Saturday, 1 June 2013

गुजरात के एक न्यायालय मेँ एक मुकदमा चल रहा था। मुकदमा गम्भीर था। वकील साहब अपने पक्षकार की ओर से बङी विद्धता से बहस कर रहे थे। इतने मेँ एक कर्मचारी ने वकील साहब को आया हुआ एक पत्र दिया। वकील साहब ने वो पत्र पढकर अपनी जेब मेँ रख लिया। बहस पुनः जारी हो गई। कई घंटे की बहस के बाद न्यायालय बंद हो गया। पक्षकार अपने वकील की विद्धता और परिश्रम से बहुत प्रभावित था। पक्षकार ने वकील से पूछा- वह पत्र कहां से आया था और उसमेँ क्या लिखा था ?
वकील साहब ने उत्तर दिया- "पत्र मेँ यह सूचना थी कि मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई है।"
यह सुनकर पक्षकार को आश्चर्य हुआ। उसने कहा- इतने दुखद समाचार को पढकर भी आपने बहस बन्द क्योँ नहीँ की ?
तब वकील साहब ने कहा- भाई बहस के लिए मैँ आपसे फीस ले चुका था। अतः बहस के समय पर आपका अधिकार था। पत्नी की मौत का समाचार दुखद है, परन्तु बहस के दौरान के शोक बनाने के लिए मेरे पास वक्त ही कहाँ था ? अब बहस समाप्त हो चुकी है। अब मैँ पत्नी की मौत पर शोक मनाने और आँसू बहाने के लिए स्वतंत्र हूँ।

यह कर्त्तव्यपरायण वकील श्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे, जो बाद मेँ लौह पुरुष सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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मेरे पड़ोस वाले शर्मा जी कल अपनी बेटी के साथ विश्वविद्दालय जाने के लिए निकले, थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद एक रिक्शा वाला आया तो उन्होने रिक्शे वाले से कहा- मुझे विश्वविद्दालय जाना है, चलोगे?
रिक्शावाला- नही साब, मुझे रास्ता नही मालूम हैँ,

रिक्शावाला जाने को हुआ तभी शर्मा जी कुछ सोचकर बोले-सुनो "युनिवर्सिटी" चलोगे?
रिक्शावाला- हाँ हाँ क्यो नही आइए बैठिए 20 रु. लगेगा,

ये हाल है हमारे देश मेँ अपनी मातृभाषा का जहाँ रिक्शे वाले को भी युनिवर्सिटी तो पता है, लेकिन "विश्वविद्दालय"???
रास्ता नही मालूम......

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मित्रों, आपको याद होगा कि २०११ की जनगणना के समय फ़ार्म में कॉलम क्रमांक सात में "धर्म" वाला कॉलम भी था, जिस पर काफी बवाल हुआ था. भाजपा और अन्य पार्टियों ने धार्मिक आधार पर जनगणना की आलोचना भी की थी. अंत में सरकार ने उस जानकारी को "स्वैच्छिक" बना दिया.

हाल ही में जनगणना २०११ के आरंभिक आँकड़े गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने जारी किए हैं. इन जारी किए गए आंकड़ों में सरकार ने "धर्म" सम्बन्धी आँकड़े छिपा लिए हैं. उल्लेखनीय है कि 1981 से 1991 के बीच मुस्लिम जनसंख्या बढ़ोतरी का प्रतिशत ३० से बढकर ३६ हुआ था, जबकि हिन्दू जनसंख्या "ग्रोथ रेट" २३ से घटकर २० प्रतिशत हुआ था.

1909 में कर्नल यूएन मुखर्जी ने एक रिपोर्ट लिखी थी, जिसमें 1881, 1891 और 1901 के जनसँख्या आंकड़ों को लेकर हिंदुओं की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त की थी. जनसँख्या के इस गहन विश्लेषण की रिपोर्ट आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानंद को दिखाई गई, जिसके बाद उन्होंने "शुद्धि" और "संगठन" का कार्य आरम्भ किया. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अंग्रेजों ने जनगणना में "धर्म" का कॉलम ही हटवा दिया.

2011 की जनगणना में "धर्म" के आँकड़े शामिल हैं. भले ही यह फ़ार्म भरने वाले की मर्जी पर अर्थात "स्वैच्छिक" था, परन्तु फिर भी इन आंकड़ों से देश को यह पता चलेगा कि वास्तव में हिंदुओं की "ग्रोथ रेट" क्या है? मुसलमानों की ग्रोथ रेट तथा शिक्षा का स्तर एवं ईसाईयों की संख्या में पिछले दशक में कितनी वृद्धि हुई है?

ज़ाहिर है कि मामला टेढ़ा है और गंभीर भी. सरकार इन आंकड़ों को छिपाने की पूरी कोशिश करेगी, ताकि "हिन्दू नाम रखकर" समाज के बीच छिपे बैठे असली-नकली ईसाईयों की पोल न खुल जाए. कश्मीर, असम, पश्चिम बंगाल, केरल व उत्तरप्रदेश में तेजी से बढ़ रही मुस्लिम आबादी को लेकर "धर्म" सम्बन्धी इन आंकड़ों का जारी होना अब बहुत जरूरी हो गया है....

उम्मीद करता हूँ कि यह बात अधिकाधिक लोगों तक पहुँचेगी तथा शीर्ष नेताओं पर इस हेतु दबाव बनेगा... आम "हिन्दू" व्यक्ति को यह जानने का पूरा हक है, क्योंकि यह मामला उसकी अगली पीढ़ी को प्रभावित करने वाला है...

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