"...जिस देश में साफ शौचालय तो क्या, घरों में शौचालय तक नहीं है, जिस देश में दैनंदिन रूप से हजारों बलात्कार होते हैं, जिस देश में स्त्रियाँ आज भी अपने मौलिक अधिकारों के लिए नियमित घुटती/मरती व मार दी जाती हैं, जिस देश में लाखों बच्चे अपने शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित हैं, जिस देश में भूख से मरने वालों की सुनने वाला कोई नहीं, जो देश सर्वाधिक भ्रष्ट देशों की सूची में है, वह देश अपने इन कारणों से पिछड़ा नहीं दीखता आपको ? उस देश में समलैंगिकता को वैध बनाना ही सबसे बड़ी आवश्यकता दीखता है, ताकि अपने को आधुनिक कहलाया जा सके ? कितना हास्यास्पद है..."
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आज वाकई में हमारे "घटियातम मीडियाई दल्लों" और "तथाकथित आधुनिक मानवाधिकारवादियों" को जी भर के गाली देने की इच्छा हो रही है... सालों ने कभी इतनी बहस मलेरिया को लेकर नहीं की होगी... जितनी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर कर रहे हैं...
उधर कुछ लोग अपने "युवराज" के भविष्य को लेकर चिंतित हो गए हैं, इसलिए सीधे अध्यादेश लाने तक पहुँच गए हैं... लानत, लानत, लानत............................( DrKavita Vachaknavee जी की वॉल से साभार - )
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