Sunday, 27 April 2014

पाक से भारत आ रहे ह‌थियार गायब !

कैबिनेट सचिवालय और गृह मंत्रालय ने आईबी और रॉ के खास अधिकारियों को हथियारों के एक लापता जखीरे को खोजने की जिम्मेदारी दी है। पिछले महीने के आखिरी सप्ताह में बांग्लादेश के रास्ते देश में दाखिल हथियारों की यह खेप एजेंसियों के रडार से अचानक गायब हो गई थी। 
चुनाव के मद्देनजर फरवरी महीने में समुद्री रास्तों से हथियार, मादक पदार्थ और नकली नोटों की तस्करी संबंधी गृह मंत्रालय की चेतावनी के बावजूद एजेंसियों के हाथों इस संवेदनशील मामले के फिसलने से खुफिया हलकों में खलबली मची हुई है। 
उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों ने अमर उजाला को बताया है कि यह जखीरा मार्च के आखिरी हफ्ते में एक मालवाहक जहाज में छुपाकर पाकिस्तान के कराची पोर्ट से बांग्लादेश के कुतुबदिया पोर्ट पर पहुंचाया गया। 

पाक से बांग्लादेश के रास्ते भेजा गया था भारत

एजेंसियों को पता चल चुका था कि पद्मा नामक जहाज से खतरनाक हथियारों की यह खेप बांग्लादेश पोर्ट पर उतरी है। एजेंसी कुछ दिनों तक खेप पर नजर गड़ाए उसे देश की सीमा में दाखिल होने का इंतजार करती रही। 
मगर बांग्लादेश के जेस्सौर के बाद यह खेप अचानक ओझल हो गई। एजेंसियों को अंदेशा है कि यह पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से लगी सीमा से होते हुए भारत में दाखिल हो चुकी है। 
इस मामले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के खुफिया विंग जी-ब्रांच की मदद भी ली जा रही है। सूत्रों ने बताया कि पद्मा जहाज की कंपनी के लोगों से गहन पूछताछ भी की गई है। हालांकि सूत्र मामले को काफी संवेदनशील बताते हुए इससे संबंधित पूरी जानकारी नहीं दे रहे।

भारत विरोधी कार्रवाई में इस्तेमाल होंगे हथियार

एजेंसियों को यह अंदाजा नहीं लग पाया है कि जखीरे में कौन से और कितने खतरनाक हथियार थे। खुफिया अधिकारियों के एक तबके का मानना है कि यह हथियार भारत विरोधी कार्रवाई में लगे पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ने नक्सलियों को मजबूती देने के मकसद से भेजा है। 
लेकिन सूत्रों के मुताबिक नक्सलियों को पाकिस्तान से सीधे तौर हथियार मिलने की अब तक कोई खुफिया सूचना नहीं है। नक्सलियों के ज्यादातर हथियार पुलिस और अर्धसैनिक बलों से ही लूटे हुए होते हैं। 
हालांकि चीन की कुछ एजेंसियां और उत्तर-पूर्व के उग्रवादी गुटों की सांठगांठ से नक्सलियों को संचार और उससे संबंधित उपकरणों के मुहैया कराए जाने की बात भी सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक चिंता का सबब यही है कि एजेंसियों को हथियार के इस जखीरे के गंतव्य का कुछ भी पता नहीं है। 
स्त्रोत : अमर उजाला 
 जदयू से भाजपा में आए और ४८ घंटे के भीतर बाहर किए गए साबिर अली पर इंडियन मुजाहिदीन [आइएम] और आतंकियों से रिश्ते का आरोप लगने से सनसनी फैल गई है। भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी के आरोप सच हैं या झूठ, यह तो जांच का विषय है, लेकिन इससे सुरक्षा एजेंसियां सतर्क जरूर हो गई हैं। स्लीपिंग माड्यूल्स और शरणदाताओं पर केंद्रित एजेंसियों ने अब आइएम के सियासी रिश्तों की भी छानबीन शुरू कर दी है।
गोरखपुर में पकड़े गए दो पाकिस्तानी आतंकियों अब्दुल वलीद व फहीम से पूछताछ में एटीएस को कई अहम जानकारियां मिली हैं। इसके सहारे सियासी रिश्तों से भी परदा उठाने की तैयारी चल रही है। संभव है कि चुनाव के दौरान सुरक्षा एजेंसियां किसी पर हाथ न डाले, लेकिन सूत्रों का कहना है कि गोरखपुर से लेकर मुजफ्फरनगर के बीच सियासी आमदरफ्त रखने वाले तीन-चार लोग गिरफ्त में आ सकते हैं। कुछ दिन पहले नेपाल सीमा से पकड़े गए दस लाख के इनामी और आइएम के अगुवा तहसीन अख्तर उर्फ मोनू के चाचा एक राजनीतिक दल से जुड़े हैं। हालांकि, उन्होंने मोनू से किसी भी तरह का संबंध से इन्कार किया है। बाटला हाउस कांड से सुर्खियों में आए आजमगढ़ के एक आतंकी के पिता भी राजनीतिक दल से जुड़े रहे हैं। इंटेलीजेंस ब्यूरो ने राज्य सरकार को कई बार इस तरह के इनपुट दिए और ऐसे संरक्षणदाताओं और सहयोगियों पर निगाह रखने को भी कहा, लेकिन कभी इस दिशा में एजेंसियों ने सीधा हस्तक्षेप नहीं किया।
आतंकियों के सियासी रिश्तों की बुनियाद तो मंदिर आंदोलन के बाद से ही पड़नी शुरू हो गई। अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वंस के बाद जब भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हुई तो सबसे पहले नेपाल के जरिये ही घुसपैठ शुरू हुई। उन दिनों नेपाल में यूपी के देवरिया का मूल निवासी मिर्जा दिलशाद बेग राजनीति में सक्रिय हुआ था। तस्करी के धंधे से सियासत में उतरे मिर्जा को आइएसआइ ने मोहरा बनाया और उसके जरिये वर्ष १९९३  को गोरखपुर के मेनका टाकीज में तिरंगा फिल्म के प्रदर्शन के दौरान विस्फोट कराया। इन सबके यूपी और बिहार में सियासी रिश्ते हैं। आइएसआइ के संरक्षण में चल रहे लश्कर-ए-तैयबा, सिमी और आइएम जैसे गुटों को उनसे मदद मिलने की सूचनाएं भी रहीं, पर कोई एजेंसी इन पर हाथ डालने में कामयाब नहीं हुई। उत्तर प्रदेश एसटीएफ के आइजी अशीष गुप्ता ने बताया कि गोरखपुर में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकियों से पूछताछ जारी है। कई अहम बातें पता चली हैं, लेकिन अभी उसे हम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। पूछताछ में मिली जानकारी के सत्यापन के लिए आतंकवाद निरोधक दस्ता [एटीएस] विभिन्न क्षेत्रों में गई है। समय पर जानकारी सार्वजनिक की जाएगी।

तहसीन ने यासीन भटकल की पत्नी को पहुंचाई थी रकम

जयपुर : इंडियन मुजाहिदीन के सह संस्थापक यासीन भटकल के लिए हवाला से पैसे मंगवाए गए थे। आइएम आतंकी तहसीन अख्तर ने जयपुर में हवाला के जरिये एक लाख रुपये मंगवाए जो यासीन भटकल की पत्नी जाहिदा को दिए गए थे। भटकल की पत्नी के भी अजमेर और जयपुर आने की जानकारी पुलिस को मिली है। एटीएस और पुलिस को मिली नई जानकारी के मुताबिक जोधपुर के एक युवक की फर्जी आइडी से खरीदी गई सिम भी तहसीन ने जाहिदा को दी थी। जयपुर, जोधपुर, अजमेर और सीकर से पकड़े गए आतंकी इसी सिम पर संपर्क करते थे। भटकल के मुंबई स्थित घर से बरामद सिम से राजस्थान में आतंकी नेटवर्क का पता चला। भटकल को गत वर्ष अगस्त में गिरफ्तार किया था। मुंबई स्थित घर की तलाशी में भटकल की पत्नी जाहिदा के पास राजस्थान की एक सिम मिली। जाहिदा ने तहसीन अख्तर द्वारा सिम देने की बात स्वीकारी।
स्त्रोत : जागरण 
इंडियन मुजाहिदीन [आइएम] का इरादा इस बार खदानों में प्रयोग होने वाले विस्फोटकों का इस्तेमाल कर तबाही मचाना था। राजस्थान मॉड्यूल की मदद से इस काम के लिए ७० किलोग्राम गन पाउडर, पांच किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट और डेटोनेटर की व्यवस्था की गई थी। आइएम संस्थापक रियाज भटकल ने लोकसभा चुनाव से पूर्व तबाही के इस ऑपरेशन की कमान खुद संभाली हुई थी। गिरफ्तार आइएम आतंकी मोहम्मद महरूफ, वकार अजहर एवं शाकिब अंसारी ने पूछताछ में बताया है कि रियाज बार-बार उन्हें पुलिस से सचेत रहने को कहता था। वह जल्द से जल्द धमाकों को अंजाम दिलवाना चाहता था।
स्पेशल सेल अधिकारियों के अनुसार विस्फोटकों का इंतजाम जोधपुर पुलिस की गिरफ्त में मौजूद आइएम आतंकी बरकत अली ने किया था। शाकिब अंसारी और बरकत पहले जोधपुर मेंचीरघर स्थित एक ही मोहल्ले में रहते थे। करीब चार साल से दोनों एक-दूसरे के संपर्क में थे। शाकिब ने बताया कि महरूफ के माध्यम से परिचय होने के बाद रियाज भटकल से उसकी सीधे बातचीत होने लगी थी। रियाज ने उससे जेहाद के लिए विस्फोटकों का इंतजाम करने को कहा। उसने करीब छह माह पूर्व बरकत अली से इसका जिक्र किया। शाकिब ने बिल्डर बरकत अली को आइएम से अपने संपर्क के बारे में भी बताया था। बरकत यह जानकर काफी प्रभावित हुआ। उसने भी जेहाद की लड़ाई में पूरा साथ देने की बात कही थी।

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