Saturday, 12 April 2014

रशियाके गुप्तचर तंत्रद्वारा भारतकी कांग्रेसका सच्चा स्वरुप उजागर किया गया !

चैत्र शुक्ल पक्ष १२, कलियुग वर्ष ५११६
रशियाके के.जी.बी. (कोमिटैट गोसुदास्टॅवेनॉय बिजोपास्नोस्ती)  गुप्तचर संगठनके एक वरिष्ठ अधिकारी वासिली मित्रोखिनद्वारा  लिखित ‘मित्रोखिन अर्काइव - २ केजीबी एंड वर्ल्ड’ बहुचर्चित पुस्तक प्रसिद्ध की गई है । इस पुस्तकमें भारतीय जनमानसपर पूरा प्रकाश डाला गया है । इस पुस्तकको पढनेके उपरांत कलतक सर्वसाधारण भारतीय जिन्हें राष्ट्रका उद्धार करनेवाले नेताओंके रूपमें देखते थे, वे सभी नेता राष्ट्रघाती एवं खलनायक प्रतीत होते हैं । 
वर्ष १९९२ में मित्रोखिनने कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज लेकर रशियासे ब्रिटन पलायन किया । इस पुस्तकके ‘द ओपननेस ऑफ इंडियन डेमोक्रसी’ प्रकरणमें मित्रोखिनद्वारा स्पष्ट किया गया है कि उस समय भारतके सभी सत्ताधिकारी किसीके दास बन गए थे । भारतकी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधीके साथ कांग्रेसके अनेक बडे-बडे नेता एवं अनेक अधिकारी बिक गए थे । इसमें तत्कालीन मंत्रीमंडलके रेल्वेमंत्री डॉ. ललित नारायण मिश्र एवं वी.के. कृष्णमेननके भी नाम हैं । तत्पश्चात ललित नारायण मिश्रकी रहस्यमय हत्या हो गई । तदुपरांत उनके पुत्र डॉ. जगन्नाथ मिश्रको भारतकी राजनीतिमें अनेक महत्त्वपूर्ण पदोंकी प्राप्ति हुई । चारा घोटाला एवं अन्य अनेक भ्रष्टाचारोंमें जगन्नाथ मिश्रका हाथ था । वे बिहारके मुख्यमंत्री होनेके उपरांत भी उनके पिता डॉ. ललित नारायण मिश्रकी हत्याका कारण उन्हें ज्ञात नहीं हो सका ।  तत्कालीन रेल्वेमंत्रीका बिक जाना !

अमेरिकाके गुप्तचर संस्थासे इंदिरा गांधीने रिश्वत लेनेके संदर्भमें अमेरिकाके राजदूतद्वारा बताया जाना 

भारतमें काम किए अमेरिकाके राजदूत डेनियल योश्नि हनद्वारा इस बातको स्वीकार किया गया है कि अमेरिकी गुप्तचर संस्थाद्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधीको रिश्वत दी गई है । इंदिरा गांधीके निजी सचिव आर.के. धवन तो इस कृत्यमें लथपथ डूबे थे । और भी एक वरिष्ठ मंत्रीने इसमें हाथ काले किए हैं । जिस समय राजनीतिमें उनके बुरे दिन आए, उस समय उन्हें राज्यपालपद दिया गया ! शेष जीवन उन्होंने अपने विदेशी गुप्तचर संस्थाके लिए समर्पित किया । इसे जानकर भी लोगोंको आश्चर्य नहीं प्रतीत होता; क्योंकि कांग्रेसका इतिहास ही वैसा है ।

कांग्रेसके आरंभके कार्यकालमें मेकॉले पद्धतिसे शिक्षित व्यक्तियोंको अध्यक्षपद देनेकी कांग्रेसकी नीति रहना 

कांग्रेसके रोम-रोममें देशद्रोह भरा हुआ है । कांग्रेसके ग्रहोंके अनुसार उनमें प्रबल राष्ट्रद्रोह है । परिणामतः फांसी किसी औरको होगी, परंतु सत्ता कांग्रेसकी ही रहेगी । कांग्रेसके जनक सर एलन आक्टोविचन ह्युमने वर्ष १८८५ में ‘इंडियन नैशनल कांग्रेस’की स्थापना की । कांग्रेसकी नीति ऐसी थी कि कांग्रेसके आरंभके कार्यकालमें मेकॉले पद्धतिसे शिक्षित (अर्थात शरीरसे भारतीय एवं मन तथा आचार विचारसे पश्चिमी सभ्यताके ) व्यक्ति ही कांग्रेसमें कार्य करेंगे । इसलिए मुंबईके गवर्नरको कांग्रेसका प्रथम अध्यक्ष करनेके स्थानपर व्योमेशचंद्र बैनर्जीको अध्यक्षपद दिया गया । व्योमेशचंद्र बैनर्जी बंगालके एक ब्राह्मण कुलसे थे; परंतु पश्चिमी सभ्यताकी शिक्षाके प्रभावसे वे ईसाई बन गए थे । कांग्रेसको इससे अधिक अच्छा अध्यक्ष मिलना कैसे संभव है ? डॉ. पट्टाभी सीतारामैयाके ‘द हिस्ट्री ऑफ इंडियन नैशनल कांग्रेस’ पुस्तकमें इस विषयपर विस्तृत रुपसे विचार-विमर्श किया गया है । तत्पश्चात सर सुरेंद्रनाथ बैनर्जी एवं दादाभाई नौरोजी समान अनेक अध्यक्षोंका चयन करते समय यही निकष रखा गया । इन महान व्यक्तियोंका अध्यक्षीय भाषण पढकर आज भी प्रत्येक भारतीयके मनमें उनके विषयमें घृणा उत्पन्न होगी । ये सभी लोग प्रतिभा संपन्न थे; परंतु अंग्रेजी साम्राज्य एवं ब्रिटनकी महारानीके समक्ष उनकी प्रतिभा कुंठित हो गई थी । जिस समय लोकमान्य तिलकके रूपमें भारतीय संस्कृतिका सूर्य उदित हुआ, उस समय ये अपना पक्ष बदलकर स्वयंको राष्ट्रवादी कहने लगे ।

‘मुस्लिम लीग’की स्थापनाके पश्चात कांग्रेसद्वारा मुसलमानोंकी चापलूसी करनेकी नीतिका अवलंब करना

दिसंबर १९०६ में आगा खान एवं ढाकाके नवाबने ‘मुस्लिम लीग’ सिद्ध कर अपना अलग पक्ष स्थापित किया एवं वर्ष १९१६ में ‘मुस्लिम लीग’ कांग्रेससे अलग हो गई । तबसे राष्ट्रघाती मुसलमानोंके तुष्टिकरणकी नीति चालू हो गई । मुस्लिम लीगके साथ लखनौमें मुसलमान एवं सिक्खोंके लिए अलग मंडल स्थापित करनेका निर्णय लिया गया । कांग्रेसके नेताओंमें केवल मदन मोहन मालवीयने इस निर्णयको विरोध किया ।   

‘खिलाफत आंदोलन’का समर्थन करनेवाला गांधीजीका प्रस्ताव तुर्कस्तानके मुस्तफाने कचराकुंडीमें फेंकना ।

मुसलमानोंका तुष्टिकरण करनेकी देशविघाती मानसिकताके कारण वर्ष १९२० में कोलकाताके अधिवेशनमें मोहनदास गांधीजीने ‘खिलाफत आंदोलन’का प्रस्ताव संम्मत किया । इस प्रस्तावको देशबंधु चित्तरंजन दास, विपिनचंद्र पाल, एसनी बेजंट, रविंद्रनाथ टागोर आदि नेताओंने विरोध किया था । महत्त्वपूर्ण बात यह कि तुर्कस्तानके मुस्तफा कमालपाशाने प्रस्तावके लिए भेजी गई तार कचराकुंडीमें फेंक दी ! उसे मिलने हेतु गए आगा खान एवं अमीर अलीको उसने ‘आप खोजा (मुसलमानोंकी एक जात) हो । तुर्की मुसलमानोंसे आपका संबंध ही क्या है ?’ ऐसा कह अपमानित किया ।

स्वामी श्रद्धानंदकी हत्या करनेवाले लोगोंको कांग्रेसने नजदीक करना एवं भगतसिंह, चंद्रशेखर आजादको मात्र आतंकवादी सिद्ध करना 

आर्य समाज तथा कांग्रेसके नेता स्वामी श्रद्धानंदकी हत्या करनेवाले अब्दुल रशीदको मोहनदास गांधी ‘रशीद भाई’ कहते थे । कांग्रेसके नेताओंद्वारा सुरक्षा दी जानेके कारण ही स्वामीजीकी हत्याके सूत्रधार दंडविधानके (कानूनके ) चंगुलसे मुक्त हुए । एक महत्त्वपूर्ण अपराधीको पाकिस्तानकी निर्मिति करनेमें जिन कांग्रेसी नेताओंकी सहायता मिली, वह आगे भारतका राष्ट्रपति हो गया ! इन कांग्रेसियोंने छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप तथा गुरु गोविंदसिंहको पथभ्रष्ट कहनेका पाप किया था । सरदार भगतसिंहको फासी देनेके लिए पूरे लाहौर नगरका विरोध था; परंतु कांग्रेसके वरिष्ठ नेताओंने उसकी मुक्तिके लिए वाइसरायसे चर्चा नहीं की; क्योंकि उनकी दृष्टिमें भारतमाताके लिए अपने प्राणका बलिदान करनेवाले भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद एवं पंडित रामप्रसाद बिस्मिल आतंकवादी थे ! 
ऐसे अनेक विषयोंपर चर्चा कर सकते हैं । सत्याग्रह आंदोलन, असहकार आंदोलन, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रभाषा, गोहत्या, शिक्षणविषयक धोरण, स्वा. सावरकरजीको विरोध करना, जिनाको समर्थन देना ऐसे कुकृत्योंके साथ सबसे बडा कुकृत्य  सुभाषचंद्र बोसको अंतरराष्ट्रीय स्तरपर ‘अपराधी’ घोषित करना । ‘मेरे शरीरके ऊपरसे जानेके पश्चात पाकिस्तानकी निर्मिति होगी’, ऐसा कहनेवाले लोगोंने पाकिस्तानकी निर्मितिके निमित्त मिठाई खाई तथा पाकिस्तानको ५५ करोड रुपयोंकी (अभीके १४ सहस्र करोड रुपए) सहायता करने हेतु अनशन भी किया । परिणामतः पाकिस्तानमें ३ लाख हिंदुओंकी क्रूरतासे हत्या की गई तथा २ करोड लोग अपनी प्रिय मातृभूमिसे पराये हो गए । ये कांग्रेसके तथाकथित देशभक्तिके उदाहरण हैं ।
(संदर्भ : सीमा मालवीय, मासिक हिंदु वॉइस : नोव्हेंबर २००५)

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