गुजरात के एक न्यायालय मेँ एक मुकदमा चल रहा था। मुकदमा गम्भीर था। वकील साहब अपने पक्षकार की ओर से बङी विद्धता से बहस कर रहे थे। इतने मेँ एक कर्मचारी ने वकील साहब को आया हुआ एक पत्र दिया। वकील साहब ने वो पत्र पढकर अपनी जेब मेँ रख लिया। बहस पुनः जारी हो गई। कई घंटे की बहस के बाद न्यायालय बंद हो गया। पक्षकार अपने वकील की विद्धता और परिश्रम से बहुत प्रभावित था। पक्षकार ने वकील से पूछा- वह पत्र कहां से आया था और उसमेँ क्या लिखा था ?
वकील साहब ने उत्तर दिया- "पत्र मेँ यह सूचना थी कि मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई है।"
यह सुनकर पक्षकार को आश्चर्य हुआ। उसने कहा- इतने दुखद समाचार को पढकर भी आपने बहस बन्द क्योँ नहीँ की ?
तब वकील साहब ने कहा- भाई बहस के लिए मैँ आपसे फीस ले चुका था। अतः बहस के समय पर आपका अधिकार था। पत्नी की मौत का समाचार दुखद है, परन्तु बहस के दौरान के शोक बनाने के लिए मेरे पास वक्त ही कहाँ था ? अब बहस समाप्त हो चुकी है। अब मैँ पत्नी की मौत पर शोक मनाने और आँसू बहाने के लिए स्वतंत्र हूँ।
यह कर्त्तव्यपरायण वकील श्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे, जो बाद मेँ लौह पुरुष सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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मेरे पड़ोस वाले शर्मा जी कल अपनी बेटी के साथ विश्वविद्दालय जाने के लिए निकले, थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद एक रिक्शा वाला आया तो उन्होने रिक्शे वाले से कहा- मुझे विश्वविद्दालय जाना है, चलोगे?
रिक्शावाला- नही साब, मुझे रास्ता नही मालूम हैँ,
रिक्शावाला जाने को हुआ तभी शर्मा जी कुछ सोचकर बोले-सुनो "युनिवर्सिटी" चलोगे?
रिक्शावाला- हाँ हाँ क्यो नही आइए बैठिए 20 रु. लगेगा,
ये हाल है हमारे देश मेँ अपनी मातृभाषा का जहाँ रिक्शे वाले को भी युनिवर्सिटी तो पता है, लेकिन "विश्वविद्दालय"???
रास्ता नही मालूम......
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वकील साहब ने उत्तर दिया- "पत्र मेँ यह सूचना थी कि मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई है।"
यह सुनकर पक्षकार को आश्चर्य हुआ। उसने कहा- इतने दुखद समाचार को पढकर भी आपने बहस बन्द क्योँ नहीँ की ?
तब वकील साहब ने कहा- भाई बहस के लिए मैँ आपसे फीस ले चुका था। अतः बहस के समय पर आपका अधिकार था। पत्नी की मौत का समाचार दुखद है, परन्तु बहस के दौरान के शोक बनाने के लिए मेरे पास वक्त ही कहाँ था ? अब बहस समाप्त हो चुकी है। अब मैँ पत्नी की मौत पर शोक मनाने और आँसू बहाने के लिए स्वतंत्र हूँ।
यह कर्त्तव्यपरायण वकील श्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे, जो बाद मेँ लौह पुरुष सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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मेरे पड़ोस वाले शर्मा जी कल अपनी बेटी के साथ विश्वविद्दालय जाने के लिए निकले, थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद एक रिक्शा वाला आया तो उन्होने रिक्शे वाले से कहा- मुझे विश्वविद्दालय जाना है, चलोगे?
रिक्शावाला- नही साब, मुझे रास्ता नही मालूम हैँ,
रिक्शावाला जाने को हुआ तभी शर्मा जी कुछ सोचकर बोले-सुनो "युनिवर्सिटी" चलोगे?
रिक्शावाला- हाँ हाँ क्यो नही आइए बैठिए 20 रु. लगेगा,
ये हाल है हमारे देश मेँ अपनी मातृभाषा का जहाँ रिक्शे वाले को भी युनिवर्सिटी तो पता है, लेकिन "विश्वविद्दालय"???
रास्ता नही मालूम......
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