क्या आप जानते हैं जब पहली बार नेताजी हिटलर से मिले थे तब क्या क्या हुआ था ..?
जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पहली बार हिटलर से मिले थे तब की बड़ी ही रोचक कहानी है
कहा जाता है कि हिटलर ने सुभाष चन्द्र बोस जी को पहले कमरे में बैठाया
हिटलर ने अपने कुछ नकली हिटलर अंगरक्षक रखे हुए थे और वे ठीक हिटलरकी तरह के ही थे
उनको पहचानना बहुत कठिन था
थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति हिटलर की तरह वेश भूषा में उनके सामने आया
उसने हाथ बढाया और कहा मैं हिटलर ... सुभाष जी ने भी हाथ बढाया और कहा मैं सुभाष भारत से .. मगर आप हिटलर नहीं हैं
उन्होंने बिलकुल सही पहचाना था
अब दूसरा व्यक्ति आया..बहुत ही रोबीला ... आकर खड़ा हुआ ... उसने भी हाथ आगे बढाया और कहा मैं हिटलर ..
सुभाष जी ने फिर हाथ आगे बढाया और कहा मैं सुभाष ..भारत से ...मगर आप हिटलर नहीं हो सकतेमैं यहाँ केवल हिटलर से मिलने आया हूँ
तीसरी बार पुनः एक व्यक्ति ठीक उसी तरह की वेश भूषा में आया और आकर खड़ा हुआ
इस बार सुभाष जी ने कहा...
मैं सुभाष हूँ ... भारत से आया हूँ .. पर हाथ मिलाने से पहले कृपया दस्ताने उतार दें चूँकि मैं मित्रता के बीच में दीवार नहीं चाहता
हिटलर बहुत कठोर व्यक्तित्व के माने जाते थे
उसके सामने इतनी हिम्मत से बोलने वाले बहुत कम लोग होते थे
सुभाष की हिम्मत भरी बात सुनकर और तेज भरा चेहरा देखकर उन्होंने पहली बार दस्ताने उतार दिए .. हाथ मिलाया और दोनों हमेशा के लिए मित्र बन गए
अब आप सोच रहे होंगे .. मैंने यह तो बताया ही नहीं कि हिटलर के दोनों डुप्लीकेट को सुभाष जी ने कैसे पहचाना था
बात यह थी कि वे दोनों आकर खड़े होते थे .. हाथ बढ़ाते थे और कहते थे .. मैं हिटलर हूँ
कोई भी अगर किसी दूसरे के घर मिलने जाता है तो जाने वाला पहले हाथ बढाता है ...अपना परिचय देता है न कि घर के मालिक को पहले हाथ बढ़ाना चाहिए
यही औपचारिकता होती हैतीसरी बार जब सचमुच हिटलर आये थे तब वे केवल चुपचाप खड़े हुए ..सुभाष जी ने अपना परिचय दिया .. पहले अपना हाथ बढाया और कहा मैं सुभाष हूँ
ऐसे थे हमारे नेता जी...!!
अपने मित्रों के साथ शेयर कीजिए ताकि उनको भी पता लगे....
जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पहली बार हिटलर से मिले थे तब की बड़ी ही रोचक कहानी है
कहा जाता है कि हिटलर ने सुभाष चन्द्र बोस जी को पहले कमरे में बैठाया
हिटलर ने अपने कुछ नकली हिटलर अंगरक्षक रखे हुए थे और वे ठीक हिटलरकी तरह के ही थे
उनको पहचानना बहुत कठिन था
थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति हिटलर की तरह वेश भूषा में उनके सामने आया
उसने हाथ बढाया और कहा मैं हिटलर ... सुभाष जी ने भी हाथ बढाया और कहा मैं सुभाष भारत से .. मगर आप हिटलर नहीं हैं
उन्होंने बिलकुल सही पहचाना था
अब दूसरा व्यक्ति आया..बहुत ही रोबीला ... आकर खड़ा हुआ ... उसने भी हाथ आगे बढाया और कहा मैं हिटलर ..
सुभाष जी ने फिर हाथ आगे बढाया और कहा मैं सुभाष ..भारत से ...मगर आप हिटलर नहीं हो सकतेमैं यहाँ केवल हिटलर से मिलने आया हूँ
तीसरी बार पुनः एक व्यक्ति ठीक उसी तरह की वेश भूषा में आया और आकर खड़ा हुआ
इस बार सुभाष जी ने कहा...
मैं सुभाष हूँ ... भारत से आया हूँ .. पर हाथ मिलाने से पहले कृपया दस्ताने उतार दें चूँकि मैं मित्रता के बीच में दीवार नहीं चाहता
हिटलर बहुत कठोर व्यक्तित्व के माने जाते थे
उसके सामने इतनी हिम्मत से बोलने वाले बहुत कम लोग होते थे
सुभाष की हिम्मत भरी बात सुनकर और तेज भरा चेहरा देखकर उन्होंने पहली बार दस्ताने उतार दिए .. हाथ मिलाया और दोनों हमेशा के लिए मित्र बन गए
अब आप सोच रहे होंगे .. मैंने यह तो बताया ही नहीं कि हिटलर के दोनों डुप्लीकेट को सुभाष जी ने कैसे पहचाना था
बात यह थी कि वे दोनों आकर खड़े होते थे .. हाथ बढ़ाते थे और कहते थे .. मैं हिटलर हूँ
कोई भी अगर किसी दूसरे के घर मिलने जाता है तो जाने वाला पहले हाथ बढाता है ...अपना परिचय देता है न कि घर के मालिक को पहले हाथ बढ़ाना चाहिए
यही औपचारिकता होती हैतीसरी बार जब सचमुच हिटलर आये थे तब वे केवल चुपचाप खड़े हुए ..सुभाष जी ने अपना परिचय दिया .. पहले अपना हाथ बढाया और कहा मैं सुभाष हूँ
ऐसे थे हमारे नेता जी...!!
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