Friday, 28 June 2013

ये कैसी सेकुलर सरकार?
हिन्दू मन्दिरों का पैसा मदरसों,हज, और चर्च में हो रहा खर्च।
सुप्रीम कोर्ट ने किया भण्डाफोड़
यदि आप सोचते हैं कि मन्दिरों में दान किया हुआ, भगवान को अर्पित किया हुआ पैसा, सनातन धर्म की बेहतरी के लिए, हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए काम आ रहा है तो आप निश्चित ही बड़े भोले हैं। मन्दिरों की सम्पत्ति एवं चढ़ावे का क्या और कैसा उपयोग किया जाता है पहले इसका एक उदाहरण देख लीजिये, फ़िर आगे बढ़ेंगे-
कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से 2002 तक पाँच साल में कर्नाटक सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-
1) मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)
2) मदरसा उत्थान एवं हज – 180 करोड़ (यानी 46%)
3) चर्च भूमि को अनुदान – 44 करोड़ (यानी 11.2%)
4) अन्य – 83 करोड़ (यानी 21.2%)
कुल 391 करोड़
जैसा कि इस हिसाब-किताब में दर्शाया गया है उसको देखते हुए “सेकुलरों” की नीयत बिलकुल साफ़ हो जाती है कि मन्दिर की आय से प्राप्त धन का (46+11) 57% हिस्सा हज एवं चर्च को अनुदान दिया जाता है (ताकि वे हमारे ही पैसों से जेहाद, धार्मिक सफ़ाए एवं धर्मान्तरण कर सकें)। जबकि मन्दिर खर्च के नाम पर जो 21% खर्च हो रहा है, वह ट्रस्ट में कुंडली जमाए बैठे नेताओं व अधिकारियों की लग्जरी कारों, मन्दिर दफ़्तरों में AC लगवाने तथा उनके रिश्तेदारों की खातिरदारी के भेंट चढ़ाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यह आँकड़े सिर्फ़ एक राज्य (कर्नाटक) के हैं, जहाँ 1997 से 2002 तक कांग्रेस सरकार ही थी…
सुप्रीम कोर्ट ने इस खजाने की रक्षा एवं इसके उपयोग के बारे में सुझाव माँगे हैं। सेकुलरों एवं वामपंथियों के बेहूदा सुझाव एवं उसे “काला धन” बताकर सरकारी जमाखाने में देने सम्बन्धी सुझाव तो आ ही चुके हैं, ऐसे कई सुझाव माननीय सुप्रीम कोर्ट को दिये जा सकते हैं, जिससे हिन्दुओं द्वारा संचित धन का उपयोग हिन्दुओं के लिए ही हो, सनातन धर्म की उन्नति के लिए ही हो, न कि कोई सेकुलर या नास्तिक इसमें “मुँह मारने” चला आए।
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कुछ सार्वजनिक सत्य -
1. मोदी के एक भाई तृतीय श्रेणी कर्मचारी हैं और दूसरे राशन की दुकान चलाते है जो उन्हें विरासत में मिली है.
2. मोदी अपनी माँ को अपने राजकीय आवास में नहीं रखते.

अब एक अवलोकन - यदि वह वृद्धा मोदी की माँ हैं तो धन्य हैं वह और धन्य है उनका सपूत. जिस देश में एक सांसद सामान्य नागरिक की हैसियत से जेया कर जवानो के टेंट खाली करवा कर आराम कर सकता है वहां एक मुख्यमंत्री की माँ एक साधारण तीर्थयात्री की तरह यात्रा कर रही थी और मजे की बात यह कि उत्तराखंड सरकार को इसकी भनक तक नहीं थी. जैसा कि प्रकाशित समाचार कह रहा है उन्हें उनकी माता देहरादून में ही मिल गई तीं अगर उसके बाद भी मोदी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे रहे तो उनका उद्देश्य बहुत स्पष्ट है. आखिरी बात हर बेटा अपनी माँ के बारे में चिंता करता है यह कोई अनोखी घटना नहीं है.
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