हद है : डीएलएफ मामले में रोबर्ट वाड्रा पर आरोप को 'गोपनीय' सूचना मानता है पीएमओ!
डीएलएफ से जुड़े रोबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों के बारे में कोई भी सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं देना चाहता है. वह इन्हें 'गोपनीय' सूचना मानता है और इन्हें आरटीआई एक्ट के तहत दिये जाने से छूट चाहता है. लखनऊ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में अपने द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका के सम्बन्ध में रूटीन सूचनाएँ मांगी थीं कि याचिका की प्रति पीएमओ में कब प्राप्त हुई और उस पर क्या कार्यवाही की गयी. साथ ही उन्होंने सम्बंधित फ़ाइल के नोटशीट की प्रति भी मांगी थी.
एमओ ने पहले अपने पत्र दिनांक 01 मार्च 2013 द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया था कि प्रकरण अभी न्यायालय में विचाराधीन है. कोर्ट द्वारा 07 मार्च को इस याचिका में निर्णय होने के बाद जव ठाकुर ने दुबारा यह सूचना मांगी तो अब पीएमओ ने अपने पत्र दिनांक 06 जून द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया है कि यह “गोपनीय” सूचना है. उन्होंने इसके लिए एक दूसरे सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंस्टीट्युट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया बनाम शौंक एच सत्या में दिये निर्णय का भी सहारा लिया है जवकि वह प्रकरण “वैश्वासिक नातेदारी” से सम्बंधित था और यह मामला कथित भ्रष्टाचार से सम्बंधित है.
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डीएलएफ से जुड़े रोबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों के बारे में कोई भी सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं देना चाहता है. वह इन्हें 'गोपनीय' सूचना मानता है और इन्हें आरटीआई एक्ट के तहत दिये जाने से छूट चाहता है. लखनऊ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में अपने द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका के सम्बन्ध में रूटीन सूचनाएँ मांगी थीं कि याचिका की प्रति पीएमओ में कब प्राप्त हुई और उस पर क्या कार्यवाही की गयी. साथ ही उन्होंने सम्बंधित फ़ाइल के नोटशीट की प्रति भी मांगी थी.
एमओ ने पहले अपने पत्र दिनांक 01 मार्च 2013 द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया था कि प्रकरण अभी न्यायालय में विचाराधीन है. कोर्ट द्वारा 07 मार्च को इस याचिका में निर्णय होने के बाद जव ठाकुर ने दुबारा यह सूचना मांगी तो अब पीएमओ ने अपने पत्र दिनांक 06 जून द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया है कि यह “गोपनीय” सूचना है. उन्होंने इसके लिए एक दूसरे सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंस्टीट्युट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया बनाम शौंक एच सत्या में दिये निर्णय का भी सहारा लिया है जवकि वह प्रकरण “वैश्वासिक नातेदारी” से सम्बंधित था और यह मामला कथित भ्रष्टाचार से सम्बंधित है.
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