Thursday, 26 September 2013

उत्तर मे कभी सिर मत करे !

दोस्तो भारत मे बहुत बड़े बड़े ऋषि हुये ! चरक ऋषि ,पतंजलि ऋषि ,शुशुद ऋषि ऐसे एक ऋषि हुए है 3000 साल पहले बाग्वट ऋषि ! उन्होने 135 साल के जीवन मे एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था अष्टांग हरद्यम उसमे उन्होने ने मानव शरीर के लिए सैंकड़ों सूत्र लिखे थे उनमे से एक सूत्र के बारे मे आप नीचे पढे !

बाग्वट जी एक जगह लिख रहे है ! कि जब भी आप आराम करे मतलब सुबह या शाम या रात को सोये तो हमेशा दिशाओ का ध्यान रख कर सोये !अब यहाँ पे वास्तु घुस गया वास्तुशास्त्र ! वास्तु भी विज्ञान ही है ! तो वो कहते की इसका जरूर ध्यान रखे !

क्या ध्यान रखे ???? तो वो कहते है हमेशा आराम करते समय सोते समय आपका सिर सूर्य की दिशा मे रहे ! सूर्य की दिशा मतलब पूर्व और पैर हमेशा पश्चिम की तरफ रहे !और वो कहते कोई मजबूरी आ जाए कोई भी मजबूरी के कारण आप सिर पूर्व की और नहीं कर सकते तो दक्षिण (south)मे जरूर कर ले ! तो या तो east या south ! जब भी आराम करे तो सिर हमेशा पूर्व मे ही रहे !पैर हमेशा पश्चिम मे रहे !और कोई मजबूरी हो तो दूसरी दिशा है दक्षिण ! दक्षिण मे सिर रखे उत्तर दिशा मे पैर !

आगे के सूत्र मे बागवट जी कहते है उत्तर मे सिर करके कभी न सोये !फिर आगे के सूत्र मे लिखते है उत्तर की दिशा म्रत्यु की दिशा है सोने के लिए ! उत्तर की दिशा दूसरे और कामो के लिए बहुत अच्छी है पढ़ना है लिखना है अभ्यास करना है ! उत्तर दिशा मे करे ! लेकिन सोने के लिए उत्तर दिशा बिलकुल निशिद है !

अब बागवट जी ने तो लिख दिया ! पर राजीव भाई इस पर कुछ रिसर्च किया ! तो राजीव भाई लिखते हैं कि गाव गाव जब मैं घूमता था तो किसी कि मृतुय हो जाती तो मुझे अगर किसी के संस्कार पर जाना पड़ता !तो वहाँ मैं देखता कि पंडित जी खड़े हो गए संस्कार के लिए !और संस्कार के सूत्र बोलना वो शुरू करते हैं !

तो पहला ही सूत्र वो बोलते हैं ! मृत का शरीर उत्तर मे करो मतलब सिर उत्तर मे करो !पहला ही मंत्र बोलेंगे मृत व्यक्ति का सिर उत्तर मे करो !और हमारे देश मे आर्य समाज के संस्थापक रहे दयानंद सरस्वती जी ! भारत मे जो संस्कार होते है ! जनम का संस्कार है गर्भधारण का एक संस्कार है ऐसे ही मृतुय भी एक संस्कार है !तो उन्होने एक पुस्तक लिखी है (संस्कार विधि) ! तो उसमे मृत संस्कार की विधि मे पहला ही सूत्र है ! मृत का शरीर उत्तर मे करो फिर विधि शुरू करो !
अब ये तो हुआ बागवट जी दयानंद जी आदि लोगो का !!

अब इसमे विज्ञान क्या है वो समझे !!
ये राजीव भाई का अपना explaination है !!

क्यूँ ????

आज का जो हमारा दिमाग है न वो क्यूँ ? के बिना मानता ही नहीं !
क्यूँ क्यूँ ऐसा करे ???
कारण उसका बिलकुल सपष्ट है ! आधुनिक विज्ञान ये कहता है आपका जो शरीर है !और आपकी पृथ्वी है इन दोनों के बीच एक बल काम करता है इसको हम कहते हैं गुरुत्वाकर्षण बल (GRAVITATION force )!

इसको आप ऐसे समझे जैसे आपने कभी दो चुंबक अपने हाथ मे लिए होंगे और आपने देखा होगा कि वो हमेशा एक तरफ से तो चिपक जाते हैं पर दूसरी तरफ से नहीं चिपकते ! दूसरे तरफ से वे एक दूसरे को धक्का मारते है ! तो ये इस लिए होता है चुंबक कि दो side होती है एक south एक north ! जब भी आप south और south को या north और north को जोड़ोगे तो वो एक दूसरे को धक्का मारेंगे चिपकेगे नहीं ! लेकिन चुंबक के south और north एक दूसरे से चिपक जाते है !!

अब इस बात को दिमाग मे रख कर आगे पड़े !

अब ये शरीर पर कैसे काम करता है !तो आप जानते है कि पृथ्वी का उत्तर और पृथ्वी का दक्षिण ये सबसे ज्यादा तीव्र है गुरुत्वाकर्षण के लिए ! पृथ्वी का उत्तर पृथ्वी का दक्षिण एक चुंबक कि तरह काम करता गुरुत्वाकर्षण के लिए ! अब ध्यान से पढ़े !आपका जो शरीर है उसका जो सिर वाला भाग है वो है उत्तर ! और पैर वो है दक्षिण !! अब मान लो आप उत्तर कि तरफ सिर करके सो गए ! अब पृथ्वी का उत्तर और सिर का उत्तर दोनों साथ मे आयें तो force of repulsion काम करता है ये विज्ञान ये कहता है !

force of repulsion मतलब प्रतिकर्षण बल लगेगा ! तो आप समझो उत्तर मे जैसे ही आप सिर रखोगे प्रतिकर्षण बल काम करेगा धक्का देने वाला बल !तो आपके शरीर मे स्कूचन आएगा contraction ! शरीर मे अगर सकुचन आया तो रक्त का प्रवाह blood pressure पूरी तरह से control के बाहर जाएगा !क्यूँ की शरीर को pressure आया तो blood को भी pressure आएगा ! तो अगर खून को pressure है तो नींद आए गई ही नहीं ! मन मे हमेशा धरपर धरपर चलती रहेगी !दिल की गति हमेशा तेज रहेगी !तो उत्तर की दिशा पृथ्वी की है जो north poll कहलाती है ! और हमारे शरीर का उत्तर ये है सिर ! अगर दोनों एक तरफ है तो force of repulsion (प्रतिकर्षण बल ) काम करेगा नींद आएगी ही नहीं !

अब इसका उल्टा कर दो आपका सिर दक्षिण मे कर दो ! तो आपका सिर north है उत्तर है ! और पृथ्वी की दक्षिण दिशा मे रखा हुआ है ! तो force of attraction काम करेगा ! एक बल आपको खींचेगा !और आपके शरीर मे अगर खीचाव पड़ेगा मान ली जिये अगर आप लेटे हैं !और ये पृथ्वी का दक्षिण है और इधर आपका सिर है !तो आपको खेचेगा और शरीर थोड़ा सा बड़ा होगा ! जैसे रबड़ खीचती है न ? elasticity ! थोड़ा सा बढ़ाव आएगा ! जैसे ही शरीर थोड़ा सा बड़ा तो boby मे relaxation आ गया !

उदारण के लिए जैसे आप अंगड़ाई लेते हैं न एक दम !शरीर को तान देते है फिर आपको क्या लगता है ??? बहुत अच्छा लगता है !क्यूँ की शरीर को ताना शरीर मे थोड़ा बढ़ाव आया और आप बहुत relax feel करते हैं !

इसलिए बागव्ट जी ने कहा की दक्षिण मे सिर करेगे तो force of attraction है ! उत्तर मे सिर करेगे तो force of repulsion है ! force of repulsion से शरीर पर दबाव पड़ता है ! force of attraction से शरीर पर खीचाव पड़ता है ! खीचाव और दबाव एक दूसरे के विपरीत है ! दबाव से शरीर मे सकुचन आएगा दबाव से शरीर मे थोड़ा सा फैलाव आएगा ! फैलाव है तो आप सुखी नींद लेंगे !और अगर दबाव है तो नींद नही आएगी है !

इस लिए बाग्वट जी ने सबसे बढ़िया विश्लेषण दिया है ! ये विश्लेषण जिंदगी मे सारे मानसिक रोगो को खत्म करने का उतम उपाय है ! नींद अच्छी ले रहे है तो सबसे ज्यादा शांति है ! इस लिए नींद आप अच्छी ले ! दक्षिण मे सिर करके सोये नहीं तो पूर्व मे !!

अब पूर्व क्या है ?????
पूर्व के बारे मे पृथ्वी पर रिसर्च करने वाले सब वैज्ञानिको का कहना है ! की पूर्व नूट्रल है ! मतलब न तो वहाँ force of attraction है ज्यादा न force of repulsion ! और अगर है भी तो दोनों एक दूसरे को balance किए हुए हैं !इस लिए पूर्व मे सिर करके सोयेगे तो आप भी नूट्रल रहेंगे आसानी से नींद आएगी !

पश्चिम का पुछेगे जी !??
तो पश्चिम पर रिसर्च होना अभी बाकी है !
बाग्वट जी मौन है उस पर कोई explanation देकर नहीं गए हैं !
और आज का विज्ञान भी लगा हुआ है इसके बारे भी तक कुछ पता नहीं चल पाया है !

तो इन तीन दिशाओ का ध्यान रखे !
उत्तर मे कभी सिर मत करे !
पूर्व या दक्षिण मे करे !

बस एक अंतिम बात का ध्यान रखे !
को साधू संत है या सन्यासी है ! जिहोने विवाह आदि नहीं किया ! वो हमेशा पूर्व मे सिर करके सोये ! और जो ग्रस्त आशरम मे जी रहे है ! विवाह के बंधन मे बंधे है परिवार चला रहे है ! वो हमेशा दक्षिण मे सिर करक

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"अग्नि" इस पृथ्वी का एकमात्र ऐसा तत्त्व है... जिसपर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित नहीं होता... 

Fire is the only element on this planet Earth on which Theory of Gravitational Force is not applicable...

जिस प्रकार "जल" अपने मूल "सागर" की ओर ही सदैव गति करता है... सदैव नीचे की ओर ही गति करता है... उसी प्रकार "अग्नि" अपने मूल "सूर्य" की ओर... सदैव ऊपर की ओर ही गति करती है... अग्नि सूर्य का पार्थिव-स्वरुप है... यह हमें सदैव प्रत्येक स्थिति में ऊपर की ओर... उन्नत्ति की ओर... अग्रसर होते रहने की प्रेरणा देता है...

वेदों का आरम्भ अग्नि-देव की स्तुति से ही होता है... अग्नि ही जीवन है (पार्थिव-देह ताप-विहीन होती है)... अग्नि ही जीवन में तप और बल है... ज्ञानाग्नि में समस्त कर्मो के भस्मी-भूत होने पर ही मुक्ति रुपी परम-सिद्धि की प्राप्ति होती है... 

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