Wednesday, 12 June 2013

रोबर्ट वाड्रा पर आरोप को 'गोपनीय' सूचना मानता है पीएमओ!

हद है : डीएलएफ मामले में रोबर्ट वाड्रा पर आरोप को 'गोपनीय' सूचना मानता है पीएमओ!

डीएलएफ से जुड़े रोबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों के बारे में कोई भी सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं देना चाहता है. वह इन्हें 'गोपनीय' सूचना मानता है और इन्हें आरटीआई एक्ट के तहत दिये जाने से छूट चाहता है. लखनऊ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में अपने द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका के सम्बन्ध में रूटीन सूचनाएँ मांगी थीं कि याचिका की प्रति पीएमओ में कब प्राप्त हुई और उस पर क्या कार्यवाही की गयी. साथ ही उन्होंने सम्बंधित फ़ाइल के नोटशीट की प्रति भी मांगी थी.

एमओ ने पहले अपने पत्र दिनांक 01 मार्च 2013 द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया था कि प्रकरण अभी न्यायालय में विचाराधीन है. कोर्ट द्वारा 07 मार्च को इस याचिका में निर्णय होने के बाद जव ठाकुर ने दुबारा यह सूचना मांगी तो अब पीएमओ ने अपने पत्र दिनांक 06 जून द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया है कि यह “गोपनीय” सूचना है. उन्होंने इसके लिए एक दूसरे सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंस्टीट्युट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया बनाम शौंक एच सत्या में दिये निर्णय का भी सहारा लिया है जवकि वह प्रकरण “वैश्वासिक नातेदारी” से सम्बंधित था और यह मामला कथित भ्रष्टाचार से सम्बंधित है.
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इंगलैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान एक शाम महाराजा जयसिंह सादे कपड़ों में बॉन्ड स्ट्रीट में घूमने के लिए निकले और वहां उन्होने रोल्स रॉयस कम्पनी का भव्य शो रूम देखा और मोटर कार का भाव जानने के लिए अंदर चले गए। शॉ रूम के अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें “कंगाल भारत” का सामान्य नागरिक समझ कर वापस भेज दिया। शोरूम के सेल्समैन ने भी उन्हें बहुत अपमानित किया, बस उन्हें “गेट आऊट” कहने के अलावा अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अपमानित महाराजा जयसिंह वापस होटल पर आए और रोल्स रॉयस के उसी शोरूम पर फोन लगवाया और संदेशा कहलवाया कि अलवर के महाराजा कुछ मोटर कार खरीदने चाहते हैं।

कुछ देर बाद जब महाराजा रजवाड़ी पोशाक में और अपने पूरे दबदबे के साथ शोरूम पर पहुंचे तब तक शोरूम में उनके स्वागत में “रेड कार्पेट” बिछ चुका था। वही अंग्रेज मैनेजर और सेल्समेन्स उनके सामने नतमस्तक खड़े थे। महाराजा ने उस समय शोरूम में पड़ी सभी छ: कारों को खरीदकर, कारों की कीमत के साथ उन्हें भारत पहुँचाने के खर्च का भुगतान कर दिया।
भारत पहुँच कर महाराजा जयसिंह ने सभी छ: कारों को अलवर नगरपालिका को दे दी और आदेश दिया कि हर कार का उपयोग (उस समय के दौरान 8320 वर्ग कि.मी) अलवर राज्य में कचरा उठाने के लिए किया जाए।

विश्‍व की अव्वल नंबर मानी जाने वाली सुपर क्लास रोल्स रॉयस कार नगरपालिका के लिए कचरागाड़ी के रूप में उपयोग लिए जाने के समाचार पूरी दुनिया में फैल गया और रोल्स रॉयस की इज्जत तार-तार हुई। युरोप-अमरीका में कोई अमीर व्यक्‍ति अगर ये कहता “मेरे पास रोल्स रॉयस कार” है तो सामने वाला पूछता “कौनसी?” वही जो भारत में कचरा उठाने के काम आती है! वही?

बदनामी के कारण और कारों की बिक्री में एकदम कमी आने से रोल्स रॉयस कम्पनी के मालिकों को बहुत नुकसान होने लगा। महाराज जयसिंह को उन्होने क्षमा मांगते हुए टेलिग्राम भेजे और अनुरोध किया कि रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बन्द करवावें। माफी पत्र लिखने के साथ ही छ: और मोटर कार बिना मूल्य देने के लिए भी तैयार हो गए।

महाराजा जयसिंह जी को जब पक्‍का विश्‍वास हो गया कि अंग्रेजों को वाजिब बोधपाठ मिल गया है तो महाराजा ने उन कारों से कचरा उठवाना बन्द करवाया।
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