Wednesday, 4 September 2013

मुस्लिम जनसंख्या

ours ago · 
  • जब मुस्लिम जनसंख्या 60% से ऊपर हो जाती है तब अन्य धर्मावलंबियों का “जातीय सफ़ाया” शुरु किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है, जैसे –
    भारत अभी पीछे हे.... और यु कहे की हमारे पास मोका हे इन सब से सीख लेने का.....
    जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी कहते हैं कि कुरान के अनुसार विश्व दो भागों में बँटा हुआ है, एक वह जो अल्लाह की तरफ़ हैं और दूसरा वे जो शैतान की तरफ़ हैं। देशो की सीमाओं को देखने का इस्लामिक नज़रिया कहता है कि विश्व में कुल मिलाकर सिर्फ़ दो खेमे हैं, पहला दार-उल-इस्लाम (यानी मुस्लिमों द्वारा शासित) और दार-उल-हर्ब (यानी “नास्तिकों” द्वारा शासित)। उनकी निगाह में नास्तिक का अर्थ है जो अल्लाह को नहीं मानता, क्योंकि विश्व के किसी भी धर्म के भगवानों को वे मान्यता ही नहीं देते हैं।
    इस्लाम सिर्फ़ एक धर्म ही नहीं है, असल में इस्लाम एक पूजापद्धति तो है ही, लेकिन उससे भी बढ़कर यह एक समूची “व्यवस्था” के रूप में मौजूद रहता है। इस्लाम की कई शाखायें जैसे धार्मिक, न्यायिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सैनिक होती हैं। इन सभी शाखाओं में सबसे ऊपर, सबसे प्रमुख और सभी के लिये बन्धनकारी होती है धार्मिक शाखा, जिसकी सलाह या निर्देश (बल्कि आदेश) सभी धर्मावलम्बियों को मानना बाध्यकारी होता है। किसी भी देश, प्रदेश या क्षेत्र के “इस्लामीकरण” करने की एक प्रक्रिया है। जब भी किसी देश में मुस्लिम जनसंख्या एक विशेष अनुपात से ज्यादा हो जाती है तब वहाँ इस्लामिक आंदोलन शुरु होते हैं। शुरुआत में उस देश विशेष की राजनैतिक व्यवस्था सहिष्णु और बहु-सांस्कृतिकवादी बनकर मुसलमानों को अपना धर्म मानने, प्रचार करने की इजाजत दे देती है, उसके बाद इस्लाम की “अन्य शाखायें” उस व्यवस्था में अपनी टाँग अड़ाने लगती हैं। इसे समझने के लिये हम कई देशों का उदाहरण देखेंगे, आईये देखते हैं कि यह सारा “खेल” कैसे होता है????
    जब तक मुस्लिमों की जनसंख्या किसी देश/प्रदेश/क्षेत्र में लगभग 2% के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसन्द अल्पसंख्यक बनकर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते, जैसे -
    अमेरिका – मुस्लिम 0.6%
    ऑस्ट्रेलिया – मुस्लिम 1.5%
    कनाडा – मुस्लिम 1.9%
    चीन – मुस्लिम 1.8%
    इटली – मुस्लिम 1.5%
    नॉर्वे – मुस्लिम 1.8%
    जब मुस्लिम जनसंख्या 2% से 5% के बीच तक पहुँच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलम्बियों में अपना “धर्मप्रचार” शुरु कर देते हैं, जिनमें अक्सर समाज का निचला तबका और अन्य धर्मों से असंतुष्ट हुए लोग होते हैं, जैसे कि –
    डेनमार्क – मुस्लिम 2%
    जर्मनी – मुस्लिम 3.7%
    ब्रिटेन – मुस्लिम 2.7%
    स्पेन – मुस्लिम 4%
    थाईलैण्ड – मुस्लिम 4.6%
    मुस्लिम जनसंख्या के 5% से ऊपर हो जाने पर वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलम्बियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना “प्रभाव” जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिये वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर “हलाल” का माँस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि “हलाल” का माँस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यतायें प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में “खाद्य वस्तुओं” के बाजार में मुस्लिमों की तगड़ी पैठ बनी। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्केट के मालिकों को दबाव डालकर अपने यहाँ “हलाल” का माँस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी “धंधे” को देखते हुए उनका कहा मान लेता है (अधिक जनसंख्या होने का “फ़ैक्टर” यहाँ से मजबूत होना शुरु हो जाता है), ऐसा जिन देशों में हो चुका वह हैं –
    फ़्रांस – मुस्लिम 8%
    फ़िलीपीन्स – मुस्लिम 6%
    स्वीडन – मुस्लिम 5.5%
    स्विटजरलैण्ड – मुस्लिम 5.3%
    नीडरलैण्ड – मुस्लिम 5.8%
    त्रिनिदाद और टोबैगो – मुस्लिम 6%
    इस बिन्दु पर आकर “मुस्लिम” सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके “क्षेत्रों” में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाये (क्योंकि उनका अन्तिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व “शरीयत” कानून के हिसाब से चले)। जब मुस्लिम जनसंख्या 10% से अधिक हो जाती है तब वे उस देश/प्रदेश/राज्य/क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिये परेशानी पैदा करना शुरु कर देते हैं, शिकायतें करना शुरु कर देते हैं, उनकी “आर्थिक परिस्थिति” का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़फ़ोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ़्रांस के दंगे हों, डेनमार्क का कार्टून विवाद हो, या फ़िर एम्स्टर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है, जैसे कि –
    गुयाना – मुस्लिम 10%
    भारत – मुस्लिम 15%
    इसराइल – मुस्लिम 16%
    केन्या – मुस्लिम 11%
    रूस – मुस्लिम 15% (चेचन्या – मुस्लिम आबादी 70%)
    जब मुस्लिम जनसंख्या 20% से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न “सैनिक शाखायें” जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरु हो जाता है, जैसे-
    इथियोपिया – मुस्लिम 32.8%
    जनसंख्या के 40% के स्तर से ऊपर पहुँच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याऐं, आतंकवादी कार्रवाईयाँ आदि चलने लगते हैं, जैसे –
    बोस्निया – मुस्लिम 40%
    चाड – मुस्लिम 54.2%
    लेबनान – मुस्लिम 59%
    जब मुस्लिम जनसंख्या 60% से ऊपर हो जाती है तब अन्य धर्मावलंबियों का “जातीय सफ़ाया” शुरु किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है, जैसे –
    अल्बानिया – मुस्लिम 70%
    मलेशिया – मुस्लिम 62%
    कतर – मुस्लिम 78%
    सूडान – मुस्लिम 75%
    जनसंख्या के 80% से ऊपर हो जाने के बाद तो सत्ता/शासन प्रायोजित जातीय सफ़ाई की जाती है, अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है, सभी प्रकार के हथकण्डे/हथियार अपनाकर जनसंख्या को 100% तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता
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    दोस्तों,
    आपने देखा स्वदेशी का कमाल, बाबा जी के पतंजलि प्रकल्प में 7500 लोग नौकरी कर रहे और पुरे भारत में करीब 205000 लोग पतंजलि योगपीठ से परोक्ष रूप से राजगार पा रहे है जब की यह तो सिर्फ अभी शुरुआत है. बाबा जी का यह तमाचा अंग्रेजो के यहाँ पढ़े अर्थशास्त्रियो को महसूस नहीं होता है क्या....100 लोगो को share करे...

    १-बाबा रामदेव जी ने आचार्य बाल कृष्ण जी के समर्पण से पतंजलि योग पीठ में राष्ट्र करते हुए भी 7500 लोगो को सीधा स्थाई रोजगार दिया हुआ है.

    २-भारत में 628 जिलो में कुला 120 आदमी हर जिले के हिसाब से करीब 75000 हजार लोग सीधे पतंजलि उत्पादों के वितरण / विक्री से बढ़िया रोजगार पा रहे है.

    ३- पुरे भारत में पतंजलि के कच्चे माल की सप्लाई और उत्पादन ग्रामीण वितरण से लगभग 120000 पूर्णकालिक रोजगार पा रहे है.

    ४-इन 205000 रोजगारो में कांग्रेस की केंद्र सरकार की सिर्फ बाधा डालने की भूमिका रही है, हां, उत्तराखंड सरकार को हमें बधाई देना होगा की उन्होंने योगपीठ को मदद किया है.

    ५-आप सोचिये जब 1100 करोड़ के स्वदेशी कृषि आधारित व्यवस्था से 205000 लोगो को रोजगार दिया ज़ा सकता है तो यदि भारत की अर्थव्यवस्था में 300लाख करोड़ कालाधन लगाया जाये और इसे इमानदारी से नियंत्रित किया जाये तो भारत में काम करने वाले कम पद जायेंगे, भारत की बेरोजगारी 100% समाप्त हो जाएगी. बाबा सही कहते है की आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रहेगी.

    ६-बाबा जी तो सिर्फ गाय के मूत्र से दवा बनाकर और उसे असवीत करने से बेचने में ही 1करोद x70/- रुपये लीटर x 12महिना= 840 करोड़ का व्यापार बनाकर 30000 लोगो को स्थाई रोजगार दे देंगे और भारत की हजारो गायो को काटने से बचा देंगे. साथ ही साथ विदेशी कंपनियों की 8000 करोड़ की ह्रदय रोग की अंगेजी दवाओ की लूट से भी रोकेंगे.

    बाबा जी सही कहते है की वह 10 साल में 30 करोड़ रोजगार पैदा करवा सकते है यदि विदेशी कंपनियों की लूट बंद हो जाये तो.

    राष्ट्र निर्माण की चेतना फ़ैलाने वाले बाबा रामदेव जी के राष्ट्रवादी आन्दोलन "भारत स्वाभिमान" से जुड़े और इसका समर्थन करे...

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