दिवाली पर पटाखे मत चलाओ वायु प्रदुषण होता है, होली मत खेलो पानी का दुर्वय्य होता है, करवाचौथ पर केवल महिलाये ही क्यूँ व्रत रखती है पुरुष क्यूँ नहीं, ये तो महिला विरोधी त्यौहार है। कुम्भ मेले के आयोजन की उपयोगिता और प्रासंगिकता पर भी मुख्या धारा की मीडिया एक नकारात्मक परिचर्चा कर चूका है।
ये सारी बाते हर हन्दू त्योहारों पर इस देश की मीडिया में सुनने को मिलती रहती है। इस देश की तथाकथित स्वतंत्र मीडिया में इतनी हिम्मत नहीं कि ईद जैसे त्योहारों पर निरीह पशुओ की हत्या पर कोई परिचर्चा करवाए। यदि मुस्लिम या ईसाई त्योहारों पर कोई परिचर्चा करवाएगी तो उस पर सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगा दिया जायेगा और फिर उनकी मालकिन सोनिया गन्दी के नाराज होने का भी तो खतरा है। यदि ये सब कारण ना भी हो तो फिर फ़तवो का खतरा तो है ही। मीडिया को भी ये बात अछि तरह से पता है कि हिन्दू समाज के बारे में चाहे कुछ भी बोलो अच्छा या बुरा हिन्दू समाज कभी भी गंभीरता से नहीं लेता। क्यूंकि पूरा हिन्दू समाज सहिष्णु और क्षमाशील है। वो आपकी हर अच्छी बुरी बात को अनदेखा कर सकता है। इसीलिए एक षड़यंत्र सा प्रतीत होता है कि हिन्दू समाज को किसी ना किसी प्रकार से हीन भावना से ग्रस्त रखा जाये ताकि समय आने पर देश से हिन्दुओ को ही ख़तम किया जा सके। विदेशी पैसो से पोषित देश की मीडिया इस काम को बहुत ही भली भाँती कर भी रही है। इस उम्मीद में कि कभी ना कभी तो धरती से हिन्दू धर्म का नाश होगा। और इस काम में देश का एक बड़ा "बुद्धिजीवी वर्ग" जिसमे ज्यादातर वामपंथी मानसिकता के लोग ही होते है, इस मीडिया की सहायता कर भी रहा है।
धिक्कार है भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता को, धिक्कार है उसकी धर्म-निरपेक्षता को जिसे सिर्फ हिन्दू समाज और हिन्दू संस्कारों में ही कमियाँ दिखती है।
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