Monday, 24 March 2014

सुप्रीमकोर्ट पहले ही निर्देश जारी कर चुकी है की भारत में
एक समान नागरिक संहिता लागू करो..सरकार वोटबैंक के
चक्कर में ऐसा नहीं कर
रही है. .मुसलमानों के लिए अलग से ''शरिया कानून''
की छूट दी है......
मुसलमानों की यह दलील है की शरीयत का कानून कुरान
पर आधारित है और इसे ख़ुद अल्लाह ने बनाया है ,इसलिए
इसमे किसी प्रकार का परिवर्तन या सुधार करना सम्भव नहीं
है शरीयत संविधान और देश के कानून से ऊपर है
चलो मान लेते है.......किन्तु उसी शरिया कानून से सारे
मुस्लिमो को सजा दो........
कुरान की सूरे मायदा 5 की आयत 33 में कुछ अपराधों और
उनकी सजाओं के बारे में लिखा है ,जिसे इस्लामी परिभाषा में
हुदूद कहा जाता है .इसके
अनुसार-
1-व्यभिचार करने की सज़ा पत्थर मार कर जान
लेना है ,जिसे रजम कहा जाता है .
2-यदि कोई मुसलमान विवाहित मुस्लिम व्यक्ती पर
व्यभिचार का झूठा आरोप लगाए तो उसे 80 कोडे मारे
जायेंगे।
3-इस्लाम धर्म छोड़ने की सज़ा मौत है .
4-शराब पीने की सज़ा 80 कोडे .
5-चोरी करने पर कलाई के ऊपर से दायाँ हाथ काटना .
6-रहज़नी और लूट के लिए हाथ पैर काटने की सज़ा .
7-डाका डालना जिस से किसी की मौत भी हो जाए ,तो
इसकी सज़ा तलवार कत्ल करना या सूली चढाना है .
यदि यही शरीयत का कानून है तो सभी मुसलमान के
ऊपर यह कानून लागू होना चाहिए .....देश मे मुस्लिमो
के ऊपर ''शरिया कानून'''से ही सजा सुनाये...........
लेकिन इन अपराधों के लिए मुस्लमान
यहाँ की अदालतों में ही जाना क्यों पसंद करते हैं .कारण
साफ़ है की ,ज्यादातर मुसलमान इन्हीं अपराधों के
दोषी पाये जाते हैं ,और अगर शरीयत के मुताबिक उन्हें
सज़ा दी जायेगी तो एक दो साल में ही मुसलामानों की संख्या
आधी रह जायेगी .......
भारतीय कानून के चलते उनको बचने की अधिक संभावना है .
वह दोनों हाथो मे लड्डू रखना चाहते हैं । --------

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