Monday, 7 July 2014

·जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं

क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा कि किसी मुस्लिम राष्ट्र का कोई प्रधानमंत्री या बड़ा नेता तोकियो की यात्रा पर गया हो? अथवा सऊदी अरब के राजा ने जापान की यात्रा की हो?
कारण
· जापान में अब किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाजत नहीं दी जाती है।
· जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है।
· जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाएं नहीं पढ़ायी जातीं।
· जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयात नहीं की जा सकती है।
· सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान हैं।और ये भी वही हैं जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान की है।
· सभी मुस्लिम नागरिक जापानी बोलते हैं और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं।
· जापान विश्व का ऐसा देश है जहां मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर हैं।
· जापानी इस्लाम के प्रति कोई रुचि नहीं रखते हैं।
· आज वहां जितने भी मुसलमान हैं वे ज्यादातर विदेशी कम्पनियों के कर्मचारी ही हैं।
· परन्तु आज कोई बाहरी कम्पनी अपने यहां से मुसलमान डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को वहां भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश की अनुमति नहीं देती है।अधिकतर जापानी कम्पनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई भी मुसलमान उनके यहां नौकरी के लिए आवेदन न करे।
·जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं इसलिए आज के इस वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम नहीं बदलना चाहते हैं।
·जापान में किराए पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।यदि किसी जापानी को उसके पड़ोस के मकान में अमुक मुस्लिम के किराये पर रहने की खबर मिले तो सारा मोहल्ला सतर्क हो जाता है।
· जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है।
मतांतरण पर रोक
· जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबंदी है।
· किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे और साथ ही मतान्तरण कराने वाले को सख्त सजा दी जाती है।
· यदि किसी विदेशी ने यह हरकत की होती है उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़कर चले जाने का सख्त आदेश देती है।
· यहां तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान में दिखाई नहीं देतीं।वेटिकन के पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है। एक तो यह कि वे 20वीं शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान की तरह ईसाई देश नहीं बना सके।दूसरा यह कि जापान में ईसाइयों की संख्या में वृध्दि नहीं हो सकी।
·जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते। बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाए तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते हैंजापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है। यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है।
.जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है।तोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब है।उसमें समन्वय की गुंजाइश नहीं है।
स्वतंत्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने 9/11 की घटना के पश्चात अनेक देशों की यात्रा की थी। वह जापान भी गए, लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जापानियों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि कोई आतंकवादी उनके यहां पर भी नहीं मार सकता।
सन्दर्भ· जापान सम्बंधी इस चौंका देने वाली जानकारी के स्रोत हैं शरणार्थी मामले देखने वाली संस्था 'सॉलीडेरिटी नेटवर्क' के महासचिव जनरल मनामी यातु।मुजफ्फर हुसैन द्वारा लिखित लेख के कुछ मुख्य बिन्दु जो कि पांचजन्य, के 30 मई, 2010 के अंक से लिए गए हैं।
 माँ भारती हमारे यहाँ के छद्म सेकुलरों, खरे सेकुलरों और नवजात सेकुलरों को सद्बुद्धि दे .........
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शरीयत कोर्ट को कानूनी मान्यता नहीं लेकिन राय देने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
http://zeenews.india.com/hindi/news/india/sharia-courts-fatwa-illegal-supreme-court/227335

सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत कोर्ट को कानूनी मान्यता नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शरीयत कोर्ट को राय देने का अधिकार है लेकिन वह दो लोगों के मामले में नहीं पड़े। कोर्ट ने कहा है कि शरीयत का फतवा मानना जरूरी नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत कोर्ट पर पाबंदी नहीं लगाई है और असंवैधानिक मानने से इंकार कर दिया है।

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