Monday, 23 September 2013

अद्भुत लाभ है पत्तल में भोजन करने के :--

अद्भुत लाभ है पत्तल में भोजन करने के :--
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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश मे 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है पर मुश्किल से पाँच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या मे करते है।

आम तौर पर केले की पत्तियो मे खाना परोसा जाता है। प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियो पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियो का यह प्रयोग होने लगा है।

* पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।

* केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।

* रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है। आम तौर पर लाल फूलो वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है। इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासिर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।

* जोडो के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।

* लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलो को उपयोगी माना जाता है।

इसके अन्य लाभ :--

1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है।

2. न पानी नष्ट होगा।

3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा।

4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे।

5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी।

6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी।

7. प्रदूषण भी घटेगा।

8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।

9. पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा।

10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा। जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है।

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.स्वर्णिम हिंद का स्वर्णिम स्वप्न
सनातन धर्म अनुसार स्त्री के ૧૬ श्रंगार और
उनके महत्तव : : :
૧) बिन्दी - सुहागिन स्त्रियां कुमकुमया सिन्दुर
से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है
और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक
माना जाता है ।
૨) -सिन्दुर - सिन्दुर को स्त्रियों का सुहाग
चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर
पति अपनी पत्नि की मांग में सिंन्दुर भर कर
जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है ।
૩) काजल - काजल आँखों का श्रृंगार है। इससे
आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन
को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है ।
૪) -मेंहन्दी - मेहन्दी के बिना दुल्हन का श्रृंगार
अधूरा माना जाता है। परिवार की सुहागिन
स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में
मेहन्दी रचाती है। नववधू के हाथों में
मेहन्दीजितनी गाढी रचती है, ऐसा माना जाता है
कि उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करता है

૫) -शादी का जोडा - शादी के समय दुल्हन
को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल
जोड़ा पहनाया जाता है ।
૬) -गजरा-दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित
फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार
कुछ फीकासा लगता है ।
૭) -मांग टीका - मांग के बीचों बीच पहना जाने
वाला यह स्वर्ण आभूषण सिन्दुर के साथ
मिलकर वधू की सुन्दरतामें चार चाँद लगा देता है

૮)-नथ - विवाह के अवसर पर पवित्र अग्निके
चारों ओर सात फेरे लेनेके बाद में देवी पार्वती के
सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।
૯) -कर्ण फूल - कान में जाने वाला यह आभूषण
कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे
चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है।
૧૦) -हार - गले में पहना जाने वाला सोने
या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन
स्त्री के वचन बध्दता का प्रतीक माना जाता है।
वधू के गले में वर व्दारा मंगलसूत्र से उसके
विवाहित होने का संकेत मिलता है ।
૧૧) -बाजूबन्द - कड़े के समान आकृति वाला यह
आभूषण सोने या चान्दी का होताहै। यह बांहो में
पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द
कहा जाता है।
૧૨) -कंगण और चूडिय़ाँ - हिन्दू परिवारों में
सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास
अपनी बडी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और
सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ
वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने
पर उसकी सास ने दिए थे। पारम्परिक रूप से
ऐसा माना जाता है किसुहागिन
स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से
भरी रहनी चाहिए।
૧૩) अंगूठी - शादी के पहले सगाई की रस्म में
वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने
की परम्परा बहुत पूरानी है। अंगूठी को सदियों से
पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास
का प्रतीक माना जाता रहा है।
૧૪) -कमरबन्द - कमरबन्द कमर में पहना जाने
वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद
पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और
भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबन्द इस बात
का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर
की स्वामिनी है। कमरबन्द में प्राय: औरतें
चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है।
૧૫) -बिछुआ - पैरें के अंगूठे में रिंगकी तरह पहने
जाने वाले इस आभूषण
को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। पारम्परिक
रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के
अलावा स्त्रियां कनिष्का को छोडकर
तीनों अंगूलियों में बिछुआ पहनती है।
૧૬) -पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण
के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनिसे घर के हर सदस्य
को नववधू की आहट का संकेत मिलता है।
सनातन संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है....,,
भारत माता की जय,,,, वंदेमातरम्,, 
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