Wednesday, 17 July 2013

छोटा बारी

छोटा बारी
उस समय मिर्झाखान नाम का जो पठाण मुख्य जमादार हुआ करता था । बो बहुतही बेरहम था । उसके लिये हिंदू कैदीओकी और से १२-१५ रोटीयॉं हररोज चाहीये । अगर कीसीने रोटीयॉं दी नही तो उसे किसी चीज मे गलती निकाल कर उसे मारा पीटा जाता था । अंदमान में हप्तेमें दो बार थोडा घी मिलता था । घी मिलने के दिन बंदीवानोंसे घी छीनकर यह पठाण वॉर्डर और पेटी ऑफीसर पीया करते थे । एकबार एक हिंदू कैदी ने पठाणोको घी देने के बजाए खुद ही खा लीया । यह बात जब उस पेटी ऑफीसर को पता चली तब उसने हिंदू कैदीओं के पंक्ति में घुस कर बोला ‘‘ऐ हरामी, नरोटी क्यों लिया ?’’ (जेल में फटी हुई नरोटी पास रखना अपराध माना जाता था ।) और उसकी चोटी पकडकर उसके पीठ पर लातो की बौछार कर दी । इतना जोर से मारा के उसकी चोटी खिसककर हाथ मे आगई । और बोला ‘‘काफर ! चोटीवाला काफर !’’ और गालिया देता रहा । कैदी की चीखे सुनकर मिर्झाखान आया और उसके पेटी ऑफिसरको देखकर उल्टा उस कैदी को नरोटी साथ रखी इसलीये साथ ले गया । मे ये सब देख रहा था । मैने जाते जाते उसे (हिंदू कैदीको) ऑखोही आँखोमे इशारा कर कह रहा था के मेरा नाम साक्षीदार कर के बताओ । इसीलीये उसने (हिंदू कैदीने) मेरा नाम साक्षीदार कर के बताया । मुझे बुलावा आया, मेने सीधा सीधा बताया के ‘‘के ये बलुचीस्तानी पठान घी मांग रहा था, और इस हिंदू कैदीने देनेसे मना कर दिया इसी वजह से हिंदू कैदी को बेरहमी से मारा पीटा गया ।’’ तब छोटा बारी मुझपर चिल्लाकर बोला ‘‘हुजुर अे बडा बाबू हरबखत हम मुसलमानोंके उपर झूटी ग्वाही देता है !’’ मेने बंदीपाल को बताया के, इस बार बलुची पठानोने पत्रेके छपरी में चुराया हुआ घी रखा है । चलिए मे दिखाता हूँ । बंदीपाल को मेरे साथ आना ही पडा । वो हर बार मिर्झाखान के लोगों को बचाने मे लगा रहता था । इसबार मैने बिच-बचाव किया इसीलीये वो खडा होकर घी ढुंढने निकला । उसे घी का लोटा मिल गया । साक्ष मेरी थी । मेने मारपीट, गाली गलोच और चोटी खीचकर काफर-काफर वाली बाते बता दी । सुपरिटेंडेंट गुस्से से लाल हो गया और उसने पेटी बलुची पठाण को कामकरी बंदीवान बना दिया और उसे कष्ट गीरे एैसे काम को लगा दिया ।

- माझी जन्मठेप (मेरा आजीवन कारावास), पन्ना क्र. 178
..........................................................................................
राजा नृप सिंह के प्रधानमंत्री वृद्ध हो गए थे। राजा ने प्रजा के बीच से किसी योग्य और व्यवहार कुशल व्यक्ति को यह पद देने का निर्णय किया। घोषणा करवा दी गई। प्रधानमंत्री बनने को इच्छुक अनेक लोग आए।

सभी उम्मीदवारों की छंटनी करने के बाद तीन को चुना गया। वे काफी पढ़े-लिखे विद्वान थे पर उनकी व्यवहार कुशलता की परीक्षा के लिए राजा ने उनसे कहा, 'तुम तीनों को अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया जाएगा और बाहर से ताला लगा दिया जाएगा। तुम में से जो भी व्यक्ति आधे घंटे के अंदर ताला खोल कर बाहर आ जाएगा, उसे ही प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा।'

यह सुनकर तीनों हैरत से एक-दूसरे को देखने लगे। उन्हें यह असंभव सी परीक्षा लगी। कुछ देर बाद उन्हें कमरे में बंद कर दिया गया। पहले कमरे में बंद व्यक्ति ने सोचा कि मात्र आधे घंटे में बाहर से बंद ताले को खोलना असंभव है। वह चुपचाप वहां रखे बिस्तर पर लेट गया। दूसरे कमरे में बंद व्यक्ति इधर-उधर घूमता रहा और सोचता रहा कि किस तरह बाहर के ताले को अंदर से खोला जा सकता है। लेकिन उसे भी कुछ नजर नहीं आया। तभी तीसरे कमरे का दरवाजा खुला और बाहर खड़े दूतों ने आवाज लगाई -'नए प्रधानमंत्री की जय हो।'

दोनों कमरों में बंद व्यक्ति बेचैनी से सोचते रहे कि तीसरे व्यक्ति ने दरवाजा कैसे खोला? इसके बाद दोनों उम्मीदवारों को राजा के सामने बुलाया गया। राजा ने कहा, 'तीसरे उम्मीदवार ने परीक्षा में सफलता पाई है। प्रधानमंत्री को शिक्षित होने के साथ-साथ व्यवहार कुशल होना भी जरूरी है। वास्तव में कमरों में ताला लगाया ही नहीं गया था। केवल तीसरे को छोड़कर आपने इसे खोलने का प्रयास ही नहीं किया। जबकि तीसरे ने इस पर विचार किया कि जब सवाल दिया गया है तो निश्चित समय में ही उसका हल भी आसपास होगा। इसलिए वह विजयी रहा।' दोनों उम्मीदवार लज्जित हो गए।

........................................................................................

No comments:

Post a Comment