आजकल मै रुस में हुई क्रांति जिसे "बोल्शेविक क्रांति" कहते है उस पर महान लेखक ओरलेंडो फिगेस की लिखी किताब "द पीपल्स ट्रेजेडी" का हिंदी अनुवाद पढ़ रहा हूँ | पढकर बहुत चकित और दंग हूँ | रूस में कम्युनिस्टो के द्वारा की गयी खुनी क्रांति और फिर उसके बाद सोवियत संघ का टूटकर १८ नये देशो में बिखराव और भारत में केजरीवाल के द्वारा आम आदमी पार्टी के उदय और सत्ता पाने में पूरी तरह से समानता दिख रही है |
रूस में कम्युनिस्ट दोगले लेनिन के नेतृत्व में कई सालो तक चले गुरिल्ला छापामार लड़ाई के बाद भी जब सत्ता नही हथिया सके तो उन्होंने एक बड़ी खतरनाक योजना बनाई | उन्होंने देखा की सिर्फ जंगलो के रहने वाले आदिवासीयों और दूरदराज के किसानो को भड़काकर रूस के जारशाही को खत्म नही किया जा सकता .. बल्कि इसके लिए शहरों में रहने वाले सुतिये किस्म के कुलडूडो को हसीन सपने और सब्जबाग दिखाकर उनका भी समर्थन लेना होगा | इस रूस के कम्यूनिस्टो के इसके लिए अपने कई चुनिन्दा कामरेडों को रूस के प्रमुख शहरों जैसे सेंट पीट्सबर्ग, मास्को में छद्मनामो और छद्मावरण से ढककर रहने के लिए भेज दिया | खुद लेनिन सेंट पीट्सबर्ग में छद्मनाम से रहने लगे थे | इन दोगले छद्मवेश वाले माओवादीओ का मकसद था की शहरी आबादी में घुलमिलकर लोगो को वर्तमान सत्ता और सिस्टम के खिलाफ भडकाना | ये माओवादी किसी आम शहरी का वेशभूषा में होटलों, कालेजो, विश्वविधालयो आदि जगहों पर जाते थे और युवाओ को वर्तमान सत्ता और सिस्टम के खिलाफ भडकाते थे और उन्हें हसीन सपने सब्जबाग दिखाते थे | वे कहते थे की रूस की हर समस्या का जड़ ये जारशाही है .. यदि जार का तख्तापलट हो जायेगा तो हम ऐसा राज देंगे तो आप लोगो के द्वारा ही संचालित होगा | आपलोग ही सत्ता चलाओगे और आप अपनी मर्जी के मालिक होगे | रूस की भोलीभाली आम जनता इन दोगले शेर की खाल में छिपे नक्सलियों को नही पहचान सकी और इनकी मीठी मीठी बातो के जाल में फंस गयी | फिर उसके बाद रूस के सत्ता के लिए खुनी संघर्ष हुआ और रूस के जार को उसके पुरे परिवार के साथ मार डाला गया | यहाँ तक की पुरे जार के पुरे खानदान को खत्म कर दिया गया था | फिर लेनिन ने खुद सत्ता सम्भाली और जो लेनिन क्रांति के पहले बड़ी बड़ी सादगी की बाते करते थे वो उसी जार के विशाल महल में रहने लगे जिसको कहते थे की क्रांति के बाद इसे हम यूनिवसिर्टी बना देंगे |
और तो और लेनिन के सेंट पीट्सबर्ग शहर का नाम भी अपने नाम पर लेनिनग्राद कर दिया और पुरे रूस में जगह जगह अपनी मुर्तिया लगवाई | और रूस के अगल बगल के दुसरे तमाम देशो पर हमला करके एक सोवियत यूनियन बना दिया | फिर थोड़े समय के बाद ही कम्युनिस्ट आपस में सत्ता के लिए लड़ने लगे और लेनिन के चेले स्टॅलिन ने लेनिन को हटाकर खुद ही सोवियत संघ की सत्ता अपने हाथो में ले ली | ये कम्युनिस्ट अपने आपको धर्म, जाति, नस्ल आदि से परे बताते है लेकिन जब यूपी के प्रतापगढ़ के राजा ब्रिजेश सिंह को नेहरु ने सोवियत संघ में भारत किआ राजदूत बनाकर भेजा और थोड़े समय के बाद ही ब्रिजेश सिंह और स्टॅलिन की खुबसूरत बेटी स्वेतलाना में प्रेम हो गया और इस बात की जानकारी पर स्टॅलिन को हुयी तो वो भड़क उठा .. लेकिन ब्रिजेश सिंह स्वेतलाना को चुप के से भगाकर भारत ले आये ..स्टॅलिन ने नेहरु को धमकी दी की मेरी बेटी को मेरे हवाले करो वरना अंजाम बुरा होगा | फट्टू नेहरु डर गया फिर ब्रिजेश सिंह और स्वेतलाना अमेरिका चले गये | और अमेरिका ने उन्हें शरण दे दिया |
खैर, इन कम्युनिस्ट दोगलो ने सत्ता हाथ में आते ही अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया और देश में तानाशाही थोप दी .. और आम जनता को गुलामो की तरह समझना शुरू कर दिया | लेकीन बाद में सोवियत संघ की जनता का धैर्य जबाब दे गया और जनता इन वामपंथी दोगलो से आज़ाद हो गयी और सोवियत संघ का नामोनिशान तक मिट गया और विश्व के मानचित्र पर १८ नये देशो का उदय हुआ |
आज जब मै केजरीवाल, संजय सिंह, गोपाल राय को बोलते देखता हु तो मुझे रूस की बोल्शेविक खुनी क्रांति याद आ जाती है | क्योकि इस पूरी गैंग का इतिहास वामपंथी रहा है | और ये दोगले उसी नियम का पालन कर रहे है जिस नियम से लेनिन ने रूस की जनता को मुर्ख बनाकर सत्ता हथियाई थी
रूस में कम्युनिस्ट दोगले लेनिन के नेतृत्व में कई सालो तक चले गुरिल्ला छापामार लड़ाई के बाद भी जब सत्ता नही हथिया सके तो उन्होंने एक बड़ी खतरनाक योजना बनाई | उन्होंने देखा की सिर्फ जंगलो के रहने वाले आदिवासीयों और दूरदराज के किसानो को भड़काकर रूस के जारशाही को खत्म नही किया जा सकता .. बल्कि इसके लिए शहरों में रहने वाले सुतिये किस्म के कुलडूडो को हसीन सपने और सब्जबाग दिखाकर उनका भी समर्थन लेना होगा | इस रूस के कम्यूनिस्टो के इसके लिए अपने कई चुनिन्दा कामरेडों को रूस के प्रमुख शहरों जैसे सेंट पीट्सबर्ग, मास्को में छद्मनामो और छद्मावरण से ढककर रहने के लिए भेज दिया | खुद लेनिन सेंट पीट्सबर्ग में छद्मनाम से रहने लगे थे | इन दोगले छद्मवेश वाले माओवादीओ का मकसद था की शहरी आबादी में घुलमिलकर लोगो को वर्तमान सत्ता और सिस्टम के खिलाफ भडकाना | ये माओवादी किसी आम शहरी का वेशभूषा में होटलों, कालेजो, विश्वविधालयो आदि जगहों पर जाते थे और युवाओ को वर्तमान सत्ता और सिस्टम के खिलाफ भडकाते थे और उन्हें हसीन सपने सब्जबाग दिखाते थे | वे कहते थे की रूस की हर समस्या का जड़ ये जारशाही है .. यदि जार का तख्तापलट हो जायेगा तो हम ऐसा राज देंगे तो आप लोगो के द्वारा ही संचालित होगा | आपलोग ही सत्ता चलाओगे और आप अपनी मर्जी के मालिक होगे | रूस की भोलीभाली आम जनता इन दोगले शेर की खाल में छिपे नक्सलियों को नही पहचान सकी और इनकी मीठी मीठी बातो के जाल में फंस गयी | फिर उसके बाद रूस के सत्ता के लिए खुनी संघर्ष हुआ और रूस के जार को उसके पुरे परिवार के साथ मार डाला गया | यहाँ तक की पुरे जार के पुरे खानदान को खत्म कर दिया गया था | फिर लेनिन ने खुद सत्ता सम्भाली और जो लेनिन क्रांति के पहले बड़ी बड़ी सादगी की बाते करते थे वो उसी जार के विशाल महल में रहने लगे जिसको कहते थे की क्रांति के बाद इसे हम यूनिवसिर्टी बना देंगे |
और तो और लेनिन के सेंट पीट्सबर्ग शहर का नाम भी अपने नाम पर लेनिनग्राद कर दिया और पुरे रूस में जगह जगह अपनी मुर्तिया लगवाई | और रूस के अगल बगल के दुसरे तमाम देशो पर हमला करके एक सोवियत यूनियन बना दिया | फिर थोड़े समय के बाद ही कम्युनिस्ट आपस में सत्ता के लिए लड़ने लगे और लेनिन के चेले स्टॅलिन ने लेनिन को हटाकर खुद ही सोवियत संघ की सत्ता अपने हाथो में ले ली | ये कम्युनिस्ट अपने आपको धर्म, जाति, नस्ल आदि से परे बताते है लेकिन जब यूपी के प्रतापगढ़ के राजा ब्रिजेश सिंह को नेहरु ने सोवियत संघ में भारत किआ राजदूत बनाकर भेजा और थोड़े समय के बाद ही ब्रिजेश सिंह और स्टॅलिन की खुबसूरत बेटी स्वेतलाना में प्रेम हो गया और इस बात की जानकारी पर स्टॅलिन को हुयी तो वो भड़क उठा .. लेकिन ब्रिजेश सिंह स्वेतलाना को चुप के से भगाकर भारत ले आये ..स्टॅलिन ने नेहरु को धमकी दी की मेरी बेटी को मेरे हवाले करो वरना अंजाम बुरा होगा | फट्टू नेहरु डर गया फिर ब्रिजेश सिंह और स्वेतलाना अमेरिका चले गये | और अमेरिका ने उन्हें शरण दे दिया |
खैर, इन कम्युनिस्ट दोगलो ने सत्ता हाथ में आते ही अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया और देश में तानाशाही थोप दी .. और आम जनता को गुलामो की तरह समझना शुरू कर दिया | लेकीन बाद में सोवियत संघ की जनता का धैर्य जबाब दे गया और जनता इन वामपंथी दोगलो से आज़ाद हो गयी और सोवियत संघ का नामोनिशान तक मिट गया और विश्व के मानचित्र पर १८ नये देशो का उदय हुआ |
आज जब मै केजरीवाल, संजय सिंह, गोपाल राय को बोलते देखता हु तो मुझे रूस की बोल्शेविक खुनी क्रांति याद आ जाती है | क्योकि इस पूरी गैंग का इतिहास वामपंथी रहा है | और ये दोगले उसी नियम का पालन कर रहे है जिस नियम से लेनिन ने रूस की जनता को मुर्ख बनाकर सत्ता हथियाई थी
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