसंख्यक बना रही हैंI
लक्षदीप-मिजोरम में हिंदू 2%, नागालैंड में 8%, मेघालय में 11%, कश्मीर में 28%, अरुणाचल में 29% और मणिपुर में 30% बचे हैं इसलिए अंधविश्वास, कालाजादू और पाखंड फ़ैलाने वालों तथा धर्मांतरण कराने वालों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक कठोर केंद्रीय कानून की जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
18. जब तक हवाला कारोबारियों, नशे के तस्करों तथा मानव तस्करों और इनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त कर आजीवन कारावास नहीं दिया जायेगा तब तक इन समस्याओं पर भी नियंत्रण असंभव है
इसलिए इन कानूनों में तत्काल संशोधन की जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
19. चुनाव सुधार के लिए वेंकटचलैया आयोग, विधि आयोग और चुनाव आयोग के सुझावों को लागू करना चाहिए I सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना तथा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण करना भी बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
20. पुलिस सुधार पर सुप्रीम कोर्ट का 2006 का ऐतिहासिक फैसला आजतक लागू नहीं किया गया I जबतक अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाया गया पुलिस एक्ट समाप्त नहीं किया जाएगा और सोराबजी समिति द्वारा 2006 में बनाया गया
मॉडल पुलिस एक्ट लागू नहीं किया जाएगा तब तक पुलिस प्रभावी और स्वतंत्र रूप से अपना कार्य नहीं कर पायेगी और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
21. मौलिक कर्तव्य के प्रचार-प्रसार के लिए वेंकटचलैया आयोग और जस्टिस वर्मा समिति के सुझावों को आजतक लागू नहीं किया गया जबकि देश की एकता-अखंडता और आपसी भाईचारा मजबूत करने के लिए सभी नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्य का ज्ञान होना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
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जनसँख्या धर्मांतरण और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, चुनाव सुधार पुलिस सुधार और न्यायिक सुधार तथा भारतीय संविधान और वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को शत-प्रतिशत लागू किये बिना रामराज्य अर्थात स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, साक्षर भारत, सबल भारत, समृद्ध भारत, सुरक्षित भारत, समावेशी भारत, स्वावलंबी भारत, स्वाभिमानी भारत, संवेदनशील भारत तथा अलगाववाद और अपराध-मुक्त भारत का सपना साकार नहीं हो सकता है और इन विषयों पर कानून बनाना संसद के ही अधिकार क्षेत्र में आता है I
विकास जरूरी है और विकास खूब किया भी गया लेकिन राष्ट्रवाद भी बहुत जरूरी है, इसलिए माननीय सांसदों को राष्ट्रवाद से संबंधित उपरोक्त विषयों पर संसद में विस्तृत चर्चा करना चाहिएI
याद रखें - महात्मा गांधी, लोहिया, दीनदयाल, पटेल, आंबेडकर और श्यामाप्रसाद जी के सपनों को साकार किये बिना भारत माता की जय नहीं हो सकती है
: अश्वनी उपाध्याय, सुप्रीमकोर्ट अधिवक्ता
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न्यायालय के इस रुख को देखकर आम जनमानस सरकार से अध्यादेश लाने के लिए कह रहा है। पर अदालत में उसे भी चुनौती दी जा सकती है। लेकिन जहां रामलला विराजमान हैं वहां मंदिर ही था, इसके अकाट्य साक्ष्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई के दौरान मिले। इसलिए सिर्फ गुम्बद के नीचे ही नहीं, वहां की पूरी भूमि आराध्य और पूज्य है। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा खारिज किया जाता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा भी खारिज किया जाता है। अब जीता कौन? विजयी हुए सिर्फ रामलला विराजमान। मुकदमे के पक्षकार देवकी नंदन अग्रवाल, जो ‘नेक्स्ट फ्रेंड आॅफ रामलला’ के तौर पर पक्षकार थे। उनका ही पक्ष विजयी हुआ। लेकिन मुकदमे का फैसला करते समय पंचायत बैठा दी गई। इसलिए सभी पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय गए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह तो भूमि विवाद का मुकदमा था, इसमें बंटवारा क्यों किया गया।
सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई पर उस सुनवाई को लगातार टलवाने का प्रयास हुआ। पहले यह कहा गया कि 7 जजों की बेंच में सुनवाई की जानी चाहिए। फिर यह हुआ कि यह 14 हजार पेज का फैसला है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद करने में बहुत समय लगेगा। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मात्र 4 महीने में 14,000 पन्नों का अनुवाद करा दिया। और फिर 29 अक्तूबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह मुकदमा उसकी प्राथमिकता में नहीं है।
समस्या यह है कि हमारे पास साक्ष्य हैं। हम लगातार कह रहे हैं कि वहां पर मंदिर होने के प्रमाण मिल चुके हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में यह साबित भी हो चुका है। फिर किस बात की देरी है? हम लोग यही प्रार्थना कर रहे हैं कि केवल आप सुनवाई कर लीजिये मगर किसी ना किसी बहाने सुनवाई टलवा दी जा रही है। एक बार जब सुनवाई शुरू हुई तो अदालत में यह कहा गया कि इस मुकदमे की सुनवाई को लोकसभा चुनाव 2019 तक टाल दी जाए। आखिर दूसरे पक्षकार सुनवाई से भाग क्यों रहे हैं? हम सभी को मालूम है कि वे सुनवाई से क्यों भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें फैसले में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि जनवरी के महीने से सुनवाई शुरू हो जायेगी।
(मोनिका अरोड़ा उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठतम अधिवक्ता)
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आतंकियों के आका “प्रशांत भूषण” पर भड़के वकील L.N. पाराशर
राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA छापेमारी केस में पकडे गए ISIS मोड्यूल के संदिग्ध आतंकियों का सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने समर्थन किया है, जबकि NIA पर सवाल खड़ा कर दिया है.
क्या था प्रशांत भूषण का बयान
वकील प्रशांत भूषण ने NIA पर आरोप लगाते हुए कहा – लगता है फिर से एनआईए अपने पुराने खेल खेल रही है। बेकसूर मुसलमानों को पकड़कर आईएस आईएस का एजेंट बताकर बड़ी आतंकी साजिश कह रही है।गांव के लोगों का आरोप है कि इनके सब आईडेंटिटी कार्ड जला दिए। ट्रैक्टर के पाइप को रॉकेट लॉन्चर और लोहे के चूरे को बारूद बना दिया.
वकील प्रशांत भूषण के इस शर्मनाक कृत्य को देखकर दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एल. एन. पाराशर ने भूषण पर बोलते हुए कहा – मुझे ऐसा लगता है कि कुछ लोग पैसे के लिए देश बेंच सकते हैं। आतंकियों का साथ दे सकते हैं। उनकी वकालत कर सकते हैं। लेकिन मुझे कोई एक करोड़ या उससे ज्यादा भी दे तो भी मैं कभी किसी आतंकी का साथ नहीं दे सकता क्यू कि मैं अपने देश की सेना और पुलिस से प्यार करता हूँ. मुझे वकालत करते हुए तीन दशक से ज्यादा हो गए। कई केस ऐसे भी आये जिनमे मैं करोड़ों कमा सकता था लेकिन मैंने ऐसे केस नहीं लिए क्यू कि ऐसे केस देश विरोधी लोगों के थे। पाराशर ने कहा कि देश के तमाम युवा देश को आजाद करवाने के लिए फांसी पर चढ़ गए। और आज कुछ पैसे कमाने के लिए जेहादियों का साथ दे रहे हैं.
दिल्ली और यूपी की 17 जगहों पर NIA ने छापे मारकर 10 संदिग्ध आतंकियों को अरेस्ट कर लिए. NIA ने 25 किलो बारूद, 112 अलार्म क्लॉक, 12 पिस्टल, रॉकेट लॉंचर, बुलेट प्रूफ़ जैकेट, 90 मोबाइल फ़ोन, फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों से लिए 134 सिम कॉर्ड, 7.5 लाख कैश बरामद किए गए. लेकिन देश के तथाकथित लोग इसे मानने से इंकार कर रहे हैं, NIA ने सभी संदिग्ध आतंकियों को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, इस दौरान पटियाला हाउस कोर्ट ने आरोपियों को 12 दिन के लिए एनआईए के रिमांड में सौंप दिया है.
जैसलमेर में विदेशी पैसों के दम पर और खासकर सालेह मोहम्मद के दम पर मुसलमानों ने ऐसे तमाम आलीशान हवेली टाइप होटल्स बना दी है और मजे की बात यह विभाग के आदेश के अनुसार जैसलमेर के किले के 100 मीटर के अंदर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता फिर भी मुसलमानों ने यहां पर ऐसे तमाम आलीशान होटल बना दिए हैं और अभी भी होटल का निर्माण करा भी रहे हैं क्योंकि उनके पास सालेह मोहम्मद जैसा व्यक्ति है जो अपने पैसे आपने गुंडागर्दी या अपने जनसमर्थन के दम पर कुछ भी करवा सकता है
जैसे गुजरात महाराष्ट्र राजस्थान में चेलिया मुसलमानों ने हाईवे पर होटल का पूरा बिजनेस अपनी एकता के दम पर हिंदुओं से छीन लिया और आज गुजरात महाराष्ट्र में हाईवे पर 99.99% होटल्स चेलिया मुसलमानों की है उसी तरह अब यह मुसलमान पश्चिमी राजस्थान के होटल बिजनेस भी हिंदुओं से छीनते जा रहे हैं ।। क्योंकि हिंदू जातिवाद के जहर से बिखरता जा रहा है जिसका फायदा मुसलमान उठा रहे हैं
सालेह मोहम्मद का पिता गाजी फकीर एक धर्मगुरु है और कांग्रेस से विधायक था .. वह जाना माना तस्कर था और उसकी हिस्ट्री शीट खुली हुई थी और एक पुलिस अधिकारी पंकज चौधरी ने जब उस पर शिकंजा कसना शुरू किया तब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पंकज चौधरी का ट्रांसफर कर दिया .. और अब अशोक गहलोत दुबारा मुख्यमंत्री बने हैं और गाजी फकीर का बेटा सालेह मोहम्मद केबिनेट मंत्री बनाया गया है
और लोग कहते हैं कि उसके पास एक लाख वोट है और उस वोट बैंक की ताकत से वह पश्चिमी राजस्थान में अपनी गुंडागर्दी और अपनी स्मगलिंग की दुकान चलाता है और अब सबसे दुखद बात यह है कि पोखरण सीट पर साले मोहम्मद के सामने हिंदू धर्म के महान धर्म गुरु प्रताप पुरी स्वामी जी लड़े थे वही प्रताप पुरी स्वामी जी जो सीमा से सटे इलाकों में हिंदुओं के लिए काम कर रहे हैं लेकिन वह मात्र 800 वोट से हार गए और साले मोहम्मद को कांग्रेस सरकार ने राजस्थान में कैबिनेट मंत्री बना दिया अब जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर और सीमा पर धर्म परिवर्तन खूब बढ़ेगा स्मगलिंग खूब होगी मुसलमानों की गुंडागर्दी खूब होगी
और एक और जरूरी बात मैं आपको बता दूं अगर आप कभी भी जैसलमेर चाहिए तो होटल करने के लिए लपकाओं के चक्कर में मत पड़िए क्योंकि यह सभी मुसलमान टूरिस्टो को फंसाने के लिए लपका रखते हैं और उन्हें झूठ बोल कर अपने होटल में लाते हैं फिर डेजर्ट सफारी या कैमल सफारी के नाम पर टूरिस्टो को जमकर लूटते हैं और यदि कोई टूरिस्ट पुलिस में शिकायत करता है तो भी कुछ नहीं होता आपको वहां हर मुस्लिम होटल के काउंटर पर चक चक और लड़ाई सुनाई देगी क्योंकि ये टूरिस्टों को 5000 बोल कर लाते हैं और उनसे ₹50000 वसूलते है .. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इनके अंदर जमीर या मानवता या इंसानियत नहीं होती
इसलिए आप जैसलमेर जाइए तो किसी धर्म विशेष यानी शांति दूत के होटल में मत रुकिए-jitendra pratap singh
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