Monday 7 July 2014

शरई अदालतों की वैधानिकता ...........
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नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। इस्लामिक कानून के तहत कुरान और हदीस की रोशनी में मुसलमानों के पारिवारिक झगड़ों को निपटाने वाली शरई अदालतें वैधानिक हैं या नहीं। साथ ही इन काजी कोर्ट से जारी होने वाले फैसलों की कानूनी हैसियत क्या है? इस पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को फैसला सुनाएगा। इतना ही नहीं मुस्लिम धर्म गुरुओं की ओर जारी होने वाले फतवे पर रोक लगाने की मांग पर भी कोर्ट अपना फैसला देगा।
वकील विश्व लोचन मदान ने नौ साल पहले 2005 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर शरई अदालतों की वैधानिकता को चुनौती दी थी। मदान ने ऐसी अदालतें समाप्त करने व फतवे पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 25 फरवरी को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को न्यायमूर्ति सीके प्रसाद व पिनाकी चंद्र घोष की पीठ फैसला सुनाएगी।
मदान ने दलील दी थी कि शरई अदालतें देश में समानान्तर न्याय व्यवस्था चला रही हैं जो कि गैर कानूनी है। मुसलमानों के मौलिक अधिकार इस तरह काजी और मुफ्ती के फतवे से नियंत्रित नहीं किए जा सकते। याचिकाकर्ता का कहना था कि दारूल क़ज़ा और दारूल इफ्ता (शरई अदालतें जहां से फैसले और फतवे जारी होते हैं) मुस्लिम बहुल क्षेत्र के 52 से 60 जिलों में काम करती हैं। मुसलमान इनके फैसलों के खिलाफ नहीं जा सकते। ये नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दखल है। हालांकि पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस देश के लोग काफी बुद्धिमान हैं। अगर दो मुसलमान मध्यस्थता के लिए राजी हों तो उन्हें कौन रोक सकता है?
इस मामले में केंद्र सरकार की दलील थी कि शरई अदालतों की कानूनी मान्यता नहीं है। इनके आदेश और फतवे लोगों पर बाध्यकारी नहीं है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और दारूल उलूम देवबंद ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी थी कि शरई अदालतें समानान्तर न्याय व्यवस्था नहीं चला रही हैं बल्कि ये आपसी झगड़ों को अदालत के बाहर निपटा कर अदालतों में मुकदमों का बोझ कम करती हैं। फतवे बाध्यकारी नहीं सलाह मात्र होते हैं।
ऐसे काम करती हैं शरई अदालतें
जब कोई व्यक्ति किसी पारिवारिक, संपत्ति या विवाह के विवाद में इस्लाम धर्म के मुताबिक फैसले के लिए काजी या मुफ्ती के समक्ष अर्जी देता है तो मुफ्ती या काजी उस अर्जी पर दूसरे पक्षकार को नोटिस जारी कर बुलाता है। दोनों पक्षों की दलीलें और गवाही सुनने के बाद शरीयत के मुताबिक फैसला देता है। इस्लामी कानून में इन अदालतों की मान्यता है।
ऐसे जारी होते हैं फतवे
जब कोई व्यक्ति मुफ्ती या काजी से किसी मसले पर राय मांगता है तो काजी या मुफ्ती कुरान और हदीस के मुताबिक उस मसले पर जो राय देता है, उसे फतवा कहा जाता है।
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