Friday 23 August 2013

तुर्की एक मुस्लिम बहुमुल देश

तुर्की एक मुस्लिम बहुमुल देश है और यह वही स्थान है जहा के तानाशाही शाषक भारत देश पर आक्रमणकर्ता बने रहे थे लेकिन 1923 में एक बड़े आन्दोलन के बाद कमाल-पाशा ने देश को प्रजातन्त्र घोषित किया और स्वयं प्रथम राष्ट्रपति बने। अब राज्य लगभग निष्कण्टक हो चुका था, पर मुल्लाओं की ओर से उनका निरन्तर विरोध हो रहा था। इसपर कमाल ने सरकारी अखबारों में इस्लाम के विरुद्ध प्रचार शुरू किया। अब तो धार्मिक नेताओं ने उनके विरुद्ध फतवे जारी कर दिये और यह कहना शुरू किया कि कमाल ने अंगोरा में स्त्रियों को पर्दे से बाहर निकाल कर देश में आधुनिक नृत्य का प्रचार किया है, जिसमें पुरुष स्त्रियों से सटकर नाचते हैं, इसका अन्त होना चहिए। हर मस्जिद से यह आवाज उठायी गयी। तब कमाल ने 1924 के मार्च में खिलाफत प्रथा का अन्त किया और तुर्की को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित करते हुए एक विधेयक संसद में रखा। अधिकांश संसद सदस्यों ने इसका विरोध किया, पर कमाल ने उन्हें कसके धमकाया। उनकी इस धमकी का पुरजोर असर हुआ और विधेयक पारित हो गया।
पर भीतर-भीतर मुल्लाओं के विद्रोह की आग बराब सुलगती रही। कमाल के कई भूतपूर्व साथी मुल्लाओं के साथ मिल गये थे। इन लोगों ने विदेशी पूँजीपतियों से धन भी लिया था। कमाल ने एक दिन इनके मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर फाँसी पर चढ़ा दिया। कमाल ने देखा कि केवल फाँसी पर चढ़ाने से काम नहीं चलेगा, देश को आधुनिक रूप से शिक्षित करना है तथा पुराने रीति रिवाजों को ही नहीं, पहनावे आदि को भी समाप्त करना है।
कमाल ने पहला हमला तुर्की टोपी पर किया। इस पर विद्रोह हुए, पर कमाल ने सेना भेज दी। इसके बाद इन्होंने इस्लामी कानूनों को हटाकर उनके स्थान पर एक नई संहिता स्थापित की जिसमें स्विटज़रलैंड, जर्मनी और इटली की सब अच्छी-अच्छी बातें शामिल थीं। बहु-विवाह गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही पतियों से यह कहा गया कि वे अपनी पत्नियों के साथ ढोरों की तरह-व्यवहार न करके बराबरी का बर्ताव रखें। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार दिया गया। सेवाओं में घूस लेना निषिद्ध कर दिया गया और घूसखोरों को बहुत कड़ी सजाएँ दी गर्इं। स्त्रियों के पहनावे से पर्दा उठा दिया गया और पुरुष पुराने ढंग के परिच्छेद छोड़कर सूट पहनने लगे।
इससे भी बड़ा सुधार यह था कि अरबी लिपि को हटाकर पूरे देश में रोमन लिपि की स्थापना की गयी। कमाल स्वयं सड़कों पर जाकर रोमन वर्ण-माला में तुर्की भाषा पढ़ाते रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि सारा तुर्की संगठित होकर एक हो गया और अलगाव की भावना समाप्त हो गयी।
इसके साथ ही कमाल ने तुर्की सेना को अत्यन्त आधुनिक ढंग से संगठित किया। इस प्रकार तुर्क जाति कमाल पाशा के कारण आधुनिक जाति बनी। सन् 1938 के नवम्बर मास की 10 तारीख को मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क की मृत्यु हुई तब तक आधुनिक तुर्की के निर्माता के रूप में उनका नाम संसार में सूरज की तरह चमक चुका था। आज भी तुर्की चमक रहा है... आशा करे कि हमारे देश में भी वोटबेंक और कट्टरवाद की राजनीती ख़त्म हो और सही मायने में यह देश धर्मनिरपेक्ष हो. ऐसा देश जहा पर धर्म के आधार पर सरकारी नीतियों में एक दुसरे से भेद न हो...सिर्फ एकता हो..
जय बक्क्षी (अड्मिन)

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