आठवीं पास अन्ना हजारे चीन के युध्ध के समय एक ड्राईवर की हैसियत से सेना में भरती हुए थे । दुशमनो की और से जब गोलाबारी बढ गई तो अन्ना अपनी जान बचाने के लिए सनिकों
से भरे ट्रक से उतर कर भागे थे और झाडियों के पिछे छुप गये थे और ट्रक में रहे सैनिक मारे गये थे । चीन युध्ध में अन्ना नेअपना फर्ज नही निभाया था और मैदान छोडकर भागना और उसके कारण साथी सैनिकों की जान जाती है तो उस से बढकर और कोइ देश द्रोह नही है । ऐसी बात आठवें दशक के मुंबई के असली हिरो, दाउद और राजनेताओं के दुश्मन गोविन्द राधो खैरनार ने कही थी । दिल्ली के बाद मुंबई में अन्ना का अनशन प्रोग्राम फेइल गया था । मुंबई की जनता में दिमाग भी है और वो आसानि से उल्लु भी नही बनती ।
सालों से हजारों वामपंथी कलाकारों की गेंग मुंबईमें सक्रिय है लेकिन जनता को उल्लु बना कर वामपंथी मोड नही दे पाई है । एक छोटासा कलाकार देश के दूसरे प्रदेश में जाता है तो जनता उस के आसपास इकठ्ठा हो जाती है । वही कलाकार मुंबई की सडक पर घुमता है तो लोग उस पर थुंकते भी नही । ऐसी जनता का हिरो गोविन्द राधे खैरनार है, अन्ना नही । महाराष्ट्र टाईम्स से खैरनार ने कहा “आप को लगता होगा कि मैं अन्ना की टांग खिंच रहा हुं । अन्ना का विरोध करता हुं, सही बात है लेकिन उन का बॅकग्राउंड सब को जानना जरूरी है ।
१९९९-९२ के सलों में मै उपायुक्त था । उन दिनो पेपर में एक हेडिन्ग छपा था “अण्णा हजारे- नये युग के गांधी ।“ उन्होंने अपने गांव को आदर्श गांव बनाया था, पेपर में उस बात को ही चमकाया गया था । अन्ना के काम से मै भी प्रभावित हो गया था, मैं उन के पास गया, उन से मिला और कहा कि मै नौकरी छोडने के लिए तैयार हुं । हम दोनो मिलकर एक ही क्यों ऐसे अनेक गांव को आदर्ष गांव बना सकते हैं । उस समय अन्नाने आश्वासन दिया था की जरूर हम मिलकर कुछ अच्छा करेंगे । अन्ना का उपवास याने इलेक्ट्रोल पावडर उस के बाद अन्नाने एक अनशन किया था । उस अनशन को सपोर्ट करने के लिए मैं भी वहां गया था । तभी मुझे मालुम पडा की अन्ना ग्लास में कोइ द्रव्य लेते हैं । वो खाली पानी नही था, शरबत भी नही था, मनमें सवाल हुआ तो कार्यकर्ता से पूछा कौनसा पानी है । उसने बताया कि ये इलेक्ट्रॉल जैसा पावडर डाला है । ऐसा पानी पिने से ६० दिनतक कोइ फिकर नही होती । उस के बाद मैं फ्रेश होने के लिए गया तो एक कार्यकर्ता ने मुझे एक टॉयलेट खोल के दिया ।
उस गांव में इतने पॉश टोइलेट कैसे, मन में सवाल हुआ। मैने किसी से पूछा तो बताया गया की ये अन्ना का खास टॉयलेट है । आप हमारे खास मेहमान हो इसलिए ही आप को इस का उपयोग करने दिया है….. ऐसा अफलातून किस्सा खैरनारने बताया । एक लाख का घर १० हजार में खैरनार आगे बताते हैं कि, गांव के बाहर पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने के लिए मैं रूका, वहां मुझे एक मॅकेनिक मिल गया, उसने मुझे पहचान लिया था, उस से इधर उधर की बातें हुई । उसने कहा की मैं अन्ना का मिकेनिक हुं, मुझे हैरानी हुई, गरीब अन्ना और गाडी? उसने बताया अन्ना के पास केवल एक गाडी नही, तीन गाडियां हैं । अन्ना मिलिटरी से सेवानिवृत्त हो कर आये, उन के राळेगण सिध्धि गांव में मकान खरीदने की कोशीश कर रहे थे । तभी अन्ना ने गांव के मंदिर को दुरुस्त करना और उसका जीर्णोद्धार करने का प्रस्ताव ग्रामजनो के समक्ष रख्खा । कहा, मैंने निवृत्ती स्वीकार ली है, मैं अपने पास से आप को १० हजार रुपये देता हुं, बाकी हम गांववालों से दान ले कर मंदिर बनाते हैं, ये बात अन्नाने ही उसे बताई थी । उस हिसाब से गांव से रुपये इकठ्ठे किए, अन्ना ने १० हजार दिये । उन पैसे से दो कमरे और एक हॉल वगैरे बांधे गये ।
उन मे से एक कमरे में अन्ना रहते हैं, हॉल का उपयोग कार्यकर्ताओं की बैठक के लिए हैं । मैने विचार किया, जहां घर के लिए एक-दो लाख रुपये खर्च होते हैं तो इस आदमी ने १० हजार में खूद के रहने की कैसी मस्त सुविधा कर ली । गांव में घर दुरुस्त कराने के ही एक लाख रुपये खर्च हो जाते हैं । (६० के दशक में १० हजार बहुत थे सरजी, पर इतना भी नही जो आज अन्ना के कबजे में मकान है ) अन्ना के एक और अनशन के समय फिर चौकानेबाली बात बनी । अन्ना ने मुझे कहा “अभी दो तीन दिन बाद डोक्टर मुझे सलाईन लगायेन्गे । फिर एम्ब्युलन्स कर के हम गांव गांव प्रचार करेन्गे । फिर देखना, महाराष्ट्र कैसे बदल जाता है । मुझे अन्ना की यह भुमिका पसंद नही आयी ।
जनता की भावना भडका कर उसे विचारप्रवृत्त कराना ठीक नही लगा । जनता का निर्णय जनता पर ही छोडना, उन का निर्णय उन को ही लेने दिया जाता है तो जो परिवर्तन होते हैं वो शाश्वत होते हैं, ऐसा मतवाला मैं, तब से ही अन्ना की संगत छोड दी थी । अच्छा हुआ, नौकरी छोडकर अन्ना के साथ नही गया था । पवार के विरोध में कुछ नही बोलना । अन्ना मुंबाई आये तो एक मित्र के आग्रह पर उन से मिलने गया । तब उन्होंने मुझे कहा की शरद पवार बहुत अच्छे नेता है । उस के विरोधमें तूम मत बोलो । जब तुम पवार विरोधी भूमिका छोडोगे तब मै तुरंत ही तुम्हारे साथ काम करुंगा । मैं फक्त मिलने गया था तो उन्हों ने अलग बात ही सुना दी । अन्ना टीम भ्रष्टाचार से दूर नही है, भरपूर कमाया है ।
सालों से हजारों वामपंथी कलाकारों की गेंग मुंबईमें सक्रिय है लेकिन जनता को उल्लु बना कर वामपंथी मोड नही दे पाई है । एक छोटासा कलाकार देश के दूसरे प्रदेश में जाता है तो जनता उस के आसपास इकठ्ठा हो जाती है । वही कलाकार मुंबई की सडक पर घुमता है तो लोग उस पर थुंकते भी नही । ऐसी जनता का हिरो गोविन्द राधे खैरनार है, अन्ना नही । महाराष्ट्र टाईम्स से खैरनार ने कहा “आप को लगता होगा कि मैं अन्ना की टांग खिंच रहा हुं । अन्ना का विरोध करता हुं, सही बात है लेकिन उन का बॅकग्राउंड सब को जानना जरूरी है ।
१९९९-९२ के सलों में मै उपायुक्त था । उन दिनो पेपर में एक हेडिन्ग छपा था “अण्णा हजारे- नये युग के गांधी ।“ उन्होंने अपने गांव को आदर्श गांव बनाया था, पेपर में उस बात को ही चमकाया गया था । अन्ना के काम से मै भी प्रभावित हो गया था, मैं उन के पास गया, उन से मिला और कहा कि मै नौकरी छोडने के लिए तैयार हुं । हम दोनो मिलकर एक ही क्यों ऐसे अनेक गांव को आदर्ष गांव बना सकते हैं । उस समय अन्नाने आश्वासन दिया था की जरूर हम मिलकर कुछ अच्छा करेंगे । अन्ना का उपवास याने इलेक्ट्रोल पावडर उस के बाद अन्नाने एक अनशन किया था । उस अनशन को सपोर्ट करने के लिए मैं भी वहां गया था । तभी मुझे मालुम पडा की अन्ना ग्लास में कोइ द्रव्य लेते हैं । वो खाली पानी नही था, शरबत भी नही था, मनमें सवाल हुआ तो कार्यकर्ता से पूछा कौनसा पानी है । उसने बताया कि ये इलेक्ट्रॉल जैसा पावडर डाला है । ऐसा पानी पिने से ६० दिनतक कोइ फिकर नही होती । उस के बाद मैं फ्रेश होने के लिए गया तो एक कार्यकर्ता ने मुझे एक टॉयलेट खोल के दिया ।
उस गांव में इतने पॉश टोइलेट कैसे, मन में सवाल हुआ। मैने किसी से पूछा तो बताया गया की ये अन्ना का खास टॉयलेट है । आप हमारे खास मेहमान हो इसलिए ही आप को इस का उपयोग करने दिया है….. ऐसा अफलातून किस्सा खैरनारने बताया । एक लाख का घर १० हजार में खैरनार आगे बताते हैं कि, गांव के बाहर पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने के लिए मैं रूका, वहां मुझे एक मॅकेनिक मिल गया, उसने मुझे पहचान लिया था, उस से इधर उधर की बातें हुई । उसने कहा की मैं अन्ना का मिकेनिक हुं, मुझे हैरानी हुई, गरीब अन्ना और गाडी? उसने बताया अन्ना के पास केवल एक गाडी नही, तीन गाडियां हैं । अन्ना मिलिटरी से सेवानिवृत्त हो कर आये, उन के राळेगण सिध्धि गांव में मकान खरीदने की कोशीश कर रहे थे । तभी अन्ना ने गांव के मंदिर को दुरुस्त करना और उसका जीर्णोद्धार करने का प्रस्ताव ग्रामजनो के समक्ष रख्खा । कहा, मैंने निवृत्ती स्वीकार ली है, मैं अपने पास से आप को १० हजार रुपये देता हुं, बाकी हम गांववालों से दान ले कर मंदिर बनाते हैं, ये बात अन्नाने ही उसे बताई थी । उस हिसाब से गांव से रुपये इकठ्ठे किए, अन्ना ने १० हजार दिये । उन पैसे से दो कमरे और एक हॉल वगैरे बांधे गये ।
उन मे से एक कमरे में अन्ना रहते हैं, हॉल का उपयोग कार्यकर्ताओं की बैठक के लिए हैं । मैने विचार किया, जहां घर के लिए एक-दो लाख रुपये खर्च होते हैं तो इस आदमी ने १० हजार में खूद के रहने की कैसी मस्त सुविधा कर ली । गांव में घर दुरुस्त कराने के ही एक लाख रुपये खर्च हो जाते हैं । (६० के दशक में १० हजार बहुत थे सरजी, पर इतना भी नही जो आज अन्ना के कबजे में मकान है ) अन्ना के एक और अनशन के समय फिर चौकानेबाली बात बनी । अन्ना ने मुझे कहा “अभी दो तीन दिन बाद डोक्टर मुझे सलाईन लगायेन्गे । फिर एम्ब्युलन्स कर के हम गांव गांव प्रचार करेन्गे । फिर देखना, महाराष्ट्र कैसे बदल जाता है । मुझे अन्ना की यह भुमिका पसंद नही आयी ।
जनता की भावना भडका कर उसे विचारप्रवृत्त कराना ठीक नही लगा । जनता का निर्णय जनता पर ही छोडना, उन का निर्णय उन को ही लेने दिया जाता है तो जो परिवर्तन होते हैं वो शाश्वत होते हैं, ऐसा मतवाला मैं, तब से ही अन्ना की संगत छोड दी थी । अच्छा हुआ, नौकरी छोडकर अन्ना के साथ नही गया था । पवार के विरोध में कुछ नही बोलना । अन्ना मुंबाई आये तो एक मित्र के आग्रह पर उन से मिलने गया । तब उन्होंने मुझे कहा की शरद पवार बहुत अच्छे नेता है । उस के विरोधमें तूम मत बोलो । जब तुम पवार विरोधी भूमिका छोडोगे तब मै तुरंत ही तुम्हारे साथ काम करुंगा । मैं फक्त मिलने गया था तो उन्हों ने अलग बात ही सुना दी । अन्ना टीम भ्रष्टाचार से दूर नही है, भरपूर कमाया है ।
No comments:
Post a Comment