Wednesday, 17 July 2013

अंततः दिल्ली पुलिस ने अपनी "काबिलियत" और मर्दानगी दिखाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में हिन्दी में मुक़दमे लड़ने की माँग करने वाले श्री श्याम रूद्र पाठक को गिरफ्तार कर लिया है. 

1980 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में टॉप करने वाले श्याम रुद्र पाठक जी ने पिछले २२५ दिनों तक सोनिया गाँधी के निवास के सामने शांतिपूर्ण धरना दिया था. पाठक की मांग है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं को भी जगह दी जाए। सोनिया गांधी या राहुल गांधी के वहां आने पर श्री पाठक नारे लगाते थे जिसे रोकने के लिए, उन्हें पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। रोज उनकी रात तुगलक रोड थाने में कट रही थी।

तमाम तकनीकी अड़ंगों के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश ने कुछ छूट हासिल की है, जहां के उच्च न्यायालयों में, बेहद सीमित अर्थों में हिंदी का उपयोग हो सकता है। श्याम रुद्र जी इस परिपाटी की बदलना चाहते हैं ताकि आम लोग जान सकें कि उनका वकील उनकी तकलीफ का कैसा बयान अदालत में कर रहा है, क्या दलील दे रहा है और मुंसिफ महोदय का न्याय किन तर्कों पर आधारित है।

श्याम रुद्र इसे भारतीय भाषाओं का मोर्चा मानते हैं। यानी मद्रास हाईकोर्ट में तमिल में काम हो और बंबई हाईकोर्ट में मराठी में। इसी तरह यूपी सहित सभी हिंदी प्रदेशों में हिंदी में हो। सुप्रीम कोर्ट में भी हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को जगह मिले।

उन्होंने 1980 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। फिर, आईआईटी दिल्ली के छात्र हुए लेकिन बी.टेक के आखिरी साल का प्रोजेक्ट हिंदी में लिखने पर अड़ गए। संस्थान ने डिग्री देने से मना कर दिया। श्याम भी अड़ गए। मामला संसद में गूंजा तो जाकर कहीं बात बनी। लेकिन इंजीनियर बन चुके श्याम रुद्र पाठक के लिए देश विदेश में पैसा कमाना नहीं, देश की गाड़ी को भारतीय भाषाओं के इंजन से जोड़ना ही सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया। 1985 में उन्होंने भारतीय भाषाओं में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा कराने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। तमाम धरने-प्रदर्शन के बाद 1990 में ये फैसला हो पाया। अब उन्होंने भारतीय अदालतों को भारतीय भाषाओं से समृद्ध करने का बीड़ा उठाया है।

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हम सभी को उनके साथ खड़ा होना ही चाहिए, यह आपका या मेरा नहीं बल्कि यह राष्ट्रभाषा का सवाल है... 


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