Saturday 17 June 2017

रोहिंग्या मुसलमान

ये सोचना तो बनता है कि दंगों के जन्मदाता और अपने इस प्रिय काम में महारत रखने वाले मुसलमानों को बर्मा के बौद्धों ने ऐसा क्या और कैसे जवाब दिया कि मुस्लिमों के पाँव ही इस देश से उखड गए और सबको भागना पड़ा जबकि इनको पाकिस्तान और बंगलदेश के तरफ से हर तरह के खतरनाक हथियार भी मिले हुए थे और इनको पाकिस्तान में ले जाकर युद्ध की ट्रेनिंग तक दे दी गयी थी ......
25 मई 2012 को बर्मा में शांतिप्रिय कौम ने आदत के मुताबिक राखिने बौद्ध स्त्री मा थिडा हत्वे का बलात्कार किया ... बौद्धों ने इस हत्या एवं बलात्कार का बदला लिया और चुप नहीं बैठे.... वो पुलिस के इंतज़ार में नहीं रहे और ना किसी नेता के आगे आने का .......उन्होंने 3 जून को एक बस से उतार कर 10 रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या कर दी
इसके बाद जबर्दस्त दंगा भड़का जिसमें 80 मौतें हुई, करीब 90 हजार बेघर हुए| इनमें अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान थे क्योंकि इस दंगे में बौद्धों का पलड़ा भारी था| और इस एक बौद्ध लड़की का बलात्कार इतना महंगा पड़ा.... कि थोड़े ही दिन बाद अक्टूबर में फिर दंगा भड़का जिसमें 100 के लगभग लोग मरे, 4600 घर जलाए गए और करीब 22हजार लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा|
वैसे मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सच तो ये था कि जून से अक्टूबर तक राखिने प्रांत में हुए दंगे में करीब 100000 (एक लाख ) रोहिंग्या मुसलमान बेघर हो गए और 40 की मौत हुई| इनके सारे पाकिस्तान और बांग्लादेश से आये हथियार धरे के धरे रह गए ....
इसके बाद जून से अक्टूबर तक फिर तनाव रहा और 2013 के मार्च महीने में फिर दंगे भड़क उठे| हिंसा की शुरुआत 20 मार्च को मिक्तिला के एक बंगाली मुस्लिम ज्वेलर की दुकान से हुई| दुकान में सोने की एक हेयरपिन को लेकर दुकान मालिक तथा ग्राहक बौद्ध दंपति में झगड़ा हो गया और दुकान मालिक उसकी पत्नी तथा उसके दो नौकरों ने मिलकर बौद्ध पति और पत्नी की पिटाई कर दी| इसके बाद भी मुस्लिम चुप नहीं रहे और छः मुस्लिम युवकों ने 20 मार्च की शाम साइकिल पर जाते एक बौद्ध भिक्षु को मस्जिद में खींच लिया और उसे पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया| इसके बाद तो दुनिया में सिर्फ हिन्दू जैसा ही धर्म है जो अपनो का खून देख कर भी चुप रह सकता है ... पर बौद्धों ने मिल कर संगठित हो कर योजना बनायी ... बदला लेने की योजना ... 25 मार्च को मिक्तिला में मुस्लिम घरों तथा मस्जिदों को निशाना बनाया गया| यह दंगा पास के कई कस्बों तक फैल गया| इसके बाद 20 अप्रैल को फिर दंगा भड़का, जिसमें करीब 400 सशस्त्र बौद्धों ने ओक्कबामा में करीब 100 मुस्लिम घरों तथा दुकानों में आग लगा दी, जिसमें २ लोग मारे गए और करीब एक दर्जन घायल हुए|
29 मई को चीन से लगे शान स्टेट के सीमावर्ती कस्बे लाशिनों में दंगा भड़क उठा| मीडिया खबरों के अनुसार यहॉं भी एक युवा बौद्ध महिला को पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिए जाने के बाद लाठी डंडों तथा पत्थरों से लैस बौद्धों ने मुस्लिमों पर हल्ला बोल दिया| रोचक यह है कि इस दंगे में करीब 400 मुस्लिमों ने एक बौद्ध मठ में छिपकर अपनी जान बचाई, जबकि हमलावरों में ज्यादातर बौद्ध ही थे|
म्यॉंमार के बौद्धों के इस नये तेवर से पूरी दुनिया में खलबली मच गई है| म्यॉंमार के अधिकांश बौद्ध आत्मरक्षा के लिए अब जिहादियों का तौर-तरीका अपनाने में भी कोई संकोच नहीं कर रहे हैं| अगर कोई हथियार नहीं भी उठा रहा तो भी कम से कम वो विराथु को समर्थन तो दे ही रहा है
विराथु का स्वयं भी कहना है कि वह न तो घृणा फैलाने में विश्‍वास रखते हैं और न हिंसा के समर्थक हैं, लेकिन हम कब तक मौन रहकर सारी हिंसा और अत्याचार को झेलते रह सकते हैं? इसलिए वह अब पूरे देश में घूम घूम कर भिक्षुओं तथा सामान्यजनों को उपदेश दे रहे हैं कि यदि हम आज कमजोर पड़े, तो यह देश मुस्लिम हो जाएगा
अरून शुक्ला

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