कबर :-
मुस्लिम मत ने हमें दी “कबर” और “कबर पूजा” | हम नकलची हिंदू क्यों पीछे
रहते तो हम भी लग गए कबर बनाने/बनवाने और पुजवाने | पर हम हिंदुओं ने इस कबर को सुन्दर सा नाम दिया “समाधि” | हर अनपढ़ साधु (घर का भगौड़ा) के मरने के बाद हमने उसे गाडना शुरू कर दिया और कहने लगे “समाधि” जब कि वेद में साफ़ लिखा है कि मरने के बाद शरीर को गाडना नहीं, जलाना चाहिए ताकि शरीर अपने मूल पाँच तत्वों में जल्दी से जल्दी मिल जाये पर “हिंदू” अपनी मान्यताओं को छोडकर अन्यों कि बातों / प्रथाओं को स्वीकार करने में ही अपनी धन्यता समझता है | “कबर” को “समाधि” बता बता कर जब ये कबरें सामान्य हो गयी तो तब भी हमने हार नहीं मानी और किसी बड़े साधु के मरने पर बनी कबर को “महासमाधि” तक कहने लगे जैसे पुट्टपर्थी के साईं बाबा को हाल ही में दी गयी समाधि(कबर) को समाधि न कह कर हम उसे महासमाधि कहते है जैसे तो बहुत बड़ी उपलब्धि न हो | आपको याद होगा कुछ वर्षों पूर्व जब दूरदर्शन पर महाभारत धारावाहिक आता था तब सारे विज्ञापनों में महाभारत कि नक़ल कर के अपने उत्पाद को “महा” बताते थे | तो अब अगला चलन होगा “महासमाधि” का, जब भी कोई प्रसिद्ध साधु मृत्यु को प्राप्त होगा तो उसकी कबर(समाधि)नहीं, पर महाकबर (महासमाधि) बनेगी | “महासमाधि” की तुलना हम मुस्लिम मत द्वारा बनाई जा रही “गाजी-कबर” से कर सकते है | गाजी कबर में शरीर के नाप के अनुसार नहीं, पर कबर, गज के अनुसार बनाई जाती है | जहाँ-जहाँ आप शरीर के नाप से लंबी कबर देखें तो समझ लें कि वह गाजी-कबर है | ये गाजी कबरें केवल जमीन घेरने के लिए ही बनाई जाती है और मूर्खों के सामने उसकी महिमा गा- गाकर लूटने के लिए ही बनाई जाती है | कृपा कर कबर (समाधि) बनने से बचें | आज तक आपने आदि शंकराचार्य की, पाणिनि, संदीपनी, शंकर, हनुमान, राम, कृष्ण, अम्बा, गुरु नानक जी, आदि देवी-देवताओं या किसी विद्वान कि कबर नहीं सुनी होगी और नहीं देखी होगी क्यों कि ये सारे देवी-देवता, विद्वान वेद के अनुसार अपने शरीर को अग्नि को सौप देते थे न कि जमीन को | ये ऊपर गिनाये सारे विद्वान, देवी-देवता किसी न किसी महान् कार्य के लिए या उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक के लिए याद किये जाते है पर आज के अनपढ़ साधुओं ने तो कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके कारण वे याद किये जाय इसलिए अपना स्मारक कबर बनवा कर लोगों से पुजवाते हैं | पाणिनि अपनी अष्टाध्यायी के कारण याद किये जाते है पर आज के साधु ?? कबर के कारण | कृपा कर कबर बनाने/बनवाने से बचे और अन्यों को भी प्रेरित करें कि जमीन में नहीं, शरीर को मरने के बाद जला देना ही उत्तम है |
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मुस्लिम मत ने हमें दी “कबर” और “कबर पूजा” | हम नकलची हिंदू क्यों पीछे
रहते तो हम भी लग गए कबर बनाने/बनवाने और पुजवाने | पर हम हिंदुओं ने इस कबर को सुन्दर सा नाम दिया “समाधि” | हर अनपढ़ साधु (घर का भगौड़ा) के मरने के बाद हमने उसे गाडना शुरू कर दिया और कहने लगे “समाधि” जब कि वेद में साफ़ लिखा है कि मरने के बाद शरीर को गाडना नहीं, जलाना चाहिए ताकि शरीर अपने मूल पाँच तत्वों में जल्दी से जल्दी मिल जाये पर “हिंदू” अपनी मान्यताओं को छोडकर अन्यों कि बातों / प्रथाओं को स्वीकार करने में ही अपनी धन्यता समझता है | “कबर” को “समाधि” बता बता कर जब ये कबरें सामान्य हो गयी तो तब भी हमने हार नहीं मानी और किसी बड़े साधु के मरने पर बनी कबर को “महासमाधि” तक कहने लगे जैसे पुट्टपर्थी के साईं बाबा को हाल ही में दी गयी समाधि(कबर) को समाधि न कह कर हम उसे महासमाधि कहते है जैसे तो बहुत बड़ी उपलब्धि न हो | आपको याद होगा कुछ वर्षों पूर्व जब दूरदर्शन पर महाभारत धारावाहिक आता था तब सारे विज्ञापनों में महाभारत कि नक़ल कर के अपने उत्पाद को “महा” बताते थे | तो अब अगला चलन होगा “महासमाधि” का, जब भी कोई प्रसिद्ध साधु मृत्यु को प्राप्त होगा तो उसकी कबर(समाधि)नहीं, पर महाकबर (महासमाधि) बनेगी | “महासमाधि” की तुलना हम मुस्लिम मत द्वारा बनाई जा रही “गाजी-कबर” से कर सकते है | गाजी कबर में शरीर के नाप के अनुसार नहीं, पर कबर, गज के अनुसार बनाई जाती है | जहाँ-जहाँ आप शरीर के नाप से लंबी कबर देखें तो समझ लें कि वह गाजी-कबर है | ये गाजी कबरें केवल जमीन घेरने के लिए ही बनाई जाती है और मूर्खों के सामने उसकी महिमा गा- गाकर लूटने के लिए ही बनाई जाती है | कृपा कर कबर (समाधि) बनने से बचें | आज तक आपने आदि शंकराचार्य की, पाणिनि, संदीपनी, शंकर, हनुमान, राम, कृष्ण, अम्बा, गुरु नानक जी, आदि देवी-देवताओं या किसी विद्वान कि कबर नहीं सुनी होगी और नहीं देखी होगी क्यों कि ये सारे देवी-देवता, विद्वान वेद के अनुसार अपने शरीर को अग्नि को सौप देते थे न कि जमीन को | ये ऊपर गिनाये सारे विद्वान, देवी-देवता किसी न किसी महान् कार्य के लिए या उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक के लिए याद किये जाते है पर आज के अनपढ़ साधुओं ने तो कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके कारण वे याद किये जाय इसलिए अपना स्मारक कबर बनवा कर लोगों से पुजवाते हैं | पाणिनि अपनी अष्टाध्यायी के कारण याद किये जाते है पर आज के साधु ?? कबर के कारण | कृपा कर कबर बनाने/बनवाने से बचे और अन्यों को भी प्रेरित करें कि जमीन में नहीं, शरीर को मरने के बाद जला देना ही उत्तम है |
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