एक ट्रक ड्राइवर अपने सामानडिलेवरी करने के लिए मेंटल हॉस्पिटल गया. सामान डिलेवरी के पश्चात वापस लौटते समय उसने देखा कि उसके ट्रक का एक पहिया पंचरहो गया. ड्राइवर ने स्टेपनी निकाल कर पहिया खोला पर गलती से उसके हाथ से पहिये कसने के चारों बोल्ट पास कीगहरी नाली में गिर गए जहाँ से निकालना संभव न था. अब ड्राइवर बहुत ही परेशान हो गया कि वापस कैसे जाए.
इतने में पास से मेंटल हॉस्पिटल का एक मरीज गुजरा. उसने ड्राइवर से कि क्या बात है. ड्राइवर ने मरीज को बहुत ही हिकारत से देखते हुए सोच कि यह पागल क्या कर लेगा. फिर भी उसने मरीज को पूरी बात बता दी.
मरीज ने ड्राइवर के ऊपर हँसते हुए कहा कि तुम इतनी छोटी समस्या का समाधान भी नहीं कर सकते हो और इसीलियेतुम ड्राइवर ही हो.
ड्राइवर को एक पागलपन के मरीज से इस प्रकार का संबोधन अच्छा नहीं लगा और उसने मरीज से चेतावनी भरे शब्दों में पूछा कि तुम क्या कर सकते हो?
मरीज ने जवाब दियाकि बहुत ही साधारण बात है. बाकी के तीन पहियों से एक एक बोल्ट निकाल कर पहिया कस लो और फिर नजदीक की ऑटो परत की दुकान के पास जाकर नए बोल्टखरीद लो.
ड्राइवर इस सुझाव से बहुत ही प्रभावित हुआ और उसने मरीज से पूछा कि तुम इतने बुद्धिमान हो फिर इस हॉस्पिटल में क्यों हो?
मरीज ने जवाब दिया कि, "मैं सनकी हूँ पर मूर्ख नहीं."
कोई आश्चर्य की बात नहीं किकुछ लोग ट्रक ड्राइवर की तरह व्यवहार करते हैं, सोचते हैं कि दूसरे लोग मूर्ख हैं. अतः हम सब ज्ञानीऔर पढ़ें लिखे हैं, पर निरीक्षण करें कि हमारे आस्पास इस प्रकार के सनकी व्यक्ति भी रहते हैं जिनसे ढेर सारे व्यावहारिक जीवन के नुस्खे मिल सकते हैं और जो हमारी बुद्धिमत्ता को ललकारते रहेंगे.
कहानी से सीख : कभी भी यह न सोचे कि आपको सब कुछ आता है और दूसरे लोगों को उनके बाहरी आवरण / दिखावट के आधार पर उनके ज्ञान का अंदाज़ न लगाये.
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दवाई का असर ---
एलोपेथी की कई दवाइयों को भी पेड़ पौधों से ही बनाया जाता है. फिर क्या कारण है की उन दवाइयों के खतरनाक साइड इफेक्ट होते है , जब की जड़ी बूटियों के नहीं ....
एलोपेथी में पेड़ पौधों से उस केमिकल तत्व को अलग कर लिया जाता है , जिसे वे मानते है की औषधि के रूप में कार्य कर रहा है. पर ऐसे कई अन्य रासायनिक तत्व उस जड़ी बूटी में है जो कार्य करते है और वात -पित्त -कफ का संतुलन बनाए रखते है. एक हीतत्व लेने से वह संतुलन बिगड़ जाता है और साइड इफेक्ट हो जाता है. इसलिए एक तत्व लेने की अपेक्षा , पुरे ही पौधे के अंग का कूट पीस कर इस्तेमाल बेहतर होता है. पौधे का वह अंग पत्ती , जड़ , फूल , बीज या छाल कुछ भी हो सकता है.
इसी तरह दवाई बनाते समय की भावना भी दवाई के असर को कम या ज़्यादा कर देती है. अगर वह दवा धन कमाने की भावना से बनती है , तो उसका असर बहुत कम होता है , जो आज कल के हर्बल सेंटर्स में देखा जा सकता है. अगर वहीँ दवाई , कोई सेवाभावी वैद्य सेवा की भावना से बनाए , तो उसका असर कई गुना बढ़ जाता है . इसका कारण यह है की पेड़ पौधों में भी प्राण तत्व होता है .
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मिलखा सिह कभी पाकिस्तान मे
दोड्ना नहीं चाहते थे क्यौंकी 1947 के दंगे मे
उनका सारा परिवार मारा गया था वो अकेले
रेह गए थे तब वो बच्चे थे,,और तब वो पाकिस्तान
से एक ट्रेन पे चड़ के भारत आ गए बाद मे भारतीय
सेना मे गए उसके बाद उनका सफर सुरू हुवा,,,और
जब आखरी बार वो पाकिस्तान मे दोड़े
उनको वहा जाना नहीं था यहा तक
की वो पाकिस्तान नामके देश का नाम
भी नहीं सुन ना चाहते थे पर जब उनपे बहोत
ज्यादा राजनेतिक दबाव आया तब
वो पाकिस्तान मे दोड़े,,
और एसा कहा जाता हे की वो पाकिस्तान मे दोड़े
नहीं थे उड़े थे,,,इसीलिए उनको ''फ्लाइंग सीख''
नाम से बुलाया जाने लगा,,,
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