Tuesday, 29 April 2014

महाभारत को ‘धर्मयुद्ध’ क्यों कहते है ?

महाभारत को ‘धर्मयुद्ध’ क्यों कहते है ?
१. दुर्योधन के अनेक कौरवबंधू और वीर योद्धा पांडवों द्वारा
मारे जाने से दुर्योधन का क्रोधित होना और भीष्माचार्य से इसका उत्तर मांगना । 
‘महाभारत के पहले तीन दिनों में दुर्योधन के अनेक कौरवबंधू एवं कौरवों के पक्ष के अन्य वीर योद्धा पांडवों द्वारा मारे गए । पांचों पांडव और उनके पक्ष के किसी भी प्रमुख सेनानी की मृत्यु नहीं हुई थी; इसलिए दुर्योधन क्रोधित हुआ और उसने कौरवों के सेनापति भीष्माचार्य से इसका उत्तर मांगा । तब भीष्माचार्य ने कहा, ‘‘कल मैं ५ बाणों से पांचों पांडवों को मारूंगा ।’’ इस पर दुर्योधन ने कहा, ‘‘नहीं वैसा नहीं ! जिन पांच बाणों से आप पांच पांडवों को मारने वाले हो, उन्हें अभिमंत्रित कर मुझे सौंप दीजिए । वे बाण मैं कल सवेरे युद्ध पर जाने के पूर्व आपको लाकर दूंगा । भीष्माचार्य ने पांच बाण अभिमंत्रित कर दुर्योधन को दिए । वे बाण लेकर दुर्योधन अपने शिविर में आया ।

२. भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से दुर्योधन के पास जाकर
पाच बाण मांगने के लिए कहना और अर्जुन को वर देने से
दुर्योधन निरूपाय होना और उसे बाण देना अनिवार्य होना ।
भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला । उन्हें इसका उपाय भी सूझा । जब पांडव वनवास में थे तब एक बार दुर्योधन भी वन में गया था । उस समय अर्जुन ने उसके प्राण बचाए थे; इसलिए दुर्योधन ने उसे इच्छित वर मांगने के लिए कहा था । तब अर्जुन ने कहा था कि ‘‘अभी नहीं, आवश्यकता होने पर मैं तुमसे वर मांगूंगा । उस समय जो भी मांगूगा वह दे देना ।’’
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के शिविर में गए । उन्होंने अर्जुन को तुरंत दुर्योधन के पास जाकर वे पांच बाण मांगने के लिए कहा । अर्जुन दुर्योधन के पास गया और भीष्माचार्य द्वारा अभिमंत्रित पांच बाण मांगे । अर्जुन को वर देने से निरूपाय हुआ और उसके लिए बाण देना अनिवार्य हुआ । दुर्योधन ने भी अपने दिए हुए वचन के अनुसार वे पांच बाण अर्जुन को दे दिए; इसलिए इस युद्ध को ‘धर्मयुद्ध’ कहते है !’

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